नमस्कार दोस्तों, क्या आपने कभी सोचा है कि जो Chole Bhature आज आपको बड़े-बड़े रेस्टोरेंट और प्रतिष्ठित फूड ब्रांड्स में देखने को मिलते हैं, उनकी शुरुआत एक साधारण साइकिल से भी हो सकती है? क्या आपने कभी यह कल्पना की है कि दिल्ली की गलियों में बिकने वाला एक मामूली स्ट्रीट फूड, जिसे कभी एक छोटे ठेले पर तैयार किया जाता था, वह एक दिन पूरी राजधानी का सबसे लोकप्रिय ब्रांड बन जाएगा?
यह कहानी है सीता राम-दीवान चंद के Chole Bhature की, जिनकी शुरुआत 1950 में एक मामूली ठेले से हुई थी, लेकिन आज वे दिल्ली का एक प्रतिष्ठित फूड ब्रांड बन चुके हैं। यह कहानी सिर्फ एक बिजनेस की नहीं, बल्कि मेहनत, संघर्ष, समर्पण और एक बेहतरीन स्वाद की कहानी है, जिसने दिल्ली वालों के दिलों में अपनी जगह बना ली। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे I
भारत में कई फूड ब्रांड दशकों से चले आ रहे हैं, जिनमें हल्दीराम, बीकानेरवाला और बिकाजी जैसे बड़े नाम शामिल हैं। ये ब्रांड न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में मशहूर हो चुके हैं। लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसे ब्रांड भी हैं, जो अपनी सादगी और बेहतरीन स्वाद की वजह से सिर्फ एक खास क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में पहचाने जाते हैं।
सीता राम-दीवान चंद का Chole Bhature ब्रांड भी ऐसा ही एक नाम है, जो दिल्ली के अलावा पूरे भारत में मशहूर हो चुका है। एक समय था जब यह बिजनेस सिर्फ साइकिल पर था, लेकिन आज इसके कई आउटलेट्स हैं, और यह दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित स्ट्रीट फूड ब्रांड्स में से एक बन चुका है।
दिल्ली हमेशा से ही स्ट्रीट फूड के लिए मशहूर रहा है। चांदनी चौक की संकरी गलियों से लेकर पहाड़गंज तक, हर कोने में आपको कुछ न कुछ स्वादिष्ट खाने को मिल ही जाएगा। दिल्ली के स्ट्रीट फूड कल्चर का एक अनोखा आकर्षण है, जिसने इसे भारत के सबसे बेहतरीन फूड डेस्टिनेशन्स में से एक बना दिया है।
लेकिन जब Chole Bhature की बात आती है, तो दिल्ली में सीता राम-दीवान चंद के Chole Bhature सबसे अलग माने जाते हैं। इनके स्वाद की दीवानगी ऐसी है कि लोग घंटों तक लंबी कतारों में खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस स्वाद की शुरुआत कहां से हुई?
आपको बता दें कि इसकी जड़ें 1950 में देखने को मिलती हैं, जब सीता राम जी और दीवान चंद जी ने दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में अपने Chole Bhature का सफर शुरू किया। यह सफर कोई आसान नहीं था। तब उनके पास कोई दुकान नहीं थी, न ही कोई बड़ा किचन था। वे अपनी साइकिल पर बड़े जतन से गरमागरम Chole Bhature लाते और दिल्ली के डीएवी स्कूल के सामने बेचते।
शुरुआत में यह सिर्फ एक छोटी सी आजीविका थी, जो उनके परिवार के लिए रोज़गार का एक जरिया थी। लेकिन उनकी मेहनत, ईमानदारी और खास स्वाद की वजह से जल्द ही यह एक चर्चित फूड स्टॉल बन गया। धीरे-धीरे उनके Chole Bhature की चर्चा पूरे इलाके में होने लगी और लोग दूर-दूर से इसे खाने आने लगे।
लगभग 15 साल तक, यानी 1970 तक, यह बिजनेस इतना मशहूर हो गया कि अब सिर्फ साइकिल से इसे संभालना मुश्किल हो रहा था। हर दिन ग्राहक बढ़ते जा रहे थे और मांग इतनी ज्यादा हो गई थी कि उन्होंने इंपीरियल सिनेमा हॉल के सामने एक छोटी सी दुकान खोल ली। यह उनके लिए एक बड़ा कदम था, क्योंकि अब उनका Chole Bhature का स्वाद और भी ज्यादा लोगों तक पहुंचने लगा। उनकी यह दुकान भले ही छोटी थी, लेकिन यहां आने वालों की भीड़ हर समय लगी रहती थी।
