Smuggling पर बड़ी कार्रवाई, 14 किलो सोने की बरामदगी से खुला तस्करी का बड़ा राज!

नमस्कार दोस्तों, सोना, जिसे संपत्ति, सुरक्षा और शक्ति का प्रतीक माना जाता है, जब Illegal रास्तों से आता है, तो यह सिर्फ धातु नहीं रहता, बल्कि बड़े अपराध, राजनीति और साजिशों की कड़ियों को उजागर करता है। हाल ही में कन्नड़ अभिनेत्री रान्या राव के पास से 14.8 किलोग्राम सोना बरामद होने के बाद देशभर में बवाल मचा हुआ है। लेकिन क्या आपको पता है कि यह कोई पहला मामला नहीं है? इससे भी बड़ा, कहीं अधिक चौंकाने वाला सोने की Smuggling का मामला पांच साल पहले केरल में हुआ था, जिसने न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को हिला दिया था। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

2020 में केरल में जब Smuggling का सबसे बड़ा नेटवर्क पकड़ा गया, तो किसी को अंदाजा नहीं था कि इसके तार कितने ऊंचे स्तर तक जुड़े होंगे। यह कोई साधारण तस्करी नहीं थी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनियोजित एक बड़ा अपराध था, जिसमें 167 किलोग्राम सोने की तस्करी हुई थी। यह सोना Diplomat सामान के रूप में भारत लाया गया, एक ऐसा तरीका जो आम तौर पर कस्टम जांच से बाहर होता है। लेकिन जब पर्दाफाश हुआ, तो कई बड़े नाम सामने आए, जिनमें राजनीतिक हस्तियां, नौकरशाह और अंतरराष्ट्रीय तस्कर शामिल थे।

जिस देश में एक आम नागरिक विदेश से कुछ ग्राम सोना लाने के लिए सख्त कस्टम नियमों से गुजरता है, वहां 167 किलो सोना बिना किसी रुकावट के पहुंचा दिया गया था। यह अपने आप में एक बहुत बड़ा सवाल खड़ा करता है कि इतनी बड़ी मात्रा में सोना कैसे भारत लाया गया? और इसका असली मकसद क्या था? क्या यह सिर्फ Smuggling थी, या इसके पीछे कोई और बड़ा खेल चल रहा था?

जब जांच एजेंसियों ने इस मामले की तह तक जाने की कोशिश की, तो जो खुलासे हुए, वे बेहद चौंकाने वाले थे। यह सोना एक अंतरराष्ट्रीय गिरोह द्वारा दुबई से भेजा गया था और इसे तिरुवनंतपुरम स्थित यूएई काउंसलेट के नाम पर भारत भेजा गया। आमतौर पर, राजनयिक सामान को कस्टम जांच से छूट मिलती है, और इसी छूट का फायदा उठाकर तस्करों ने इसे एयरपोर्ट से सीधे बाहर निकालने की योजना बनाई थी।

लेकिन आखिरकार, गुप्त सूचना के आधार पर इस सोने को जब्त कर लिया गया और इसके पीछे छिपे असली मास्टरमाइंड्स को खोजने का सिलसिला शुरू हुआ।

इस पूरे मामले में सबसे बड़ा नाम उभरकर आया स्वप्ना सुरेश का। वह यूएई काउंसलेट में काम करती थीं और भारतीय अधिकारियों के साथ उनकी अच्छी पकड़ थी। उनके अलावा, पीएस सरिथ और एम शिवशंकर का नाम भी इस मामले में जुड़ा। पीएस सरिथ भी काउंसलेट के एक पूर्व कर्मचारी थे, जबकि एम शिवशंकर, केरल के मुख्यमंत्री के पूर्व प्रमुख सचिव थे।

इन तीनों की गिरफ्तारी के बाद यह मामला और भी सनसनीखेज हो गया, क्योंकि यह साफ हो गया कि Smuggling का यह खेल सिर्फ कुछ लोगों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसके तार बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर तक फैले हुए थे।

लेकिन यह मामला सिर्फ एक Smuggling तक ही सीमित नहीं था। Directorate of Enforcement (ईडी) और National Investigation Agency (NIA) ने जब जांच शुरू की, तो यह सामने आया कि इस सोने का इस्तेमाल केवल Illegal व्यापार के लिए नहीं, बल्कि आतंकवाद को फंडिंग करने के लिए भी किया जा सकता था। यह एक गंभीर आरोप था, क्योंकि अगर यह सच होता, तो इसका मतलब यह था कि देश की सुरक्षा से समझौता किया गया था।

