नमस्कार दोस्तों, क्या आप सोच सकते हैं कि वह देश, जो कुछ साल पहले तक Semiconductor manufacturing के मामले में पूरी तरह से दूसरे देशों पर निर्भर था, अब दुनिया के सबसे बड़े सेमीकंडक्टर हब के रूप में उभर रहा है? जिस देश की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से Agriculture और Service sector पर टिकी हुई थी, वह अब Semiconductor manufacturing के मामले में ग्लोबल लीडर बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
क्या आपको अंदाजा है कि सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री का महत्व कितना बड़ा है? आज की दुनिया में हर स्मार्टफोन, लैपटॉप, कार, मेडिकल डिवाइस, यहां तक कि military equipments में भी सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल होता है। यह छोटे-छोटे चिप्स ही पूरी दुनिया की तकनीकी क्रांति के पीछे की ताकत हैं। और अब भारत ने इस क्षेत्र में न सिर्फ कदम रखा है, बल्कि बड़े स्तर पर खुद को स्थापित करने की ओर बढ़ रहा है।
सवाल यह है कि भारत ने यह उपलब्धि कैसे हासिल की? कौन-से ऐसे कारक थे, जिन्होंने भारत को सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में एक बड़ा खिलाड़ी बना दिया? और इस सफलता का असर भारत की अर्थव्यवस्था और global level पर कैसा होगा? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
यह कहानी एक ऐसे बदलाव की है, जो पिछले कुछ वर्षों में भारत की अर्थव्यवस्था और उसकी Global स्थिति को पूरी तरह से बदल रहा है। भारत के सेमीकंडक्टर उद्योग का सफर रातोंरात नहीं हुआ है। इसके पीछे एक मजबूत रणनीति, सरकार की नीतियों, global demand और घरेलू क्षमताओं का मेल है। अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो साल 2021 में भारत ने Semiconductor manufacturing को प्रोत्साहित करने के लिए, 10 बिलियन डॉलर के एक प्रोत्साहन कार्यक्रम की शुरुआत की थी।
इस योजना के तहत सरकार ने सेमीकंडक्टर चिप और डिस्प्ले फैब के निर्माण के लिए Project cost का लगभग 50% कवर करने की घोषणा की थी। इसके अलावा, कुछ राज्यों ने इस योजना के तहत 20% अतिरिक्त प्रोत्साहन की पेशकश की थी। इसका मतलब यह है कि कुल मिलाकर सरकार ने Semiconductor manufacturing से जुड़ी projects के लिए, लगभग 70% तक Financial सहायता देने का वादा किया था।
भारत के इस साहसिक कदम का असर जल्द ही दिखने लगा। जेफरीज की रिपोर्ट के अनुसार, फिलहाल भारत में पांच बड़ी सेमीकंडक्टर Projects under construction हैं, जिनमें कुल Investment लगभग 18 बिलियन डॉलर का है। इन projects से भारत में 80,000 से अधिक नौकरियां पैदा होने की संभावना है।
इनमें से सबसे बड़ी परियोजना ताइवान की PSMC के साथ टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स का 11 बिलियन डॉलर का चिप फैब प्रोजेक्ट है, जो 2026 तक उत्पादन शुरू करने के लिए तैयार है। यह प्रोजेक्ट न केवल भारत के Technical scenario को बदल देगा, बल्कि इसे global level पर एक प्रमुख सेमीकंडक्टर हब के रूप में स्थापित करेगा।
सेमीकंडक्टर उद्योग में भारत की इस सफलता का सबसे बड़ा कारण सरकार की स्पष्ट नीतियां हैं। भारत सरकार ने इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए कई रणनीतिक कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसे अभियानों के तहत Domestic production को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन दिए हैं।
भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स Import वर्तमान में 60 बिलियन डॉलर के आसपास है, जो देश के व्यापार घाटे का लगभग 25% है। इस समस्या से निपटने के लिए सरकार ने Domestic production को प्राथमिकता दी है। भारत अब धीरे-धीरे Semiconductor manufacturing के मामले में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है।
