कल्पना कीजिए एक ऐसी विदेशी कंपनी की, जिसकी भारत में ब्रांच सालों से अरबों का मुनाफा कमा रही है, उसके प्रोडक्ट्स घर-घर में इस्तेमाल हो रहे हैं, और फिर एक दिन भारत सरकार उसके दरवाजे पर 150 करोड़ रुपए का tax डिमांड नोटिस लेकर पहुँच जाती है। क्या आप मानेंगे कि इतनी बड़ी कंपनियाँ tax बचाने के लिए ऐसे रास्ते अपनाती हैं, जो उन्हें सीधा कानूनी पचड़ों में डाल देते हैं?
और हैरानी की बात ये है कि सिर्फ सैमसंग ही नहीं, बल्कि फॉक्सवैगन, वोडाफोन, केयर्न एनर्जी, पेरनोड रिकार्ड और BYD जैसी कई नामी-गिरामी विदेशी कंपनियाँ भी भारत सरकार से tax को लेकर बार-बार उलझ चुकी हैं। तो आखिर क्या है इस झगड़े की असली वजह? और क्यों बार-बार विदेशी कंपनियाँ भारत के tax सिस्टम को लेकर विवादों में घिर जाती हैं?
आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे। लेकिन उससे पहले, अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं, तो कृपया चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें, ताकि हमारी हर नई वीडियो की अपडेट सबसे पहले आपको मिलती रहे। तो चलिए, बिना किसी देरी के आज की चर्चा शुरू करते हैं!
दक्षिण कोरिया की जानी-मानी कंपनी सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स इन दिनों भारत में मुश्किलों से घिरी हुई है। केंद्र सरकार ने कंपनी और उसके अधिकारियों को 150 करोड़ रुपये यानी करीब 601 मिलियन डॉलर का tax डिमांड नोटिस भेजा है। सरकार का आरोप है कि सैमसंग ने टेलीकॉम इक्विपमेंट्स के Import पर टैरिफ बचाने के लिए गलत तरीके अपनाए। यानी कंपनी ने ऐसे रास्ते निकाले जिनसे वह सरकारी tax से बच सके। अब कंपनी के पास दो रास्ते हैं — या तो टैक्स ट्रिब्यूनल में जाए या कोर्ट का दरवाजा खटखटाए।
वैसे सैमसंग की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं होतीं। एक तरफ तो कंपनी AI बूम यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उभार का फायदा उठाने में असफल रही, दूसरी तरफ मोबाइल मार्केट में भी उसका दबदबा घटता जा रहा है। ऐसे में भारत सरकार से यह tax dispute उसके लिए एक और बड़ा झटका है। अगर इस टैक्स नोटिस की रकम को देखें तो यह सैमसंग के भारत में 2023 में हुए 8,183 करोड़ रुपए के नेट प्रॉफिट का एक बड़ा हिस्सा है। इस विवाद ने कंपनी की छवि पर भी असर डाला है और Investors में चिंता बढ़ाई है।
मगर सैमसंग अकेली ऐसी कंपनी नहीं है जो भारत में Tax disputes में फंसी हो। जर्मन ऑटो कंपनी Volkswagen को भी भारत सरकार की ओर से एक रिकॉर्ड 1.4 अरब डॉलर का टैक्स डिमांड नोटिस भेजा गया था। कंपनी पर आरोप है कि उसने हायर tax से बचने के लिए अपने 14 कार मॉडलों के पार्ट्स को अलग-अलग शिपमेंट्स में मंगवाया ताकि टैक्स कम लगे।
इस मामले में कंपनी ने अदालत का रुख किया और फरवरी 2025 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कस्टम विभाग से हलफनामा दायर करने को कहा। सरकार ने साफ कहा कि यदि tax माफ किया गया, तो यह एक खतरनाक उदाहरण बन जाएगा, जिससे अन्य कंपनियाँ भी डेटा छिपाने और जांच में देरी करने के लिए प्रेरित होंगी।
इसी कड़ी में दक्षिण कोरिया की एक और प्रमुख कंपनी Kia का नाम भी जुड़ता है। Kia को फरवरी 2025 में 155 मिलियन डॉलर का tax डिमांड नोटिस मिला। आरोप है कि कंपनी ने जिन कंपोनेंट्स को भारत में Import किया, उनके विवरण में गड़बड़ी की गई और tax कम दिया गया। हालांकि, Kia ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा कि उसने सभी जानकारियाँ अधिकारियों को दी हैं और कोई नियम उल्लंघन नहीं किया गया है।
अब अगर हम बात करें Vodafone की, तो यह tax dispute सबसे चर्चित मामलों में से एक रहा है। साल 2007 में जब वोडाफोन ने 11 अरब डॉलर में Hutchison Whampoa की भारतीय संपत्तियाँ खरीदीं, तब भारत सरकार ने कंपनी को 2 अरब डॉलर से अधिक का tax नोटिस भेजा। यह मामला कई सालों तक अदालतों में चला और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने फैसला वोडाफोन के पक्ष में सुनाया। यह केस इतना बड़ा था कि इसने भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि और tax कानूनों की पारदर्शिता को लेकर भी सवाल खड़े कर दिए।