दिल्ली का नया रेलवे स्टेशन भी इसी इलाके में था, और यह दुकान स्टेशन के बेहद नजदीक थी। इसका फायदा यह हुआ कि ट्रेन से आने-जाने वाले यात्री भी इस स्वाद से रूबरू होने लगे। जल्द ही यह Chole Bhature सिर्फ दिल्ली वालों की पसंद नहीं रहे, बल्कि जो भी दिल्ली आता, वह इसे एक बार जरूर चखकर जाता। यही वजह थी कि इनकी दुकान पर भीड़ कभी कम नहीं होती थी। समय के साथ इनका नाम हर जगह गूंजने लगा और इसे दिल्ली के सबसे खास स्ट्रीट फूड्स में गिना जाने लगा।
समय के साथ, यह बिजनेस सीता राम और दीवान चंद के बेटे और फिर उनके पोतों तक पहुंच गया। 2008 में, उनकी तीसरी पीढ़ी के राजीव कोहली और उत्सव कोहली ने इस बिजनेस को और भी बड़े स्तर पर ले जाने का फैसला किया। उन्होंने सिर्फ एक दुकान से संतुष्ट न रहकर, इसे एक ब्रांड के रूप में बदलने की योजना बनाई।
उन्होंने दिल्ली के पीतमपुरा, पश्चिम विहार और गुरुग्राम में नए आउटलेट्स खोले, जिससे इस फूड ब्रांड को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। अब यह Chole Bhature सिर्फ पहाड़गंज की गलियों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में भी पहुंच गए। हर जगह इनका स्वाद वही रहा, और लोगों ने इसे उतना पसंद भी किया।
आज सीता राम-दीवान चंद की Chole Bhature की यह पहचान सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के अन्य राज्यों तक भी अपनी पहचान बना चुका है। जो लोग दिल्ली से बाहर जाते हैं, वे अक्सर इस ब्रांड के स्वाद को याद करते हैं और यही कारण है कि लोग इसे दूसरी जगह भी लाने की मांग करने लगे हैं। इसका स्वाद इतना खास और अलग है कि इसे एक बार खाने के बाद लोग इसे बार-बार खाना चाहते हैं।
सोशल मीडिया पर भी यह ब्रांड छाया हुआ है। कई नामी-गिरामी यूट्यूबर्स और ब्लॉगर्स इसकी तारीफ कर चुके हैं। लोग सिर्फ खाने नहीं, बल्कि इस जगह की विरासत का हिस्सा बनने के लिए आते हैं। यह न केवल दिल्ली के लिए गर्व की बात है, बल्कि पूरे भारत के लिए यह एक प्रेरणादायक कहानी भी है, जो यह दिखाती है कि एक छोटे से बिजनेस को मेहनत और लगन से एक बड़ा ब्रांड बनाया जा सकता है।
भविष्य में, यह संभव है कि सीता राम-दीवान चंद के Chole Bhature न केवल भारत के हर शहर में अपने आउटलेट खोलें, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बना सके। कई भारतीय फूड ब्रांड्स अब वैश्विक स्तर पर अपनी जगह बना रहे हैं, और इसमें कोई संदेह नहीं कि यह Chole Bhature भी एक दिन पूरी दुनिया में अपनी जगह बना सकते हैं।
अगर आने वाले समय में यह ब्रांड और अधिक शहरों में अपनी शाखाएं खोलता है, तो यह निश्चित रूप से भारत के सबसे प्रतिष्ठित फूड ब्रांड्स में गिना जाएगा।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में यह बिजनेस कहां तक पहुंचता है। क्या यह भी हल्दीराम और बीकानेरवाला जैसे बड़े ब्रांड्स की तरह भारत के हर शहर में खुलेगा?
क्या आने वाले दिनों में हम इसे विदेशों में भी देख पाएंगे? जो भी हो, एक बात तो तय है—यह Chole Bhature सिर्फ खाने की चीज नहीं, बल्कि एक इतिहास हैं, एक संघर्ष की कहानी हैं और भारत की उस ताकत का उदाहरण हैं, जो बताती है कि अगर आप सच्चे दिल से मेहनत करें, तो कोई भी सपना हकीकत में बदला जा सकता है।
Conclusion
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