Azim Premji: भारत का सबसे दरियादिल बिजनेसमैन, रोज़ाना 27 करोड़ दान और जिन्ना के ऑफर को किया था ठुकरा!

नमस्कार दोस्तों, कभी आपने सोचा है कि एक ऐसा व्यक्ति जो अरबों की दौलत का मालिक है, हर दिन करोड़ों रुपये दान करता है और फिर भी अपने जीवन में साधारणता को अपनाए रखता है? एक ऐसा बिजनेसमैन जो न सिर्फ भारत का सबसे अमीर मुस्लिम उद्योगपति है, बल्कि देश के सबसे बड़े परोपकारी व्यक्तियों में भी शामिल है? यह कहानी है Azim Premji की, जिनकी जिंदगी किसी प्रेरणा से कम नहीं।

यह कहानी एक ऐसे परिवार की है, जिसने बंटवारे के समय पाकिस्तान जाने से इनकार कर दिया, और भारत में रहकर अपनी मेहनत और लगन से बिजनेस की दुनिया में एक नया इतिहास रच दिया। उनकी यह यात्रा संघर्षों, कठिनाइयों और असफलताओं से भरी रही, लेकिन उनके अद्वितीय दृष्टिकोण और मेहनत ने उन्हें वहां पहुंचाया, जहां बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं। आइए जानते हैं इस अमीर खानदानी परिवार और उसके मुखिया Azim Premji की कहानी, जिनकी सफलता और दरियादिली दोनों ही मिसाल हैं।

Azim Premji का जन्म 1945 में मुंबई में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद प्रेमजी एक चावल कारोबारी थे, जो मूल रूप से म्यांमार में व्यापार करते थे, लेकिन 1940 में वे भारत आकर बस गए। जब 1947 में भारत का विभाजन हुआ, तब मोहम्मद अली जिन्ना ने मोहम्मद प्रेमजी को पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया और यहां तक कि उन्हें पाकिस्तान का Minister of Finance बनाने का प्रस्ताव भी दिया।

लेकिन मोहम्मद प्रेमजी ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और भारत में ही रहने का फैसला किया। उनका विश्वास था कि भारत में रहकर वे अपने व्यापार को और अधिक ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। उनके इसी फैसले ने प्रेमजी परिवार को भारत का सबसे अमीर मुस्लिम व्यापारिक परिवार बनने की नींव दी। उनके इस निर्णय का असर आने वाली पीढ़ियों तक हुआ और इस फैसले ने ही Azim Premji को उनके जीवन का सबसे बड़ा अवसर प्रदान किया।

Azim Premji ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में पूरी की और फिर higher education के लिए अमेरिका चले गए। उनके बड़े भाई फारुख प्रेमजी पिता के साथ व्यापार में हाथ बंटाने लगे, लेकिन 1965 में शादी के बाद फारुख प्रेमजी पाकिस्तान चले गए।

उसी साल मोहम्मद प्रेमजी का निधन हो गया, जिसके बाद अजीम प्रेमजी को अपनी पढ़ाई छोड़कर भारत लौटना पड़ा और पारिवारिक व्यवसाय की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी। यह एक कठिन समय था, क्योंकि कंपनी पर भारी कर्ज था और इसे संभालना आसान नहीं था। उनकी उम्र कम थी, अनुभव सीमित था, लेकिन उनका जज़्बा अटूट था। उन्होंने न सिर्फ इस कठिन समय का डटकर सामना किया, बल्कि अपनी मेहनत और समझदारी से कंपनी को संकट से बाहर निकाला।

Azim Premji ने कंपनी को कर्ज से उबारने के लिए दिन-रात मेहनत की। उन्होंने न सिर्फ तेल कारोबार को संकट से निकाला, बल्कि उसमें नए आयाम जोड़े। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग और बॉडी केयर प्रोडक्ट्स के क्षेत्र में भी कदम रखा, जिससे कंपनी का विस्तार हुआ और उसकी कमाई बढ़ने लगी। उन्होंने हमेशा नए अवसरों को पहचाना और व्यापार को आगे बढ़ाने के लिए रणनीतिक फैसले लिए।

उन्होंने अपने व्यापारिक सफर में हर छोटी-बड़ी चीज़ को सीखा और हर असफलता से खुद को मजबूत किया। यही वजह थी कि जब वे अपने व्यवसाय को एक नई दिशा में ले जाने की सोच रहे थे, तो उन्होंने आईटी सेक्टर को चुना।