भारत में सोने की Smuggling कोई नई बात नहीं है, लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में सोना, वह भी Diplomat कवर का इस्तेमाल करके, यह अपने आप में एक अभूतपूर्व घटना थी। जब तक यह मामला खुलकर सामने आया, तब तक करोड़ों रुपये के लेनदेन हो चुके थे और इस सोने की कई खेप पहले भी भारत लाई जा चुकी थीं। अधिकारियों का मानना है कि जब्त किए गए 167 किलो सोने से कहीं अधिक मात्रा में सोना पहले ही तस्करी के जरिए भारत आ चुका था।

अब सवाल यह उठता है कि आखिर भारत में सोने की Smuggling इतनी बड़ी मात्रा में क्यों हो रही है? इसका सबसे बड़ा कारण है भारत में सोने की ऊंची मांग और इस पर लगने वाला भारी टैक्स। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोने का उपभोक्ता देश है और यहां सोने को लेकर दीवानगी किसी से छिपी नहीं है। शादी-ब्याह से लेकर Investment तक, हर जगह सोने की जरूरत होती है।

सरकार ने इस पर भारी टैक्स लगाया हुआ है, जिससे सोना महंगा हो जाता है। ऐसे में तस्कर Illegal रूप से इसे लाने का तरीका निकालते हैं, जिससे उन्हें मोटा मुनाफा होता है।

लेकिन क्या सोने की Smuggling सिर्फ पैसे कमाने का जरिया है? नहीं, कई बार इसके पीछे और भी बड़े कारण होते हैं। आतंकवादी संगठन और मनी लॉन्ड्रिंग गिरोह सोने का इस्तेमाल अपने काले धन को सफेद करने के लिए करते हैं। कई बार यह देखा गया है कि तस्करी के जरिए लाया गया सोना ब्लैक मार्केट में बेच दिया जाता है, और इस पैसे का इस्तेमाल गैरकानूनी गतिविधियों में किया जाता है।

इस मामले का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सोने की Smuggling, अक्सर बड़े राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकारियों की मदद के बिना संभव नहीं होती। केरल सोने की तस्करी का एक प्रमुख केंद्र बन गया है, क्योंकि यहां से खाड़ी देशों से आने वाले यात्रियों की संख्या बहुत अधिक होती है। दुबई और अन्य मिडिल ईस्ट देशों से भारी मात्रा में सोना भारत लाने की कोशिश की जाती है, और इसमें कई बार हवाई अड्डों के कर्मचारी और कुछ प्रभावशाली लोग शामिल होते हैं।

इस पूरे मामले ने केरल की राजनीति में भी बड़ा बवाल खड़ा कर दिया। विपक्षी पार्टियों ने इसे एक बड़ा घोटाला करार दिया और सरकार पर सीधे आरोप लगाए। उनका कहना था कि इतने बड़े स्तर पर Smuggling बिना राजनीतिक संरक्षण के संभव नहीं है। वहीं, सरकार ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि दोषियों को सजा दिलाने में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।

जहां तक कानूनी कार्रवाई की बात है, इस मामले में कई गिरफ्तारियां हुईं, लेकिन क्या इससे भारत में सोने की Smuggling पर लगाम लग पाई? यह कहना मुश्किल है। हर साल हजारों किलो सोना Illegal रूप से देश में लाया जाता है और इसका एक बहुत छोटा हिस्सा ही पकड़ा जाता है।

अब जब रान्या राव का मामला सामने आया है, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह भी किसी बड़े रैकेट से जुड़ा हुआ है, या फिर यह सिर्फ व्यक्तिगत स्तर पर किया गया अपराध है। लेकिन इतना तय है कि भारत में सोने की Smuggling कोई छोटी समस्या नहीं है और इसे रोकने के लिए और भी सख्त कदम उठाने की जरूरत है।

आखिर में, यह मामला हमें यह सिखाता है कि चाहे कानून कितने भी सख्त हों, अगर सिस्टम में कमजोरियां हों, तो अपराधी उसका फायदा उठाने से पीछे नहीं हटते। केरल का 167 किलो सोने का मामला और रान्या राव से बरामद 14 किलो सोना, दोनों ही यह दिखाते हैं कि सोने की तस्करी का जाल कितना बड़ा और गहरा है। भारत सरकार को इस पर और कड़ा नियंत्रण लगाने की जरूरत है, ताकि न सिर्फ आर्थिक नुकसान से बचा जा सके, बल्कि देश की सुरक्षा को भी सुनिश्चित किया जा सके।।

Conclusion:-

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