Non-Tariff की आड़ में Trade War! अमेरिका अब भारत से क्यों मांग रहा है मदद? 2025

एक ऐसा समय जब दुनिया की सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्था, जो वर्षों से दूसरे देशों पर अपने व्यापारिक नियम थोपती आई हो, आज खुद किसी विकासशील देश से अपने लिए व्यापारिक राहत की गुहार लगा रही है। ये वही अमेरिका है, जिसने Global व्यापार की दशा-दिशा तय करने के लिए संस्थाएं खड़ी कीं, नियम बनाए, और कई देशों को आर्थिक दबाव में डालकर अपनी शर्तें मनवायीं।

लेकिन अब वही अमेरिका, भारत के जयपुर में आकर, खुले मंच से यह अपील करता है कि “कृपया अपने नॉन-Tariff बैरियर्स हटा दीजिए। हमारे Products को भारतीय बाज़ार में सहज पहुंच दीजिए।” यह सिर्फ एक मांग नहीं, बल्कि बदलती Global व्यवस्था का प्रतीक है। यह कहानी केवल व्यापार की नहीं है, बल्कि शक्ति-संतुलन की है… एक ऐसी कहानी जिसमें अब भारत निर्णायक भूमिका निभा रहा है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

बीते कुछ वर्षों में अमेरिका ने Global व्यापार में जिस आक्रामकता को अपनाया है, उसने पूरी दुनिया को चौंका दिया। ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के तहत चीन पर 245% Tariff लगाना, यूरोप को एल्यूमिनियम-स्टील पर चेतावनी देना और भारत को ट्रेड सरप्लस को लेकर बार-बार घेरना—ये सब उस अमेरिका की तस्वीर है, जो अब खुद Protectionism की नीति अपनाकर दूसरे देशों पर दबाव बना रहा है। लेकिन भारत, जो कभी शांत रहकर संतुलन साधता था, अब अपने आत्मविश्वास के साथ अमेरिका को जवाब दे रहा है। और यही अमेरिका की परेशानी की जड़ है—वो चाहता है कि भारत अपने बाज़ार को उसकी कंपनियों के लिए पूरी तरह खोल दे, वो भी बिना शर्त।

लेकिन अमेरिका को सबसे बड़ी शिकायत है भारत के नॉन-Tariff बैरियर्स से। अमेरिका का दावा है कि भारत न सिर्फ Import duty लगाता है, बल्कि उस पर कई तरह की ऐसी तकनीकी और कानूनी शर्तें भी थोपता है, जो अमेरिकी Products की भारत में एंट्री को जटिल और महंगी बना देती हैं। लेकिन भारत कहता है कि ये सभी शर्तें उपभोक्ताओं की सुरक्षा, देश की अर्थव्यवस्था और पर्यावरण की रक्षा के लिए हैं—न कि किसी खास देश को रोकने के लिए।

अब सवाल उठता है—आख़िर ये नॉन-Tariff बैरियर्स होते क्या हैं? जब कोई देश किसी Import पर सीधा टैक्स या शुल्क नहीं लगाता, लेकिन कुछ ऐसे नियम बना देता है जिससे विदेशी उत्पाद बाज़ार में आने से पहले एक लंबी, खर्चीली और जटिल प्रक्रिया से गुजरें—उसे नॉन Tariff बैरियर कहा जाता है। उदाहरण के लिए, किसी देश में एक Imported agricultural products को यह प्रमाण देना हो कि उसमें किसी कीट का अंश नहीं है, या कोई मशीनरी तब तक नहीं बिक सकती जब तक वह घरेलू लैब में टेस्ट होकर अप्रूव न हो जाए—यह सब एनटीबी कहलाते हैं।

भारत भी इन नियमों का इस्तेमाल करता है, लेकिन इनके पीछे तर्क होते हैं। जैसे—भारत में Food Security Act बहुत सख्त हैं। अगर कोई भी डेयरी उत्पाद Import किया जाता है, तो उसे प्रमाणित करना पड़ता है कि उसमें कोई हार्मफुल कैमिकल नहीं है, या वह भारतीय उपभोक्ता की सेहत पर असर नहीं डालेगा। अमेरिका को लगता है कि इससे उनकी कंपनियों की लागत बढ़ती है, लेकिन भारत का कहना है कि उपभोक्ताओं की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

22 अप्रैल को भारत दौरे पर आए अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने जयपुर में भारत से अनुरोध किया कि, वह अपने नॉन-Tariff बैरियर्स में ढील दे। उन्होंने कहा कि भारत के घरेलू नियमों के कारण अमेरिकी कंपनियों को यहां व्यापार करना कठिन हो गया है, और इससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संभावनाएं बाधित हो रही हैं। लेकिन भारत ने साफ कर दिया—हम व्यापार के लिए तैयार हैं, लेकिन अपने नियमों से पीछे नहीं हटेंगे।

