Tariff दांव से ट्रंप का मास्टरस्ट्रोक! चीन की ‘कमर’ तोड़ने की तैयारी या अमेरिका की जीत की शुरुआत? 2025

क्या आपने कभी सोचा है कि एक ऐसा व्यापारिक फैसला भी हो सकता है जो किसी देश की पूरी अर्थव्यवस्था को झटका दे दे? बुधवार की सुबह जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आने वाले सामान पर 125% का Tariff ठोक दिया, तो सिर्फ शेयर बाजार नहीं, बल्कि दुनिया भर की फैक्ट्रियों में भी खलबली मच गई।

महज एक दिन पहले ही ट्रंप ने 104% Tariff की घोषणा की थी और अब सीधे 125%! सवाल सिर्फ दरों का नहीं है—ये युद्ध है, एक रणनीति है, जिसमें ट्रंप चीन के सबसे मजबूत किले को गिराने की तैयारी कर रहे हैं—मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

चीन को ‘दुनिया की दुकान’ कहा जाता है, और ये नाम उसने मेहनत से कमाया है। खिलौनों से लेकर मोबाइल फोन तक, कपड़ों से लेकर लैपटॉप तक, हर उस चीज में चीन की मौजूदगी है जो हम रोज इस्तेमाल करते हैं। जब हम शॉपिंग मॉल में कुछ खरीदते हैं, तो पीछे लगे “Made in China” के टैग से हमें उसकी कीमत सस्ती लगती है, लेकिन उस टैग के पीछे एक पूरी दुनिया छिपी है—जिसमें सस्ते Worker, विशाल फैक्ट्रियां, तेज असेंबली लाइन और अद्भुत लॉजिस्टिक्स सिस्टम शामिल हैं। अमेरिका जानता है कि चीन की असली ताकत यही है। और अब ट्रंप इसी ताकत को तोड़ने के मिशन पर हैं।

संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी कार्यालय के मुताबिक, 2022 में चीन का योगदान Global मैन्युफैक्चरिंग में 31% था। यह किसी भी देश से दोगुना है। अमेरिका, जो कभी इस क्षेत्र का बादशाह हुआ करता था, अब सिर्फ 15 से 16% पर टिक चुका है। यही वो वजह है जिसकी वजह से ट्रंप की नींद उड़ चुकी है। उन्हें लगता है कि अमेरिका ने अपनी औद्योगिक आत्मा खो दी है और उसे वापस लाना जरूरी है—भले ही उसकी कीमत कुछ भी हो। यही वजह है कि उन्होंने Tariff का ऐसा हथियार उठाया है जो सीधे चीन की औद्योगिक शक्ति पर वार करता है।

अब ज़रा सोचिए कि Tariff का मतलब क्या होता है? मान लीजिए कोई अमेरिकी व्यापारी चीन से एक लाख रुपये का सामान मंगाता है, तो अब उसे उसी सामान के लिए 2.25 लाख रुपये चुकाने पड़ेंगे। इसका मतलब है कि वह सामान अमेरिका में महंगा बिकेगा, या फिर वह व्यापारी दूसरा विकल्प ढूंढेगा—शायद भारत, वियतनाम या थाईलैंड। यही ट्रंप की चाल है—चीन को हर उस जगह से बाहर निकालना जहां से वह कमाई कर रहा है। इसका असर चीन के एक्सपोर्ट पर सीधा पड़ता है, जो उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।

चीन के लिए यह एक गंभीर चुनौती है क्योंकि उसकी पूरी अर्थव्यवस्था Export पर टिकी हुई है। मूडीज की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि Tariff इसी रफ्तार से बढ़ते रहे, तो चीन का अमेरिका को होने वाला Export एक तिहाई तक गिर सकता है। अब सोचिए, एक ऐसा देश जिसकी पूरी कमाई इसी पर टिकी है—अगर उसकी विदेशी मांग गिर जाए, तो उसकी फैक्ट्रियां ठप पड़ जाएंगी, लाखों लोगों की नौकरियां जाएंगी और घरेलू बाजार चरमरा जाएगा। यही तो ट्रंप चाहते हैं—वो चाहते हैं कि ड्रैगन की कमर टूट जाए, ताकि अमेरिका फिर से औद्योगिक ताकत के रूप में उभर सके।

और यह सिर्फ एक देश का मामला नहीं है। अमेरिका और चीन के बीच जो टकराव चल रहा है, उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है। दोनों देशों के बीच साल 2023 में करीब 585 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। अमेरिका चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल, कंप्यूटर, खिलौने, कपड़े और जूते खरीदता है। वहीं चीन अमेरिका से एयरोस्पेस, केमिकल्स, गैस और मशीनरी जैसे उच्च तकनीकी उत्पाद मंगाता है। लेकिन अब इस व्यापार को तोड़ने की कवायद चल रही है। अमेरिका साफ कर चुका है कि वो अब “मेड इन चाइना” पर निर्भर नहीं रहना चाहता।

