नमस्कार दोस्तों, जब भी टैक्स हेवन देशों की बात होती है, तो स्विट्जरलैंड के साथ-साथ एक और नाम बार-बार चर्चा में आता है – मॉरीशस। भारत के लोगों के लिए Mauritius न सिर्फ एक खूबसूरत टूरिस्ट डेस्टिनेशन है, बल्कि यह एक ऐसा देश भी है जहां से भारत में भारी मात्रा में Investment आता है। यही वजह है कि इसे दुनिया के सबसे बड़े टैक्स हेवन देशों में से एक माना जाता है।
Mauritius की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा इस टैक्स हेवन सिस्टम पर ही टिका हुआ है। हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Mauritius का दौरा किया, जिससे एक बार फिर से यह चर्चा तेज हो गई है कि आखिर Mauritius में ऐसा क्या है, जो इसे टैक्स हेवन का दर्जा दिलाता है और इससे भारत को क्या फायदा या नुकसान हो सकता है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
Mauritius का इतिहास भारत से जुड़ा हुआ है। यह देश अफ्रीका के पूर्व में हिंद महासागर में स्थित है। यहां की कुल आबादी में लगभग 48% लोग भारतीय मूल के हैं। यही वजह है कि भारत और मॉरीशस के बीच सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध बहुत पुराने हैं। लेकिन Mauritius का नाम सिर्फ इस सांस्कृतिक जुड़ाव के कारण चर्चा में नहीं रहता, बल्कि इसका टैक्स सिस्टम इसे खास बनाता है। मॉरीशस को एक टैक्स हेवन देश इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां पर Investment करने वालों को भारी टैक्स छूट दी जाती है। साथ ही यहां के टैक्स नियम बहुत ही लचीले हैं।
मॉरीशस से जुड़े विवाद तब शुरू हुए जब भारतीय शेयर बाजार में Investment करने के लिए, Mauritius को एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। इसमें सबसे ज्यादा चर्चा उस समय हुई जब हिंडनबर्ग रिपोर्ट में Mauritius का नाम आया। हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत के कई बड़े Investors ने मॉरीशस के माध्यम से, भारत में Investment किया है और इस Investment का स्रोत संदिग्ध हो सकता है।
हिंडनबर्ग ने उस समय Securities and Exchange Board of India (सेबी) की पूर्व चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच और उनके पति धवल बुच पर भी सवाल उठाए थे। रिपोर्ट में कहा गया था कि बुच फैमिली ने मॉरीशस के माध्यम से, भारत में Investment किया है और यह Investment टैक्स चोरी के तहत आता है। हालांकि, इस मामले में सेबी ने जांच के बाद कहा था कि बुच फैमिली के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।
टैक्स हेवन का मतलब होता है – ऐसा देश जहां Investors को टैक्स से संबंधित बड़ी राहत मिलती हो। ऐसे देशों में या तो टैक्स बहुत कम होता है या बिल्कुल भी नहीं होता। Mauritius को टैक्स हेवन का दर्जा इस वजह से मिला हुआ है क्योंकि यहां कंपनियों को सिर्फ 3 से 5% तक का टैक्स देना पड़ता है। वहीं, भारत जैसे देशों में कंपनियों को 25 से 30% तक का टैक्स चुकाना पड़ता है। इस वजह से कई Investor Mauritius में कंपनी खोलते हैं, और वहां से भारत में Investment करते हैं ताकि उन्हें टैक्स की बड़ी बचत हो सके।
भारत और मॉरीशस के बीच डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) भी है। इस समझौते के तहत अगर कोई कंपनी मॉरीशस में पंजीकृत है और भारत में Investment करती है, तो उसे भारत में टैक्स नहीं चुकाना पड़ता। कंपनी को सिर्फ Mauritius में ही टैक्स देना होता है और वहां का टैक्स रेट बहुत ही कम है। इसी वजह से कई बड़े Investors ने मॉरीशस में शेल कंपनियां खोल रखी हैं। इन कंपनियों का इस्तेमाल भारत में Investment के लिए किया जाता है।
