Sunder Pichai का सपना था क्रिकेट, बने Google के CEO, अब हर दिन कमा रहे 6.67 करोड़!

नमस्कार दोस्तों, क्या आप सोच सकते हैं कि एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाला एक लड़का, जिसका सपना क्रिकेटर बनने का था, वह एक दिन दुनिया की सबसे बड़ी टेक कंपनी का नेतृत्व करेगा? एक ऐसा लड़का, जिसने बचपन में क्रिकेट के मैदान पर छक्के-चौकों के सपने देखे थे, लेकिन किस्मत ने उसे टेक्नोलॉजी के मैदान में सबसे बड़ा खिलाड़ी बना दिया।

क्रिकेट का मैदान छोड़कर वह सिलिकॉन वैली के टॉप एग्जीक्यूटिव्स की कतार में शामिल हो गया। आज वह सिर्फ एक सफल सीईओ ही नहीं है, बल्कि दुनिया के सबसे ज्यादा कमाई करने वाले बिजनेस लीडर्स में से एक है। उनकी हर दिन की कमाई इतनी है, जितना एक सामान्य व्यक्ति अपनी पूरी जिंदगी में नहीं कमा पाता। वह शख्स कोई और नहीं बल्कि गूगल और उसकी पैरेंट कंपनी अल्फाबेट इंक के सीईओ सुंदर पिचाई हैं।

लेकिन सवाल यह है कि आखिर सुंदर पिचाई ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कौन-सा रास्ता अपनाया? उन्होंने किन मुश्किलों का सामना किया और कैसे उन्होंने अपनी मेहनत और काबिलियत के दम पर इस मुकाम को हासिल किया? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे। लेकिन उससे पहले, अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं, तो कृपया चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें, ताकि हमारी हर नई वीडियो की अपडेट सबसे पहले आपको मिलती रहे। तो चलिए, बिना किसी देरी के आज की चर्चा शुरू करते हैं!

सुंदर पिचाई का जन्म 10 जून 1972 को तमिलनाडु के मदुरै में हुआ था। उनका पूरा नाम पिचाई सुंदरराजन है। पिचाई का परिवार मध्यमवर्गीय था। उनके पिता आर एस पिचाई ब्रिटिश कंपनी जीईसी में एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे, जबकि उनकी मां लक्ष्मी पिचाई एक स्टेनोग्राफर थीं। सुंदर का बचपन बहुत ही साधारण माहौल में बीता। उनका घर दो कमरों का था, जिसमें परिवार के सभी लोग एक साथ रहते थे।

उनके पास कोई लग्जरी लाइफस्टाइल नहीं थी, न ही उनके पास टीवी या कार जैसी सुविधाएं थीं। लेकिन सुंदर के पिता ने उन्हें हमेशा शिक्षा का महत्व समझाया। सुंदर के पिता खुद इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में काम करते थे, इसलिए उनके घर में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को लेकर सुंदर की जिज्ञासा बचपन से ही बनी हुई थी।

सुंदर पिचाई ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चेन्नई के जवाहर विद्यालय से की थी। स्कूल के दिनों से ही पिचाई की गिनती होशियार छात्रों में होती थी। लेकिन पढ़ाई के अलावा उनका झुकाव क्रिकेट की ओर भी था। वह अपनी स्कूल टीम के कप्तान थे और उन्होंने अपनी टीम को कई ट्रॉफियां भी जिताई थीं।

सुंदर पिचाई का सपना एक पेशेवर क्रिकेटर बनने का था। वह घंटों क्रिकेट के मैदान पर प्रैक्टिस करते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पिचाई के क्रिकेट कौशल को देखकर कोच ने उन्हें भविष्य का बड़ा क्रिकेटर बताया था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। पिचाई की रुचि धीरे-धीरे टेक्नोलॉजी की ओर बढ़ने लगी।

क्रिकेट से टेक्नोलॉजी की ओर रुझान का सबसे बड़ा कारण उनके पिता थे। सुंदर के पिता एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे और उनके पास एक लैंडलाइन फोन था। सुंदर को फोन और उसके फंक्शन्स से काफी लगाव हो गया था। वे अक्सर फोन के काम करने के तरीके को समझने की कोशिश करते थे। एक बार सुंदर ने अपने पिता से पूछा था कि फोन के अंदर कॉल कैसे लगती है और दूसरी तरफ से आवाज कैसे आती है। उनके पिता ने उन्हें विस्तार से समझाया और यहीं से पिचाई की रुचि तकनीक की ओर बढ़ गई।

