नमस्कार दोस्तों, क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक प्रमुख भारतीय कंपनी का चेयरमैन अपने कर्मचारियों से कहे कि “90 घंटे प्रति सप्ताह काम करो और रविवार को भी ऑफिस आओ। आखिर कब तक अपनी पत्नी को निहारोगे?” जी हां, यह कोई काल्पनिक संवाद नहीं, बल्कि लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के चेयरमैन एस एन सुब्रमण्यन का बयान है, जिसने पूरे देश में Work-life balance और Work Culture को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ दी है। इस विवादित बयान के बाद सोशल मीडिया पर मीम्स की बाढ़ आ गई, और इसे महिला-विरोधी, असंवेदनशील और कार्यस्थल की मूलभूत नैतिकता के खिलाफ बताया जा रहा है।
आनंद महिंद्रा और अदार पूनावाला जैसे दिग्गज उद्योगपतियों ने भी इस बयान पर कटाक्ष करते हुए, वर्क-लाइफ बैलेंस और क्वालिटी वर्क को महत्व देने की बात कही। तो आखिर यह पूरा मामला क्या है? क्या वाकई 90 घंटे काम करना किसी की सफलता का मापदंड हो सकता है, या यह सिर्फ कर्मचारियों के शोषण का एक नया तरीका है? आइए, इस पूरी बहस को विस्तार से समझते हैं।
एस एन सुब्रमण्यन का विवादित बयान क्या था जिसे लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है।
एस एन सुब्रमण्यन, जो कि भारत की प्रमुख इंफ्रास्ट्रक्चर और इंजीनियरिंग कंपनी लार्सन एंड टूब्रो (L&T) के चेयरमैन हैं, उन्होंने हाल ही में अपने कर्मचारियों के लिए 90 घंटे का Workweek सुझाते हुए कहा कि “अगर मैं आपको रविवार को काम पर बुला सकूं, तो मुझे और खुशी होगी। आखिर घर बैठकर आप क्या करेंगे? कब तक अपनी पत्नी को देखोगे?”
उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बवाल मच गया। कई लोगों ने इसे असंवेदनशील, महिला-विरोधी और कार्यस्थल पर असंतुलन पैदा करने वाला करार दिया। सोशल मीडिया पर लोगों ने कटाक्ष करते हुए कहा कि एक स्वस्थ जीवन के लिए Work-life balance आवश्यक है, न कि 90 घंटे तक काम करना।
एस एन सुब्रमण्यन के बयान पर आनंद महिंद्रा और अदार पूनावाला ने क्या प्रतिक्रिया दी?
सुब्रमण्यन के बयान पर प्रतिक्रिया देने वाले पहले दिग्गजों में महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन, आनंद महिंद्रा और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला शामिल रहे। आनंद महिंद्रा ने सीधे तौर पर सुब्रमण्यन की बातों का विरोध करते हुए कहा, “काम के घंटे मायने नहीं रखते, बल्कि आपकी प्रोडक्टिविटी और काम की गुणवत्ता महत्वपूर्ण होती है। मेरी पत्नी अद्भुत हैं और मैं उन्हें देखना पसंद करता हूं।”
इसके बाद अदार पूनावाला ने भी कटाक्ष करते हुए कहा, “मेरी पत्नी नताशा पूनावाला भी सोचती हैं कि मैं अद्भुत हूं और वह रविवार को मुझे देखकर खुश होती हैं। क्वालिटी हमेशा क्वांटिटी से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है।” इन दोनों दिग्गजों ने स्पष्ट किया कि वर्क-लाइफ बैलेंस और मानसिक शांति किसी भी व्यक्ति की सफलता के लिए आवश्यक हैं।
Work Culture पर एस एन सुब्रमण्यन के बयान को लेकर सोशल मीडिया और अन्य हस्तियों ने क्या प्रतिक्रिया दी?
सुब्रमण्यन के 90 घंटे Workweek वाले बयान पर सोशल मीडिया ने भी जमकर तंज कसा। ज़ोमैटो ने व्यंग्य करते हुए ट्वीट किया – “अगर आपकी पत्नी नहीं है, तो हमारे ऐप पर ऑर्डर ट्रैकिंग को ही देखें।” पूर्व बैडमिंटन स्टार ज्वाला गुट्टा ने इस बयान को महिला-विरोधी करार देते हुए कहा, “पति-पत्नी का एक-दूसरे को देखना कब से समस्या बन गया?”
आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने भी इस पर कटाक्ष करते हुए कहा, “90 घंटे Workweek बर्नआउट का सीधा नुस्खा है। रविवार का नाम ‘सन-ड्यूटी’ कर देना चाहिए और छुट्टियों को एक मिथक बना देना चाहिए।” दीपिका पादुकोण, जो मानसिक स्वास्थ्य की एक प्रमुख समर्थक हैं, ने भी इस बयान की आलोचना करते हुए कहा कि यह वरिष्ठ पदों पर बैठे लोगों के लिए बेहद चौंकाने वाला बयान है।
वर्क-लाइफ बैलेंस का महत्व क्या है, और इस पर एक्सपर्ट्स का क्या मत है?
काम और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना किसी भी व्यक्ति की मानसिक और शारीरिक सेहत के लिए बेहद जरूरी है। Experts का मानना है कि 90 घंटे का Workweek न केवल शारीरिक थकावट, बल्कि मानसिक बर्नआउट और उत्पादकता में गिरावट का कारण बन सकता है।
Health Experts का मानना है कि लगातार ओवरटाइम और वर्क-लाइफ इंबैलेंस से डिप्रेशन, एंग्जायटी और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ जाती हैं। लंबे Workweek से क्रिएटिविटी पर भी असर पड़ता है और कर्मचारी काम में पूरी तरह केंद्रित नहीं रह पाते। माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कई ग्लोबल कंपनियों ने भी अब 4-दिन Workweek जैसे एक्सपेरिमेंट किए हैं, जिससे कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी और सैटिस्फैक्शन दोनों बढ़ी हैं।
क्या ज्यादा काम करने से ही सफलता मिलती है?
यह धारणा कि “ज्यादा काम = ज्यादा सफलता” हमेशा सच नहीं होती। इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने भी हाल ही में कहा था कि “युवा कर्मचारियों को 70 घंटे काम करने के लिए तैयार रहना चाहिए।” हालांकि, इन बयानों की सच्चाई यह है कि काम की quality, time management और स्किल डेवेलपमेंट ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। महिंद्रा, पूनावाला और हर्ष गोयनका जैसे दिग्गजों ने सही कहा है कि काम का परिणाम और क्वालिटी ज्यादा मायने रखती है। सिर्फ ज्यादा घंटे काम करने से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
एस एन सुब्रमण्यन के बयान को महिलाओं के संदर्भ में क्यों विवादास्पद माना जा रहा है?
एस एन सुब्रमण्यन के बयान में विशेष रूप से “पत्नी को कितनी देर तक निहारोगे?” जैसे शब्दों ने महिलाओं के प्रति असंवेदनशीलता को उजागर किया। यह बयान महिलाओं की भूमिका को सिर्फ “दिखने तक सीमित” करने की सोच को दर्शाता है। महिलाओं को एक साथी के रूप में देखने के बजाय, यह उन्हें एक निष्क्रिय भूमिका तक सीमित करता है।
यह मानसिकता कार्यस्थल पर Gender Inequality को बढ़ावा देती है और महिलाओं के आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाती है।
Conclusion
तो दोस्तों, लार्सन एंड टूब्रो के चेयरमैन एस एन सुब्रमण्यन का “90 घंटे काम और पत्नी को निहारने” वाला बयान न सिर्फ असंवेदनशील है, बल्कि एक पुरानी मानसिकता का प्रतिबिंब भी है। काम और जीवन के बीच संतुलन बनाए रखना किसी भी सफल प्रोफेशनल के लिए आवश्यक है।
महिंद्रा और पूनावाला जैसे दिग्गजों की प्रतिक्रिया ने यह स्पष्ट कर दिया है कि “वर्क-लाइफ बैलेंस और क्वालिटी वर्क ही असली सफलता का मापदंड होना चाहिए।”
आप इस विवाद पर क्या सोचते हैं? क्या वाकई 90 घंटे काम करना सफलता की कुंजी है, या यह सिर्फ एक असंवेदनशील मानसिकता का प्रतीक है? अपनी राय कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें।
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