भारत के कई बड़े Investors ने Mauritius के रास्ते से अपने काले धन को सफेद किया है। इसका तरीका भी बहुत ही सरल है। सबसे पहले Investor मॉरीशस में एक शेल कंपनी खोलता है। इसके बाद वह अपने काले धन को Mauritius में इस कंपनी के खाते में डालता है।
फिर इस कंपनी के जरिए भारत में Investment किया जाता है। इस तरह जब यह पैसा भारत के शेयर बाजार में लगता है, तो इसे (Foreign Direct Investment – FDI) माना जाता है। भारत में FDI को लेकर बहुत ही लचीली नीति है, जिससे यह पैसा कानूनी रूप से सफेद हो जाता है।
मॉरीशस से भारत में आने वाला पैसा पिछले दो दशकों में तेजी से बढ़ा है। वित्त मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2000 से 2024 के बीच मॉरीशस से भारत में लगभग 177 अरब डॉलर का Investment आया है। 2019 20 के fiscal year में ही मॉरीशस से भारत में 8 अरब डॉलर का Investment हुआ था।
यह Investment मुख्य रूप से स्टार्टअप्स, टेक्नोलॉजी कंपनियों और रियल एस्टेट सेक्टर में हुआ है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि मॉरीशस से आए इस Investment के स्रोत का पता लगाना बहुत मुश्किल है।
भारत सरकार ने मॉरीशस के माध्यम से काले धन को सफेद करने के मामलों पर लगाम लगाने के लिए कई कड़े कदम उठाए हैं। 2017 में भारत ने मॉरीशस के साथ एक नया समझौता किया। इस समझौते के तहत मॉरीशस के रास्ते से आने वाले Investment पर अब भारत में भी टैक्स लगाया जाएगा। हालांकि, यह टैक्स Investment की प्रकृति के आधार पर तय होगा। अगर Investment इक्विटी शेयर के रूप में हुआ है तो इस पर कम टैक्स लगेगा, लेकिन अगर यह Investment डिविडेंड या अन्य माध्यमों से हुआ है तो इस पर सामान्य टैक्स लगाया जाएगा।
मॉरीशस का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में तब आया जब भारतीय शेयर बाजार में बड़े पैमाने पर हेरफेर के मामले सामने आए। सेबी ने पाया कि कई कंपनियों के शेयरों की कीमतों में अचानक उछाल आया और इन कंपनियों में Investment मॉरीशस के माध्यम से हुआ था। सेबी ने इस मामले की जांच की तो पता चला कि यह Investment मॉरीशस की शेल कंपनियों के माध्यम से हुआ था और इसका स्रोत संदिग्ध था।
इसके अलावा, भारत सरकार ने काले धन पर शिकंजा कसने के लिए एक और बड़ा कदम उठाया। 2023 में सरकार ने foreign investment के नियमों को और सख्त किया। अब भारत में Investment करने वाली विदेशी कंपनियों को अपनी स्रोत जानकारी देनी होगी। इसके अलावा मॉरीशस के रास्ते से आए Investment की निगरानी के लिए एक विशेष कमेटी भी बनाई गई है।
मॉरीशस का टैक्स हेवन सिस्टम सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप के कई बड़े Investors ने भी मॉरीशस के माध्यम से अपने काले धन को सफेद किया है। स्विट्जरलैंड के बाद मॉरीशस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा टैक्स हेवन माना जाता है।
मॉरीशस की सरकार ने हालांकि, इन आरोपों को खारिज किया है। मॉरीशस के वित्त मंत्री ने कहा है कि उनका टैक्स सिस्टम पूरी तरह से पारदर्शी है और वहां के सभी Investors का रिकॉर्ड मौजूद है। हालांकि, यह भी सच है कि मॉरीशस ने अभी तक भारत सरकार के साथ अपने Investors की पूरी जानकारी साझा नहीं की है।
मॉरीशस का टैक्स हेवन सिस्टम भारत और दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। भारत सरकार अब इस मामले पर कड़ी निगरानी रख रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में भारत सरकार मॉरीशस के साथ अपने टैक्स समझौते में क्या बदलाव करती है और इस पर क्या असर पड़ता है। एक बात तो साफ है कि मॉरीशस का टैक्स हेवन सिस्टम भारत के काले धन के मामलों से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। अब देखना यह है कि सरकार इस पर कैसे काबू पाती है।
Conclusion
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