नमस्कार दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि जिस वैक्सीन को हम अपनी सुरक्षा के लिए लगवाते हैं, उसकी कीमत तय करने का हक खुद वैक्सीन निर्माताओं के पास भी नहीं होता? क्या आपने यह कल्पना की है कि एक ऐसी जीवनरक्षक दवा, जिसने लाखों जिंदगियां बचाई हैं, वो सड़क किनारे बिकने वाले चप्पलों से भी सस्ती हो सकती है? यह चौंकाने वाला सच हाल ही में दावोस में सामने आया I
जब सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने खुलासा किया कि vaccine industry कितनी बड़ी चुनौतियों से गुजर रही है। उन्होंने स्पष्ट किया कि इस उद्योग को आगे बढ़ाने के लिए कीमत तय करने की आजादी जरूरी है, क्योंकि बिना उचित लाभ के न तो रिसर्च संभव है और न ही नई नौकरियों का सृजन। अगर यह स्थिति बनी रही, तो आने वाले समय में इस सेक्टर में इनोवेशन और नई वैक्सीन डेवलपमेंट की गति धीमी हो सकती है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
अदार पूनावाला ने यह साफ कहा कि वैक्सीन सेक्टर को छूट या प्रमोशन की नहीं, बल्कि ज्यादा प्राइस कंट्रोल से राहत की जरूरत है। उन्होंने तर्क दिया कि कई वैक्सीन की कीमत सड़क किनारे बिकने वाले सस्ते जूतों या चप्पलों से भी कम होती है, जो कि इस उद्योग के लिए एक बड़ी समस्या है।
उन्होंने यह भी कहा कि अगर कोई वैक्सीन 300 से 400 रुपये में बेची जाती है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन सरकार और अन्य संस्थानों द्वारा कीमतों को जबरन नियंत्रित किया जाना, इस पूरे सेक्टर के विकास को बाधित कर सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि वैक्सीन कंपनियों को उनकी लागत और मुनाफे के आधार पर कीमत तय करने की आजादी मिलनी चाहिए, ताकि वे रिसर्च और डेवलपमेंट में Investment कर सकें।
vaccine industry को लेकर पूनावाला ने एक और महत्वपूर्ण तुलना पेश की। उन्होंने कहा कि जहां आईटी, ऑटो और फाइनेंस जैसे सेक्टर हर साल अरबों का मुनाफा कमाते हैं, वहीं vaccine industry एक साल में 1 अरब रुपये की कमाई भी मुश्किल से कर पाती है। यह तथ्य इस बात को दर्शाता है कि यह सेक्टर अपनी पूरी क्षमता के बावजूद पर्याप्त मुनाफा नहीं कमा पा रहा है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर इस इंडस्ट्री को भी अन्य सेक्टर्स की तरह उचित स्वतंत्रता मिले, तो यह भी तेजी से आगे बढ़ सकता है। लेकिन वर्तमान में, जब वैक्सीन की कीमतें बहुत कम रखी जाती हैं और सरकार या अन्य एजेंसियां उनकी कीमत तय करती हैं, तो कंपनियों के पास नई रिसर्च और Production बढ़ाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं होते। नतीजतन, इस इंडस्ट्री का भविष्य खतरे में पड़ सकता है और आने वाली पीढ़ियों के लिए नई, उन्नत और अधिक प्रभावी वैक्सीन विकसित करना कठिन हो सकता है।
इसके अलावा, एक और महत्वपूर्ण बिंदु जो अदार पूनावाला ने उठाया, वह था वैक्सीन निर्माण से जुड़े मुनाफे का मुद्दा। उन्होंने कहा कि अगर कोई कंपनी इस सेक्टर में पैसा नहीं कमा पाएगी, तो वह फिर से Investment करने और नई वैक्सीन विकसित करने में असमर्थ हो जाएगी। इसके परिणामस्वरूप, अगली पीढ़ी के टीके और दवाएं समय पर विकसित नहीं हो पाएंगी, जिससे पूरी दुनिया को नुकसान होगा।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि भारत को अगर फाइजर और जीएसके जैसी Global दिग्गज कंपनियों के बराबर खड़ा होना है, तो vaccine industry को भी उचित अवसर मिलने चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि ये कंपनियां 100 से 200 अरब डॉलर की हैं, जबकि भारतीय वैक्सीन कंपनियां 1 अरब डॉलर की सीमा को पार करने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
