सुपरमार्केट में सब्जी खरीदते वक्त अचानक दाम 30% बढ़ जाएं, मोबाइल फोन की कीमत में 10 हज़ार रुपये का इज़ाफा हो जाए, और आपकी सैलरी वही की वही रहे… सोचिए, कैसा लगेगा? अब जरा कल्पना कीजिए कि ये सब कुछ एक देश के राष्ट्रपति के एक एलान से हो रहा है… और ये राष्ट्रपति हैं – डोनाल्ड ट्रंप। हां, वही ट्रंप, जिन्होंने एक बार फिर Global व्यापार की ज़मीन हिला दी है।
एक ऐसा ऐलान, जिसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को तनाव में डाल दिया है, और आपके जैसे आम आदमी की जेब पर सीधा असर डालने वाला है। अब सवाल ये है कि क्या भारत के लिए ये एक नई मुसीबत है या छुपा हुआ अवसर? और सबसे बड़ा सवाल – हर साल आपकी कमाई में कितनी कटौती होने वाली है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
ट्रंप ने हाल ही में एक नया Tariff सिस्टम लागू करने का ऐलान किया है, जिसे “रेसिप्रोकल टैरिफ” कहा जा रहा है। इसका मतलब है कि अमेरिका अब उन सभी देशों पर वैसा ही टैक्स लगाएगा, जैसा टैक्स वो देश अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर लगाते हैं। यानी अब दुनिया से कह दिया गया है – जैसे को तैसा! और इसके साथ ही शुरू हो गया है एक नया ट्रेड वॉर।
अब अगर आप सोच रहे हैं कि इसका असर केवल सरकारों, कंपनियों या शेयर बाजार पर होगा, तो रुकिए। असल मार तो आम लोगों पर पड़ने वाली है। ट्रंप के इस फैसले से मोबाइल फोन से लेकर कपड़े, खाना और टेक्नोलॉजी – हर चीज़ महंगी हो सकती है। और अगर आपने हाल ही में कोई अमेरिकन ब्रांड का प्रोडक्ट खरीदा है, तो अगली बार उसकी कीमत देखकर आपके होश उड़ सकते हैं।
अमेरिका ने सभी देशों पर एक बेस टैरिफ लगाया है – 10% का। लेकिन उसके बाद देशों के हिसाब से एक्स्ट्रा टैक्स भी जोड़ा गया है। भारत पर 26%, चीन पर 34%, वियतनाम पर 46%, बांग्लादेश पर 37%, इंडोनेशिया पर 32%, यूरोपीय यूनियन पर 20%, और जापान पर 25% अतिरिक्त टैक्स लगाया गया है। यानी अब अमेरिका में किसी भी देश से आने वाला सामान एक तय टैक्स के हिसाब से महंगा होगा।
इस पूरी पॉलिसी का सबसे दिलचस्प पहलू ये है कि भारत का सामान, बाकी कई देशों की तुलना में अब भी सस्ता रहेगा। वजह? चीन और वियतनाम जैसे देशों पर भारत से ज़्यादा टैरिफ लगेगा। साथ ही भारत से जो सामान एक्सपोर्ट होता है, वो पहले से ही Competitive कीमतों पर होता है। यानी भारत के exporters को अमेरिका में अब एक नया मौका मिल सकता है। लेकिन, ये कहानी इतनी सीधी नहीं है।
डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि अमेरिका हर साल करीब 1.2 ट्रिलियन डॉलर का व्यापार घाटा झेल रहा है – यानी अमेरिका जितना बेचता है, उससे कहीं ज़्यादा खरीदता है। और इस घाटे को कम करने के लिए उन्होंने ये ‘ट्रंप टैरिफ’ लागू किया है। ट्रंप को लगता है कि अगर विदेशी सामान महंगा कर दिया जाए, तो अमेरिकी लोग घरेलू सामान ज़्यादा खरीदेंगे।
मगर इस कदम से भारत को नुकसान भी हो सकता है और फायदा भी। नुकसान इसलिए कि भारत पर भी 26% का टैरिफ लगाया गया है। फायदा इसलिए कि चीन और वियतनाम जैसे देशों की तुलना में भारत का टैक्स रेट कम है। ये दोनों देश टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और फूड प्रोडक्ट्स में भारत को टक्कर देते हैं। ऐसे में हो सकता है कि अमेरिकी खरीदार अब भारत की तरफ रुख करें।
यहां एक बात और जानने लायक है – भारत और अमेरिका इस वक्त एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत कर रहे हैं। अगर ये समझौता हो गया, तो भारत को इन टैरिफ से आंशिक राहत मिल सकती है। इसका मतलब – भारत के लिए अमेरिका का दरवाज़ा थोड़ा और खुल सकता है।
अब सवाल आता है – किन सेक्टर्स पर सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा? आंकड़े कहते हैं कि अप्रैल 2024 से फरवरी 2025 तक भारत ने अमेरिका को करीब 396 अरब डॉलर का सामान एक्सपोर्ट किया था। यानी अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा Export बाजार है। ऐसे में जो सेक्टर्स सीधे तौर पर प्रभावित हो सकते हैं उनमें शामिल हैं – टेक्सटाइल, आईटी-इलेक्ट्रॉनिक्स और Agricultural product जैसे चावल और मछली।
