कल्पना कीजिए, एक ऐसा भारतीय युवक जो विदेश पढ़ाई के लिए निकलता है, एक बड़ी यूनिवर्सिटी में दाखिला लेता है, उसके पास भविष्य के तमाम सपने हैं। लेकिन जब सब कुछ सही चल रहा होता है, तभी वो एक चौंकाने वाला फैसला लेता है। वह पढ़ाई छोड़ देता है और वो भी किसी मामूली कारण से नहीं, बल्कि अपने दिल की आवाज सुनते हुए। और इस फैसले के बाद वो जो करता है, वह हर किसी को हैरान कर देता है।
उसने ऑस्ट्रेलिया में Dropout Chaiwala के नाम से बेचना शुरू किया। और ये कोई आम चाय नहीं थी, बल्कि ऐसा बिजनेस मॉडल बना कि मेलबर्न की गलियों में उसका नाम गूंजने लगा। यह कहानी है एक जुनूनी लड़के की, जिसने ड्रॉपआउट होकर भी करोड़ों का साम्राज्य खड़ा कर दिया। यह कहानी उस सोच को चुनौती देती है जो कहती है कि सफलता सिर्फ डिग्रियों से आती है। आज हम इसी कहानी पर गहराई में चर्चा करेंगे।
बेंगलुरु के रहने वाले संजीत कोंडा जब 18 साल के थे, तब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की प्रतिष्ठित ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के मेलबर्न स्थित बूंडूरा कैंपस में ‘बैचलर ऑफ बिजनेस स्टडीज़’ में दाखिला लिया। चार सेमेस्टर उन्होंने बहुत मेहनत से पूरे किए।
मगर पांचवें सेमेस्टर में उन्हें लगा कि किताबों से ज्यादा उन्हें कुछ और करना है। वह औरों की तरह बस डिग्री हासिल कर नौकरी नहीं करना चाहते थे। उनके भीतर एक आग थी – कुछ अलग, कुछ हटकर करने की। और फिर आया वह मोड़ जब उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। एक ऐसा कदम, जिसे बहुत लोग नासमझी कहते, लेकिन संजीत के लिए यही सबसे बड़ी समझदारी थी। उन्होंने यह समझ लिया था कि अगर दिल नहीं लग रहा, तो वक्त और ऊर्जा बर्बाद करने से बेहतर है कि कुछ नया शुरू किया जाए।
विदेश में रहकर जिंदगी की जमीनी हकीकतों से दो-चार होना आसान नहीं होता। वहां हर दिन एक संघर्ष होता है। संजीत के लिए भी यह सफर चुनौतीभरा रहा। उनके पिता सऊदी अरब की एक तेल कंपनी में मैकेनिकल इंजीनियर थे, मां एक गृहिणी थीं। लेकिन मेलबर्न में रहने का सारा खर्च संजीत खुद उठाते थे।
उन्होंने पेट्रोल पंप पर काम किया, रेस्टोरेंट की कैंटीन में बर्तन धोए, और जो भी काम मिला – उसे ईमानदारी से किया। यह मेहनत ही उनके भविष्य की नींव बन गई। यही वो वक्त था जब उन्होंने तय किया कि अगर इतनी मेहनत से दूसरों के लिए काम कर सकता हूं, तो अपने लिए क्यों नहीं? उन्होंने संघर्ष को अपनाया, डर को चुनौती दी और हौसले से एक नई राह बनानी शुरू की।
2021 में संजीत ने अपने तीन दोस्तों असर अहमद सईद, प्रीतम अकुला और अरुण पी सिंह के साथ मिलकर ‘ड्रॉपआउट चायवाला’ की नींव रखी। शुरुआत में उनके पास पूंजी सीमित थी – सिर्फ 18 लाख रुपये। इसी पैसे से उन्होंने चाय का एक स्टॉल शुरू किया।
लेकिन उन्होंने तय किया कि भले ही स्केल छोटा हो, क्वालिटी और पेशकश में कोई समझौता नहीं होगा। उन्होंने पांच अनोखे फ्लेवर की चाय पेश की – मसाला चाय, अदरक-शहद, पोदिना-नींबू, तुलसी और स्पेशल इंडियन टी। शुरुआत में ग्राहकों को लुभाना आसान नहीं था, लेकिन उनका स्वाद, सर्विस और चाय के साथ जुड़ी भावना लोगों को आकर्षित करने लगी। उनकी चाय के कप में न सिर्फ स्वाद था, बल्कि एक कहानी भी थी – संघर्ष की, आत्मविश्वास की और भारत के असली फ्लेवर की।
ड्रॉपआउट चायवाला नाम ही अपने आप में एक ब्रांडिंग मास्टरस्ट्रोक था। इस नाम के पीछे एक कहानी थी, जो लोगों को जोड़ती थी। उन्होंने सोशल मीडिया पर ब्रांड की कहानी को खूबसूरती से बताया। इंस्टाग्राम, फेसबुक और यूट्यूब पर छोटे-छोटे वीडियोज़ के ज़रिए उन्होंने मेलबर्न की जनता को दिखाया कि कैसे एक भारतीय युवक अपने सपनों को चाय के प्याले में परोस रहा है। उनकी मार्केटिंग स्ट्रैटजी में ईमानदारी, क्रिएटिविटी और जमीन से जुड़ाव था। यही कारण है कि कम वक्त में उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई यूथ के बीच खास पहचान बना ली। चाय अब सिर्फ पेय पदार्थ नहीं, बल्कि संस्कृति बन चुकी थी। और ड्रॉपआउट चायवाला उस संस्कृति का केंद्र।
