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CAR-T थेरेपी से कैंसर का इलाज संभव? हांगकांग की नई उम्मीद और भारत में इसकी स्थिति! 2025

CAR-T

नमस्कार दोस्तों, क्या कैंसर जैसी घातक बीमारी का इलाज अब सिर्फ एक इंजेक्शन से संभव हो सकता है? क्या हांगकांग के वैज्ञानिकों ने वो चमत्कार कर दिखाया है, जिसकी उम्मीद पूरी दुनिया सालों से कर रही थी? क्या अब कैंसर से पीड़ित मरीजों के लिए मौत का डर खत्म हो सकता है?

हांगकांग के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक ऐसा दावा किया है, जिसने मेडिकल जगत को हिलाकर रख दिया है। हांगकांग के वैज्ञानिकों का कहना है कि CAR-T नामक एक इंजेक्शन ने पांच कैंसर मरीजों की जिंदगी को बदल दिया है। नवंबर 2024 में जिन पांच मरीजों को CAR-T इंजेक्शन दिया गया था, उनमें से सभी अब ठीक हो रहे हैं।

इन मरीजों की उम्र अलग-अलग थी, लेकिन नतीजे इतने चौंकाने वाले थे कि अब यह थैरेपी दुनियाभर के मेडिकल experts की चर्चा का विषय बन गई है। इस इंजेक्शन की खास बात यह है कि इसे लगाने के बाद मरीजों को कुछ ही हफ्तों में राहत मिलने लगी। फरवरी 2025 तक इन मरीजों की स्थिति काफी हद तक सामान्य हो चुकी थी।

इस चमत्कारिक इंजेक्शन ने मेडिकल जगत में एक नई उम्मीद जगा दी है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह इंजेक्शन भारत में भी उपलब्ध होगा? क्या भारतीय मरीजों को भी इस थैरेपी का लाभ मिलेगा या फिर यह सिर्फ अमीर देशों तक ही सीमित रहेगा? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

हांगकांग की इस चमत्कारिक थैरेपी के पीछे CAR-T इंजेक्शन की तकनीक है। CAR-T का पूरा नाम है Chimeric Antigen Receptor T-Cell Therapy। इस थैरेपी का फंडामेंटल कॉन्सेप्ट यह है कि मरीज के शरीर से (T-Cell) यानी (White Blood Cells) को निकाला जाता है। फिर इन टी-सेल्स को जेनेटिकली मॉडिफाई किया जाता है, ताकि वे कैंसर सेल्स को पहचान सकें और उन्हें खत्म कर सकें।

मॉडिफिकेशन के बाद इन टी-सेल्स को दोबारा मरीज के शरीर में इंजेक्ट कर दिया जाता है। इसके बाद ये सेल्स कैंसर सेल्स पर हमला करके उन्हें खत्म करने का काम करती हैं। CAR-T थैरेपी को पहले अमेरिकी और यूरोपीय देशों में ही इस्तेमाल किया जा रहा था, लेकिन हांगकांग के वैज्ञानिकों ने इसे और उन्नत बना दिया है।

हांगकांग के साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक, अक्टूबर 2024 में चाइनीज यूनिवर्सिटी ऑफ हांगकांग के वैज्ञानिकों ने पांच मरीजों पर CAR-T इंजेक्शन का इस्तेमाल किया। इन मरीजों में से एक की उम्र 73 साल थी, दूसरे की 71 साल, तीसरे की 67 साल, चौथे की 15 साल और पांचवें की उम्र महज 5 साल थी। यानी इस थैरेपी का असर अलग-अलग उम्र के मरीजों पर देखने को मिला।

रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी 2025 तक इन मरीजों की स्थिति में काफी सुधार हुआ। इनमें से एक मरीज ली चुंग ने कहा कि इंजेक्शन लगाने के बाद कुछ ही मिनटों में उसे राहत महसूस होने लगी। धीरे-धीरे दर्द कम होने लगा और शरीर में ताकत बढ़ने लगी। डॉक्टरों ने भी पुष्टि की कि कैंसर सेल्स तेजी से खत्म हो रहे थे और मरीज की स्थिति में सुधार हो रहा था।

