Shocking: Google Tax हटाया गया! लेकिन क्या भारत ट्रंप के टैरिफ वार से बच पाएगा? जानिए पूरा मामला। 2025

नमस्कार दोस्तों, एक सुबह, जब देश के बिजनेस जगत में हलचल मची थी, तो शेयर बाजारों में एक अजीब सी बेचैनी महसूस की गई। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि बाजार इस कदर क्यों थरथराया हुआ है।

कुछ ही घंटों में एक खबर आई जिसने सबको चौंका दिया। केंद्र सरकार ने Google Tax हटाने की घोषणा कर दी थी। यह वही टैक्स था जिसे डिजिटल युग में विदेशी कंपनियों से Revenue वसूलने के लिए लगाया गया था। लेकिन अब अचानक से सरकार ने इसे खत्म करने का फैसला क्यों लिया? क्या भारत अमेरिकी दबाव के आगे झुक गया है? या फिर ये कोई बड़ी रणनीति है, जो आने वाले टैरिफ युद्ध से देश को बचाने के लिए बनाई गई है?

सरकार का कहना है कि यह फैसला व्यापारिक सहजता और टैक्स व्यवस्था में पारदर्शिता लाने के लिए लिया गया है। लेकिन पर्दे के पीछे एक और कहानी चल रही थी, जो अमेरिका से जुड़ी थी। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही चेतावनी दे दी थी कि अगर कोई देश, अमेरिकी टेक कंपनियों पर डिजिटल टैक्स लगाएगा तो अमेरिका जवाबी शुल्क लगाएगा।

2 अप्रैल से यह नीति प्रभावी होनी थी और उससे ठीक पहले भारत सरकार ने Google Tax हटाने का निर्णय लिया। क्या ये सिर्फ एक संयोग है, या फिर एक कूटनीतिक झुकाव? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Google Tax, जिसे औपचारिक रूप से इक्विलाइजेशन लेवी कहा जाता है, पहली बार 2016 में भारत सरकार ने लागू किया था। इसका उद्देश्य था—विदेशी डिजिटल कंपनियों, खासकर गूगल, मेटा और अमेजन जैसी कंपनियों से टैक्स वसूलना, जो भारत में भारी मुनाफा कमाती हैं लेकिन यहां की टैक्स प्रणाली से बच निकलती थीं। शुरुआती तौर पर यह केवल ऑनलाइन विज्ञापनों पर लागू होता था, लेकिन 2020 में इसका दायरा बढ़ाया गया और इसे सभी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स पर लागू कर दिया गया। यानी कोई भी विदेशी कंपनी अगर भारत में डिजिटल सेवा देती है, तो उसे इस टैक्स का भुगतान करना पड़ता था।

लेकिन यह टैक्स अमेरिका को शुरू से खटकता रहा। अमेरिका का मानना था कि भारत केवल अमेरिकी कंपनियों को निशाना बना रहा है, जिससे व्यापारिक असंतुलन पैदा हो रहा है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने इस टैक्स को ‘भेदभावपूर्ण’ करार दिया और इसकी तुलना व्यापार युद्ध से कर डाली। उन्होंने खुले शब्दों में कहा था कि अगर भारत ने यह टैक्स नहीं हटाया तो अमेरिका भी भारत के Products पर भारी टैरिफ लगाएगा।

इसी दबाव के चलते भारत सरकार ने अब इस टैक्स को हटाने का फैसला लिया है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में Finance Bill में 59 संशोधन पेश किए, जिनमें से एक था—Google Tax को हटाना। इसे एकतरफा फैसला नहीं कहा जा सकता, बल्कि यह भारत-अमेरिका संबंधों के एक संवेदनशील मोड़ पर लिया गया संतुलन भरा निर्णय था।

टैक्स experts का कहना है कि यह कदम अंतरराष्ट्रीय Tax system को सरल और समान बनाने की दिशा में एक सही पहल है। डेलॉयट इंडिया के टैक्स एक्सपर्ट सुमित सिंगानिया ने कहा कि, OECD की टू-पिलर टैक्स नीति की ओर बढ़ने के लिए यह ज़रूरी कदम था। दुनिया भर के देशों ने डिजिटल टैक्स लगाए हैं, लेकिन अब global level पर एकसमान टैक्स ढांचे की ओर बढ़ना वक्त की मांग है।

परंतु सवाल यह है कि क्या भारत ने यह फैसला केवल दबाव में आकर लिया? क्या अमेरिका के टैरिफ वार से बचने के लिए भारत को अपनी खुद की नीति में नरमी दिखानी पड़ी? टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, टैक्स सलाहकार अमित माहेश्वरी का मानना है कि यह भारत की ओर से व्यापारिक लचीलापन दिखाने की रणनीति है, ताकि अमेरिका जैसे साझेदारों के साथ संबंध बिगड़ने न पाएं।

