नमस्कार दोस्तों, कल्पना कीजिए कि आपने बड़ी मेहनत से एक नई नौकरी हासिल की है। सैलरी भी ज्यादा है, पद भी बड़ा है, और करियर में ग्रोथ की अपार संभावनाएं दिख रही हैं। आप खुश हैं, अपने भविष्य के सुनहरे सपने देख रहे हैं और मन ही मन नई जॉब जॉइन करने की प्लानिंग कर रहे हैं।
लेकिन तभी अचानक आपको पता चलता है कि इस नई नौकरी को पाने के जोश में आपने एक बहुत बड़ी गलती कर दी है। यह गलती आपकी जेब से हजारों, बल्कि लाखों रुपये निकाल सकती है, और आपको इसका एहसास तब होगा जब बहुत देर हो चुकी होगी। यह गलती है – Notice Period पूरा न करना।
कई लोग नई नौकरी की एक्साइटमेंट में पुरानी कंपनी का नोटिस पीरियड ठीक से सर्व नहीं करते या जल्दबाजी में इसे छोड़ देते हैं। उन्हें लगता है कि उनकी नई कंपनी उनकी पुरानी कंपनी को पेनाल्टी देकर इस समस्या का हल निकाल देगी।
लेकिन असली समस्या तब शुरू होती है, जब इनकम टैक्स का भारी बोझ आपके सिर पर आ जाता है। नई कंपनी की ओर से आपकी भरपाई होने के बावजूद, आपको उसी पैसों पर दोहरी टैक्सेशन झेलना पड़ता है, जिससे आपकी जेब पर बड़ा असर पड़ सकता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
Notice Period क्या होता है और यह जरूरी क्यों है ?
हर Private कंपनी अपने कर्मचारियों से अनुशासन बनाए रखने की उम्मीद करती है। इसी वजह से जब भी कोई कर्मचारी नौकरी छोड़ना चाहता है, तो उसे पहले से एक निश्चित अवधि यानी Notice Period देना होता है। यह आमतौर पर 1 महीने से 3 महीने तक का होता है, और इसे पूरा करना कर्मचारी की जिम्मेदारी होती है।
लेकिन कई बार नई कंपनी तुरंत जॉइनिंग चाहती है, और कर्मचारी के पास पुरानी कंपनी का Notice Period पूरा करने का समय नहीं होता। ऐसे में कर्मचारी को या तो नोटिस पीरियड की अवधि तक काम करना पड़ता है, या फिर अपनी सैलरी में से कुछ रकम “नोटिस पीरियड रिकवरी” के रूप में कंपनी को चुकानी पड़ती है। कई कंपनियां इस रकम को सीधे कर्मचारी की आखिरी सैलरी से काट लेती हैं।
बात यहीं खत्म नहीं होती। जब नई कंपनी इस कटौती की भरपाई करने के लिए कर्मचारी को अतिरिक्त पैसे देती है, तो इन पैसों पर भी टैक्स लगता है। नतीजा यह होता है कि कर्मचारी को अपनी कमाई से ज्यादा टैक्स चुकाना पड़ता है, जो कभी-कभी हजारों या लाखों रुपये तक हो सकता है।
टैक्स का नुकसान कैसे होता है?
मान लीजिए कि एक कर्मचारी की सैलरी 50,000 रुपए प्रति माह है। उसने अपनी पुरानी कंपनी से इस्तीफा दे दिया और उसे 2 महीने का Notice Period पूरा करना था। लेकिन उसकी नई कंपनी उसे तुरंत जॉइन करवाना चाहती थी, इसलिए उसने नोटिस पीरियड पूरा नहीं किया।
अब पुरानी कंपनी ने उसके 2 महीने के नोटिस पीरियड का पैसा यानी 1,00,000 रुपए काट लिया। इस पैसे का नुकसान कर्मचारी को नहीं हुआ, क्योंकि उसकी नई कंपनी ने उसकी भरपाई कर दी और उसे 1,00,000 रुपए का अतिरिक्त भुगतान कर दिया।
अब समस्या यह हुई कि जब इनकम टैक्स की गणना की गई, तो पुरानी कंपनी ने उस कर्मचारी की पूरी 12 महीने की सैलरी पर टैक्स लगाया, जबकि उसमें से 2 महीने की सैलरी उसे दी ही नहीं गई थी। इसके अलावा, नई कंपनी ने भी उस कर्मचारी के 2 महीने की सैलरी के अतिरिक्त भुगतान पर टैक्स काट लिया।
अब कर्मचारी को 12 महीने की सैलरी के बजाय 14 महीने की सैलरी पर टैक्स देना पड़ा। यानि कर्मचारी ने अपनी मेहनत की कमाई से 2 महीने का Notice Period तो नहीं सर्व किया, लेकिन उसकी कीमत दोगुने टैक्स के रूप में चुकानी पड़ी।
इनकम टैक्स के नियम क्या कहते हैं?