हांगकांग के वैज्ञानिकों का दावा है कि यह इंजेक्शन खासकर लीवर और फेफड़ों के कैंसर के इलाज में बेहद प्रभावी साबित हो रहा है। अब तक के आंकड़ों के मुताबिक, CAR-T इंजेक्शन से 90% मरीजों में सुधार देखा गया है। लेकिन इस थैरेपी का सबसे बड़ा चैलेंज इसकी लागत है। रिपोर्ट के अनुसार, हांगकांग में इस इंजेक्शन की कीमत करीब 3 करोड़ रुपये है। यानी यह थैरेपी फिलहाल आम लोगों की पहुंच से बाहर है। इसके अलावा, इस थैरेपी के बाद मरीज को करीब 7 दिनों तक आईसीयू में रखना जरूरी होता है। इस दौरान मरीज पर डॉक्टरों की कड़ी निगरानी होती है, ताकि किसी भी तरह के साइड इफेक्ट का तुरंत इलाज किया जा सके।

इस थैरेपी के साइड इफेक्ट्स भी चिंता का विषय हैं। CAR-T थैरेपी के बाद मरीजों में Cytokine Release Syndrome (CRS) जैसी समस्या देखी जा सकती है, जिसमें शरीर के इम्यून सिस्टम का ओवरएक्शन होने लगता है। इसके कारण मरीज को तेज बुखार, लो ब्लड प्रेशर और सांस लेने में दिक्कत हो सकती है। इसके अलावा, Neurotoxicity यानी दिमाग पर असर पड़ने का भी खतरा रहता है। कुछ मामलों में मरीजों को दौरे पड़ने, याददाश्त कमजोर होने और मानसिक संतुलन बिगड़ने की समस्या हो सकती है। हालांकि, हांगकांग के वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक के ट्रायल में इस तरह के साइड इफेक्ट्स पर काबू पाने में सफलता मिली है।

अब सवाल यह है कि भारत में इस थैरेपी की स्थिति क्या है? भारत में CAR-T थैरेपी को पहली बार 2023 में IIT बॉम्बे ने शुरू किया था। भारत में इस थैरेपी को नेक्सकार- nineteen के नाम से लॉन्च किया गया था। इसे भारतीय वैज्ञानिकों ने विकसित किया है और इसे “मेड इन इंडिया” उत्पाद माना जा रहा है। भारत सरकार ने इस प्रोजेक्ट को लेकर काफी रुचि दिखाई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस थैरेपी के महत्व को स्वीकार किया था। भारत में इस थैरेपी का इस्तेमाल फिलहाल रक्त कैंसर यानी ल्यूकेमिया और लिम्फोमा के मरीजों के इलाज के लिए किया जा रहा है।

हालांकि, भारत में CAR-T थैरेपी की कीमत को कम रखने की कोशिश की जा रही है। फिलहाल भारत में एक CAR-T इंजेक्शन की कीमत करीब 30 लाख रुपये है, जो हांगकांग के मुकाबले 10 गुना कम है। भारत सरकार इस थैरेपी को आम जनता के लिए सस्ता और सुलभ बनाने के लिए नई योजनाओं पर काम कर रही है। भारतीय वैज्ञानिकों का मानना है कि आने वाले समय में इस थैरेपी की कीमत 10 लाख रुपये से भी कम हो सकती है। अगर ऐसा हुआ तो भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो जाएगा, जहां कैंसर के इलाज के लिए CAR-T थैरेपी सबसे किफायती होगी।

भारत के मेडिकल रिसर्च सेंटर भी इस थैरेपी के क्लिनिकल ट्रायल्स पर काम कर रहे हैं। नेचर पत्रिका के अनुसार, भारत में इस थैरेपी से करीब 80% मरीजों को फायदा हुआ है। हालांकि, भारत में इस थैरेपी का इस्तेमाल अभी सिर्फ ब्लड कैंसर तक ही सीमित है। लीवर, फेफड़े और अन्य अंगों के कैंसर में इसका इस्तेमाल करने के लिए अभी और रिसर्च की जरूरत है।

अब सवाल यह है कि क्या हांगकांग की इस चमत्कारी थैरेपी का फायदा भारतीय मरीजों को भी मिलेगा? experts का मानना है कि अगर हांगकांग की इस तकनीक को भारत में लाया जाता है और इसे मेड इन इंडिया के तहत विकसित किया जाता है, तो इसकी कीमत काफी कम हो सकती है। इससे आम आदमी को भी इस थैरेपी का लाभ मिल सकता है।

CAR-T थैरेपी मेडिकल साइंस के लिए एक बड़ी क्रांति साबित हो सकती है। अगर इस थैरेपी के साइड इफेक्ट्स को नियंत्रित कर लिया गया और इसकी कीमत आम आदमी की पहुंच में आ गई, तो यह कैंसर के इलाज में एक नया अध्याय लिखेगी। भारत के वैज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। अगर हांगकांग की इस चमत्कारी तकनीक को भारत में सफलतापूर्वक लागू किया गया, तो भारत कैंसर के इलाज के क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम करेगा।

Conclusion

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