Service Charge: मन होगा तो देंगे! कोर्ट का बड़ा फैसला, ग्राहकों को मिला न्याय और रेस्टोरेंट को लगा झटका! 2025

सोचिए, आप एक रेस्टोरेंट में खाना खाने जाते हैं। स्वाद बढ़िया होता है, माहौल भी अच्छा लगता है। आप बिल मांगते हैं और उसमें देख कर चौंक जाते हैं कि खाने-पीने के बिल के अलावा एक और अतिरिक्त रकम जुड़ी हुई है—Service Charge! आप सोचते हैं कि आपने तो टिप देने का अब तक मन भी नहीं बनाया था, लेकिन आपके बिल में पहले से ही एक तय प्रतिशत जोड़ दिया गया है। यह देखकर आपके चेहरे पर अचानक सवालों की लकीरें खिंच जाती हैं—क्या यह जायज़ है?

क्या यह मेरे अधिकारों का उल्लंघन है? ठीक इसी सवाल को लेकर जब देश की सबसे बड़ी होटल और रेस्टोरेंट संस्थाएं कोर्ट पहुंचीं, तो उन्हें न सिर्फ हार का सामना करना पड़ा, बल्कि लाखों का जुर्माना भी झेलना पड़ा। दिल्ली हाईकोर्ट ने साफ कह दिया—मन होगा तो ग्राहक Service Charge देंगे, मजबूरी नहीं चलेगी। यह फैसला एक मिसाल बन गया है, जिसने Consumers को आत्मविश्वास दिया है और व्यवसायिक लालच पर करारी चोट की है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

यह फैसला उस वक्त आया जब नेशनल रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NRAI), और फेडरेशन ऑफ होटल एंड रेस्टोरेंट एसोसिएशन ऑफ इंडिया (FHRAI) ने कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। इन दोनों संस्थाओं ने Central Consumer Protection Authority (CCPA) की 2022 की गाइडलाइन को चुनौती दी थी। गाइडलाइन में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि कोई भी रेस्टोरेंट अपने ग्राहकों से जबरन Service Charge नहीं वसूल सकता।

ग्राहक अगर सेवा से संतुष्ट हैं, तो अपनी मर्जी से टिप दे सकते हैं, लेकिन किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता। लेकिन इन संस्थाओं ने दावा किया कि यह गाइडलाइन मनमानी, असंवैधानिक और उद्योग विरोधी है, जिसे रद्द किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं का मानना था कि इससे उनके व्यापारिक हितों को नुकसान पहुंच रहा है, लेकिन उन्होंने Consumers के अधिकारों की कोई परवाह नहीं की।

इन याचिकाओं की सुनवाई जब दिल्ली हाईकोर्ट में हुई तो जस्टिस प्रतिभा एम सिंह ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि ग्राहक की इच्छा सर्वोपरि है। कोई भी service provider—चाहे वह कितना भी प्रतिष्ठित क्यों न हो—उसे यह अधिकार नहीं कि वह Service Charge के नाम पर जबरन धन वसूली करे।

कोर्ट ने CCPA के आदेश को पूरी तरह वैध ठहराया और याचिकाकर्ता संस्थाओं पर 1 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया। यह रकम Consumer welfare के लिए खर्च की जाएगी। यानी जो संस्थाएं यह मानकर चल रही थीं कि वे कोर्ट से राहत पा जाएंगी, उन्हें उल्टा आर्थिक दंड झेलना पड़ा। इस निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया कि व्यापारिक स्वार्थ, Consumer rights से ऊपर नहीं हो सकते।

इस फैसले के पीछे की सोच को समझना बेहद जरूरी है। Service Charge दरअसल एक तरह की अतिरिक्त राशि होती है जो ग्राहक से सेवा देने के बदले में वसूली जाती है। यह अक्सर 5 से 10 प्रतिशत तक हो सकती है और इसे बिल में स्वत: ही जोड़ दिया जाता है। कई बार ग्राहक को यह तक पता नहीं चलता कि वह किस मद में पैसा दे रहा है।

कभी-कभी तो यह शुल्क उस परिस्थिति में भी लिया जाता है जब सेवा खराब होती है या ग्राहक असंतुष्ट होता है। लेकिन इस फैसले ने साफ कर दिया कि किसी भी अतिरिक्त शुल्क के लिए ग्राहक की सहमति अनिवार्य है। टिप देना एक निजी निर्णय है, न कि कोई कानूनी अनिवार्यता या सामाजिक दबाव का हिस्सा।

कोर्ट में दायर की गई याचिका में यह भी कहा गया था कि भारत में ऐसा कोई स्पष्ट कानून नहीं है जो रेस्टोरेंट को Service Charge लेने से रोकता हो। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि जब तक संसद इस विषय पर कोई विशेष कानून नहीं बनाती, तब तक ऐसे दिशा-निर्देशों को लागू करना उचित नहीं है।

लेकिन कोर्ट ने यह दलील पूरी तरह खारिज कर दी। जस्टिस प्रतिभा सिंह ने कहा कि Consumers के हितों की रक्षा करना सर्वोपरि है, और कोई भी व्यवसाय अपनी सुविधा के लिए ग्राहकों पर अनुचित दबाव नहीं बना सकता। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि Consumer Protection Act का दायरा काफी व्यापक है, और यह ऐसे किसी भी उत्पीड़न को रोकने के लिए पर्याप्त है।

