Trans Cargo: भारत की स्मार्ट चाल! बांग्लादेश को झटका, लेकिन ट्रेड में नया गेमचेंजर साबित हो सकता है ये फैसला I 2025

एक रात अचानक कुछ ऐसा हुआ जिसने दक्षिण एशिया के व्यापारिक नक्शे को हिला कर रख दिया। बंद कमरों में लिए गए एक फैसले ने बांग्लादेश की सप्लाई चेन पर ब्रेक लगा दिया और भारत के एक्सपोर्टर्स की सालों पुरानी मांग पर मुहर लग गई। किसी को भनक तक नहीं लगी और भारत सरकार ने एक झटके में बांग्लादेश को दी गई Trans Cargo फैसिलिटी रद्द कर दी। लेकिन सवाल ये है कि ये कदम अचानक क्यों उठाया गया? क्या इसके पीछे सिर्फ आर्थिक कारण थे या कुछ और? क्या ये भारत की रणनीतिक चाल है या फिर बांग्लादेश की किसी भूल की सज़ा? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

भारत सरकार का यह फैसला सिर्फ एक प्रशासनिक निर्णय नहीं है, यह एक बड़ा कूटनीतिक संदेश है। 8 अप्रैल 2025 को CBIC यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्सेस एंड कस्टम्स द्वारा जारी, एक सर्कुलर के जरिए इस ट्रांस-शिपमेंट फैसिलिटी को तत्काल प्रभाव से रद्द कर दिया गया। गौरतलब है कि ये सुविधा बांग्लादेश को 29 जून 2020 से मिल रही थी, जिसके तहत वह भारत के रास्ते नेपाल, भूटान और म्यांमार जैसे देशों को अपना माल पहुंचाता था।

यह कदम ऐसे समय पर आया है जब भारत लगातार बांग्लादेश के रवैये को लेकर असंतुष्ट रहा है। खासकर भारत विरोधी बयानों, गतिविधियों और सांप्रदायिक घटनाओं को देखते हुए इस फैसले को रणनीतिक कदम माना जा रहा है। हालांकि, जो कार्गो पहले से भारत में दाखिल हो चुका है, उसे पुरानी व्यवस्था के तहत बाहर जाने दिया जाएगा। लेकिन नया माल अब भारत के रास्ते आगे नहीं जा सकेगा।

ट्रांस-शिपमेंट फैसिलिटी का मतलब होता है – एक देश के रास्ते किसी अन्य देश तक सामान पहुंचाना। बांग्लादेश इसी सुविधा का फायदा उठाकर भारत के एयरपोर्ट्स और पोर्ट्स से माल ट्रांसफर करता था, लेकिन अब उसे यह सहूलियत नहीं मिलेगी। इसका असर न सिर्फ बांग्लादेश की लॉजिस्टिक्स रणनीति पर पड़ेगा, बल्कि उसकी विदेश नीति और आर्थिक स्थिरता पर भी सवाल खड़े करेगा।

इस फैसले से सबसे ज्यादा राहत भारतीय एक्सपोर्टर्स को मिली है। दरअसल, कई सालों से भारत के Exporters, especially garments और टेक्सटाइल इंडस्ट्री, इस ट्रांस-शिपमेंट फैसिलिटी को खत्म करने की मांग कर रहे थे। AEPC यानी Apparel Export Promotion Council के चेयरमैन, सुधीर सेखरी ने बताया कि हर दिन 20 से 30 ट्रक दिल्ली एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स पहुंचते हैं, जो बांग्लादेश के होते हैं। इससे एयरलाइनों पर दबाव बढ़ता है और भारतीय कार्गो की गति धीमी हो जाती है।

जब कार्गो की गति धीमी होती है, तो फ्रेट रेट यानी माल भेजने का खर्च भी बढ़ जाता है। इससे भारतीय एक्सपोर्टर्स की लागत बढ़ जाती है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय बाजार में मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है। लेकिन अब, जब बांग्लादेश को यह सुविधा नहीं मिलेगी, तो एयर स्पेस और पोर्ट्स पर भारतीय माल को प्राथमिकता मिलेगी। इससे भारतीय Exporter Global बाजार में और अधिक Competitive हो सकेंगे।

FIEO यानी फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस के महानिदेशक, अजय सहाई ने इस फैसले का स्वागत किया और कहा कि अब भारतीय कार्गो के लिए एयर स्पेस खुला रहेगा। पहले यह ट्रांजिट माल से भरा रहता था। इस फैसले से न सिर्फ स्पेस मिलेगा, बल्कि शेड्यूलिंग और टाइमिंग भी बेहतर हो जाएगी, जिससे डिलीवरी फास्ट और सस्ती हो पाएगी।

भारत और बांग्लादेश दोनों ही टेक्सटाइल के क्षेत्र में बड़े खिलाड़ी हैं। लेकिन जब बांग्लादेश को भारत की जमीन और सुविधाओं का फ्री इस्तेमाल मिलता था, तो वह भारत के एक्सपोर्टर्स से आगे निकलने लगा था। अब जब ये सुविधा खत्म हो गई है, तो भारतीय कंपनियों को सीधे फायदा मिलेगा। AEPC के महासचिव मिथिलेश्वर ठाकुर ने कहा कि लॉजिस्टिक कॉस्ट कम होगी और Competition में भारतीय Exporter मजबूत होंगे।

