Tariff War: डोनाल्ड ट्रंप की रणनीति के जवाब में कनाडा और मैक्सिको का बड़ा कदम! 2025

नमस्कार दोस्तों, अमेरिका का भविष्य एक अंधेरे मोड़ पर खड़ा है। बाजारों में उथल-पुथल मची हुई है, व्यापारिक साझेदार नाराज हैं, और पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था अनिश्चितता के बादलों में घिरती जा रही है। व्हाइट हाउस से निकला एक फैसला अब Global अर्थव्यवस्था को हिलाने लगा है। ये फैसला ऐसा है, जिसने न केवल अमेरिका के आर्थिक भविष्य को खतरे में डाल दिया है, बल्कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की राजनीतिक साख को भी दांव पर लगा दिया है।

सवाल यह है कि क्या यह फैसला अमेरिका को महंगा पड़ेगा? क्या ट्रंप का यह दांव उल्टा पड़ने वाला है? और क्या इससे अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रही है? अगर हां, तो इसके लिए जिम्मेदार कौन होगा? क्या यह अमेरिका के लिए एक नया आर्थिक संकट लेकर आएगा, या फिर यह केवल एक अस्थायी हलचल है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

डोनाल्ड ट्रंप ने जब अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, तो उन्होंने एक वादा किया था— “अमेरिका फर्स्ट”। इसी नीति के तहत उन्होंने कई कड़े फैसले लिए, लेकिन उनमें सबसे बड़ा फैसला था टैरिफ वॉर यानी व्यापार duty युद्ध छेड़ना। ट्रंप प्रशासन ने foreign products पर भारी-भरकम Import duty लगाने का ऐलान कर दिया, जिसका मुख्य मकसद अमेरिकी बाजार में घरेलू Products को बढ़ावा देना था।

शुरुआत में यह फैसला अमेरिकियों को अच्छा लगा, क्योंकि इससे उन्हें लगा कि उनकी नौकरियां बचेंगी और घरेलू उद्योग मजबूत होंगे। लेकिन जैसे-जैसे इस फैसले के असर दिखने लगे, वैसे-वैसे अमेरिका के अपने ही लोग इससे परेशान होने लगे। बड़े व्यापारी समूह, Industrial specialist और अर्थशास्त्री इस फैसले की आलोचना करने लगे, क्योंकि उन्हें समझ में आने लगा था कि यह निर्णय अमेरिका की अर्थव्यवस्था को धीमा कर सकता है, और Global व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

duty बढ़ाने का सबसे पहला झटका चीन को लगा। चीन, जो अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है, उसने इस फैसले को हल्के में नहीं लिया। चीन ने अमेरिकी Products पर भारी जवाबी duty लगा दी। इसके बाद से दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध शुरू हो गया, जिसने अंतरराष्ट्रीय व्यापार संतुलन को हिला कर रख दिया। ट्रंप प्रशासन को लगा था कि चीन झुक जाएगा और उनकी शर्तें मान लेगा, लेकिन चीन ने उल्टा अमेरिका को ही आर्थिक झटके देने शुरू कर दिए।

चीनी सरकार ने अमेरिकी agricultural products, टेक्नोलॉजी और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को सीधे तौर पर निशाना बनाना शुरू कर दिया, जिससे अमेरिकी उद्योगों को जबरदस्त घाटा होने लगा। इससे अमेरिकी कंपनियों की लागत बढ़ गई और उन्होंने अपनी कीमतें बढ़ानी शुरू कर दीं। इसके कारण अमेरिका के उपभोक्ताओं पर भी भारी असर पड़ा।

अब सिर्फ चीन ही नहीं, बल्कि अमेरिका के करीबी व्यापारिक साझेदार— कनाडा और मैक्सिको भी जवाबी कार्रवाई की तैयारी में हैं। ट्रंप प्रशासन ने कनाडा और मैक्सिको से Import होने वाले सामानों पर 25% तक अतिरिक्त duty लगा दी, जिससे दोनों देश भड़क उठे। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने साफ कर दिया कि उनके देश को अगर चुनौती दी गई, तो वह भी कड़ा जवाब देंगे। और हुआ भी यही। कनाडा ने ऐलान किया कि वह 100 अरब डॉलर से ज्यादा के अमेरिकी Products पर duty लगाएगा।

इस निर्णय से अमेरिकी कंपनियों को भारी नुकसान हो सकता है, क्योंकि कनाडा अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक है। कनाडा से मिलने वाले कच्चे माल और Energy products की कीमतें बढ़ जाएंगी, जिससे अमेरिकी उद्योगों की Production cost बढ़ सकती है।

