क्या आपने कभी सोचा है कि जब एक बड़ा देश किसी छोटे या उभरते राष्ट्र पर अपनी शर्तें थोपने लगे, तो उसका जवाब कैसे दिया जाना चाहिए? क्या चुप रहकर या खुलकर चुनौती देकर? भारत ने अब अमेरिका के खिलाफ जो कदम उठाया है, वो न केवल इतिहास में दर्ज किया जाएगा, बल्कि यह भी दिखा देगा कि भारत अब न तो दबाव में आता है और न ही बंदूक की नोंक पर समझौता करता है। इस बार अमेरिका की टैरिफ नीति को लेकर भारत सीधे WTO पहुंच गया है और इसके पीछे जो रणनीति है, वो अमेरिका के लिए एक स्पष्ट संदेश है—भारत अब खामोश नहीं रहेगा।
साल 2018 में जब अमेरिका ने इस्पात पर 25% और एल्युमिनियम Products पर 10% टैरिफ लगा दिए थे, तब से दुनियाभर के देश यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि क्या अमेरिका को कोई रोक सकता है? यह टैरिफ 23 मार्च 2018 से लागू हुए और हाल ही में, 12 मार्च 2025 को, इन टैरिफ में अमेरिका ने और बदलाव कर दिए। लेकिन भारत ने अब चुप रहने की नीति को त्याग कर, इस एकतरफा और अनुचित फैसले को सीधे चुनौती देने का फैसला किया है।
भारत ने WTO यानी वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन में जाकर अमेरिका के खिलाफ परामर्श की औपचारिक मांग की है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे। लेकिन उससे पहले, अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं, तो कृपया चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें, ताकि हमारी हर नई वीडियो की अपडेट सबसे पहले आपको मिलती रहे। तो चलिए, बिना किसी देरी के आज की चर्चा शुरू करते हैं!
भारत ने WTO के सुरक्षा समझौते के तहत इस परामर्श की पहल की है। भारत का कहना है कि अमेरिका ने सुरक्षा उपायों को लागू करने की सूचना WTO सुरक्षा समिति को नहीं दी, जो कि एक गंभीर उल्लंघन है। और इससे भारत जैसे सदस्य देश सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं। इसलिए भारत ने अमेरिका से कहा है कि वो जल्द ही इस परामर्श के लिए तारीख और स्थान तय करे। ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कदम WTO की Formal dispute resolution system का हिस्सा नहीं है, लेकिन यह पहले कदम के रूप में बेहद महत्वपूर्ण है, जिससे अमेरिका को चेताया जा सके।
भारत का यह रुख पहली बार नहीं है, लेकिन इस बार यह कहीं ज्यादा मुखर और रणनीतिक दिखाई दे रहा है। खासकर इसलिए क्योंकि चीन भी इसी मुद्दे पर हाल ही में अमेरिका को WTO में घसीट चुका है। चीन का कहना है कि अमेरिका की मनमानी टैरिफ नीति इंटरनेशनल ट्रेड रूल्स का खुला उल्लंघन है। बीजिंग ने तो यहां तक कह दिया कि दुनिया को अमेरिका के इस आर्थिक दादागीरी के खिलाफ एकजुट हो जाना चाहिए। अब जब भारत भी WTO पहुंचा है, तो अमेरिका को यह स्पष्ट हो गया है कि उसके एकतरफा फैसलों का अब खुलकर विरोध होगा।
हालांकि भारत और चीन की अप्रोच अलग-अलग है। चीन हमेशा आक्रामक बयानबाजी करता है, जबकि भारत ने शालीनता के साथ लेकिन दृढ़ता से अपना पक्ष रखा है। लेकिन यह भी सच है कि इन दोनों देशों का WTO पहुंचना एक बड़ी कूटनीतिक चाल बन सकता है। इससे अमेरिका को यह संदेश मिल चुका है कि वह अकेला विश्व में फैसले नहीं ले सकता, खासकर तब जब वह Global व्यापार के संतुलन को तोड़ता है।
इसी कड़ी में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल का बयान और भी अहम बन जाता है। इटली-इंडिया बिजनेस फोरम में बोलते हुए उन्होंने साफ कहा कि भारत कभी भी बंदूक की नोंक पर कोई बातचीत नहीं करेगा। और न ही वो अपने नागरिकों के हितों से समझौता करेगा। उनका कहना था कि भारत को पहले रखना हमारी नीति है, और कोई भी डील इसी सोच के साथ फाइनल की जाएगी। उनकी बातों में वो आत्मविश्वास झलक रहा था, जो एक उभरती आर्थिक शक्ति के पास होना चाहिए।
