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Haldiram का सफर: नाश्ते की दुकान से 84,000 करोड़ तक, एक प्रेरणादायक बिजनेस स्टोरी!

Haldiram

नमस्कार दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि एक साधारण सी भुजिया बेचने वाली दुकान करोड़ों रुपये का साम्राज्य खड़ा कर सकती है? क्या आपने कभी सोचा है कि नाश्ते की दुकान से शुरू हुआ एक छोटा सा कारोबार कभी 84,000 करोड़ रुपये के ब्रांड में बदल जाएगा? ये कहानी सिर्फ बिजनेस की नहीं, बल्कि एक विरासत की भी है। ये कहानी है Haldiram की, जिसने एक छोटे से स्टॉल से लेकर इंटरनेशनल ब्रांड बनने तक का सफर तय किया।

आज अगर कोई स्नैक्स के बिजनेस में टॉप ब्रांड की बात करता है, तो सबसे पहले हल्दीराम का नाम ही जुबान पर आता है। लेकिन इस कामयाबी की कहानी में कई दिलचस्प मोड़ आए हैं। परिवार में विवाद, कानूनी लड़ाई और बिजनेस का बंटवारा – इन सबके बावजूद हल्दीराम ने जो मुकाम हासिल किया है, वो किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं है।

आज Haldiram की वैल्यू करीब 84,000 करोड़ रुपये है। यही वजह है कि अब सिंगापुर की सरकारी Investment कंपनी टेमासेक होल्डिंग्स ने, हल्दीराम की 9% हिस्सेदारी खरीदने का फैसला किया है। लेकिन हल्दीराम के इस मुकाम तक पहुंचने की कहानी जानने के लिए हमें इसके शुरुआती दौर में जाना होगा। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Haldiram की कहानी की शुरुआत साल 1937 में राजस्थान के बीकानेर से होती है। हल्दीराम की नींव गंगा बिशन अग्रवाल ने रखी थी। गंगा बिशन को उनके घर में प्यार से हल्दीराम कहा जाता था। उनके दादा की बीकानेर में एक भुजिया की दुकान थी। गंगा बिशन ने बचपन में ही भुजिया बनाना सीख लिया था।

वे अपने पिता के साथ दुकान पर बैठते थे और भुजिया बनाने में मदद करते थे। लेकिन गंगा बिशन के मन में कुछ अलग करने का सपना था। वो हमेशा भुजिया के स्वाद को बेहतर बनाने के बारे में सोचा करते थे। उन्होंने भुजिया को और चटपटा और पतला बनाने का फैसला किया।

गंगा बिशन का मानना था कि स्वाद ही किसी प्रोडक्ट की सबसे बड़ी ताकत होती है। इसीलिए उन्होंने अपनी भुजिया के स्वाद को खास बनाने के लिए कई तरह के प्रयोग किए। उन्होंने भुजिया के बेसिक मसालों में हल्का बदलाव किया और उसे पतला बनाया। उनके इस नए प्रयोग ने कमाल कर दिया। लोगों ने इसे हाथों-हाथ लिया। जो लोग एक बार Haldiram की भुजिया खाते, वे दोबारा जरूर खरीदते। धीरे-धीरे उनकी दुकान पर भीड़ बढ़ने लगी।

1937 में गंगा बिशन ने बीकानेर में ही एक छोटी सी दुकान खोली, जिसका नाम उन्होंने रखा Haldiram भुजियावाला। उन्होंने भुजिया को पतला और क्रिस्पी बनाया, जिसका स्वाद लोगों को काफी पसंद आया। धीरे-धीरे उनकी भुजिया इतनी मशहूर हो गई कि बीकानेर के अलावा अन्य शहरों से भी बड़े ऑर्डर आने लगे। गंगा बिशन की मेहनत रंग लाई और देखते ही देखते हल्दीराम का नाम पूरे राजस्थान में मशहूर हो गया। 1941 तक गंगा बिशन बीकानेर के सबसे बड़े भुजिया व्यापारी बन गए।

लेकिन गंगा बिशन का सफर यहीं नहीं रुका। उन्होंने बीकानेर से निकलकर दूसरे बड़े बाजारों पर भी नजर डाली। 1950 के दशक में उन्होंने कोलकाता का रुख किया। वहां उन्होंने हल्दीराम भुजियावाला ब्रांड की स्थापना की। कोलकाता में उनका बिजनेस तेजी से बढ़ा। भुजिया के अलावा उन्होंने कई तरह के स्नैक्स और मिठाइयों की बिक्री शुरू की। धीरे-धीरे कोलकाता में उनका कारोबार इतना बढ़ गया कि वहां की कई बड़ी मिठाई की दुकानों ने उनके प्रोडक्ट्स को बेचना शुरू कर दिया।

