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Second-hand clothes से बदलेगा ग्लोबल फैशन इंडस्ट्री का भविष्य, बढ़ती मांग से खुल रहे नए अवसर I 2025

Second-Hand Clothes

नमस्कार दोस्तों, क्या आप यकीन कर सकते हैं कि जिन कपड़ों को कभी मिडिल-क्लास की मजबूरी समझा जाता था, वही अब एक ग्लोबल ट्रेंड बन चुके हैं? क्या आपने कभी सोचा था कि Second-hand clothes, जो कभी जरूरतमंदों को दान में दिए जाते थे, आज बड़े-बड़े ब्रांड्स की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी का हिस्सा बन गए हैं? क्या ये मुमकिन है कि जिस सेक्टर को कभी ‘पुराना’ और ‘गरीबों के लिए’ माना जाता था, वह आज करोड़ों डॉलर की इंडस्ट्री बन गया है? दुनिया में फैशन इंडस्ट्री में बदलाव की आंधी आ रही है – और इस बदलाव की अगुवाई कर रहे हैं सेकंड-हैंड कपड़े।

आज Second-hand clothes का बाजार सिर्फ आम लोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि नेटफ्लिक्स के शो से लेकर लंदन फैशन वीक तक में इनका बोलबाला है। ये महज एक ट्रेंड नहीं, बल्कि फैशन की दुनिया में चल रही सस्टेनेबिलिटी की एक नई लहर है। सवाल यह है कि आखिर Second-Hand Clothes इतने लोकप्रिय क्यों हो रहे हैं? और इससे फैशन इंडस्ट्री और उपभोक्ताओं को क्या फायदा हो रहा है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

सबसे पहले आपको बता दें कि भारत में Second-Hand Clothes का चलन कोई नया नहीं है। यहां बचपन से ही घरों में बड़े भाई-बहन या रिश्तेदारों के कपड़े छोटे बच्चों को पहनाने की परंपरा रही है। पुराने कपड़ों को गरीबों और जरूरतमंदों को दान करना भी भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। भारत के गांवों और कस्बों में आज भी लोग पुरानी चीजों को संजो कर रखने की आदत रखते हैं।

परिवारों में यह परंपरा चलती आई है कि जब कोई बच्चा बड़ा हो जाता है और उसके कपड़े छोटे हो जाते हैं, तो वे कपड़े छोटे भाई-बहनों को दे दिए जाते हैं। इससे न सिर्फ पैसे की बचत होती है, बल्कि कपड़ों का सही इस्तेमाल भी होता है। लेकिन अब यह सीमित सोच एक ग्लोबल ट्रेंड में बदल रही है। सेकंड-हैंड कपड़े अब सिर्फ जरूरत का साधन नहीं, बल्कि एक स्टेटमेंट बन गए हैं। बड़े-बड़े इंटरनेशनल ब्रांड्स भी अब Second-Hand Clothes के बिजनेस में उतर चुके हैं।

नेटफ्लिक्स के पॉपुलर ड्रामा “एमिली इन पेरिस” के लेटेस्ट सीज़न में एक लग्जरी ब्रांड वेस्टियायर कलेक्टिव को दिखाया गया है, जो डिजाइनर Second-Hand Clothes की रीसेलिंग करता है। यह ब्रांड सेकंड-हैंड लग्जरी आइटम्स को नए तरीके से पेश कर रहा है, जिससे न सिर्फ आम लोग बल्कि अमीर तबके के लोग भी इसका हिस्सा बन रहे हैं। इसी तरह ब्रिटेन के रियलिटी शो “लव आइलैंड” के कंटेस्टेंट्स भी सेकंड-हैंड कपड़े पहनते नजर आए।

इस शो ने न केवल लोगों की सोच को बदला है, बल्कि रीसेलिंग इंडस्ट्री के लिए एक नए बाजार को तैयार किया है। लंदन फैशन वीक में लिथुआनिया की रिसेलिंग साइट विंटेड और चैरिटी संस्था ऑक्सफैम ने, सेकंड-हैंड आउटफिट्स को फैशन शो के रैंप पर पेश किया। इसका मतलब है कि अब सेकंड-हैंड कपड़े जरूरत की चीज नहीं, बल्कि एक फैशन स्टेटमेंट बन गए हैं।

आज ग्लोबल Second-Hand Clothes मार्केट का आकार करीब 100 बिलियन डॉलर यानी 9 लाख करोड़ रुपये से भी ज्यादा हो चुका है। एक बैंक, लोम्बार्ड ओडिएर की रिसर्च के मुताबिक, 2020 में यह मार्केट सिर्फ 30 से 40 बिलियन डॉलर का था। यानी बीते 4 से 5 वर्षों में इसमें तीन गुना की वृद्धि हुई है। कंसल्टेंसी कंपनी मैकिन्से का अनुमान है कि अमेरिकी रीसेलिंग मार्केट 2023 में कपड़ों की Retail sales की तुलना में 15 गुना तेजी से बढ़ा है।

द इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, वेस्टियायर प्लेटफॉर्म पर हर दिन करीब 30,000 नए आइटम्स लिस्ट किए जा रहे हैं। इससे साफ है कि Second-Hand Clothes अब महज एक विकल्प नहीं, बल्कि फैशन इंडस्ट्री के नए ट्रेंड का हिस्सा बन चुके हैं।

Second-Hand Clothes के इस ट्रेंड के पीछे सबसे बड़ा कारण है – सस्टेनेबल लाइफस्टाइल। Environmental protection के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है। फैशन इंडस्ट्री दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले सेक्टरों में से एक है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, फैशन इंडस्ट्री दुनिया के कुल कार्बन-डाइऑक्साइड Emission के करीब 10% के लिए जिम्मेदार है, जो शिपिंग और हवाई यात्रा के कुल Emission से भी ज्यादा है। इसके अलावा, एक टी-शर्ट को तैयार करने में करीब 2,700 लीटर पानी की खपत होती है। यही वजह है कि लोग अब सेकंड-हैंड कपड़े खरीदने की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इससे न सिर्फ पैसे की बचत होती है, बल्कि पर्यावरण पर पड़ने वाला असर भी कम होता है।

इसके अलावा, कीमत भी Second-Hand Clothes की लोकप्रियता का बड़ा कारण है। वेस्टियायर की रिपोर्ट के अनुसार, उसकी साइट पर बिकने वाले सेकंड-हैंड डिजाइनर गियर की कीमत, एचएंडएम और अन्य फास्ट फैशन ब्रांड्स के मुकाबले औसतन 33% कम होती है। कपड़े और ड्रेस के मामले में यह अंतर और भी ज्यादा बढ़ जाता है। उपभोक्ताओं को कम कीमत पर बेहतर क्वालिटी के ब्रांडेड कपड़े मिल रहे हैं, जिससे सेकंड-हैंड मार्केट की ग्रोथ तेजी से हो रही है।

रीसेलिंग प्लेटफॉर्म्स इस पूरे बदलाव में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। विंटेड ने 2016 में विक्रेताओं के लिए लिस्टिंग charge खत्म कर दिया था। इसके बदले खरीदारों से 5% charge लिया जाने लगा। इसके बाद ईबे और डेपॉप जैसी कंपनियों ने भी इस रणनीति को अपनाया। इस मॉडल से विक्रेताओं के लिए पुराने कपड़े बेचना आसान हो गया। उपभोक्ता आसानी से अपनी अलमारी के पुराने कपड़े लिस्ट कर सकते हैं और सीधे ग्राहक से डील कर सकते हैं। इससे मार्केट में पुरानी चीजों की कीमत तय करने का अधिकार सीधे विक्रेता और खरीदार को मिल गया है।

इसके अलावा, भारत में भी Second-Hand Clothes का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। The Thrift Kart जैसे प्लेटफॉर्म्स पर आप फेमस ब्रांड्स के कपड़े कम कीमत पर खरीद सकते हैं। Bombay Closet Cleanse पर ग्राहक कपड़े खरीदने, बेचने और किराए पर लेने का काम कर सकते हैं। My Thrift Kart भी भारत के प्रमुख थ्रिफ्ट स्टोर्स में से एक है। भारत में युवाओं के बीच थ्रिफ्टिंग का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है। कॉलेज के छात्र और युवा प्रोफेशनल्स अब अपने बजट को ध्यान में रखते हुए थ्रिफ्टिंग को फैशन स्टेटमेंट बना रहे हैं।

Second-Hand Clothes का यह बाजार अभी और बड़ा होने वाला है। माना जा रहा है कि उपभोक्ताओं की अलमारी में करीब 200 बिलियन डॉलर के कपड़े और एसेसरीज़ बिना उपयोग के रखे हैं। इनमें से फिलहाल सिर्फ 3% कपड़े ही हर साल रीसेल मार्केट में पहुंच रहे हैं। अगर यह आंकड़ा बढ़ा, तो Second-Hand Clothes का बाजार आने वाले वर्षों में फैशन इंडस्ट्री पर हावी हो सकता है।

तो दोस्तों, सवाल ये है कि सेकंड-हैंड कपड़े क्या सिर्फ एक ट्रेंड हैं या फिर ये फैशन इंडस्ट्री का भविष्य बन जाएंगे? जिस तरह से सेकंड-हैंड मार्केट का विस्तार हो रहा है, उससे साफ है कि यह सिर्फ एक अस्थायी ट्रेंड नहीं है। यह उपभोक्ताओं की सोच और बाजार की दिशा में एक स्थायी बदलाव है। सेकंड-हैंड कपड़े अब सिर्फ मिडिल क्लास की जरूरत नहीं रहे, बल्कि ये ग्लोबल फैशन का नया चेहरा बन गए हैं।

Conclusion

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