नमस्कार दोस्तों, क्या दुनिया एक बार फिर से 1929 जैसी महामंदी की ओर बढ़ रही है? क्या Global बाजार में जिस तरह की गिरावट देखने को मिल रही है, वह सिर्फ एक सामान्य आर्थिक करेक्शन है या इसके पीछे कोई गहरा आर्थिक संकट छिपा हुआ है? क्या डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां दुनिया को एक नई मंदी की ओर धकेल रही हैं? इन सवालों के जवाब तलाशने की जरूरत इसलिए है क्योंकि आज Global अर्थव्यवस्था एक नाजुक मोड़ पर खड़ी है।
दुनिया भर के शेयर बाजार भारी गिरावट के दौर से गुजर रहे हैं। अमेरिका, यूरोप, चीन और भारत जैसे प्रमुख बाजारों में Investors का भरोसा लगातार डगमगा रहा है। बढ़ती महंगाई, ब्याज दरों में वृद्धि और Geopolitical तनावों के बीच, दुनिया की अर्थव्यवस्था पर एक गहरे संकट के बादल मंडरा रहे हैं। लेकिन इस बार स्थिति अलग है। इस बार सिर्फ मंदी या Depression की चर्चा नहीं हो रही, बल्कि एक नए शब्द “Trump session” का जन्म हो चुका है। इस शब्द का अर्थ है – ट्रंप की नीतियों के कारण आने वाली आर्थिक मंदी। आखिर यह Trump session क्या है? और इससे Global अर्थव्यवस्था को क्या खतरा है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
दुनिया की अर्थव्यवस्था में समय-समय पर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। आर्थिक जगत में इसे आर्थिक चक्र कहा जाता है। किसी भी देश की अर्थव्यवस्था एक चक्र के तहत चलती है, जिसमें चार प्रमुख चरण होते हैं – Growth, peak, recession और Recovery। जब अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही होती है, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है, तो इसे Growth का दौर कहा जाता है।
इस दौरान उपभोक्ता आत्मविश्वास से भरे होते हैं, नए उद्योग स्थापित होते हैं और अर्थव्यवस्था में पैसा तेजी से प्रवाहित होता है। लेकिन जब अर्थव्यवस्था चरम पर पहुंचने के बाद गिरावट के दौर में आती है, तो इसे मंदी कहा जाता है। recession में Demand घटती है, Production कम होता है, बेरोजगारी बढ़ती है और बाजार में निराशा का माहौल बन जाता है। अगर यह recession लंबे समय तक बनी रहती है और इससे अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठहराव की स्थिति में आ जाती है, तो इसे Depression कहा जाता है। आज की स्थिति में दुनिया recession और Depression के बीच झूल रही है।
रिसेशन का अर्थ है आर्थिक गतिविधियों में गिरावट। जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाही तक GDP (Gross domestic product) में गिरावट दर्ज की जाती है, तो इसे मंदी कहा जाता है। मंदी के दौरान कंपनियों की बिक्री घट जाती है, रोजगार के अवसर कम हो जाते हैं, लोगों की income घट जाती है और उपभोक्ता खर्च में कमी आ जाती है। इससे Demand घटती है, Production कम होता है और कंपनियों का मुनाफा गिर जाता है।
2008 की Global Finance मंदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उस समय अमेरिका के बैंकों ने सबप्राइम लोन के नाम पर बिना गारंटी के बड़ी मात्रा में कर्ज दे दिया था। जब ये कर्ज डूबे, तो बैंकों का पूरा सिस्टम ही धराशायी हो गया। इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा। भारत में भी 2008 की मंदी का असर दिखा था। सेंसेक्स और निफ्टी में भारी गिरावट आई थी।
कई कंपनियां बंद हो गईं थीं और लाखों लोगों की नौकरियां चली गई थीं। 2008 की मंदी से उबरने में अमेरिका और यूरोप को करीब 5 साल लग गए थे। इस मंदी का असर Global व्यापार पर भी पड़ा। चीन की अर्थव्यवस्था ने उस समय मजबूती दिखाई, लेकिन भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इससे भारी नुकसान हुआ।