गोयल का यह बयान केवल शब्द नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए एक स्पष्ट संदेश है—हम किसी के दबाव में नहीं आते। भारत अब Global forums पर मजबूती से अपनी बात रखता है और अगर कोई देश नियमों का उल्लंघन करता है, तो भारत उसे चुनौती देने से पीछे नहीं हटता। यही वजह है कि इस बार WTO में अमेरिका के खिलाफ भारत का जाना केवल कानूनी या व्यापारिक मसला नहीं है, बल्कि यह एक राजनीतिक संदेश भी है।
अब सवाल उठता है कि क्या अमेरिका झुकेगा? क्या डोनाल्ड ट्रंप की सरकार भारत के इस कदम का जवाब देगा? या फिर वह अपनी पुरानी रणनीति पर कायम रहेगा जिसमें वह अपनी शर्तें दूसरों पर थोपने की कोशिश करता है? ट्रंप प्रशासन पहले ही चीन के खिलाफ टैरिफ युद्ध के चलते भारी आलोचना झेल रहा है। और अब अगर भारत भी अमेरिका की नीतियों के खिलाफ खड़ा हो गया, तो ट्रंप के लिए यह एक और मोर्चा बन जाएगा जिसे संभालना आसान नहीं होगा।
ट्रंप ने हाल ही में 9 अप्रैल को कुछ देशों के टैरिफ पर अस्थायी रोक लगा दी है, लेकिन वह केवल 90 दिनों की है। इन देशों पर अब सिर्फ 10% शुल्क लगेगा, जबकि चीन पर 145% तक का टैरिफ लागू है। यह स्पष्ट संकेत है कि ट्रंप प्रशासन अपने व्यापारिक विरोधियों को अलग-अलग तरीके से हैंडल करना चाहता है। लेकिन भारत का WTO जाना और उसका मजबूत रुख अमेरिका के इस प्लान को भी चुनौती दे सकता है।
भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में व्यापार हमेशा एक अहम मुद्दा रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में यह मुद्दा और भी जटिल हो गया है। अमेरिका भारत को विकासशील देश का दर्जा नहीं देना चाहता, जिससे उसे व्यापार में कई लाभ मिलते थे। इसके अलावा, अमेरिका भारतीय Products पर लगातार टैरिफ बढ़ा रहा है, जिससे भारत की चिंता बढ़ गई है।
अब जब भारत ने WTO का दरवाजा खटखटाया है, तो यह साफ है कि वह अमेरिका के साथ समानता के स्तर पर बात करना चाहता है। भारत न तो पीछे हट रहा है और न ही केवल मौखिक बयानबाजी कर रहा है। उसने कानूनी प्रक्रिया को अपनाया है, जो global platform पर उसकी परिपक्वता और गंभीरता को दर्शाता है।
भारत के इस रुख से ट्रंप प्रशासन पर भी दबाव बढ़ेगा। क्योंकि अमेरिका खुद को नियमों का पालन करने वाला देश बताता है, और अगर वह WTO के नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसकी साख को भी झटका लगेगा। साथ ही, दुनिया के दूसरे देश भी यह देखने लगेंगे कि अमेरिका किस तरह से अपने हितों को दूसरों पर थोपता है।
इस पूरे मामले में भारत की कूटनीति की सबसे बड़ी ताकत है उसका संयम और नियमों में विश्वास। भारत न तो उग्र भाषा का इस्तेमाल कर रहा है और न ही किसी तरह की धमकी दे रहा है। वह शांतिपूर्वक लेकिन मजबूती से अपने अधिकार की मांग कर रहा है। यही तरीका उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भरोसेमंद बनाता है।
अब आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका भारत के इस कदम का क्या जवाब देता है। क्या वह परामर्श के लिए आगे आता है या फिर किसी तरह का दबाव बनाने की कोशिश करता है? या शायद भारत को अपने बाजार के लिहाज से ज्यादा महत्व देता है और कोई समाधान निकालने की कोशिश करता है?
इस मामले से एक और बात भी साफ होती है—भारत अब Global व्यापारिक खेल में केवल खिलाड़ी नहीं, बल्कि रणनीतिकार भी बन चुका है। वह न केवल अपने हितों की रक्षा कर रहा है, बल्कि दूसरों को यह भी दिखा रहा है कि अगर नियमों का पालन नहीं किया गया, तो वह चुप नहीं बैठेगा।
WTO में भारत की इस पहल को लेकर Global experts की भी नजरें लगी हुई हैं। उनका मानना है कि भारत का यह कदम केवल एक विवाद नहीं है, बल्कि यह एक टेस्ट केस बन सकता है कि अमेरिका जैसे ताकतवर देश को भी Global rules के आगे झुकना पड़ सकता है। अगर भारत इस परामर्श को सही दिशा में ले जाता है, तो यह आने वाले समय में और भी देशों के लिए प्रेरणा बन सकता है।
Conclusion
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