वर्ष 1977 में उन्होंने एक बड़ा निर्णय लिया, जिसने उनके बिजनेस को नई दिशा दी। वे आईटी सेक्टर में संभावनाएं देख रहे थे और उन्होंने इस क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने अपनी कंपनी का नाम बदलकर विप्रो कर दिया और कंप्यूटर हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर डेवेलपमेंट की ओर ध्यान देना शुरू किया।

यह एक बहुत ही साहसिक कदम था, क्योंकि उस समय भारत में आईटी सेक्टर नया था और इसमें Investment करना Risk भरा माना जाता था। लेकिन Azim Premji की दूरदर्शिता ने साबित कर दिया कि वे कितने शानदार बिजनेसमैन हैं। उन्होंने विप्रो को न केवल एक बड़ी आईटी कंपनी में बदला, बल्कि इसे एक Global पहचान भी दिलाई।

विप्रो ने धीरे-धीरे इंटरनेशनल कंपनियों के साथ पार्टनरशिप की और अपना नाम दुनिया के बड़े आईटी ब्रांड्स के बीच स्थापित कर लिया। आज विप्रो न केवल भारत बल्कि दुनिया की टॉप आईटी कंपनियों में से एक है। इस कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन 3 ट्रिलियन यानी तीन खरब रुपये से भी ज्यादा है।

यह केवल एक व्यापार नहीं, बल्कि भारत के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान है। Azim Premji ने विप्रो को केवल एक आईटी कंपनी तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक मल्टीनेशनल टैक्नोलॉजी दिग्गज में तब्दील कर दिया।

Azim Premji सिर्फ एक सफल उद्योगपति ही नहीं हैं, बल्कि वे भारत के सबसे बड़े परोपकारियों में से एक हैं। वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा समाज सेवा में लगाते हैं। EdelGive Hurun India Philanthropy List के अनुसार, साल 2021 में वे भारत के सबसे बड़े दानदाता बने। उन्होंने 2020-21 में कुल 9,713 करोड़ रुपए का दान दिया, जो प्रतिदिन 27 करोड़ रुपये के बराबर था। यह अपने आप में एक अनोखी मिसाल है कि एक उद्योगपति अपनी संपत्ति को समाज की भलाई में इतनी उदारता से लगाता है। यह परोपकार उनकी सोच और समाज के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

आज Azim Premji की कुल संपत्ति 12.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर है और वे भारत के 19वें सबसे अमीर व्यक्ति हैं। लेकिन उनकी असली पहचान सिर्फ उनकी दौलत से नहीं, बल्कि उनके द्वारा किए गए समाजसेवी कार्यों से होती है। उन्होंने अपने जीवन में यह सिद्ध किया कि व्यवसाय केवल मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि समाज की सेवा के लिए भी किया जा सकता है। उनका जीवन एक उदाहरण है कि सफलता केवल धन अर्जित करने से नहीं मिलती, बल्कि इसे समाज में वापस देकर और लोगों की जिंदगी में सुधार लाकर ही सच्ची सफलता हासिल की जा सकती है।

इसके अलावा, Azim Premji की उदारता और परोपकारिता ने उन्हें global level पर एक विशिष्ट पहचान दिलाई है। उन्होंने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा दान करने का संकल्प लिया है, जिससे वे दुनिया के सबसे बड़े दानदाताओं में से एक बन गए हैं।

उनकी परोपकारी पहलों का मुख्य फोकस शिक्षा और ग्रामीण विकास है, जो समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के उनके दृढ़ संकल्प को दर्शाता है। 2001 में स्थापित ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ के तहत, उन्होंने भारत में प्राथमिक शिक्षा प्रणाली को बेहतर बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण पहल की हैं। यह फाउंडेशन हजारों स्कूलों, शिक्षकों और छात्रों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने में मदद करता है, जिससे भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया है।

उनकी कहानी यह सिखाती है कि मेहनत, ईमानदारी और समाजसेवा के साथ आगे बढ़ा जाए तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं होता। प्रेमजी परिवार ने न केवल भारत में बिजनेस की दुनिया में अपनी पहचान बनाई, बल्कि वे इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं कि सफलता के साथ-साथ समाज को वापस देना कितना जरूरी होता है।

उनके कार्यों और उनकी सोच ने भारत में व्यापार और समाज सेवा दोनों ही क्षेत्रों में एक नया मानदंड स्थापित किया है, जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।

Conclusion

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