कल्पना कीजिए, आपका बच्चा स्कूल से घर आता है और पूछता है – “मम्मी, म्यूचुअल फंड्स में SIP क्या होता है?” या फिर कहे – “पापा, मैं अपनी पॉकेट मनी से एक स्टार्टअप आइडिया पर काम करना चाहता हूं!” सुनकर पहले तो आपके होश उड़ जाएंगे, फिर आपकी आंखों में चमक आ जाएगी – क्योंकि आपको समझ में आ गया कि अब आपका बच्चा सिर्फ नंबरों के लिए नहीं, बल्कि जिंदगी के असली खेल के लिए तैयार हो रहा है – पैसा बनाने और उसे संभालने का खेल। लेकिन सवाल ये है कि ऐसा होगा कैसे? जवाब है – वॉरेन बफे का मंत्र।
Warren Buffett, एक ऐसा नाम जिसे दुनिया का सबसे बड़ा Investor माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में न तो किसी टेक कंपनी की शुरुआत की, न ही कोई स्टार्टअप बेचा, फिर भी आज उनकी नेटवर्थ अरबों में है। कारण? उन्होंने पैसा कमाना नहीं, पैसा बनाना सीखा – और वो भी बचपन से।
उनकी सोच है – “The best investment you can make is in yourself.” और यही सोच अगर आपने अपने बच्चे में डाल दी, तो समझिए आपने उसे दुनिया की सबसे कीमती संपत्ति दे दी। इस वीडियो में हम आपको बताने जा रहे हैं वॉरेन बफे के पाँच ऐसे फाइनेंशियल मंत्र, जो अगर बच्चों को सही समय पर सिखा दिए जाएं, तो वो भविष्य में पैसों के पीछे नहीं भागेंगे, पैसा खुद उनके पीछे भागेगा।
सबसे पहले बात करते हैं उस मूल मंत्र की जो बाकी चार सिद्धांतों की नींव है – जल्दी से जल्दी फाइनेंशियल शिक्षा की शुरुआत करें।
आपने देखा होगा, हम बच्चों को स्कूल भेजते हैं ताकि वो पढ़ना-लिखना सीखें, लेकिन जीवन में पढ़ाई से ज़्यादा जरूरी है – समझदारी। और ये समझदारी तब आती है जब वो समझें कि पैसे का मूल्य क्या है। वॉरेन बफे खुद इस बात पर ज़ोर देते हैं कि बच्चे जितनी जल्दी पैसों के संपर्क में आएं, उतना अच्छा।
उन्हें बताइए कि हर बार जब आप कोई सामान खरीदते हैं, तो आप सिर्फ नोट खर्च नहीं कर रहे, आप अपना समय, ऊर्जा और परिश्रम खर्च कर रहे हैं। ये बातें जितनी जल्दी बच्चे समझेंगे, उतनी जल्दी वो खर्च से पहले सोचेंगे और कम उम्र में ही समझदारी दिखाने लगेंगे।
उदाहरण के लिए, जब भी आप उन्हें कोई टॉय देने जाएं, तो उनसे पूछिए – “क्या ये चीज़ जरूरी है?” धीरे-धीरे वे खुद सोचने लगेंगे कि कब उन्हें वाकई किसी चीज़ की जरूरत है और कब सिर्फ मन ललचाया है। यही सोच एक बच्चे को भविष्य में करोड़ों का मालिक बनाती है।
अब बढ़ते हैं दूसरे मंत्र की ओर – छोटी-छोटी बचत का महत्व समझाएं।
आप सोचिए, एक बच्चा रोज़ अपनी पॉकेट मनी से 5 रुपए बचा रहा है। साल भर में वह 1,800 रुपए बचा लेता है। अगर आप उस पैसे को किसी छोटे फिक्स्ड डिपॉजिट या SIP में डाल दें, तो क्या होगा? वो सीख जाएगा कि कैसे पैसों से पैसे बनाए जाते हैं।
बच्चों को ये आदत डालिए कि जब भी उन्हें पैसे मिलें – चाहे जन्मदिन पर, त्योहारों पर, या पॉकेट मनी के रूप में – तो वे उसका कुछ हिस्सा अपने भविष्य के लिए रखें। इस तरह से वे जान पाएंगे कि पैसा सिर्फ खर्च करने की चीज़ नहीं है, वो एक ताकत है – जिसे समझदारी से इस्तेमाल किया जाए तो जिंदगी बदल सकती है।
आप एक खेल बना सकते हैं – ‘गुल्लक चैलेंज’ – जिसमें बच्चा हर दिन कुछ न कुछ पैसे गुल्लक में डाले और महीने के अंत में खुद ही गिनकर देखे कि उसने कितनी रकम इकट्ठी की। इससे उसके मन में बचत की खुशी और आत्मविश्वास दोनों पैदा होंगे।
तीसरा मंत्र है – ज़रूरत और शौक में फर्क समझाना।
आज के समय में जब हर तरफ उपभोक्तावाद हावी है – बच्चे टीवी पर, यूट्यूब पर, इंस्टाग्राम पर हर वक्त कोई न कोई नया प्रोडक्ट देखते हैं। उन्हें लगता है कि उनके पास भी वही खिलौने, वही कपड़े, वही गैजेट्स होने चाहिए। लेकिन यही वो मोड़ है जहां पर पेरेंट्स की भूमिका सबसे अहम होती है।