इसी तरह का एक और बड़ा केस था Cairn Energy का। यह ब्रिटिश कंपनी 2007 में अपने आंतरिक पुनर्गठन के दौरान भारत में टैक्स के जाल में फँस गई। उस समय कंपनी को 1.4 अरब डॉलर का tax नोटिस मिला क्योंकि सरकार का मानना था कि, कंपनी ने शेयर ट्रांसफर के जरिए टैक्स से बचने की कोशिश की। 2011 में केयर्न एनर्जी ने वेदांता लिमिटेड को अपनी हिस्सेदारी बेच दी थी, और 2022 में जाकर सरकार और कंपनी के बीच यह विवाद सुलझ गया।
अब आते हैं फ्रांस की फेमस लिकर ब्रांड कंपनी पेरनोड रिकार्ड पर, जो भारत में वोडका और शिवास रीगल जैसे ब्रांड्स बेचती है। 2022 में भारत सरकार ने कंपनी को 24 करोड़ डॉलर का tax डिमांड नोटिस दिया था। आरोप था कि कंपनी एक दशक से Imported वस्तुओं का मूल्यांकन जानबूझकर कम करके tax बचा रही थी। कंपनी ने अदालत में तर्क दिया कि सरकार ने जो डेटा इस्तेमाल किया है, वह गलत था और इंडस्ट्री से मिली गलत जानकारियों पर आधारित है। मामला अब भी कोर्ट में लंबित है।

और अब बात करते हैं चीन की दिग्गज इलेक्ट्रिक व्हीकल कंपनी BYD (Build Your Dreams) की। करीब दो साल पहले DRI यानी डायरेक्टोरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस ने खुलासा किया था कि BYD ने जो पार्ट्स भारत में मंगवाए थे, उन पर उसने 74 करोड़ रुपए का कम टैक्स अदा किया। कंपनी पर आरोप था कि वो पार्ट्स को असेंबल कर भारत में बेच रही थी लेकिन tax उस हिसाब से नहीं दिया गया। जब जांच शुरू हुई तो कंपनी ने बाकी बचा टैक्स चुका दिया, लेकिन उस पर अतिरिक्त चार्ज और जुर्माना भी लगाया गया और मामला जांच में ही रहा।
तो अब सवाल उठता है कि आखिर इन विवादों की जड़ में क्या है? क्या भारत का tax सिस्टम बहुत सख्त है या फिर विदेशी कंपनियाँ भारत को टैक्स बचाने का आसान टारगेट समझती हैं? दरअसल, सच्चाई दोनों के बीच है। भारत में tax कानून जटिल हैं और कस्टम, इनकम टैक्स और जीएसटी के नियम तेजी से बदलते रहते हैं। दूसरी तरफ, कई कंपनियाँ loopholes यानी नियमों की कमजोरियों का फायदा उठाकर टैक्स से बचना चाहती हैं। जब सरकार इन पर सख्ती करती है, तो मामला अदालत तक पहुँच जाता है।
भारत सरकार के लिए यह विवाद दोधारी तलवार की तरह हैं। एक तरफ सरकार foreign investment को बढ़ावा देना चाहती है, दूसरी तरफ वह टैक्स में transparency भी बनाए रखना चाहती है। अगर सरकार ढील देती है, तो अन्य कंपनियाँ भी tax चोरी को सामान्य मान लेंगी। वहीं अगर ज्यादा सख्ती दिखाई जाती है, तो Investors के मन में डर बैठ सकता है कि भारत में व्यापार करना जोखिम भरा है।
ऐसे विवादों से एक और बात सामने आती है — भारत अब पहले जैसा नहीं रहा, जहाँ टैक्स चोरी को नजरअंदाज किया जाता था। अब सरकार हर स्तर पर data analytics, AI surveillance और audit systems का इस्तेमाल कर रही है, जिससे किसी भी टैक्स गड़बड़ी को जल्दी पकड़ा जा सके। कंपनियाँ अगर सोचती हैं कि वे पुराने तौर-तरीकों से टैक्स बचा सकती हैं, तो ये अब मुश्किल होता जा रहा है।
इस बीच, विदेशी कंपनियों के लिए भारत एक बड़ा बाजार है, लेकिन इसके साथ ही उन्हें भारत के कानूनों का भी सम्मान करना होगा। क्योंकि यह देश अब सिर्फ व्यापार का मैदान नहीं, बल्कि नियमों और जवाबदेही का अखाड़ा भी बन चुका है। चाहे वह सैमसंग हो, वोडाफोन हो या फिर फॉक्सवैगन — सबको यह समझना होगा कि भारत में मुनाफा कमाने से पहले, यहाँ के टैक्स सिस्टम को समझना और उसका पालन करना जरूरी है।
और यही वजह है कि आने वाले वक्त में टैक्स को लेकर पारदर्शिता और compliance सबसे बड़ी कसौटी बनेंगी। जो कंपनियाँ इसे समझेंगी, वही भारत में टिक पाएंगी। वरना टैक्स नोटिस और कोर्ट केस उनकी ब्रांड वैल्यू को नुकसान पहुंचाते रहेंगे। इसलिए ये सिर्फ सरकार बनाम कंपनियों की लड़ाई नहीं, बल्कि भारत की आर्थिक व्यवस्था बनाम टैक्स जाल में फँसी कारोबारी रणनीतियों की टक्कर है।
Conclusion
अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”