ट्रंप की यह रणनीति केवल Tariff तक सीमित नहीं है। यह एक बड़े राजनीतिक और आर्थिक खेल का हिस्सा है, जिसमें लक्ष्य सिर्फ व्यापार घाटा कम करना नहीं, बल्कि चीन की Global हैसियत को चुनौती देना है। अमेरिका को डर है कि अगर चीन यूं ही मैन्युफैक्चरिंग में आगे बढ़ता रहा, तो एक दिन वह अमेरिका को भी पछाड़ देगा। इसलिए ट्रंप ‘पहले वार करो’ की नीति अपनाए हुए हैं। उनका मानना है कि इससे अमेरिका का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर फिर से मजबूत होगा और नौकरियां वापस लौटेंगी।

लेकिन क्या यह सब इतनी आसानी से हो जाएगा? अमेरिका में कई व्यापारी इन Tariff से परेशान हैं। उन्हें डर है कि अगर चीन से सामान मंगवाना बंद हो गया, तो लागत बढ़ेगी, और महंगाई अपने चरम पर पहुंच जाएगी। लेकिन ट्रंप कहते हैं कि यह “कड़वी दवा” है—जो अमेरिका को भविष्य में स्वस्थ और आत्मनिर्भर बनाएगी। उनका तर्क है कि सस्ते Import ने अमेरिकी कंपनियों को कमजोर कर दिया है और अब उन्हें फिर से खड़ा करने का समय आ गया है।

यहां भारत के लिए भी एक बड़ा अवसर छिपा हुआ है। जैसे ही अमेरिका चीन से पीछे हटता है, वह एक नए पार्टनर की तलाश करेगा। भारत पहले ही कई मामलों में चीन का विकल्प बनता दिख रहा है—चाहे वह iPhone की असेंबली हो, या टेक्सटाइल, फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटो पार्ट्स का निर्माण। अगर भारत सही समय पर अपने श्रम कानून, लॉजिस्टिक्स और बिजली संकट को सुधार ले, तो वह दुनिया की नई मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है।

लेकिन भारत को यह मौका यूं ही नहीं मिलेगा। उसे प्रतिस्पर्धी बनना होगा—नीतियों में लचीलापन लाना होगा, व्यवसायों के लिए बेहतर माहौल बनाना होगा, और सबसे जरूरी, उसे राजनीतिक स्थिरता बनाए रखनी होगी। ट्रंप की Tariff नीति भारत के लिए एक “आपदा में अवसर” हो सकती है—बशर्ते हम तैयार हों।

इस बीच, चीन भी चुप नहीं बैठा है। उसने भी अमेरिका पर पलटवार करते हुए 84% Tariff लगा दिए हैं। लेकिन इसमें फर्क ये है कि अमेरिका चीन पर जितना निर्भर है, चीन उससे कई गुना ज्यादा अमेरिका पर निर्भर है। अमेरिका के बिना चीन का एक्सपोर्ट तंत्र अधूरा हो जाता है। यही वजह है कि ट्रंप को लगता है कि ये लड़ाई वो जीत सकते हैं—बिना गोलियों के, सिर्फ Tariff से।

लेकिन एक बड़ा खतरा भी मंडरा रहा है। अगर ये Tariff वॉर यूं ही चलता रहा, तो दुनिया एक नई मंदी की ओर बढ़ सकती है। Global व्यापार में गिरावट आएगी, निवेश घटेगा, और बेरोजगारी बढ़ेगी। 1930 के दशक की ‘ग्रेट डिप्रेशन’ की यादें फिर से ताजा हो सकती हैं। experts का कहना है कि यह व्यापार युद्ध केवल आर्थिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक भी है—जहां विश्वास की जगह डर ने ले ली है। अमेरिका की घरेलू राजनीति में भी इस मुद्दे पर दो राय हैं। ट्रंप के समर्थक इसे ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति की जीत मानते हैं, जबकि विरोधी इसे ‘विनाश का रास्ता’ कहते हैं।

इस पूरी कहानी में सबसे अहम बात यह है कि ट्रंप ने Tariff को एक कूटनीतिक हथियार बना लिया है। यह केवल आर्थिक गणना नहीं, यह रणनीतिक खेल है—जहां हर चाल, हर टैक्स, और हर बयान एक संदेश देता है: अमेरिका अब झुकेगा नहीं। चाहे उसे अकेले ही क्यों न लड़ना पड़े।

और यही इस वीडियो का अंतिम भाव भी है—क्या ट्रंप का यह Tariff गेम वाकई चीन की कमर तोड़ पाएगा? या फिर यह अमेरिका की अर्थव्यवस्था को भी झुका देगा? क्या भारत इस लड़ाई में नई ताकत बनकर उभरेगा? क्या Global व्यापार अब नए संतुलन की ओर बढ़ेगा? इन सभी सवालों का जवाब आने वाले महीनों में मिलेगा, लेकिन एक बात तय है—ये लड़ाई इतिहास में दर्ज होगी।

Conclusion

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