इसके अलावा, भारत के पास सेमीकंडक्टर डिजाइन और उत्पादन के लिए आवश्यक सभी प्रमुख संसाधन उपलब्ध हैं। भारत के पास पहले से ही एक मजबूत तकनीकी इकोसिस्टम है। भारत की आईटी इंडस्ट्री पहले से ही global level पर एक बड़ा नाम है। देश में बड़ी संख्या में सॉफ्टवेयर इंजीनियर और Technical expert मौजूद हैं, जो सेमीकंडक्टर डिजाइन और उत्पादन के लिए आवश्यक Expertise प्रदान कर सकते हैं।
भारत में पहले से ही क्वालकॉम, इंटेल और एनवीडिया जैसी कंपनियों के बड़े रिसर्च और डेवलपमेंट (R&D) सेंटर हैं। इसके अलावा, भारत के इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की संख्या हर साल बढ़ रही है, जो इस क्षेत्र के लिए एक बड़ा प्लस पॉइंट है।
जेफरीज की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के पास ऑटोमोबाइल उत्पादन की सफलता को, Semiconductor manufacturing में दोहराने की क्षमता है। 1980 के दशक में भारत को ऑटो उद्योग में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा था। लेकिन सही नीतियों और Global बाजार की मांग के कारण भारत ने धीरे-धीरे खुद को ऑटोमोबाइल उत्पादन का हब बना लिया।
आज भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटो उत्पादक और Exporter बन चुका है। इसी तरह, Semiconductor manufacturing के मामले में भी भारत को यह सफलता मिल सकती है।
हालांकि, भारत के लिए Semiconductor manufacturing सिर्फ एक आर्थिक निर्णय नहीं है, बल्कि यह एक रणनीतिक निर्णय भी है। Semiconductor manufacturing पर नियंत्रण का अर्थ है Global technology market में प्रभुत्व स्थापित करना। चीन पहले से ही इस क्षेत्र में एक बड़ी ताकत है। लेकिन अमेरिका और पश्चिमी देश अब चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहते हैं।
अमेरिका ने पहले ही चीन पर Semiconductor manufacturing से जुड़े प्रतिबंध लगाए हैं। ऐसे में भारत उन कंपनियों के लिए एक बड़ा विकल्प बन सकता है, जो चीन से अपने उत्पादन को हटाकर एक सुरक्षित और स्थिर वातावरण की तलाश में हैं।
भारत की इस सफलता का असर अन्य एशियाई देशों पर भी पड़ेगा। जापान, दक्षिण कोरिया और ताइवान पहले से ही इस क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी हैं। अगर भारत Semiconductor manufacturing में अपनी स्थिति मजबूत करता है, तो इससे Global बाजार में Competition बढ़ेगी। इससे न केवल भारत के लिए नए व्यापारिक अवसर खुलेंगे, बल्कि इससे Global technical equilibrium भी बदल सकता है।
हालांकि, इस क्षेत्र में भारत को कुछ चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा। भारत की सप्लाई चेन अभी भी उतनी मजबूत नहीं है, जितनी चीन, जापान और दक्षिण कोरिया की है। भारत को इस समस्या से निपटने के लिए अपने इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़ा Investment करना होगा। इसके अलावा, Semiconductor manufacturing के लिए आवश्यक Raw materials, और उपकरणों की Supply भी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
फिर भी, भारत ने जिस गति से इस क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत की है, वह वाकई में ऐतिहासिक है। भारत ने यह दिखा दिया है कि अगर सही नीतियों और रणनीति के साथ काम किया जाए, तो किसी भी क्षेत्र में सफलता पाई जा सकती है। भारत का सेमीकंडक्टर उद्योग अब शुरुआती चरण में है, लेकिन अगर यह इसी गति से आगे बढ़ता रहा, तो आने वाले वर्षों में भारत Global सेमीकंडक्टर बाजार का लीडर बन सकता है।
यह सफलता भारत को न केवल आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगी, बल्कि इसे global level पर एक नई पहचान भी देगी। भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि जब इरादे मजबूत हों और नेतृत्व स्पष्ट हो, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है।
Conclusion
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