इसके अलावा, अदार पूनावाला ने सीरम इंस्टीट्यूट को जल्द पब्लिक करने की संभावना को भी खारिज कर दिया। उन्होंने इस पूरी समस्या का एक और पहलू सामने रखा, जो रिसर्च एंड डेवलपमेंट से जुड़ा हुआ है। वैक्सीन निर्माण में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि नई बीमारियों और वायरस के खिलाफ, प्रभावी टीके विकसित करने के लिए भारी मात्रा में पूंजी और संसाधनों की जरूरत होती है।
पूनावाला ने बताया कि जब तक सरकारें और नीति-निर्माता इस सेक्टर को सही कीमत तय करने की स्वतंत्रता नहीं देंगे, तब तक नई और अधिक प्रभावी वैक्सीन पर Investment करना मुश्किल होगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे विकसित देशों की वैक्सीन कंपनियां सरकारों से भारी Grant और समर्थन प्राप्त करती हैं, जबकि भारतीय कंपनियों को बाजार की Competition में अकेले संघर्ष करना पड़ता है।
यह स्थिति न केवल स्थानीय उद्योग के विकास को धीमा करती है, बल्कि global level पर भारत की Competitive क्षमता को भी प्रभावित करती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में, प्राइस कंट्रोल के चलते वैक्सीन कंपनियों को लिस्ट नहीं किया जा सकता। भले ही इनकी बिक्री और वॉल्यूम बढ़े, लेकिन अगर मुनाफा 10 से 15% तक सीमित रहेगा, तो Investor कंपनी के वैल्यूएशन पर सवाल उठाएंगे।
उन्होंने आगे कहा कि यदि भविष्य में 5 से 10 साल बाद इंडस्ट्री की स्थिति मजबूत होती है और कंपनी के पास कई Revenue streams मौजूद होंगी, तब लिस्टिंग पर विचार किया जा सकता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब तक सरकार वैक्सीन की कीमतों को Artificial रूप से सीमित रखेगी, तब तक इस उद्योग को global level पर Competition में बने रहना मुश्किल होगा।
इस पूरी चर्चा में एक महत्वपूर्ण सवाल यह भी उठता है – क्या जीवनरक्षक दवाओं की कीमतें बढ़ाने की छूट कंपनियों को दी जानी चाहिए? क्या जनता को यह समझना होगा कि यदि कंपनियों को उचित लाभ नहीं मिलेगा, तो वे नई दवाओं पर रिसर्च कैसे करेंगी? यह पूरी बहस केवल vaccine industry तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे हेल्थकेयर सेक्टर से जुड़ा हुआ एक बड़ा मुद्दा है।
अदार पूनावाला के विचारों को अगर गहराई से देखा जाए, तो यह समझ में आता है कि vaccine industry को अन्य इंडस्ट्रीज की तरह बढ़ने के लिए स्वतंत्रता चाहिए। सरकारों और नीति-निर्माताओं को यह विचार करना चाहिए कि कैसे इस उद्योग को वित्तीय रूप से अधिक सक्षम बनाया जाए, ताकि यह नए और अधिक प्रभावी Products का निर्माण कर सके।
हालांकि, इस मुद्दे को केवल एक बिजनेस पर्सपेक्टिव से नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह एक सामाजिक और स्वास्थ्य से जुड़ा विषय भी है। यदि वैक्सीन कंपनियों को सही कीमत तय करने का अधिकार नहीं मिलेगा, तो वे नए research में Investment नहीं कर पाएंगी और इसका सीधा असर लाखों लोगों की स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ेगा। पूनावाला ने सही कहा कि बिना मुनाफे के कोई भी उद्योग आगे नहीं बढ़ सकता, और यह इंडस्ट्री भी Exception नहीं है। इससे जुड़े निर्णयों का प्रभाव केवल कंपनियों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह Global public health पर भी असर डालेगा।
अंत में, सवाल यही है कि क्या सरकार और अन्य नीतिगत संस्थाएं इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगी? क्या वैक्सीन कंपनियों को मुनाफा कमाने की आजादी दी जाएगी, जिससे वे रिसर्च और डेवलपमेंट में Investment कर सकें? यह बहस लंबे समय तक जारी रह सकती है, लेकिन एक बात स्पष्ट है – अगर हमें भविष्य में भी प्रभावी और सुरक्षित वैक्सीन चाहिए, तो इस इंडस्ट्री को भी अपने Products की कीमत तय करने की छूट मिलनी चाहिए।
इसके बिना, न केवल कंपनियों का विकास रुकेगा, बल्कि Global health system भी प्रभावित हो सकती है। इसलिए, यह आवश्यक है कि सरकारें और Regulatory bodies इस विषय को प्राथमिकता दें और ऐसी नीतियां बनाएं, जो इस इंडस्ट्री को सशक्त बना सकें।
Conclusion
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