अगर कोई कर्मचारी अपनी पुरानी कंपनी में Notice Period पूरा नहीं करता है, और कंपनी उसकी सैलरी से नोटिस पीरियड रिकवरी के पैसे काट लेती है, तो इनकम टैक्स एक्ट के अनुसार पूरी ग्रॉस सैलरी टैक्सेबल इनकम मानी जाती है।
इसका मतलब है कि कर्मचारी को उस Income पर भी टैक्स चुकाना होगा, जो उसने वास्तव में प्राप्त ही नहीं की। दूसरी ओर, अगर नई कंपनी कर्मचारी को Notice Period की भरपाई के लिए एक्स्ट्रा पेमेंट करती है, तो यह रकम उसकी टैक्सेबल इनकम में शामिल हो जाती है और इस पर भी टैक्स देना पड़ता है।
इनकम टैक्स एक्ट की धारा 15 यह तय करती है कि सैलरी पर टैक्स तभी लगाया जाएगा, जब यह “due” होगी, चाहे कर्मचारी को यह राशि प्राप्त हुई हो या नहीं। यानी अगर किसी कर्मचारी की सैलरी 6 लाख रुपए सालाना है, और Notice Period रिकवरी के रूप में 1 लाख रुपए काट लिया गया है, तो भी कर्मचारी को पूरे 6 लाख रुपए की सैलरी पर टैक्स देना होगा, जबकि उसे वास्तव में सिर्फ 5 लाख रुपए ही मिले हैं।
इस टैक्स जाल से बचने का कोई समाधान है?
इस समस्या से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय किए जा सकते हैं। सबसे पहला और सबसे आसान तरीका यह है कि Notice Period को पूरा किया जाए। अगर आप अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं और नई कंपनी में जल्दी जॉइन करना चाहते हैं, तो भी आपको पुरानी कंपनी में अपना नोटिस पीरियड पूरा करने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।
अगर ऐसा संभव नहीं है, और नई कंपनी आपके Notice Period की भरपाई कर रही है, तो आप अपनी नई कंपनी से यह अनुरोध कर सकते हैं कि वह यह रकम सीधे आपकी पुरानी कंपनी को ट्रांसफर कर दे, बजाय इसे आपकी सैलरी में जोड़ने के। इससे आपकी टैक्सेबल इनकम पर सीधा असर नहीं पड़ेगा, और आपको दोहरे टैक्सेशन से बचने में मदद मिल सकती है।
इसके अलावा, सरकार को इस टैक्स कानून में बदलाव लाने की जरूरत है। बिजनेस में अगर कोई कंपनी बैड लोन के रूप में अपनी अप्राप्त राशि के लिए टैक्स छूट का दावा कर सकती है, तो कर्मचारियों को भी ऐसी छूट मिलनी चाहिए। बजट 2025 में इस मुद्दे को उठाया जाना चाहिए ताकि कर्मचारियों को धारा 16 के तहत, Notice Period रिकवरी पर कटौती का दावा करने की अनुमति दी जा सके।
Conclusion
तो दोस्तों, नौकरी बदलना हमेशा एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है, लेकिन इसमें जल्दबाजी करने से आपकी जेब पर भारी असर पड़ सकता है। कई बार कर्मचारी नई नौकरी के आकर्षण में पुरानी नौकरी के नोटिस पीरियड को नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन बाद में टैक्स के रूप में इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।
अगर आप भी नई नौकरी की तलाश में हैं या नौकरी बदलने की सोच रहे हैं, तो Notice Period को लेकर सतर्क रहें। अपनी कंपनी की नीतियों को समझें, टैक्स नियमों को ध्यान में रखें और अगर संभव हो तो पूरी अवधि तक अपनी पुरानी कंपनी में काम करें।
अगर Notice Period पूरा करना संभव नहीं है, तो यह सुनिश्चित करें कि आपकी नई कंपनी इसकी भरपाई सही तरीके से करे ताकि आपको अनावश्यक टैक्स का सामना न करना पड़े। अब सवाल आप पर है – क्या आप नई नौकरी जॉइन करने के लिए जल्दबाजी में टैक्स के इस जाल में फंसना चाहेंगे, या फिर समझदारी से अपना अगला कदम उठाएंगे?
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