चाय के साथ-साथ उन्होंने भारतीय स्नैक्स जैसे समोसे, पाव, खाखरा और सैंडविच को भी अपने मेनू में जोड़ा। हर आइटम की प्राइसिंग रणनीतिक रूप से की गई थी, ताकि स्टूडेंट्स भी इसे अफोर्ड कर सकें और स्वाद से समझौता भी न करना पड़े। एक कप चाय और समोसे का कॉम्बो लगभग 270 रुपये में मिलता है। यह कॉम्बो मेलबर्न में भारतीय फ्लेवर का पर्याय बन गया। आउटलेट पर सिर्फ खाने-पीने की चीजें ही नहीं, बल्कि भारतीयता की खुशबू भी मिलती थी। ग्राहकों को यह अहसास होता कि वे एक दुकान पर नहीं, बल्कि एक अनुभव का हिस्सा हैं, जहां हर घूंट के साथ कहानी भी मिलती है।
संजीत की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक रहा – ड्रॉपआउट चाय ट्रक का लॉन्च। यह एक चलती-फिरती चाय की दुकान थी, जो यूनिवर्सिटी कैंपस, इवेंट्स, फेस्टिवल्स और शादी जैसे कार्यक्रमों में जाती थी। इस ट्रक ने ब्रांड को मोबाइल बना दिया। यह आइडिया इतना हिट हुआ कि उन्होंने बहुत जल्दी ला ट्रोब स्ट्रीट और मेलबर्न के सदर्न क्रॉस स्टेशन पर अपने आउटलेट्स भी खोल लिए। अब उनके पास 40 लोगों की टीम है – कुक, सर्विस स्टाफ, मार्केटिंग और सप्लाई चेन संभालने वाले कर्मचारी – सभी इस ब्रांड के हिस्सा बन चुके हैं। यह सिर्फ एक टीम नहीं, बल्कि एक परिवार है जो एक युवा के सपने को जमीनी हकीकत में बदल रहा है।
2022 तक उनका सालाना टर्नओवर 5.2 करोड़ रुपये पहुंच चुका था। और अब जबकि 3 साल बीत चुके हैं, Expert मानते हैं कि उनका बिजनेस और भी ऊंचाइयों पर पहुंच चुका है। अनुमान है कि कंपनी की 20 फीसदी शुद्ध कमाई अब उन्हें मिल रही है। यानी करोड़ों की बिक्री के बाद भी जो लाभ बचता है, वो उनके आत्मनिर्भर सफर की गवाही देता है। वह अब ब्रांड एक्सपेंशन, फ्रेंचाइज़िंग और भारत में ब्रांच खोलने जैसे अगली पीढ़ी के कदमों पर काम कर रहे हैं। उनके बिजनेस में अब एक प्रोफेशनल अप्रोच और स्ट्रैटेजिक विज़न भी दिखने लगा है।
2023 में जब संजीत की मां ऑस्ट्रेलिया आईं और पहली बार उन्होंने अपने बेटे के हाथ की बनाई चाय पी – वह पल बेहद भावुक था। संजीत ने इंस्टाग्राम पर लिखा, “मेरी माँ ने जब पहली बार मेरी दुकान से चाय पी, और जब उन्होंने अपनी आंखों से देखा कि उनका बेटा क्या बन चुका है, तो उनके आंसू छलक पड़े।” ये शब्द सिर्फ इमोशन नहीं थे, बल्कि हर उस युवा का सपना थे जो कुछ अलग करना चाहता है लेकिन परिवार की स्वीकृति की प्रतीक्षा करता है। उस पल में सिर्फ एक चाय का स्वाद नहीं था, बल्कि माँ की ममता, बेटे की मेहनत और सपने की जीत थी।
संजीत की कहानी उस सोच को तोड़ती है जो कहती है कि पढ़ाई छोड़ना मतलब जिंदगी बर्बाद कर लेना। उन्होंने साबित किया कि अगर आपके पास आइडिया है, मेहनत है और नीयत साफ है, तो सफलता आपके कदम चूमती है। उनका ब्रांड अब सिर्फ एक चाय की दुकान नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन चुका है – एक ऐसा आंदोलन जो युवाओं को सिखाता है कि Risk लेना अगर समझदारी से हो, तो उसका फल मीठा होता है। उन्होंने यह भी दिखा दिया कि किसी काम को छोटा नहीं समझना चाहिए – सही सोच और कड़ी मेहनत उसे बड़ा बना सकती है।
यह कहानी है साहस, संघर्ष और सफलता की। एक ऐसा सफर जो यह सिखाता है कि अगर दिल में आग हो और हाथ में हुनर, तो दुनिया की कोई ताकत आपको रोक नहीं सकती। संजीत कोंडा ने यह साबित कर दिया है कि ‘ड्रॉपआउट’ होना आपकी कमजोरी नहीं, आपकी सबसे बड़ी ताकत बन सकती है – अगर आप उसे सही दिशा दें। और जब एक चाय बेचने वाला युवा ऑस्ट्रेलिया की गलियों में भारत की संस्कृति और स्वाद की खुशबू फैला सकता है, तो यकीन मानिए – आप भी कर सकते हैं। बस ज़रूरत है एक मजबूत इरादे की और लगातार मेहनत की।
Conclusion
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