Hospital में मरीजों को बड़ी राहत मिलने वाली है – ओवरबिलिंग पर लगेगा लगाम, सरकार का सख्त एक्शन! 2025

नमस्कार दोस्तों, आप सोचिए…आप Hospital में एक साधारण इंजेक्शन लगवाने जाते हैं, जिसकी असली कीमत महज 100 रुपए है। लेकिन जब बिल आपके हाथ में आता है, तो उसमें वही इंजेक्शन 1,000 रुपए का दिखाया जाता है। आपकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं! आप पूछते हैं—“ये कैसे?” जवाब मिलता है—“सिस्टम ऐसा ही है।” क्या वाकई हम इतने बेबस हैं कि इलाज की कीमतों का कोई हिसाब ही न हो? क्या Hospital जो चाहे, वो वसूलते रहें और हम चुपचाप भुगतते रहें? अब ऐसा नहीं होगा। अब इस मनमानी पर लगेगा लगाम, क्योंकि सरकार ने ठान लिया है—इलाज की लूट को खत्म करना है!

देश में हर इंसान कभी न कभी Hospital की दहलीज़ पर पहुंचता है—कभी किसी अपने के लिए, तो कभी खुद के इलाज के लिए। लेकिन वहां जाने के बाद सबसे बड़ी चिंता होती है—बिल। एक टेस्ट, एक स्कैन, एक छोटी सी दवाई—और जेब खाली! लोग इलाज से ज़्यादा इस डर में जीने लगे हैं कि कहीं Hospital का खर्च उन्हें कर्ज में न डुबो दे। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने अब बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर ली है।

आपको बता दें कि सरकार जल्द ही पूरे देश के लिए एक स्टैंडर्ड Hospital बिल फॉर्म लेकर आ रही है। इस फॉर्मेट के तहत, हर अस्पताल, नर्सिंग होम और डायग्नोस्टिक सेंटर को अपने मरीजों को बिल का हर छोटा-बड़ा विवरण देना होगा। कितना पैसा किस सेवा के लिए लिया गया, दवा कितने की है, टेस्ट का असली रेट क्या है—सब कुछ बिल में साफ-साफ लिखा होगा। यानी अब मरीज को सिर्फ इलाज नहीं, बिल का सच भी मिलेगा।

ये फैसला अचानक नहीं आया है। बीते सालों में लगातार शिकायतें आ रही थीं कि Private Hospital इलाज के नाम पर लूट मचाए हुए हैं। खासकर कोरोना काल में इस लूट ने अपने चरम को छू लिया था। लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर के नाम पर हजारों, एक बेड के नाम पर लाखों और PPE किट के नाम पर बेहिसाब रकम वसूली गई। तब से ही सरकार और सुप्रीम कोर्ट तक इस बात को गंभीरता से लेने लगे थे।

‘न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक, Bureau of Indian Standards (BIS) पिछले साल से इस बिलिंग सिस्टम को सुधारने पर काम कर रहा है। और अब यह प्रस्ताव अंतिम मंजूरी के काफी करीब है। जैसे ही ये मंजूरी मिलती है, देश की स्वास्थ्य सेवाओं में एक नया दौर शुरू होगा—जहां पारदर्शिता होगी, जहां मरीज को इंसाफ मिलेगा, और जहां इलाज एक बिजनेस नहीं, सेवा माना जाएगा।

बीआईएस का यह स्टैंडर्ड फॉर्मेट न सिर्फ बिलिंग को आसान बनाएगा, बल्कि इलाज को किफायती और सुलभ भी बनाएगा। अभी तक हर Hospital का बिल फॉर्म अलग होता है—कोई मनमाने तरीके से चार्ज लिखता है, तो कोई अस्पष्ट भाषा में मरीज को उलझा देता है। कई बार तो मरीजों को यह तक नहीं पता होता कि उन्होंने किस चीज़ के पैसे दिए हैं। इस नई व्यवस्था से यह भ्रम पूरी तरह से खत्म हो जाएगा।

इस मसौदे को तैयार करने में सिर्फ सरकारी अफसर नहीं, बल्कि हेल्थकेयर इंडस्ट्री के एक्सपर्ट्स, मरीजों की पैरवी करने वाले समूह और अन्य हितधारकों को भी शामिल किया गया है। सबकी राय और सलाह के बाद इस फॉर्मेट को तैयार किया गया है ताकि यह न सिर्फ डॉक्टर्स और अस्पतालों के लिए उपयोगी हो, बल्कि मरीजों के लिए भी पूरी तरह से समझने योग्य हो।

मसौदे के मुताबिक, अब अस्पतालों को हर सेवा, हर दवा, हर सुविधा का विवरण देना होगा—कितनी यूनिट लगी, रेट क्या था, डिस्काउंट मिला या नहीं, वैकल्पिक सेवाएं क्या थीं, सब कुछ। यह केवल एक बिल नहीं होगा, बल्कि एक डॉक्यूमेंट होगा जो मरीज को अधिकार देगा अपनी जेब का सही हिसाब मांगने का।

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अब अस्पतालों के लिए, इस Standardized बिलिंग सिस्टम को अपनाना अनिवार्य हो जाएगा। कोई Hospital इससे बच नहीं पाएगा। उन्होंने साफ कहा—”हमारा लक्ष्य है कि देश में हर स्वास्थ्य सेवा केंद्र एक जैसे नियमों का पालन करे। इससे बिलिंग की गड़बड़ियों पर रोक लगेगी और आम आदमी को राहत मिलेगी।”