कनाडा और मैक्सिको की प्रतिक्रिया के बाद अमेरिकी उद्योग जगत में हड़कंप मच गया। अमेरिका के कई बड़े उद्योगपतियों ने ट्रंप प्रशासन को चेतावनी दी कि अगर टैरिफ वॉर को जल्द रोका नहीं गया, तो इससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। अमेरिकी किसानों, ऑटोमोबाइल कंपनियों और टेक इंडस्ट्री पर इसका असर साफ दिखने लगा। कई कंपनियों ने अपने Products की कीमतें बढ़ा दीं, जिससे आम अमेरिकी नागरिकों की जेब पर सीधा असर पड़ने लगा।

महंगाई दर बढ़ने लगी और रोजगार के अवसर कम होने लगे। बड़ी कंपनियों ने Production कम कर दिया, जिससे नौकरियों में कटौती होने लगी। इससे अमेरिका के working class में असंतोष फैलने लगा और लोग सरकार के खिलाफ आवाज उठाने लगे।

टैरिफ वॉर का सबसे बड़ा असर अमेरिका के उपभोक्ताओं पर पड़ रहा है। अमेरिका में रोजमर्रा की चीजें महंगी हो गई हैं। जो सामान पहले सस्ते दामों पर उपलब्ध था, अब उसकी कीमतें आसमान छू रही हैं। अमेरिकियों को यह समझ में आने लगा है कि ट्रंप का यह फैसला उनके लिए घाटे का सौदा बनता जा रहा है। खासकर मिडिल क्लास और लोअर इनकम ग्रुप के लोग इस फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

महंगाई बढ़ने के कारण उनकी Purchasing power कम हो गई है, जिससे उनके जीवन स्तर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके अलावा, Investors का भरोसा भी डगमगाने लगा है, जिससे अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट देखी जा रही है।

इतना ही नहीं, इस व्यापार युद्ध ने Global बाजारों में भी अनिश्चितता पैदा कर दी है। जब दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं— अमेरिका और चीन— एक-दूसरे से लड़ रही हों, तो इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। यूरोपीय बाजारों में भी गिरावट देखी जा रही है। Investor डरे हुए हैं, और कई कंपनियां अपने विस्तार की योजनाओं को रोक रही हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते कमजोर होने लगे हैं और छोटे देशों की अर्थव्यवस्थाएं भी प्रभावित होने लगी हैं।

हालांकि, ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह टैरिफ वॉर अस्थायी है और इसका मकसद अमेरिका को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना है। लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर यह सही फैसला होता, तो अमेरिका के अपने ही उद्योगपति और आम नागरिक इसके खिलाफ क्यों खड़े हो रहे हैं? क्या यह सही मायनों में अमेरिका को मजबूत कर रहा है, या फिर यह ट्रंप प्रशासन की एक और गलत नीति साबित हो रही है? क्या यह वास्तव में “अमेरिका फर्स्ट” नीति को सफल बना रहा है, या फिर यह अमेरिका को Global व्यापार से अलग-थलग कर रहा है?

इतिहास हमें सिखाता है कि जब भी किसी देश ने Global व्यापार संतुलन को तोड़ने की कोशिश की है, उसका अंजाम हमेशा बुरा ही हुआ है। 1930 के दशक में अमेरिका ने जब “स्मूट-हॉली टैरिफ एक्ट” लागू किया था, तब इसका नतीजा महामंदी के रूप में सामने आया था। इतिहास दोहराया जा सकता है। अगर ट्रंप प्रशासन ने जल्द ही इस व्यापार युद्ध को नहीं रोका, तो अमेरिका को एक और आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।

अब देखना यह है कि आने वाले दिनों में ट्रंप प्रशासन क्या फैसला लेता है। क्या वह अपनी जिद पर अड़े रहेंगे, या फिर Global बाजारों के दबाव में झुकेंगे? क्या कनाडा, मैक्सिको और चीन की जवाबी कार्रवाई अमेरिका के लिए एक बड़े आर्थिक संकट की शुरुआत होगी? इन सवालों के जवाब आने वाले महीनों में मिलेंगे। लेकिन एक बात तय है— यह टैरिफ वॉर केवल एक आर्थिक नीति नहीं, बल्कि एक Global power struggle भी बन चुका है। और इसका असर सिर्फ अमेरिका पर नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाला है।

Conclusion

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