यह मामला सिर्फ एक Service Charge का नहीं है, बल्कि Consumers के मूलभूत अधिकारों का भी है। क्या हमसे बिना पूछे कोई शुल्क जोड़ा जा सकता है? क्या हम केवल इस डर से Payment कर दें कि कोई बहस न हो जाए? क्या यह हमारे लोकतांत्रिक अधिकारों की अवहेलना नहीं है? यह फैसला हमें बताता है कि अब Consumers को जागरूक और सशक्त होने की जरूरत है। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम समझें कि बिल में क्या जुड़ा है, क्यों जुड़ा है और क्या वह वाजिब है। हर Consumer को यह जानना चाहिए कि वह सिर्फ ग्राहक नहीं, बल्कि कानूनन संरक्षित एक सशक्त नागरिक भी है।

इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि अब देशभर के रेस्टोरेंट, इस आदेश का पालन करेंगे और ग्राहक के अधिकारों का सम्मान करेंगे। CCPA की 2022 की गाइडलाइन को अब दिल्ली हाईकोर्ट की वैधानिक स्वीकृति मिल चुकी है, जिससे यह और भी प्रभावी हो गई है। इसका सीधा मतलब है कि अब ग्राहक यदि किसी बिल में जबरन Service Charge जुड़ा देखें, तो वे शिकायत दर्ज कर सकते हैं और रेस्टोरेंट के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। यह Consumer empowerment की दिशा में एक ऐतिहासिक मोड़ है, जो लंबे समय से प्रतीक्षित था।

ग्राहकों की प्रतिक्रिया भी इस फैसले के पक्ष में रही है। सोशल मीडिया और Consumer forums पर लोगों ने इसे एक ‘विनिंग मोमेंट’ बताया है। कई Consumers ने साझा किया कि उन्हें लंबे समय से यह Service Charge अन्यायपूर्ण लगता था, लेकिन बोलने या बहस करने की हिम्मत नहीं होती थी। अब उन्हें कानूनी आधार मिल गया है कि वे अपनी बात कह सकें और गैरवाजिब शुल्क का विरोध कर सकें। एक ट्विटर यूजर ने लिखा, “अब जब Service Charge के नाम पर ठगने की कोशिश हो, तो हम कह सकते हैं—कोर्ट हमारे साथ है।” यह फैसले ने न सिर्फ भरोसा लौटाया है, बल्कि Consumers के आत्मसम्मान को भी पुनर्जीवित किया है।

भारत में Consumer rights से जुड़ी कई कानूनी व्यवस्थाएं हैं। जैसे, Consumer Protection Act, 2019 के तहत कोई भी ग्राहक गलत तरीके से ली गई राशि, खराब सेवा या माल, या भ्रामक प्रचार के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकता है। इसके लिए ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे ‘National consumer हेल्पलाइन’ और ‘ई-दाखिल पोर्टल’ की सुविधा भी उपलब्ध है। इन माध्यमों से Consumer अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं और न्याय पा सकते हैं। इस प्रकार के साधनों का प्रचार और जागरूकता हर नागरिक तक पहुंचाना समय की मांग है, ताकि हर ग्राहक अपनी आवाज बुलंद कर सके।

एक और उदाहरण देखें तो कुछ साल पहले एयरलाइनों द्वारा चुपचाप कैंसलेशन चार्ज बढ़ाने पर Consumers ने भारी आपत्ति जताई थी। तब DGCA को हस्तक्षेप करना पड़ा और एयरलाइनों को स्पष्टीकरण देना पड़ा। इसी तरह ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा ‘फेक डिस्काउंट्स’ दिखाकर ग्राहकों को लुभाने पर भी Consumer forums ने कार्रवाई की थी। ये सभी उदाहरण बताते हैं कि जब Consumer आवाज़ उठाते हैं, तो व्यवस्था को झुकना ही पड़ता है। यह लोकतंत्र की असली ताकत है जो जनता को अधिकार देती है और व्यवस्था को जवाबदेह बनाती है।

अब समय है कि हम सभी अपने अधिकारों के प्रति सजग बनें। अगर रेस्टोरेंट या कोई भी service provider बिना पूछे Service Charge जोड़ता है, तो चुप रहने की जरूरत नहीं। पहले विनम्रता से पूछें, फिर आवश्यकता हो तो लिखित शिकायत दर्ज करें। याद रखें, ग्राहक राजा है और राजा को लूटने का अधिकार किसी को नहीं है। आप जो पैसा खर्च करते हैं, उसके पीछे आपकी मेहनत होती है और उसका सम्मान होना चाहिए। हर Payment सोच-समझकर करें और जहां अनुचित लगे, वहां बोलने में संकोच न करें। यही Consumers की सच्ची ताकत है।

दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला न सिर्फ कानूनी रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक चेतना के लिए भी एक प्रेरणा है। यह एक संकेत है कि बदलाव संभव है—बस आवाज़ उठानी होगी, अधिकारों को जानना होगा और सच के साथ खड़ा होना होगा। अगली बार जब कोई आपके बिल में चुपचाप Service Charge जोड़ दे, तो आत्मविश्वास से कहिए—मन होगा तो देंगे, जबरदस्ती नहीं चलेगी! यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है जो अब हर ग्राहक को जानना और अपनाना चाहिए।

Conclusion

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