Site icon

Powerful: Transit Facility भारत का मास्टरस्ट्रोक! बांग्लादेश को झटका लेकिन भारत को मिल सकता है बड़ा फायदा I 2025

Transit facility

क्या आपने कभी सोचा है कि एक साधारण सा सरकारी सर्कुलर भी किसी देश की अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और कूटनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से बदल सकता है? कुछ ऐसा ही हुआ जब भारत सरकार ने एक अप्रत्याशित लेकिन निर्णायक कदम उठाते हुए बांग्लादेश को दी गई ‘Transit facility‘ को खत्म कर दिया। यह निर्णय न केवल व्यापारिक धारा को मोड़ने वाला था, बल्कि इसके पीछे छिपे गहरे संदेशों ने Regional politics को भी झकझोर दिया।

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया जब regional tension और Global व्यापार युद्ध जैसी परिस्थितियां पहले से ही वातावरण को तनावपूर्ण बनाए हुए थीं। सवाल यह नहीं कि यह फैसला क्यों लिया गया, बल्कि अब चर्चा इस बात की है कि इसके प्रभाव कितने दूरगामी और निर्णायक होंगे। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

यह Transit facility वास्तव में एक ऐसी सहूलियत थी जिसमें बांग्लादेश भारत के बंदरगाहों, हवाई अड्डों और सीमा शुल्क स्टेशनों का उपयोग करके अपने माल को तीसरे देशों जैसे कि भूटान, नेपाल और म्यांमार तक पहुंचाता था। यह व्यवस्था जून 2020 में उस समय शुरू हुई थी जब कोविड महामारी के कारण पूरी दुनिया ठहर सी गई थी, और सभी देश एक-दूसरे की मदद करने के लिए आगे आ रहे थे।

भारत ने इस सुविधा को Regional harmony और सहयोग के उद्देश्य से लागू किया था, लेकिन चार वर्षों के भीतर इस नीति को पलटते हुए भारत सरकार ने इसे रद्द कर दिया। 8 अप्रैल 2025 को CBIC द्वारा जारी सर्कुलर ने स्पष्ट कर दिया कि अब इस सुविधा का कोई स्थान नहीं रह गया है।

CBIC के इस नए सर्कुलर के अनुसार, 29 जून 2020 को जारी की गई पुरानी व्यवस्था को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया है। हालांकि, भारत की सीमा में पहले से प्रवेश कर चुके माल को पुरानी प्रक्रिया के अनुसार बाहर जाने की अनुमति दी जाएगी, जिससे व्यापार में किसी भी प्रकार की अफरा-तफरी न हो। लेकिन इसके साथ ही यह संदेश भी स्पष्ट हो गया कि अब भारत अपनी सीमाओं का उपयोग बिना रणनीतिक संतुलन के नहीं करने देगा। यह निर्णय इस बात का भी प्रतीक है कि भारत अब केवल ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के सिद्धांत पर नहीं, बल्कि पारस्परिक सम्मान और रणनीतिक मजबूती के आधार पर नीति निर्धारण कर रहा है।

इस बदलाव के पीछे वर्षों पुराना दबाव भी काम कर रहा था जो भारतीय exporters, especially apparel क्षेत्र से जुड़े उद्यमियों की ओर से लगातार सामने आ रहा था। AEPC के अध्यक्ष सुधीर सेखरी की मानें तो हर दिन 20 से 30 ट्रक दिल्ली एयर कार्गो कॉम्प्लेक्स पहुंचते थे, जिनमें बांग्लादेश का माल होता था। इससे न केवल भारी भीड़ और अव्यवस्था होती थी, बल्कि भारतीय exporters के माल की प्रोसेसिंग में देरी और हवाई किराए में अनावश्यक वृद्धि होती थी। उनके मुताबिक, विदेशी कंपनियों के मुकाबले भारतीय व्यापारियों की स्थिति कमजोर पड़ रही थी, और उन्हें Global competition में नुकसान उठाना पड़ता था।

इसी संदर्भ में FIEO के महानिदेशक अजय सहाय ने भी चिंता व्यक्त की थी कि बांग्लादेश को दी जा रही सुविधा के चलते, भारत के एयर कार्गो टर्मिनलों पर जगह की कमी हो गई थी। यह सीधी सी बात थी – जब एयरलाइनों को भारी मात्रा में ट्रांजिट माल प्रोसेस करना पड़ता है, तो वे भारतीय एक्सपोर्टर्स को प्राथमिकता नहीं दे पाते। अब इस फैसले के बाद, एयर स्पेस की उपलब्धता बढ़ेगी और भारतीय माल को तेजी से भेजा जा सकेगा। यह न केवल लॉजिस्टिक लागत को घटाएगा, बल्कि डिलीवरी समय को भी बेहतर बनाएगा, जिससे भारत की Global स्थिति मजबूत होगी।

