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Opportunity: Make in India को मिलेगा नया बढ़ावा! ट्रंप की नीति से भारत के लिए खुलेंगे बड़े मौके? 2025

Make in India

नमस्कार दोस्तों “यह खबर है दो देशों के बीच बढ़ते तनाव की… एक ऐसी आर्थिक जंग की, जिसके निशाने पर है भारत की महत्वाकांक्षी ‘Make in India’ योजना। और इस जंग की शुरुआत हुई है व्हाइट हाउस के उस शख्स के एक बयान से, जिसने अपने दूसरे कार्यकाल की शपथ लेते ही दुनिया को चौंका दिया। डोनाल्ड ट्रंप… अमेरिका के पूर्व और वर्तमान राष्ट्रपति, जिनकी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति अब ‘Make in India‘ के खिलाफ एक खतरनाक मोड़ लेती दिख रही है।

क्या यह महज व्यापारिक Competition है? या फिर ट्रंप की नीतियों के पीछे छुपा है भारत को आर्थिक रूप से कमजोर करने का मकसद? आज की इस खास रिपोर्ट में, हम जानेंगे कि कैसे ट्रंप का ‘Retaliatory tariffs’ भारत के ऑटोमोबाइल से लेकर फार्मा इंडस्ट्री तक को हिलाने पर तुला है… और क्यों विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यह तनाव भारत-अमेरिका रिश्तों के ‘गोल्डन एरा’ को खत्म कर सकता है।” आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

“20 जनवरी 2025… वाशिंगटन के कैपिटल हिल पर जब डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ली, तो दुनिया ने सोचा कि शायद इस बार उनकी नीतियां अधिक संतुलित होंगी। लेकिन महज एक महीने के भीतर ही ट्रंप ने जो बयान दिए, उनसे साफ हो गया कि ‘अमेरिका फर्स्ट’ का मतलब अब ‘इंडिया लास्ट’ हो सकता है।

टेस्ला के सीईओ एलन मस्क के साथ एक टीवी शो में ट्रंप ने भारत पर जो हमला बोला, वह सुनकर दिल्ली से लेकर दुनिया के दूसरे देशों तक के नीति निर्माता हैरान रह गए। उन्होंने कहा—’भारत चाहता है कि मस्क वहां फैक्ट्री लगाएं, लेकिन यह अमेरिका के लिए अनुचित है। हमें अपने हितों की रक्षा करनी होगी।’ यही नहीं, ट्रंप ने भारतीय Products पर टैक्स बढ़ाने की धमकी भी दोहराई। क्या यह सिर्फ़ एक बयान है? या फिर भारत के साथ व्यापारिक जंग की शुरुआत?”

“ट्रंप के इस बयान की गूंज भारत के ऑटोमोबाइल सेक्टर में सुनाई दे रही है। भारत में कारों पर 100% तक का इंपोर्ट टैरिफ लगता है, और ट्रंप इसे ‘अनफेयर’ बता रहे हैं। उनका कहना है—’भारत में कार बेचना लगभग असंभव है। अमेरिकी कंपनियों को यहां Investment करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, ताकि भारत अमेरिका से ज्यादा फायदा उठा सके।’ लेकिन सवाल यह है कि क्या यह आरोप सही है?

भारत सरकार का कहना है कि ‘Make in India’ का मकसद Domestic production को बढ़ावा देना है, न कि विदेशी कंपनियों को नुकसान पहुंचाना। फिर भी, ट्रंप की नजर में यह नीति ‘प्रोटेक्शनिस्ट’ है। और इसी आरोप के बीच, टेस्ला का भारत में प्लांट लगाने का सपना अधर में लटक गया है। एलन मस्क, जो भारत में 2 बिलियन डॉलर के Investment की योजना बना रहे थे, अब ट्रंप के दबाव में फैसले टाल रहे हैं। क्या यह भारत के ऑटो इंडस्ट्री के लिए बड़ा झटका होगा? experts का मानना है कि अगर टेस्ला जैसी कंपनियां भारत से दूर हुईं, तो इलेक्ट्रिक वाहनों की क्रांति धीमी पड़ सकती है।”

“लेकिन ट्रंप का गुस्सा सिर्फ़ ऑटोमोबाइल तक सीमित नहीं है। 19 फरवरी 2025 को उनके प्रशासन ने भारतीय फार्मास्युटिकल कंपनियों पर 25% या उससे अधिक टैक्स लगाने का प्रस्ताव रखा। यह फैसला भारत के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि अमेरिका में जेनेरिक दवाओं का 40% से अधिक Import भारत से होता है। डॉक्टर रेड्डीज, सन फार्मा, और सिप्ला जैसी कंपनियों के शेयर तुरंत गिरावट में आ गए।

भारत के फार्मा एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रमुख ने कहा—’यह नीति न सिर्फ़ भारत, बल्कि अमेरिका के मरीजों के लिए भी आपदा है। दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी, और Supply चेन टूट सकता है।’ लेकिन ट्रंप प्रशासन का जवाब साफ है—’अमेरिका को अपने नागरिकों के लिए दवाएं यहीं बनानी चाहिए।’ क्या यह ट्रंप की ‘आत्मनिर्भर अमेरिका’ की नीति का हिस्सा है? या फिर भारत को आर्थिक रूप से दबाने की साजिश?”