भारतीय एक्सपोर्टर्स को भी अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में ऐसी ही दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं। यूरोपीय संघ, जापान, चीन, दक्षिण कोरिया और खुद अमेरिका—इन सभी जगहों पर भारतीय सामानों को नॉन-Tariff बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जैसे यूरोप में भेजे गए फल-सब्जियों को कीटनाशक अवशेषों की लिमिट पार होने के कारण लौटा दिया जाता है। कई बार फूड लेबलिंग का फॉन्ट साइज या पैकेजिंग का रंग मानक से थोड़ा सा अलग होने के कारण पूरा कंटेनर रोक लिया जाता है। ये सब वो प्रक्रियाएं हैं जिनसे भारतीय व्यापार को नुकसान होता है।

और तो और, भारतीय कृषि Products को अमेरिका में भी कीट की मौजूदगी, खुरपका-मुंहपका रोग, और रेजिड्यू लेवल्स के नाम पर कई बार ब्लॉक कर दिया जाता है। अमेरिका तो खुद भी इन उपायों का इस्तेमाल करता है। ऐसे में जब भारत अपने बाज़ार में अपने नियम लागू करता है, तो वह कोई असाधारण बात नहीं करता, बल्कि उसी नीति का पालन करता है जो विकसित देश पहले से ही करते आए हैं।

भारत में नियमों की ये प्रणाली स्वास्थ्य, पर्यावरण, और घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए बनाई गई है। जैसे—भारत चाहता है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण Import करने से पहले घरेलू लैब में टेस्ट किए जाएं, ताकि किसी भी तरह के रेडिएशन या फायर रिस्क को टाला जा सके। डेयरी प्रोडक्ट्स पर खास शर्तें इसलिए हैं क्योंकि भारतीय उपभोक्ता की भोजन शैली और पाचन प्रक्रिया अलग है। डिजिटल डेटा पर नियंत्रण इसलिए है क्योंकि भारत अपने नागरिकों का डेटा किसी बाहरी देश में जाने देना नहीं चाहता—जिसे अमेरिका ‘अवरोध’ कहता है।

इसलिए भारत ने अमेरिका को दो टूक कहा—हम आपका स्वागत करते हैं, लेकिन बिना हमारी शर्तों को बदले व्यापार नहीं होगा। भारत अब global power बनता जा रहा है, और वह किसी के दबाव में आकर अपने नियम नहीं बदलेगा। यह संदेश जितना स्पष्ट भारत के लिए है, उतना ही अमेरिका के लिए भी।

इस पूरी कहानी में भारत की आत्मनिर्भरता की नीति भी बड़ी भूमिका निभा रही है। भारत अब केवल Import पर निर्भर नहीं रहना चाहता। वह चाहता है कि उसकी कंपनियां, उसका स्टार्टअप इकोसिस्टम और उसका मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर विकसित हो। इसके लिए जरूरी है कि बाहरी कंपनियों को एक फिल्टर के जरिए ही भारत में एंट्री मिले। और नॉन-Tariff बैरियर्स वही फिल्टर हैं।

अमेरिका को अब यह समझ में आ गया है कि भारत को सिर्फ बाजार समझने की भूल महंगी पड़ सकती है। भारत अब तकनीक चाहता है, साझेदारी चाहता है, और खास तौर पर—’इक्वल ट्रीटमेंट’ चाहता है। इसलिए भारत ने अमेरिका से कहा है—अगर आप अपने बाज़ार में भारतीय सामानों को भी इसी तरह स्वीकार करेंगे, तो हम भी आपके लिए नियम आसान कर सकते हैं। लेकिन यह एकतरफा नहीं होगा।

वर्तमान में यह मुद्दा सिर्फ अमेरिका-भारत व्यापार का नहीं, बल्कि एक नए विश्व आर्थिक यथार्थ का संकेत है। जहां विकसित देश अब अपनी जरूरतों के लिए विकासशील देशों की ओर झुकने लगे हैं। और भारत जैसे देश, जो अब पहले से ज्यादा मजबूत हैं, वे अपने हितों से समझौता करने को तैयार नहीं।

इसलिए जब अगली बार आप खबरों में सुनें कि अमेरिका भारत से रियायतें मांग रहा है, तो यह समझना ज़रूरी है कि यह भारत की बदलती हुई ताकत और आत्मविश्वास का परिणाम है। भारत अब न केवल Global व्यापार का हिस्सा है, बल्कि उसका नेतृत्व भी कर सकता है। और यही है इस बदलते दौर की सबसे बड़ी जीत।

Conclusion

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