Government Tender: Make in India का सच क्या 10 में से 4 सरकारी टेंडर्स वाकई नियमों का पालन नहीं करते?

नमस्कार दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि जिस ‘Make in India‘ अभियान का जोर-शोर से प्रचार किया गया, वह अपनी मूल भावना से भटकता जा रहा है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मेक इन इंडिया अभियान को 2014 में लॉन्च किया गया था। इसका उद्देश्य भारत को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना और Domestic Products को बढ़ावा देना था। लेकिन ताजा सरकारी आंकड़े कुछ चौंकाने वाले खुलासे कर रहे हैं।

क्या आप जानते हैं कि हाल ही में सामने आए आंकड़ों के मुताबिक, 10 में से 4 सरकारी टेंडर्स में Make in India के नियमों का पालन नहीं हो रहा है? जिन सरकारी विभागों को domestic कंपनियों को बढ़ावा देना चाहिए था, वे विदेशी ब्रांड्स को प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे Domestic enterprises को आर्थिक नुकसान हो रहा है और इस योजना की मूल भावना पर सवाल उठ रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या यह सिस्टम की कमजोरी है या नीतियों के पालन में लापरवाही? आइए, इस पूरे मामले की तह तक चलते हैं।

Make in India अभियान का मुख्य उद्देश्य और मूल विचार क्या है?

Make in India अभियान को 25 सितंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लॉन्च किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य भारत को एक ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग हब बनाना और देश की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाना था। इसके तहत सरकार ने 25 क्षेत्रों को प्राथमिकता दी, जिनमें Defence manufacturing, automobiles, textiles, railways, और Electronics शामिल हैं।

इस योजना का मूल विचार यह था कि सरकारी विभाग और Public Undertakings, Local Manufacturers से सामान और सेवाएं खरीदेंगे, जिससे Domestic Industries को बढ़ावा मिलेगा और विदेशी निर्भरता कम होगी। इसके लिए Make in India पॉलिसी 2017 लागू की गई, जिसमें स्पष्ट रूप से निर्देश दिया गया कि सरकारी खरीद में domestic Products को प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन क्या वाकई ऐसा हो रहा है? आंकड़े कुछ और ही कहानी बता रहे हैं।

40% सरकारी टेंडर्स में, Make in India के नियमों का उल्लंघन क्यों हो रहा है, और आंकड़े क्या दर्शाते हैं?

हाल ही में सामने आए सरकारी आंकड़ों ने यह खुलासा किया है कि पिछले तीन वर्षों में, जारी किए गए 4,000 करोड़ रुपये के 3,500 से अधिक सरकारी टेंडर्स में से 40% टेंडर्स ने Make in India के नियमों का पालन नहीं किया।

विशेष रूप से DPIIT (Department for Promotion of Industry and Internal Trade) की जांच में यह पाया गया कि, अक्टूबर 2021 से फरवरी 2023 के बीच केंद्र सरकार के 1,750 टेंडर्स में 53,355 करोड़ रुपये के टेंडर्स ने पूरी तरह से ‘Make in India’ के नियमों का उल्लंघन किया।

ये टेंडर्स उन वस्तुओं और सेवाओं के लिए थे, जिनमें Domestic producers आसानी से सप्लाई कर सकते थे। लेकिन इसके बावजूद विदेशी कंपनियों को प्राथमिकता दी गई। लिफ्ट, CCTV कैमरे, मेडिकल उपकरण और डेस्कटॉप कंप्यूटर जैसे Products की खरीद में domestic कंपनियों को दरकिनार कर दिया गया।

सरकारी टेंडर्स में विदेशी कंपनियों को प्राथमिकता क्यों दी जा रही है, और क्या उनके product वास्तव में बेहतर हैं?

सरकारी विभागों का कहना है कि विदेशी ब्रांड्स के product, उनके Domestic counterparts की तुलना में बेहतर गुणवत्ता वाले होते हैं। कई विभागों ने यह भी तर्क दिया कि उनके द्वारा चयनित विदेशी ब्रांड्स की मैन्युफैक्चरिंग भारत में ही हो रही थी।

लेकिन सवाल यह उठता है कि जब भारत में ही Production हो रहा है, तो उन Products को विदेशी ब्रांड्स के रूप में क्यों देखा जा रहा है? क्या यह सिर्फ एक बहाना है या फिर Domestic Brands को जानबूझकर नजरअंदाज किया जा रहा है?