उन्हें सिखाइए कि ज़रूरतें हमेशा प्राथमिक होती हैं – जैसे पढ़ाई, खाना, स्वास्थ्य। वहीं शौक की चीज़ें – जैसे ब्रांडेड जूते, गेमिंग डिवाइसेज या महंगे खिलौने – इंतज़ार कर सकती हैं। एक तरीका यह हो सकता है कि जब बच्चा कोई महंगी चीज़ मांगे, तो उससे कहिए – “इस चीज़ की ज़रूरत है या बस दिल कर रहा है?” ये सवाल उसका नजरिया बदल देगा।
वॉरेन बफे आज भी एक साधारण घर में रहते हैं, खुद गाड़ी चलाते हैं और ज़रूरत से ज़्यादा खर्च नहीं करते। उनका कहना है – “Don’t go broke trying to look rich.” यही बात हम भी अपने बच्चों को सिखा सकते हैं।
चौथा मंत्र है – सेल्फ स्टडी और रिसर्च की आदत डालें।
बच्चों को सिर्फ स्कूल की किताबें पढ़ने तक सीमित मत रखिए। उन्हें ऐसी किताबें दीजिए जो उन्हें पैसे, Investment और सफलता की कहानियों से परिचित कराएं। बहुत सी हिंदी और अंग्रेज़ी में किताबें हैं जो सरल भाषा में बच्चों को Investment और फाइनेंस सिखाती हैं – जैसे ‘Rich Dad Poor Dad for Teens’ या ‘The Richest Man in Babylon’।
इसके अलावा, बच्चों को न्यूज पढ़ने की आदत डालिए – खासकर बिजनेस से जुड़ी खबरें। जब वे छोटे-छोटे टर्म्स जैसे “बैंक”, “ब्याज”, “Investment”, “शेयर” जैसे शब्दों से परिचित होंगे, तो उनका दिमाग धीरे-धीरे Investment की दुनिया को समझने लगेगा।
आप चाहें तो उन्हें एक फेक पोर्टफोलियो बनाने को कह सकते हैं – यानी वो तय करें कि अगर उनके पास 1,000 रुपए होते, तो वो किस कंपनी में लगाते। फिर वो देख सकते हैं कि उस कंपनी के शेयर की वैल्यू कैसे बढ़ी या गिरी। इससे उनका विश्लेषण करने का तरीका विकसित होगा।
और अब अंतिम और सबसे शक्तिशाली मंत्र – बच्चों को कारोबारी सोच सिखाइए।
वॉरेन बफे ने 6 साल की उम्र में कोकाकोला की बोतलें बेचकर मुनाफा कमाना शुरू किया था। क्या आज का बच्चा ये नहीं कर सकता? बिल्कुल कर सकता है – बस जरूरत है थोड़ी सी प्रेरणा और थोड़ी सी आज़ादी की।
उन्हें कहिए कि वो कोई छोटा-सा प्रोडक्ट बनाए – जैसे हस्तनिर्मित कार्ड्स, ब्रैसलेट्स, बुकमार्क्स – और उन्हें दोस्तों या रिश्तेदारों को बेचें। इससे वे सीखेंगे कि ग्राहक से कैसे बात की जाती है, मुनाफा कैसे कमाया जाता है और रिस्क कैसे लिया जाता है।
अगर स्कूल में एंटरप्रेन्योरशिप से जुड़ा कोई प्रोजेक्ट है, तो बच्चे को उसमें हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें। उसे बिजनेस प्लान बनाने, बजट तय करने और मार्केटिंग करने की जिम्मेदारी दें। इससे उसमें नेतृत्व और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होगी।
इन पाँच मंत्रों के अलावा कुछ और बातें हैं जो वॉरेन बफे के जीवन से सीखी जा सकती हैं – जैसे धैर्य, संयम, और लॉन्ग टर्म सोच। वे कभी शॉर्टकट में विश्वास नहीं करते। उनका मानना है कि “Time is the friend of the wonderful business, the enemy of the mediocre.”
अगर आप अपने बच्चे को बचपन से ही लॉन्ग टर्म विज़न देना शुरू कर देंगे, तो वो सिर्फ पैसे के पीछे नहीं भागेगा – वो पैसों को अपने पास खींचेगा।
इसका नतीजा? जब वो बड़ा होगा, तो नौकरी के पीछे नहीं भागेगा – वो खुद एक जॉब क्रिएटर बनेगा। वो समझेगा कि पैसा कैसे काम करता है, कैसे बढ़ता है और कैसे संभालना चाहिए।
और आखिर में, ये याद रखिए – बच्चे किताबों से नहीं, उदाहरणों से सीखते हैं। अगर आप खुद पैसे को लेकर सतर्क हैं, Investment करते हैं, खर्च से पहले सोचते हैं – तो बच्चा वही देखेगा, वही सीखेगा।
तो आइए, आज से ही वॉरेन बफे के इन पाँच मंत्रों को अपने बच्चों की जिंदगी का हिस्सा बनाइए – और कल जब वो अपने पहले करोड़ की खुशी मनाएं, तो वो कह सकें – “ये सिर्फ मेरी मेहनत का नहीं, मम्मी-पापा की सोच का भी कमाल है।”
Conclusion
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