यह एक तरह की ‘Tax diplomacy’ है, जिसमें देशों को अपने Revenue interest और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बीच संतुलन बनाना पड़ता है। Google Tax से भारत को निश्चित रूप से Revenue मिलता था, लेकिन अगर उसके कारण अमेरिका जैसे बड़े व्यापारिक साझेदार के साथ टकराव होता, तो नुकसान कहीं ज्यादा होता।

सरकार इस फैसले के साथ-साथ foreign investment को बढ़ावा देने और टैक्स नियमों में स्पष्टता लाने की कोशिश कर रही है। Finance Bill में कई और अहम बदलाव किए गए हैं। जैसे कि अब ‘Total income’ शब्द की जगह ‘Total undisclosed income’ का इस्तेमाल किया जाएगा। यह उन मामलों में उपयोग होगा जो टैक्स छुपाने, ब्लैक मनी रखने या सर्च-सीज़र के अंतर्गत आते हैं। पहले ‘Total income’ शब्द से यह भ्रम होता था कि कानूनी तरीके से घोषित आमदनी भी जुर्माने के दायरे में आ सकती है। अब इसे स्पष्ट कर दिया गया है कि पेनल्टी केवल Undeclared income पर ही लगेगी।

यह बदलाव taxpayers के मन में भरोसा पैदा करेगा और टैक्स आतंक के डर को कुछ हद तक खत्म कर सकता है। यही नहीं, टैक्स मामलों में फेसलेस अपील्स की व्यवस्था, ऑटोमेटेड स्क्रूटनी और डेटा एनालिटिक्स के ज़रिए जांच जैसी तकनीकी बदलावों से Tax system को और पारदर्शी बनाने की कोशिश भी हो रही है।

भारत को अब दो मोर्चों पर संतुलन बनाना होगा—पहला, अमेरिका जैसे देशों के साथ व्यापारिक संबंध और दूसरा, अपने खुद के डिजिटल अर्थव्यवस्था से टैक्स वसूली की आवश्यकता। क्योंकि अब पूरी दुनिया डिजिटल हो चुकी है और भारत में गूगल, मेटा, नेटफ्लिक्स जैसी कंपनियां हर दिन करोड़ों रुपये कमा रही हैं। अगर उन पर टैक्स नहीं लगाया जाएगा, तो यह भारतीय कंपनियों के लिए असमान प्रतिस्पर्धा होगी।

लेकिन इस समस्या का समाधान केवल टैक्स से नहीं है। इसके लिए एक अंतरराष्ट्रीय सहमति और Global टैक्स व्यवस्था की जरूरत है। यही कारण है कि OECD और G 20 देशों द्वारा मिलकर ‘टू-पिलर’ सिस्टम लाया गया है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जहां कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं, वहीं टैक्स भी दें।

भारत का यह फैसला इस दिशा में एक सकारात्मक संकेत है। यह दिखाता है कि भारत Global आर्थिक व्यवस्था में शामिल होने को तैयार है। लेकिन इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि भारत अपने डिजिटल टैक्स अधिकारों की रक्षा के लिए, Global forums पर मजबूती से अपनी बात रखे। ताकि देश का Revenue प्रभावित न हो और विदेशी कंपनियां भी जवाबदेह बनें।

यह देखना अब दिलचस्प होगा कि अमेरिका की ओर से क्या प्रतिक्रिया आती है। क्या डोनाल्ड ट्रंप अब अपने टैरिफ वॉर की रणनीति पर ब्रेक लगाएंगे? या फिर वह इसे भारत की कमजोरी मानकर और अधिक शर्तें थोपने की कोशिश करेंगे?

बाजारों को भी इस फैसले का असर महसूस होगा। डिजिटल विज्ञापन से जुड़े भारतीय कारोबारियों को राहत मिलेगी, लेकिन सरकार के लिए नया सवाल यह होगा कि इस टैक्स से जो Revenue आता था, उसकी भरपाई कैसे होगी? क्या GST दरों में बदलाव किया जाएगा या फिर किसी नई टैक्स नीति की ओर रुख किया जाएगा?

इस पूरे घटनाक्रम में एक बात साफ है—अब Tax system सिर्फ Revenue वसूली का मामला नहीं रही, यह Diplomacy, Global Relations और व्यापार नीति का हिस्सा बन चुकी है। भारत ने Google Tax को हटाकर एक चुपचाप लेकिन बेहद प्रभावी संदेश दुनिया को दे दिया है कि, वह विश्व अर्थव्यवस्था के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है।

अब समय है कि भारत अपनी टैक्स नीति को और सरल बनाए, डिजिटल व्यापार से होने वाली आमदनी पर नजर रखे, और यह सुनिश्चित करे कि कोई भी कंपनी भारत में मुनाफा कमाकर टैक्स से बच न सके। वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका इस पहल का स्वागत करेगा, और द्विपक्षीय व्यापारिक समझौतों को आगे बढ़ाएगा।

यह शुरुआत है एक नई टैक्स डिप्लोमेसी की—जहां हर नीति के पीछे केवल पैसा नहीं, बल्कि पूरी की पूरी विदेश नीति छिपी होती है।

Conclusion

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