Experts का मानना है कि कई सरकारी विभाग, विदेशी ब्रांड्स को इसलिए प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वे पहले से ही Global Level पर स्थापित हैं, और उनकी सप्लाई चेन अधिक सुव्यवस्थित होती है। लेकिन इससे Domestic producers को बड़ा नुकसान हो रहा है, जो कि मेक इन इंडिया अभियान की आत्मा के खिलाफ है।

Make in India नीति के मुख्य प्रावधान क्या हैं, और इनका उल्लंघन कैसे किया जा रहा है?

Make in India पॉलिसी 2017 के तहत कुछ स्पष्ट नियम बनाए गए थे। इस नीति के अनुसार: सरकारी विभागों को प्राथमिकता से भारतीय Producers से ही सामान खरीदना होगा। 50 करोड़ रुपये से अधिक के टेंडर्स में domestic सप्लायर्स को प्राथमिकता देनी होगी ,और यदि किसी product की मैन्युफैक्चरिंग भारत में नहीं हो रही है, तभी विदेशी सप्लायर को टेंडर दिया जा सकता है।

लेकिन जो आंकड़े सामने आए हैं, वे बताते हैं कि कई विभागों ने इन नियमों का पूरी तरह उल्लंघन किया। विदेशी कंपनियों को प्राथमिकता देने के लिए टेंडर्स की शर्तें ऐसी रखी गईं, जो भारतीय सप्लायर्स के लिए असंभव थीं। जैसे High production capacity, high turnover और Foreign certification जैसी शर्तें।

Make in India नीति के उल्लंघन के पीछे मुख्य कारण क्या हो सकते हैं?

Make in India के नियमों का पालन न होने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। एक बड़ा कारण यह है कि कई सरकारी विभागों और टेंडर जारी करने वाली संस्थाओं को इन नीतियों की पूरी समझ नहीं है। कई बार जानबूझकर बड़े विदेशी ब्रांड्स को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि उनकी मार्केट में पहले से पकड़ होती है।

इसके अलावा, कुछ अधिकारियों का तर्क है कि भारतीय कंपनियों में Technical Proficiency और क्वालिटी कंट्रोल की कमी है। हालांकि, यह तर्क पूरी तरह उचित नहीं है, क्योंकि कई भारतीय कंपनियां अब World-class products बना रही हैं। एक और बड़ा कारण लॉबीइंग और भ्रष्टाचार भी माना जा रहा है। बड़े विदेशी ब्रांड्स के पीछे प्रभावशाली लॉबिस्ट होते हैं, जो सरकारी टेंडर्स को प्रभावित करते हैं।

Make in India नीति के उल्लंघन का क्या प्रभाव और नुकसान हो सकता है?

Make in India के नियमों के उल्लंघन का सीधा असर भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। जब सरकारी विभाग विदेशी कंपनियों को प्राथमिकता देते हैं, तो इससे Local Entrepreneurs और मैन्युफैक्चरर्स को सीधा नुकसान होता है।

इसके अलावा, यह भारत की आत्मनिर्भर भारत योजना के खिलाफ है। अगर Local producers को अवसर ही नहीं मिलेगा, तो वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर Competition कैसे करेंगे? इससे रोजगार के अवसरों में कमी आती है, क्योंकि विदेशी कंपनियां भारत में बड़े पैमाने पर रोजगार नहीं देतीं। साथ ही, विदेशी कंपनियों को प्राथमिकता देने से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और स्थानीय इनोवेशन में भी कमी आती है।

Conclusion

तो दोस्तों, सरकार को चाहिए कि वह Make in India नीति को सख्ती से लागू करे। टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाई जाए और नियमों के उल्लंघन पर कड़ी सजा तय की जाए। इसके अलावा, भारतीय उद्यमियों को तकनीकी सहायता, सर्टिफिकेशन सपोर्ट और सब्सिडी दी जानी चाहिए ताकि वे global कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकें।

यह भी जरूरी है कि हर सरकारी विभाग और अधिकारी को, Make in India नीति की गहरी जानकारी दी जाए और इसके लाभों को समझाया जाए। मेक इन इंडिया सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। इसे सिर्फ कागजों पर नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर लागू करना ही इस नीति की सफलता का असली मापदंड होगा। क्या हम वाकई आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ रहे हैं या यह सिर्फ एक राजनीतिक नारा बनकर रह जाएगा? इसका जवाब सिर्फ समय देगा।

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