ये कदम इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि बीते साल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। अदालत ने कहा था कि सरकार यह तय नहीं कर पा रही कि निजी अस्पतालों में इलाज का क्या रेट होना चाहिए। कोई Hospital एक ऑपरेशन के लिए 50,000 रुपए मांगता है, तो कोई वही ऑपरेशन 5 लाख रुपए में करता है। ये अंतर किस आधार पर है, इसका कोई जवाब नहीं था।

अब सरकार इस फटकार को भी संज्ञान में लेकर तेज़ी से काम कर रही है। नई बिलिंग व्यवस्था सिर्फ बिल को साफ-सुथरा नहीं बनाएगी, बल्कि पूरे हेल्थकेयर सिस्टम में एक पारदर्शी संस्कृति को जन्म देगी। लोगों को यह जानने का अधिकार मिलेगा कि उनके पैसों का उपयोग कैसे हो रहा है। क्या दवा की असली कीमत यही है? क्या टेस्ट वाकई जरूरी था? क्या एक कमरे के इतने पैसे वाजिब हैं?

सोचिए, जब आपको हर चीज़ का डिटेल मिलेगा, तो आप बेहतर निर्णय ले पाएंगे। ज़रूरत हो तो आप सवाल उठा पाएंगे। और यही तो लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत है—जवाबदेही। अब Hospital भी जवाब देंगे—कि किस चीज़ के लिए कितना पैसा लिया।

यह पहल आने वाले समय में हेल्थ इंश्योरेंस के क्षेत्र में भी बड़ा बदलाव लाएगी। आज जब आप मेडिकल क्लेम के लिए फॉर्म भरते हैं, तो बिल अस्पष्ट होता है। बीमा कंपनियां क्लेम को रिजेक्ट कर देती हैं। लेकिन जब बिल स्टैंडर्ड होगा, तो इंश्योरेंस कंपनियों के पास भी टालने का बहाना नहीं बचेगा। मरीज को अपना हक मिलेगा।

इसके अलावा, सरकार यह भी सुनिश्चित करेगी कि यह फॉर्मेट सिर्फ कागज़ों तक सीमित न रह जाए। हर Hospital को इस फॉर्मेट के मुताबिक सॉफ्टवेयर तैयार करना होगा, स्टाफ को ट्रेनिंग देनी होगी, और मरीजों को सही तरीके से समझाना होगा। इसके लिए जरूरी मॉनिटरिंग सिस्टम भी बनाया जाएगा।

इस पहल से न सिर्फ मरीज़ों को राहत मिलेगी, बल्कि ईमानदार डॉक्टर्स और अस्पतालों को भी फायदा होगा। जो Hospital अब तक सही तरीके से काम करते थे, लेकिन बड़ी-बड़ी कॉर्पोरेट हॉस्पिटल्स की वजह से उनकी इमेज खराब होती थी, अब उन्हें एक लेवल प्लेइंग फील्ड मिलेगा। एक तरह से यह व्यवस्था हेल्थकेयर इंडस्ट्री को भी एक नई दिशा देगी।

सरकार का इरादा साफ है—इलाज सेवा है, बिजनेस नहीं। और इस सोच को ज़मीन पर उतारने के लिए यह कदम मील का पत्थर साबित हो सकता है। आगे चलकर यह भी संभव है कि एक वेबसाइट या मोबाइल ऐप के ज़रिए मरीज खुद अपना बिल चेक कर सकें, उसका विश्लेषण कर सकें, और किसी भी गड़बड़ी की शिकायत सीधे संबंधित विभाग को कर सकें।

इस योजना को लेकर सरकार लोगों को जागरूक भी करेगी। गांव-गांव, शहर-शहर लोगों को बताया जाएगा कि अब इलाज का बिल उनका अधिकार है, और अगर कोई Hospital उन्हें गलत या अपारदर्शी बिल देता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। इसके लिए हेल्पलाइन नंबर, शिकायत पोर्टल और लोकल हेल्थ ऑफिस भी एक्टिव रहेंगे।

समाज के हर वर्ग के लिए यह पहल वरदान साबित हो सकती है—खासकर गरीब और मध्यम वर्ग के लिए, जो हर इलाज के बाद कर्ज में डूब जाता है। अब उन्हें भी यह भरोसा मिलेगा कि वे लूट का शिकार नहीं होंगे। वे भी आत्मविश्वास से Hospital जा सकेंगे, क्योंकि अब उनके साथ सरकार खड़ी है।

जैसे ही BIS का यह मसौदा पास होता है, और सरकार इसे देशभर में लागू करती है, तो आने वाले समय में हेल्थ सेक्टर में बड़ी क्रांति देखने को मिल सकती है। यह सिर्फ एक बिलिंग सिस्टम नहीं, एक सोच है—जहां मरीज सिर्फ इलाज नहीं, इंसाफ भी मांग सके।

हम उम्मीद करते हैं कि यह व्यवस्था जल्द लागू हो और पूरी ईमानदारी से लागू हो। क्योंकि अगर यह सही से लागू हो गई, तो करोड़ों लोगों की ज़िंदगी में राहत आएगी। स्वास्थ्य सेवा फिर से सेवा बन जाएगी, और भारत में हेल्थकेयर का चेहरा बदल जाएगा।

Conclusion

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