“इस पूरे विवाद का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में भी भारत पर इसी तरह के टैरिफ लगाए थे। 2018 में, उन्होंने भारतीय स्टील और एल्युमिनियम पर 25% टैक्स लगा दिया था, जिसका जवाब भारत ने अमेरिकी सेब और अखरोट पर शुल्क बढ़ाकर दिया था। लेकिन इस बार ट्रंप का रुख और आक्रामक है।

उन्होंने ‘रिसिप्रोकल टैरिफ’ की बात करते हुए कहा—’अगर भारत हमारे Products पर 50% टैक्स लगाता है, तो हम भी उन पर 50% टैक्स लगाएंगे।’ विश्लेषकों का मानना है कि यह नीति भारत-अमेरिका व्यापार को 150 बिलियन डॉलर तक नुकसान पहुंचा सकती है। NBC न्यूज के इलेक्शन डायरेक्टर जॉन लिपिंस्की कहते हैं—’ट्रंप की यह रणनीति न सिर्फ़ भारत बल्कि अमेरिका के लिए भी खतरनाक है। यह Global supply chain को तोड़ देगी।'”

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत इस चुनौती का सामना कैसे करेगा? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ट्रंप के सामने झुकेंगी, या फिर जवाबी कार्रवाई करेंगी? 2024 में भारत ने अमेरिका को 93 बिलियन डॉलर का सामान Export किया था, जिसमें फार्मा Product, आईटी सेवाएं, और हीरे-जवाहरात शामिल हैं। अगर ट्रंप इन पर टैक्स बढ़ाते हैं, तो भारत के Export को भारी नुकसान होगा।

लेकिन भारत के पास भी कुछ तीर हैं अपने तरकश में। अमेरिका भारत को हर साल 30 बिलियन डॉलर की आईटी सेवाएं खरीदता है, और यहां के 200 से अधिक स्टार्टअप अमेरिकी कंपनियों को सपोर्ट देते हैं। क्या भारत इन्हें प्रभावित कर सकता है? अर्थशास्त्री डॉक्टर अरुण कुमार कहते हैं—’यह एक जटिल खेल है। दोनों देशों को समझौते की मेज पर लौटना होगा, नहीं तो दोनों को नुकसान होगा।

इसके अलावा “इस आर्थिक टकराव का एक और पहलू है जो अब तक छुपा हुआ था—टेक्नोलॉजी और डेटा का युद्ध। ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में भारतीय आईटी कंपनियों पर नए प्रतिबंधों की चेतावनी दी है, जो अमेरिकी क्लाउड सर्विसेज और डेटा सिक्योरिटी को ‘खतरे’ बताते हुए भारत को ‘डिजिटल प्रोटेक्शनिस्ट’ करार दे रहा है। सूत्रों के मुताबिक, अमेरिका भारतीय आईटी दिग्गजों जैसे टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो पर ‘डेटा लोकलाइजेशन’ के नियमों को लेकर World Trade Organization में शिकायत दर्ज कराने की तैयारी में है।

यह कदम भारत के डिजिटल इंडिया मिशन के लिए बड़ी चुनौती हो सकता है, क्योंकि अमेरिका भारतीय आईटी क्षेत्र का सबसे बड़ा ग्राहक है। एक तरफ जहां भारत सरकार स्थानीय डेटा स्टोरेज को बढ़ावा दे रही है, वहीं ट्रंप की नई नीति इसे ‘व्यापार अवरोध’ बता रही है। आईटी इंडस्ट्री एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रमुख ने चेतावनी दी है—’अगर अमेरिका भारतीय आईटी कंपनियों पर शुल्क लगाता है, तो यह दोनों देशों के बीच टेक्नोलॉजी पार्टनरशिप को गहरा झटका देगा।’ क्या यह डिजिटल युग में व्यापार युद्ध का नया मोर्चा है? और क्या ट्रंप की यह चाल भारत को ग्लोबल टेक लीडर बनने के सपने से पीछे धकेल सकती है?

Conclusion

तो दोस्तों, क्या यह ट्रंप और मोदी के बीच आर्थिक युद्ध की शुरुआत है? या फिर यह सिर्फ़ एक दबाव बनाने की रणनीति है? अभी इसका जवाब किसी के पास नहीं। लेकिन एक बात साफ है—ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और भारत की ‘Make in India’ योजना के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। और इस टकराव के बीच, दोनों देशों के आम नागरिक और व्यापारी चिंता से भरे हैं। क्या यह तनाव दोस्ती को दुश्मनी में बदल देगा?

या फिर दोनों नेता समझदारी दिखाते हुए रास्ता निकालेंगे? फिलहाल तो यह लड़ाई जारी है… और इसके नतीजे सिर्फ़ भारत और अमेरिका ही नहीं, बल्कि पूरी वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगे।” अब देखना यह है कि यह आर्थिक शतरंज का खेल किसके पासे पलटेगा। क्योंकि व्यापार युद्ध में कोई नहीं जीतता… सिर्फ़ हारने वाले होते हैं।”

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