कोलकाता में कारोबार जमाने के बाद गंगा बिशन को लगा कि अब समय है दूसरे बाजारों पर भी ध्यान देने का। इसी सोच के साथ उन्होंने दिल्ली और मुंबई की ओर रुख किया। 1960 के दशक में उन्होंने अपने बेटों को कारोबार का जिम्मा सौंप दिया। गंगा बिशन के तीन बेटे थे – मूलचंद, सत्यनारायण और रामेश्वरलाल। गंगा बिशन ने कोलकाता का कारोबार अपने बेटों को सौंप दिया। उन्होंने कोलकाता का कारोबार रामेश्वरलाल और सत्यनारायण के जिम्मे छोड़ दिया और खुद वापस बीकानेर लौट आए।

इस दौरान Haldiram के कारोबार ने तेजी से विस्तार किया। धीरे-धीरे उनके प्रोडक्ट्स की मांग पूरे भारत में बढ़ने लगी थी। इस दौरान हल्दीराम ने अपने प्रोडक्ट्स की पैकेजिंग पर खास ध्यान दिया। उन्होंने भुजिया और स्नैक्स को आकर्षक पैकेजिंग में बेचना शुरू किया, जिससे उनका प्रोडक्ट बाजार में अलग नजर आने लगा।

1980 के दशक में Haldiram के कारोबार ने एक और बड़ा मुकाम हासिल किया। मूलचंद के बेटों – मनोहरलाल और मधुसूदन ने दिल्ली और महाराष्ट्र के बाजार को निशाना बनाया। उन्होंने दिल्ली में पहला हल्दीराम स्टोर खोला। उनकी रणनीति काम कर गई। दिल्ली और मुंबई के बाजारों में हल्दीराम के स्नैक्स की डिमांड तेजी से बढ़ने लगी।

1990 के दशक में Haldiram ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कदम रखा। अमेरिका, कनाडा, यूके, ऑस्ट्रेलिया और मध्य पूर्व जैसे देशों में हल्दीराम के प्रोडक्ट्स की डिमांड तेजी से बढ़ने लगी। प्रवासी भारतीयों ने हल्दीराम के उत्पादों को हाथों-हाथ लिया। भारतीय मसालों और स्वादों की वजह से हल्दीराम के प्रोडक्ट्स की लोकप्रियता दुनियाभर में बढ़ गई।

Haldiram के कारोबार में 1990 के दशक में विवाद भी सामने आया। दिल्ली, नागपुर और कोलकाता के हल्दीराम कारोबारियों के बीच ब्रांड नेम के इस्तेमाल को लेकर विवाद खड़ा हो गया। ये विवाद करीब 20 साल तक चला। अंततः 2010 में इस विवाद को खत्म किया गया। दिल्ली का हल्दीराम कारोबार मनोहरलाल और मधुसूदन अग्रवाल के पास चला गया। नागपुर का हल्दीराम कारोबार शिव किशन अग्रवाल के पास चला गया। कोलकाता का कारोबार रामेश्वरलाल के बेटे प्रभु अग्रवाल के पास चला गया।

आज Haldiram हर उस देश में अपने उत्पाद बेचता है, जहां बड़ी संख्या में प्रवासी भारतीय रहते हैं। आज हल्दीराम के 100 से ज्यादा उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं। कंपनी ने 2024 में करीब 12,800 करोड़ रुपये का रेवेन्यू अर्जित किया है।

Haldiram की सफलता की कहानी सिर्फ बिजनेस की नहीं, बल्कि एक परिवार की संघर्ष गाथा भी है। गंगा बिशन अग्रवाल ने जिस छोटे से स्टॉल से कारोबार शुरू किया था, आज वह एक ग्लोबल ब्रांड बन चुका है। हल्दीराम की इस सफलता ने साबित कर दिया है कि अगर आपके प्रोडक्ट की क्वालिटी और टेस्ट अच्छा है, तो सफलता खुद आपके कदम चूमेगी।

हल्दीराम की कहानी उन सभी उद्यमियों के लिए प्रेरणा है, जो छोटे से स्टार्टअप से बड़ा साम्राज्य खड़ा करने का सपना देख रहे हैं। हल्दीराम की यह सफलता कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। इसका हर एक मोड़ एक अलग कहानी कहता है – संघर्ष, बंटवारा, कामयाबी और ग्लोबल पहचान। Haldiram की इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि मेहनत और लगन के साथ किया गया काम कभी न कभी रंग जरूर लाता है।

Conclusion:-

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