भारत सरकार का यह कदम केवल आर्थिक नहीं है, इसके पीछे गहरी रणनीति भी छिपी है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि, इस फैसले का असर बांग्लादेश के थर्ड कंट्री लॉजिस्टिक्स पर पड़ेगा। अब बांग्लादेश को ऐसे वैकल्पिक रूट्स तलाशने होंगे जो या तो महंगे हैं या जटिल। इससे उसकी सप्लाई चेन में देरी और लागत दोनों बढ़ेगी।

बांग्लादेश के लिए ये फैसला सिर्फ एक लॉजिस्टिक समस्या नहीं है, यह कूटनीतिक स्तर पर भी बड़ा झटका है। नेपाल और भूटान जैसे लैंडलॉक देशों तक बांग्लादेश का व्यापार अब बाधित हो सकता है। ये देश भारत के जरिए ही बांग्लादेश से जुड़ते थे। अब जब भारत ने ट्रांजिट सुविधा हटा ली है, तो इन देशों के साथ बांग्लादेश का व्यापारिक समीकरण बदल जाएगा।

एक और अहम पहलू यह है कि भारत के नॉर्थ-ईस्ट में मौजूद “चिकन नेक” यानी सिलीगुड़ी कॉरिडोर को लेकर भी रणनीतिक चिंताएं हैं। यह इलाका बेहद संवेदनशील है, और हाल के वर्षों में यहां चीन की बढ़ती गतिविधियों और बांग्लादेश की रणनीति को लेकर भारत चिंतित रहा है। यह फैसला कहीं न कहीं उस भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि से भी जुड़ा है।

भारत और बांग्लादेश के बीच कभी व्यापारिक रिश्ते बहुत मजबूत थे। भारत ने बांग्लादेश को एकतरफा टैक्स-फ्री बाजार पहुंच दी थी, जिसमें शराब और सिगरेट छोड़कर बाकी सभी वस्तुएं शामिल थीं। लेकिन हाल के महीनों में स्थिति बदल गई। बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले और भारत विरोधी गतिविधियों ने रिश्तों में खटास घोल दी।

2024 में भारत और बांग्लादेश का द्विपक्षीय व्यापार 13 अरब डॉलर का रहा, लेकिन इस रिश्ते में पहले जैसी गर्मजोशी नहीं रही। बांग्लादेश का झुकाव चीन की ओर बढ़ता दिख रहा है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। ऐसे में यह फैसला न केवल बांग्लादेश को आर्थिक संदेश देता है, बल्कि भू-राजनीतिक चेतावनी भी।

भारत का यह कदम उस दिशा में भी इशारा करता है, जहां वह अपने पड़ोसियों से ‘बराबरी’ और ‘पारस्परिक लाभ’ की नीति चाहता है। एकतरफा फायदा उठाने वाले रिश्ते अब भारत को मंजूर नहीं हैं। खासकर तब, जब दूसरा देश भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर या क्षेत्रीय राजनीति में नकारात्मक भूमिका निभाता हो।

इस फैसले से भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” को भी मजबूती मिलेगी। अब भारत अपने नॉर्थ-ईस्ट राज्यों को सीधे इंटरनेशनल मार्केट से जोड़ने के लिए नए रूट्स और लॉजिस्टिक हब्स पर फोकस कर सकेगा। इससे मणिपुर, त्रिपुरा, असम जैसे राज्यों के विकास को भी गति मिलेगी।

ट्रांस-शिपमेंट फैसिलिटी हटाना दिखाता है कि भारत अब अपनी आर्थिक और रणनीतिक ताकत को लेकर अधिक assertive हो रहा है। यह एक बड़ा संदेश है उन देशों के लिए जो भारत की उदारता को कमजोरी समझते हैं। भारत ने दिखा दिया है कि वह जरूरत पड़ने पर कड़े फैसले लेने में नहीं हिचकता।

जहां एक तरफ भारतीय exporters में इस फैसले को लेकर खुशी की लहर है, वहीं बांग्लादेश की लॉजिस्टिक्स इंडस्ट्री में चिंता गहराती जा रही है। ट्रांसपोर्ट, एयर कार्गो, पोर्ट सर्विसेज और कस्टम क्लियरेंस जैसी सेवाएं सीधे तौर पर प्रभावित होंगी। इससे बांग्लादेश की GDP पर भी प्रभाव पड़ सकता है, खासकर Export पर निर्भर सेक्टर्स में।

भविष्य में यह फैसला बांग्लादेश को नई रणनीति बनाने के लिए मजबूर करेगा। उसे वैकल्पिक मार्गों जैसे समुद्री रूट्स, या फिर चीन के सहयोग से दक्षिण-पूर्व एशिया के माध्यम से कनेक्टिविटी बढ़ानी होगी। लेकिन यह विकल्प महंगे और जटिल हैं, जो बांग्लादेश की लॉजिस्टिक लागत को बढ़ा देंगे।

कुल मिलाकर, भारत का यह कदम केवल एक नीति परिवर्तन नहीं है, यह एक कड़ा संदेश है – आर्थिक, कूटनीतिक और रणनीतिक तीनों स्तरों पर। इससे भारत को अपने एक्सपोर्टर्स को राहत देने का मौका मिला, वहीं बांग्लादेश को अपनी नीतियों की समीक्षा करने की चेतावनी भी।

Conclusion

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