कल्पना कीजिए एक ऐसा दौर, जब दो महाशक्तियाँ – America और चीन – दुनिया पर वर्चस्व के लिए एक-दूसरे से भिड़ी हों। दोनों आर्थिक ताकतें एक-दूसरे के खिलाफ व्यापार युद्ध छेड़े हुए हों, एक-दूसरे के माल पर भारी-भरकम टैक्स लगा रही हों, और इसी खींचतान के बीच Global बाजार अस्थिर हो गया हो। अब सोचिए कि इस खींचतान के बीच एक ऐसा देश हो, जो मैदान में उतरे बिना, बिना कोई साजिश रचे, चुपचाप सबसे ज्यादा लाभ कमा ले।
जी हाँ, ये कोई कल्पना नहीं, बल्कि हकीकत है – और वो देश है भारत। आज जब दुनिया की दो सबसे ताकतवर अर्थव्यवस्थाएं एक-दूसरे के खिलाफ रणनीतिक चालें चल रही हैं, भारत को एक ऐतिहासिक आर्थिक अवसर मिला है। ये मौका सिर्फ बाजार में मौजूद एक खाली जगह भरने का नहीं है, बल्कि भारत की पूरी आर्थिक व्यवस्था को मज़बूती देने का है। और इसकी सबसे बड़ी वजह है – कच्चे तेल की कीमतों में जबरदस्त गिरावट।
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के खिलाफ टैरिफ लगाने की जब घोषणा की, तो इसका सीधा असर अंतरराष्ट्रीय बाजार पर पड़ा। क्रूड ऑयल की कीमतों में 15 प्रतिशत तक की गिरावट देखी गई। ब्रेंट क्रूड अब 60 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच चुका है और WTI 57 डॉलर के आसपास।
ये वही तेल है, जो कभी भारत की अर्थव्यवस्था पर बोझ की तरह था – लेकिन आज वही तेल भारत के लिए सोने से भी ज्यादा कीमती साबित हो रहा है। और ऐसा पहली बार नहीं हुआ। कोविड महामारी के समय भी जब दुनिया ठहर गई थी, तब तेल की कीमतें घटकर ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गई थीं। उस वक्त भी भारत ने इसका लाभ उठाया था। लेकिन आज की स्थिति और भी फायदेमंद है – क्योंकि इस बार सिर्फ कीमतें ही नहीं, बल्कि भारत का ग्लोबल रोल भी बढ़ रहा है।
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल Importer देश है। हम अपनी जरूरत का लगभग 85% कच्चा तेल बाहर से मंगाते हैं। इसका सीधा मतलब है कि अगर तेल सस्ता होता है, तो हमारे देश की जेब पर बोझ घटता है। और यही हो रहा है आज – जब पूरी दुनिया चिंता में डूबी है, तब भारत मुस्कुरा रहा है।
भारत के लिए ये एक ‘विंडो ऑफ ऑपर्च्युनिटी’ है, जिसे अगर सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए, तो अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी जा सकती है। अब आइए जानते हैं कि भारत को इसके क्या-क्या फायदे हो रहे हैं – और कैसे एक टकराव, जो हमसे हजारों किलोमीटर दूर हो रहा है, हमारे घर की खुशहाली बढ़ा रहा है।
सबसे पहला और सीधा फायदा है – Import बिल में भारी कमी। भारत ने Fiscal year 2022 23 में करीब 232 मिलियन टन कच्चा तेल Import किया था, जिसकी कुल लागत थी करीब 158 अरब डॉलर। अब सोचिए, अगर तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की भी कमी आती है, तो भारत सालाना 15 अरब डॉलर तक बचा सकता है।
यह कोई मामूली रकम नहीं है। इससे भारत एक साल में कई इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को फंड कर सकता है, शिक्षा या स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में व्यापक सुधार ला सकता है। ये बचत प्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार के बजट को राहत देती है और उसी पैसे का इस्तेमाल गांव-गांव में सड़कों से लेकर, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तक करने में किया जा सकता है।
दूसरा बड़ा फायदा है – Current Account Deficit में सुधार। भारत का Current account deficit हमेशा से सरकार और रिज़र्व बैंक के लिए एक चुनौती रहा है। ये वो अंतर होता है जो हम Export करके कमाते हैं और Import पर खर्च करते हैं। जब तेल सस्ता होता है, तो हमारा Import खर्च कम होता है और Current account deficit घटता है।
experts के अनुसार, कच्चे तेल की कीमत में हर 1 डॉलर की कमी चालू खाते के घाटे को 1.5 से 1.6 अरब डॉलर तक कम कर सकती है। यह एक महत्वपूर्ण संकेत है कि भारत की अर्थव्यवस्था अब पहले से ज्यादा आत्मनिर्भर और संतुलित होती जा रही है। इससे अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों में भारत की साख मजबूत होती है और देश को सस्ते ब्याज दर पर लोन मिल सकता है।