पिचाई ने हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद Indian Institute of Technology (IIT) खड़गपुर से, (Metallurgical Engineering) में बीटेक किया। IIT खड़गपुर में भी पिचाई ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उनके प्रोफेसर उनकी लॉजिकल थिंकिंग और समस्या हल करने की क्षमता से बहुत प्रभावित थे। यहां तक कि उनके प्रोफेसरों का कहना था कि सुंदर पिचाई में भविष्य में कुछ बड़ा करने की क्षमता है। IIT खड़गपुर में पढ़ाई के दौरान सुंदर को अमेरिका की प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से स्कॉलरशिप मिली। यह उनके जीवन का एक बड़ा मोड़ था।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में सुंदर पिचाई ने (Material Science and Engineering) में मास्टर की डिग्री हासिल की। वहां पढ़ाई के दौरान पिचाई ने टेक्नोलॉजी की गहराई को समझा। उनकी रिसर्च और इनोवेशन के प्रति जुनून ने उन्हें अन्य छात्रों से अलग बना दिया। स्टैनफोर्ड में पढ़ाई पूरी करने के बाद पिचाई ने पेनसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन स्कूल से, (MBA) की डिग्री हासिल की। व्हार्टन स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही पिचाई की लीडरशिप स्किल्स निखर कर सामने आईं।

2004 में सुंदर पिचाई ने गूगल जॉइन किया। गूगल के शुरुआती दिनों में पिचाई ने एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम किया, जिसने गूगल की दिशा ही बदल दी। पिचाई ने (Google Toolbar) का इनोवेशन किया। यह एक ऐसा फीचर था, जिसने गूगल सर्च को माइक्रोसॉफ्ट के इंटरनेट एक्सप्लोरर और अन्य ब्राउजर्स में इस्तेमाल करना संभव बना दिया। टूलबार की सफलता ने पिचाई को गूगल के अंदर एक नई पहचान दिलाई।

सुंदर पिचाई के करियर में एक बड़ा मोड़ तब आया जब उन्होंने 2008 में गूगल क्रोम के डेवलपमेंट का नेतृत्व किया। उस समय गूगल अपने सर्च इंजन को अधिक तेज और सुरक्षित बनाने की कोशिश कर रहा था। पिचाई की अगुवाई में गूगल ने क्रोम ब्राउज़र लॉन्च किया, जो जल्द ही दुनिया का सबसे लोकप्रिय वेब ब्राउज़र बन गया।

उनकी इनोवेटिव सोच और नेतृत्व क्षमता के चलते गूगल ने एंड्रॉइड प्रोजेक्ट भी उनके हाथ में दिया। पिचाई ने एंड्रॉइड को और अधिक यूजर-फ्रेंडली बनाया, जिससे यह दुनिया का सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला ऑपरेटिंग सिस्टम बन गया। सुंदर पिचाई की काबिलियत और कामयाबी ने गूगल के शीर्ष अधिकारियों को प्रभावित किया। 2015 में सुंदर पिचाई को गूगल का सीईओ नियुक्त किया गया। इसके बाद 2019 में उन्हें गूगल की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट का भी सीईओ बना दिया गया। सुंदर पिचाई का गूगल का नेतृत्व संभालना दुनिया के सबसे बड़े टेक्नोलॉजी साम्राज्य की कमान संभालने के बराबर था।

आज सुंदर पिचाई की सालाना कमाई लगभग 280 मिलियन डॉलर है। इसका मतलब यह है कि पिचाई की रोजाना कमाई 6.67 करोड़ रुपये है। पिचाई की इस सफलता के पीछे उनकी मेहनत और दूरदृष्टि है। सुंदर पिचाई ने गूगल में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में बड़ा Investment किया है।

सुंदर पिचाई की सादगी आज भी बरकरार है। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह रोजाना 20 से ज्यादा स्मार्टफोन इस्तेमाल करते हैं। इसकी वजह है कि वह गूगल की अलग-अलग डिवाइसेज को टेस्ट करते हैं और उनका परफॉर्मेंस मॉनिटर करते हैं। पिचाई की लीडरशिप का ही नतीजा है कि गूगल ने पिछले कुछ वर्षों में कई बड़ी कंपनियों का अधिग्रहण किया है।

सुंदर पिचाई की सफलता इस बात का प्रमाण है कि अगर आपके पास लक्ष्य है, मेहनत करने का जुनून है और सही दिशा है, तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको कामयाब होने से नहीं रोक सकती। पिचाई ने न सिर्फ खुद को स्थापित किया, बल्कि भारतीय युवाओं के लिए एक मिसाल भी पेश की है। आज सुंदर पिचाई दुनिया के सबसे बड़े टेक लीडर्स में गिने जाते हैं और उनकी कहानी हर युवा के लिए प्रेरणा है। यह कहानी इस बात का सबूत है कि अगर सपने बड़े हों और मेहनत सच्ची हो, तो सफलता एक न एक दिन जरूर कदम चूमती है।

Conclusion

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