आज की स्थिति भी कुछ वैसी ही नजर आ रही है। अमेरिका और यूरोप में महंगाई दर 40 साल के highest level पर है। अमेरिका ने ब्याज दरों में वृद्धि की है, जिससे कंपनियों के लिए कर्ज लेना महंगा हो गया है। इससे Investment पर असर पड़ा है। चीन की अर्थव्यवस्था भी धीमी पड़ रही है। इससे Global व्यापार पर असर हो रहा है। भारत भी इस Global मंदी के असर से अछूता नहीं है। भारतीय बाजार में भी FII (Foreign Institutional Investors) की भारी बिकवाली देखी जा रही है। सेंसेक्स और निफ्टी लगातार गिर रहे हैं। कंपनियों के मुनाफे घट रहे हैं।
इसके अलावा, डिप्रेशन मंदी का ही एक गंभीर रूप है। जब अर्थव्यवस्था लंबे समय तक मंदी में बनी रहती है और GDP में भारी गिरावट दर्ज होती है, तो इसे डिप्रेशन कहा जाता है। 1929 की महामंदी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उस समय अमेरिका की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से ठप हो गई थी। बेरोजगारी दर 25% के स्तर पर पहुंच गई थी। अमेरिका की GDP में 30% से ज्यादा की गिरावट आई थी। हजारों कंपनियां बंद हो गईं थीं और बैंकों का दिवालिया निकल गया था।
आपको बता दें कि डिप्रेशन के दौरान उपभोक्ता खर्च में भारी गिरावट आती है। बैंकों की ओर से कर्ज मिलना बंद हो जाता है। कंपनियां अपने कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर देती हैं। इससे बेरोजगारी बढ़ती है और लोग अपनी जरूरतों पर खर्च कम कर देते हैं। इससे Demand घटती है, जिससे अर्थव्यवस्था में और गिरावट आती है। 1929 की महामंदी लगभग एक दशक तक चली थी और इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा था।
अब Trump session एक नया शब्द है, जिसका जन्म डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से हुआ है। जब ट्रंप राष्ट्रपति बने थे, तब उन्होंने “अमेरिका फर्स्ट” की नीति अपनाई थी। इसके तहत उन्होंने चीन और भारत सहित कई देशों पर भारी टैरिफ लगाए। इससे Global व्यापार में असंतुलन पैदा हुआ। ट्रंप ने व्यापारिक प्रतिबंध लगाए, जिससे Global सप्लाई चेन प्रभावित हुई। इसके बाद कोविड महामारी ने स्थिति को और खराब कर दिया।
Trump session का सीधा असर Global व्यापार पर पड़ा। चीन और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध छिड़ गया। ट्रंप की नीतियों से अमेरिकी बाजार में महंगाई बढ़ी और Investment घटा। इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था में गिरावट आई। अमेरिका की इस स्थिति का असर भारत और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर भी पड़ा। ट्रंप के व्यापारिक प्रतिबंधों ने Global बाजार में अस्थिरता पैदा कर दी। इससे कंपनियों की Production cost बढ़ गई और उनका मुनाफा कम हुआ।
आज की स्थिति मंदी और ठहराव के बीच है। भारत, अमेरिका और यूरोप के बाजार मंदी के संकेत दे रहे हैं। चीन की अर्थव्यवस्था भी दबाव में है। ट्रंप की नीतियों का असर अभी तक जारी है। ब्याज दरें बढ़ रही हैं, महंगाई बढ़ रही है और Investment घट रहा है। यह स्थिति मंदी से भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है। अगर स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो यह Global डिप्रेशन में बदल सकती है।
अब सवाल यह है कि क्या दुनिया Trump session की ओर बढ़ रही है? क्या Global अर्थव्यवस्था एक नए दौर की महामंदी की ओर जा रही है? या फिर बाजार इस चक्र से बाहर निकलने में कामयाब होंगे? समय ही इसका उत्तर देगा। आने वाले 12 से 18 महीनों में इस सवाल का जवाब मिल सकता है। अगर अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए सही नीतियां लागू नहीं की गईं, तो Trump session एक Global डिप्रेशन का रूप ले सकती है। अगर ऐसा हुआ तो इसका असर सिर्फ अमेरिका या भारत पर नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा।
Conclusion
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