तीसरा बड़ा लाभ है – महंगाई पर नियंत्रण। तेल सिर्फ एक उत्पाद नहीं है, यह लगभग हर सेक्टर की रीढ़ है। पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ने पर ट्रांसपोर्ट महंगा होता है, अगर ट्रांसपोर्ट महंगा होता है तो हर चीज की कीमत बढ़ती है – चाहे वो सब्जी हो, दवाई हो या FMCG प्रोडक्ट्स।
साल 2022 में जब तेल की कीमतें आसमान पर थीं, तब भारत में Wholesale price index यानी WPI महंगाई 12% से ऊपर पहुंच गई थी। लेकिन अब जब कच्चा तेल सस्ता हो गया है, तो उम्मीद है कि Consumer Price Index (CPI) और WPI दोनों में गिरावट आएगी। इससे आम आदमी को सीधी राहत मिलेगी, जो हर महीने की बढ़ती खर्चों से परेशान रहता है।
चौथा फायदा है – Fiscal deficit का दबाव कम होना। सरकार हर साल बड़ी मात्रा में उर्वरक और गैस पर सब्सिडी देती है, खासकर गरीब और किसानों के लिए। जब तेल सस्ता होता है, तो इन सब्सिडियों का बोझ अपने आप घट जाता है। सरकार को उतना पैसा खर्च नहीं करना पड़ता, और जो पैसे बचते हैं, उनका इस्तेमाल शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे क्षेत्रों में किया जा सकता है। Fiscal year 2024 25 के लिए सरकार ने Fiscal deficit जीडीपी का 5.1% रखा है। अगर तेल की कीमतें इसी तरह नीचे बनी रहीं, तो सरकार अपने लक्ष्य से भी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है और यह foreign investors को एक सकारात्मक संकेत देगा।
पांचवां लाभ है – रुपया मजबूत होना। जब देश कम डॉलर खर्च करता है, तो डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होता है। 2022 में जब तेल की कीमतें बढ़ीं, तो रुपया डॉलर के मुकाबले 83 के स्तर तक गिर गया था। लेकिन अब जब कच्चे तेल की कीमतें घट रही हैं, तो डॉलर की मांग कम हो जाती है और रुपये की वैल्यू स्थिर होती है। मजबूत रुपया न सिर्फ विदेश व्यापार को सस्ता बनाता है, बल्कि इससे foreign investors का भरोसा भी बढ़ता है। मजबूत मुद्रा देश की आर्थिक स्थिरता की निशानी मानी जाती है।
छठा लाभ है – घरेलू उपभोग में वृद्धि। जब पेट्रोल-डीजल और एलपीजी की कीमतें घटती हैं, तो लोगों की जेब में कुछ पैसे बचते हैं। यही अतिरिक्त पैसा वो कपड़े खरीदने में, बच्चों की पढ़ाई में, या मनोरंजन पर खर्च करते हैं। इससे बाजार में मांग बढ़ती है, कंपनियों की बिक्री बढ़ती है, और नए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। ये चक्र जीडीपी की गति को बनाए रखता है और देश के आर्थिक इंजन को तेज करता है। खास बात ये है कि ग्रामीण भारत, जो महंगाई से सबसे ज्यादा प्रभावित होता है, उसे सबसे ज्यादा राहत मिलती है।
सातवां फायदा मिलता है उन खास सेक्टरों को, जिनकी लागत का बड़ा हिस्सा ईंधन से जुड़ा होता है। जैसे एयरलाइंस, लॉजिस्टिक्स, पेंट, टायर और एफएमसीजी इंडस्ट्री। उदाहरण के तौर पर, Aviation ईंधन यानी ATF किसी एयरलाइन की कुल लागत का लगभग 40% होता है। जब ATF सस्ता होता है, तो एयरलाइन कंपनियों के मार्जिन में सीधे सुधार होता है, जिससे या तो एयर टिकट सस्ते होते हैं या कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है। यही लॉजिस्टिक्स सेक्टर पर भी लागू होता है – डीजल सस्ता मतलब मालभाड़ा सस्ता, और इससे अंतिम उत्पाद की कीमत घटती है।
आठवां और अंतिम फायदा – foreign currency reserves में बढ़ोतरी। कम तेल Import का मतलब है डॉलर की कम निकासी। यानी भारत के पास ज्यादा डॉलर बचते हैं, जिसे रिज़र्व के तौर पर जमा किया जा सकता है। यह foreign currency reserves किसी भी आपातकालीन स्थिति में, देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने में मदद करता है। कोविड जैसी आपदाओं के समय भारत ने अपने मजबूत फॉरेक्स रिज़र्व की वजह से ही बाहरी दबाव को झेल लिया था।
जब पूरी दुनिया आर्थिक मंदी, युद्ध और राजनीतिक अनिश्चितता से जूझ रही है, तब भारत को एक ऐसा मौका मिला है, जो हर देश को नसीब नहीं होता। अमेरिका और चीन की लड़ाई ने भारत के लिए वो द्वार खोले हैं, जिनसे होकर हम एक स्थिर, आत्मनिर्भर और समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।
Conclusion
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