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Inspiring: Stars से Startup Stars तक: जब फिल्मी सितारों ने बिजनेस में बजाई धमाल! 2025

हर रात जब आसमान में तारे चमकते हैं, तो हमें वो सितारे भी याद आते हैं जो कभी बड़े पर्दे पर टिमटिमाया करते थे। उनकी मुस्कान, उनकी अदाएं, उनके संवाद — सबकुछ लोगों के दिलों में घर कर जाता था। लेकिन क्या हो जब ये सितारे अपनी रौशनी खो दें?

क्या वो अंधेरे में गुम हो जाते हैं? नहीं… कुछ Stars ऐसे होते हैं जो मंच बदलते हैं, लेकिन चमक नहीं खोते। उनकी रौशनी किसी और दिशा में फैलती है, और वे Acting छोड़कर कारोबार की दुनिया में ऐसे चमकते हैं कि कॉर्पोरेट दुनिया भी तालियां बजा उठती है। ये कहानी है ऐसे ही कुछ सितारों की — जो Acting की दुनिया से निकलकर कारोबार के समंदर में उतर गए, और वहां उन्होंने वो मछली पकड़ी जिसका नाम है “सफलता”। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

बात शुरू होती है कुणाल गोस्वामी से। जी हां, वही कुणाल जो हिंदी सिनेमा के लीजेंड मनोज कुमार के बेटे हैं। उम्मीदें बहुत थीं — लोगों को लगा कि वो अपने पिता की विरासत को आगे ले जाएंगे। ‘क्रांति’ जैसी ऐतिहासिक फिल्म से उन्होंने अपना करियर शुरू किया, और श्रीदेवी जैसी अदाकारा के साथ स्क्रीन शेयर करना भी उनके लिए कोई छोटी बात नहीं थी। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था। फिल्में आईं, चलीं नहीं। दर्शकों का प्यार मिला, मगर पिता जैसी पहचान नहीं बन सकी।

और तब उन्होंने वो फैसला लिया जो आसान नहीं था — फिल्में छोड़कर कैटरिंग बिजनेस में उतरने का। दिल्ली जैसे प्रतिस्पर्धी शहर में उन्होंने फंड जुटाया, रिस्क उठाया और एक मजबूत टीम खड़ी की। धीरे-धीरे उनकी मेहनत रंग लाई। आज उनकी कंपनी करोड़ों का कारोबार कर रही है। जो अभिनेता पर्दे पर संवाद बोलते थे, आज वे बड़े कॉरपोरेट इवेंट्स में मेन्यू तय कर रहे हैं, क्वालिटी कंट्रोल देख रहे हैं और कारोबार की बारीकियों में निपुण हो चुके हैं।

दूसरे हैं विवेक ओबेरॉय — एक ऐसा नाम जिसने जब शुरुआत की थी, तो लगा था कि ये आने वाले दशक के सुपरस्टार बनेंगे। ‘साथिया’, ‘कंपनी’, ‘युवा’ जैसी हिट फिल्मों ने उन्हें काफी प्रसिद्धि दिलाई। लेकिन फिर विवादों ने उनका पीछा पकड़ लिया। सलमान खान से विवाद के बाद उनके करियर में गिरावट आने लगी। पर विवेक ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक नई दिशा चुनी — हीरे की दुनिया। और वो भी लैब-ग्रोन डायमंड, जो ना केवल सस्ता है बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी।

उन्होंने ‘सोलिटेरियो लैब-ग्रोन डायमंड्स’ की सह-स्थापना की, और इस कंपनी ने देखते ही देखते भारत के बाहर सात देशों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी। यही नहीं, दुबई में ‘BNW Developments’ नाम की रियल एस्टेट कंपनी के भी वे को-फाउंडर हैं। और तो और, उनका खुद का प्रोडक्शन हाउस ‘मेगा एंटरटेनमेंट’ भी है। कुल मिलाकर आज उनके बिजनेस साम्राज्य की कीमत करीब 1200 करोड़ रुपये आंकी गई है। एक ऐसा अभिनेता, जिसने कैमरा छोड़ा लेकिन कारोबार की दुनिया में कैमरे की चमक से कहीं ज्यादा रौशनी बिखेरी।

फिर आते हैं जायद खान। नाम तो आपने सुना ही होगा — ‘मैं हूं ना’ में शाहरुख खान के भाई का किरदार निभाने वाले वही जायद, जिनकी एक्टिंग को दर्शकों ने पसंद किया, लेकिन बाकी फिल्मों में वो जादू नहीं चला पाए। ‘चुरा लिया है तुमने’, ‘फाइट क्लब’, ‘मिशन इस्तांबुल’ जैसी फिल्मों ने उन्हें कुछ पहचान तो दी, लेकिन स्टारडम नहीं। जब फिल्मों में सफलता नहीं मिली, तो उन्होंने कैमरे को अलविदा कह दिया।