उदाहरण के लिए – भारत हर साल अमेरिका को करीब 8 अरब डॉलर के कपड़े और 5 अरब डॉलर के फूड प्रोडक्ट्स भेजता है। 26% टैरिफ लगने का मतलब है कि इन प्रोडक्ट्स की कीमतें बढ़ेंगी, और इससे डिमांड कम हो सकती है। लेकिन अच्छी बात ये है कि बांग्लादेश और वियतनाम पर टैक्स ज्यादा है। यानी भारत के कपड़े अब अमेरिका में तुलनात्मक रूप से सस्ते पड़ सकते हैं।
तो क्या भारत इस गेम में आगे निकल सकता है? जवाब है – हां, लेकिन शर्तों के साथ। भारत की हिस्सेदारी ग्लोबल एक्सपोर्ट में महज़ 2.4% है। इसलिए कुल मिला कर टैरिफ का असर हमारी जीडीपी पर ज़्यादा नहीं पड़ेगा। डेलॉयट और HDFC बैंक का अनुमान है कि टैरिफ के कारण भारत की जीडीपी में सिर्फ 0.19% की गिरावट आएगी।
अगर इस असर को आम आदमी की कमाई पर देखा जाए, तो सालाना औसतन 2396 रुपये की गिरावट हो सकती है। यानी आपकी जेब से हर साल दो-तीन हज़ार रुपये चुपचाप खिसक सकते हैं, बिना किसी नोटिस के। ये नुकसान ज़्यादा नहीं लगता, लेकिन मध्यम वर्ग के लिए हर एक रुपया मायने रखता है।
अब ज़रा अमेरिका की बात करें। वहां ट्रंप की ये चाल उलटी भी पड़ सकती है। अगर डॉलर की वैल्यू नहीं बढ़ी, तो अमेरिकी जनता को हर रोज़ इस्तेमाल होने वाला सामान 26% महंगा खरीदना पड़ेगा। इससे अमेरिका में स्टैगफ्लेशन का खतरा बढ़ गया है – यानी महंगाई तो बढ़ेगी, लेकिन आर्थिक विकास रुक जाएगा। और ये स्थिति किसी भी देश के लिए बेहद खतरनाक होती है।
इतना ही नहीं, अगर यूरोप, एशिया और बाकी देश जवाबी टैरिफ लगाते हैं, तो एक नई ट्रेड वॉर शुरू हो जाएगी। और इसका असर पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा – खासकर उन देशों पर जो अमेरिका पर अधिक निर्भर हैं।
लेकिन भारत के लिए इस पूरे घटनाक्रम में एक बड़ा मौका भी छिपा है। भारत को चाहिए कि वो अमेरिका पर निर्भरता कम करे और नए बाज़ारों की तलाश करे। जैसे – यूरोपियन यूनियन, खाड़ी देश, अफ्रीका और साउथ अमेरिका। इसके अलावा, भारत को अपने घरेलू प्रोडक्शन को भी मज़बूत बनाना होगा।
सरकार की नीतियां भी अब इसी दिशा में काम कर रही हैं। डंपिंग रोकने के लिए नए कदम उठाए जा रहे हैं, घरेलू उद्योगों को राहत देने के उपाय किए जा रहे हैं और अमेरिका के साथ ट्रेड डील को प्राथमिकता दी जा रही है।
अगर भारत अमेरिका, यूके, बहरीन और कतर जैसे देशों के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट करने में सफल हो गया, तो टेक्सटाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर सेक्टर को बड़ी राहत मिल सकती है। इसके साथ ही भारत की मैन्युफैक्चरिंग ताकत भी बढ़ेगी और लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन का दावा है कि अगर भारत ने सही रणनीति अपनाई, तो आने वाले दो से तीन साल में हम 50 अरब डॉलर का नया मार्केट हासिल कर सकते हैं। यानी जहां पूरी दुनिया ट्रंप के टैरिफ से डर रही है, वहीं भारत इसे एक मौके की तरह देख सकता है – अगर हम समझदारी से कदम उठाएं।
ट्रंप का टैरिफ एक चेतावनी है – कि अब Global व्यापार आसान नहीं रहेगा। हर देश को अपनी नीति, रणनीति और साझेदारियों पर फिर से काम करना होगा। भारत के सामने दो रास्ते हैं – एक, डरकर बैठ जाना। दूसरा – इस चुनौती को अवसर में बदलना।
और यही वक्त है कि भारत और भारतवासी मिलकर एक नई आर्थिक रणनीति बनाएं – जिसमें Export को बढ़ावा दिया जाए, घरेलू मांग को स्थिर रखा जाए और टेक्नोलॉजी व इनोवेशन पर फोकस किया जाए। क्योंकि जब पूरी दुनिया चिंता में हो, तो हो सकता है, भारत वो देश बने जो अंधेरे में भी रास्ता खोज निकाले। और यही तो पहचान है एक उभरती हुई महाशक्ति की।
Conclusion
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