दिल्ली के IGI एयरपोर्ट पर बने कार्गो टर्मिनल की स्थिति पहले ही तनावपूर्ण थी। वहां पहले से मौजूद बांग्लादेशी माल के ट्रकों के चलते भारतीय माल की आवाजाही में बड़ी बाधा उत्पन्न होती थी। इससे न सिर्फ देरी होती थी, बल्कि Export की विश्वसनीयता पर भी असर पड़ता था। Global customer समय की पाबंदी को प्राथमिकता देते हैं और जब भारत समय पर डिलीवरी नहीं कर पाता, तो यह उसके अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है। अब बांग्लादेश की ट्रांजिट सुविधा खत्म होने के बाद भारतीय व्यापारियों को उनकी मेहनत का वास्तविक फल मिलने की उम्मीद बढ़ गई है।

GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने इस फैसले को बांग्लादेश के लॉजिस्टिक नेटवर्क के लिए एक बड़ा झटका बताया है। उनके अनुसार, भारत के जरिए व्यापार करने से बांग्लादेश को समय और लागत दोनों में लाभ मिलता था। भारत के सुव्यवस्थित इन्फ्रास्ट्रक्चर का लाभ उठाकर वह अपने Export को प्रभावशाली तरीके से मैनेज कर पाता था। लेकिन अब इस सुविधा के हटने से बांग्लादेश को देरी, लागत में वृद्धि और अनिश्चितता का सामना करना पड़ेगा, जिससे उसका व्यापारिक आत्मविश्वास भी डगमगा सकता है।

इस फैसले का असर केवल भारत और बांग्लादेश तक सीमित नहीं है। नेपाल और भूटान जैसे लैंडलॉक देश जो बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंध बनाए हुए थे, वे भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। क्योंकि अब बांग्लादेश की इन देशों तक सीधी पहुंच नहीं रह जाएगी, जिससे लॉजिस्टिक चेन बाधित होगी और संभवतः उनके बीच व्यापार कम हो सकता है। इससे इन देशों की बांग्लादेश पर निर्भरता घटेगी और भारत अपनी Regionally dominant भूमिका को और मजबूत कर पाएगा।

यही नहीं, इस फैसले के समय पर नजर डालें तो यह और भी दिलचस्प हो जाता है। हाल ही में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस ने चीन यात्रा के दौरान एक विवादास्पद बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि पूर्वोत्तर भारत एक ‘लैंडलॉक’ क्षेत्र है और बांग्लादेश इस क्षेत्र के लिए ‘समुद्री जीवनरेखा’ की तरह है। उन्होंने यह भी कहा था कि यह क्षेत्र चीन की अर्थव्यवस्था का हिस्सा बन सकता है। यह बयान न सिर्फ भारत की Territorial integrity पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि चीन के प्रभाव को भी बढ़ावा देता है, जो भारत के लिए गंभीर रणनीतिक चिंता का विषय है।

यह बात भी कम दिलचस्प नहीं है कि यूनुस के बयान के तुरंत बाद CBIC का सर्कुलर जारी होता है। यह दर्शाता है कि भारत अब सिर्फ सुनने और सहने वाली नीति से आगे बढ़ चुका है। अब जब भी कोई देश भारत की संप्रभुता या रणनीतिक हितों को चुनौती देगा, तो उसे उसका जवाब मिलेगा—चाहे वह व्यापार हो, नीति हो या कूटनीति। यह भारत की नई आक्रामक कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जो अब मौन नहीं रहना चाहती।

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने यूनुस के बयान को ‘अपमानजनक’ बताया और भारत के ‘चिकन नेक’ क्षेत्र की संवेदनशीलता को रेखांकित किया। उन्होंने पूर्वोत्तर को देश के अन्य हिस्सों से बेहतर ढंग से जोड़ने के लिए वैकल्पिक मार्गों के निर्माण की आवश्यकता पर जोर दिया। यह बयान यह दर्शाता है कि भारत अब न केवल कूटनीतिक बल्कि इन्फ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर भी आत्मनिर्भर और मजबूत बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।

पूर्वोत्तर भारत के राज्य—असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा और सिक्किम—बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, नेपाल और चीन के साथ हजारों किलोमीटर लंबी सीमाएं साझा करते हैं। इन सीमाओं की संवेदनशीलता और रणनीतिक महत्व को देखते हुए भारत के लिए यह जरूरी हो गया है कि वह अपने हर कदम को, सोच-समझ कर उठाए और किसी भी देश की आक्रामकता का जवाब स्पष्ट शब्दों में दे।

इस फैसले से बांग्लादेश के लिए अब लॉजिस्टिक चुनौतियां बढ़ जाएंगी। या तो वह समुद्री मार्ग का सहारा लेगा, जो महंगा और जटिल है, या फिर चीन के जरिए व्यापार करेगा, जो भारत के लिए एक और रणनीतिक चिंता का विषय होगा। दोनों ही विकल्प बांग्लादेश को उसकी वर्तमान स्थिति से कमजोर बना सकते हैं और भारत को Territorial dominance स्थापित करने का अवसर देंगे।

Conclusion

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love
Exit mobile version