लेकिन वे खाली नहीं बैठे — उनके पास बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री थी और उन्होंने इसका भरपूर उपयोग किया। उन्होंने कई स्टार्टअप्स में Investment किया और टेक, फूड और लग्ज़री सेक्टर में हाथ आजमाया। धीरे-धीरे उनका नेटवर्क बड़ा हुआ, उनके Investment सफल हुए और आज उनके पास करीब 1500 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वे उन दुर्लभ सितारों में से हैं जो ग्लैमर की दुनिया छोड़ने के बाद भी खबरों में बने रहे — लेकिन इस बार बिजनेस मैगज़ीन्स की वजह से।

अब बात करते हैं साउथ इंडस्ट्री के दिग्गज अरविंद स्वामी की। 90 के दशक में ‘रोजा’ और ‘बॉम्बे’ जैसी फिल्मों से घर-घर में लोकप्रिय हुए अरविंद का फिल्मी ग्राफ 2000 के बाद गिरने लगा। लेकिन उनका मनोबल नहीं टूटा। उन्होंने टेक्नोलॉजी और मैनेजमेंट की पढ़ाई को अपना हथियार बनाया और 2000 के दशक में भारत में ‘टैलेंट मैक्सिमस’ नाम की एक कंपनी शुरू की, जो पेरोल प्रोसेसिंग और टेम्परेरी स्टाफिंग सर्विस प्रदान करती है।

ये कंपनी आज भारत की अग्रणी कंपनियों में से एक है। 2005 में हुए एक गंभीर एक्सीडेंट ने उन्हें कुछ समय के लिए रोक दिया, लेकिन जैसे ही वे स्वस्थ हुए, उन्होंने कंपनी को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। साल 2022 में उनकी कंपनी ने 3300 करोड़ रुपये का रेवेन्यू जनरेट किया। यानी जो व्यक्ति पर्दे पर दूसरों की कहानियां सुनाता था, आज वह हजारों लोगों की जिंदगी की कहानी लिख रहा है — रोजगार देकर, अवसर देकर।

और अब आते हैं जुगल हंसराज पर। एक मासूम चेहरा, जो 1983 की फिल्म ‘मासूम’ में पहली बार लोगों के सामने आया। उस समय शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि ये बच्चा एक दिन लीड हीरो भी बनेगा। 90 के दशक में ‘पापा कहते हैं’ जैसी रोमांटिक फिल्मों में लीड रोल करने वाले जुगल को दर्शकों का प्यार मिला, लेकिन करियर में स्थायित्व नहीं मिला।

फिल्मों का ग्राफ गिरने लगा, ऑफर कम हो गए और पहचान धुंधली पड़ने लगी। तब उन्होंने अमेरिका का रुख किया और वहां बिजनेस में हाथ आजमाया। उन्होंने टेक्नोलॉजी और डिजिटल मार्केटिंग सेक्टर में कदम रखा और कुछ ही सालों में उनकी नेटवर्थ 375 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। आज वे अमेरिका में एक सफल उद्यमी हैं, जिनके पास ग्लोबल क्लाइंट्स हैं और अपनी फील्ड में उनका बड़ा नाम है।

इन सब कहानियों से एक बात साफ होती है — Acting एक जुनून हो सकता है, लेकिन सफलता का रास्ता सिर्फ एक ही दिशा में नहीं जाता। कभी-कभी असफलता ही इंसान को उसकी असली मंजिल तक पहुंचाती है।

कुणाल गोस्वामी ने जब कैटरिंग चुनी, तो शायद किसी ने नहीं सोचा था कि वे करोड़ों के मालिक बनेंगे। विवेक ओबेरॉय ने जब डायमंड के कारोबार में हाथ डाला, तो किसी ने अंदाजा नहीं लगाया था कि वे सात देशों में अपना साम्राज्य खड़ा कर लेंगे। जायद खान, अरविंद स्वामी और जुगल हंसराज — इन सभी ने ये साबित किया कि टैलेंट अगर दिशा और समर्पण के साथ जोड़ा जाए, तो कोई भी इंडस्ट्री आपकी मंजिल बन सकती है।

और इन कहानियों में सबसे खूबसूरत बात यह है कि इनमें कोई भी हार नहीं मानी। चाहे फिल्मों में कितना भी असफलता मिली हो, इन्होंने जिंदगी को कभी असफल नहीं होने दिया। ये सितारे पर्दे पर भले ही कम जले, लेकिन असल जिंदगी में इन्होंने वो रौशनी फैलाई है जिसे देख कर आज की पीढ़ी सिर्फ तालियां नहीं बजा रही, बल्कि सीख भी रही है।

क्योंकि असली हीरो वही होता है जो मुश्किलों से भागता नहीं, बल्कि उनका सामना करता है। और जब Acting की स्क्रिप्ट खत्म होती है, तब असली ज़िंदगी का बिजनेस प्लान शुरू होता है।

Conclusion

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