नमस्कार दोस्तों, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन सहित उन सभी प्रमुख व्यापारिक भागीदारों पर जवाबी टैरिफ लगाने की घोषणा की है, जो अमेरिका से आने वाले Products पर अधिक Import duty लगाते हैं। ट्रंप प्रशासन पहले ही स्टील और एल्यूमीनियम के Import पर 25 प्रतिशत तक का शुल्क लगाने का ऐलान कर चुका है, जिसे 12 मार्च से लागू किया जाना है।
इस नई नीति की घोषणा करते हुए राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि भारत शुल्क लगाने के मामले में सबसे आगे है। चूंकि ये सभी देश World Trade Organization (WTO) के सदस्य हैं, ऐसे में अमेरिका के इस फैसले पर डब्ल्यूटीओ के नियमों के तहत सवाल उठ सकते हैं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे। लेकिन उससे पहले, अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं, तो कृपया चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें, ताकि हमारी हर नई वीडियो की अपडेट सबसे पहले आपको मिलती रहे। तो चलिए, बिना किसी देरी के आज की चर्चा शुरू करते हैं!
डब्ल्यूटीओ क्या है?
World Trade Organization (डब्ल्यूटीओ), जिसका मुख्यालय जिनेवा में स्थित है, एक बहुपक्षीय संस्था है जो global व्यापार के लिए नियम तैयार करती है, और सदस्य देशों के बीच व्यापारिक विवादों का समाधान करती है। इसका प्राथमिक उद्देश्य वस्तुओं और सेवाओं के मुक्त, पारदर्शी और सुचारू प्रवाह को सुनिश्चित करना है। भारत और अमेरिका 1995 से इस संगठन के सदस्य हैं।
दोनों देशों ने व्यापार से जुड़े कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों और दिशा-निर्देशों को निर्धारित करते हैं। इन समझौतों के तहत व्यापार नीतियों में संतुलन बनाए रखने की कोशिश की जाती है, ताकि किसी देश को अनुचित लाभ न मिले।
World Trade Organization के तहत शुल्क प्रतिबद्धताएं क्या होती हैं?
डब्ल्यूटीओ के प्रमुख सिद्धांतों में से एक शुल्क स्थिरता और पारदर्शिता को सुनिश्चित करना है। इसके तहत, प्रत्येक सदस्य देश अपनी टैरिफ सीमाओं को कानूनी रूप से निर्धारित करता है, जिसे Bound Tariffs कहा जाता है। ये वे अधिकतम शुल्क दरें होती हैं जिन्हें कोई देश अपनी व्यापारिक रियायतों की सूची में शामिल करता है।
एक बार निर्धारित किए जाने के बाद, इन दरों को बिना पुनर्वार्ता के पार नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त, प्रत्येक देश अपने Imported वस्तुओं पर जो वास्तविक शुल्क लागू करता है, उसे Applied Tariffs कहा जाता है। यह Bound Tariffs दर से कम हो सकता है लेकिन डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत इससे अधिक नहीं हो सकता।
अगर कोई देश निर्धारित शुल्क सीमा से अधिक शुल्क वसूलता है तो क्या होता है?
यदि कोई देश अपने निर्धारित सीमा से अधिक शुल्क लगाता है, तो यह 1994 के General Tariff and Trade Agreement (GATT) के Article-2 का उल्लंघन माना जाता है। यह अनुच्छेद स्पष्ट रूप से कहता है कि सदस्य देशों को अपनी Accepted Fee List से अधिक दरें नहीं लगानी चाहिए, और कोई अतिरिक्त शुल्क या tax नहीं जोड़ना चाहिए, जो उनकी प्रतिबद्धताओं में शामिल नहीं हो।
अगर कोई देश यह नियम तोड़ता है, तो प्रभावित देश इस मुद्दे को डब्ल्यूटीओ Dispute Settlement Body (DSB) के समक्ष उठा सकता है। विवाद समाधान की प्रक्रिया आमतौर पर द्विपक्षीय वार्ता से शुरू होती है। यदि बातचीत से समाधान नहीं निकलता, तो प्रभावित देश डब्ल्यूटीओ के निर्देशों के तहत जवाबी टैरिफ या अन्य व्यापारिक प्रतिबंध लगाने का अधिकार प्राप्त कर सकता है।
कोई डब्ल्यूटीओ सदस्य अपनी Binding Fees दरें बढ़ा सकता है?
हाँ बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिए विशेष प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है। General Tariff and Trade Agreement (GATT) के Article-28 के तहत, कोई भी देश अपनी टैरिफ सूची में संशोधन कर सकता है, लेकिन इसके लिए उसे प्रभावित व्यापारिक साझेदारों के साथ बातचीत करनी होगी और उनके नुकसान की भरपाई के लिए compensatory concessions देनी होंगी।
इसके अलावा, कुछ अपवादों के तहत भी शुल्क बढ़ाया जा सकता है, जैसे कि राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे या आपातकालीन सुरक्षा उपाय। अमेरिका ने इसी प्रावधान का उपयोग करते हुए अपने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में, व्यापार अधिनियम की धारा 232 के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए स्टील पर 25% और एल्युमीनियम पर 10% अतिरिक्त शुल्क लगाया था। अमेरिका ने अपने Domestic steel industry की सुरक्षा को इसका कारण बताया था।
हालांकि, डब्ल्यूटीओ ने कई मामलों में इस कदम को नियमों के खिलाफ माना। भारत ने भी इस फैसले के जवाब में 28 अमेरिकी Products पर जवाबी शुल्क लगाया था। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, डब्ल्यूटीओ विवाद निपटान निकाय ने स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अपवादों का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता, और इन्हें केवल युद्ध या गंभीर आपात स्थितियों में लागू किया जाना चाहिए।
अमेरिका ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी?
GTRI के अनुसार, अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ के इस फैसले को मानने से इनकार कर दिया। उसका तर्क है कि राष्ट्रीय सुरक्षा नीतियों को तय करना पूरी तरह से उसका संप्रभु अधिकार है और किसी बाहरी संस्था को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
अमेरिका ने डब्ल्यूटीओ के अपीलीय निकाय को अवरुद्ध कर दिया, जिससे सदस्य देशों द्वारा विवादों पर अपील करने की प्रक्रिया ठप हो गई है। इससे वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन की विवाद निपटान प्रक्रिया कमजोर हो रही है और व्यापारिक संतुलन बनाए रखना कठिन होता जा रहा है।
भारत में Import duty अधिक और अमेरिका जैसे विकसित देशों में कम क्यों होती है?
भारत जैसे विकासशील देश आमतौर पर घरेलू उद्योगों की सुरक्षा, revenue collection और आर्थिक वृद्धि को समर्थन देने के लिए High import duties लागू करते हैं। इन देशों की अर्थव्यवस्था कई क्षेत्रों में अभी भी विकसित हो रही होती है, और वे चाहते हैं कि उनके Local industry Foreign competition से सुरक्षित रहें। इसके अलावा, Import duty से Revenue उत्पन्न करना भी सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक रणनीति होती है, जो सार्वजनिक खर्च और बुनियादी ढांचे के विकास में सहायक होती है।
दूसरी ओर, अमेरिका जैसे विकसित देशों में Import duty आमतौर पर कम होते हैं, क्योंकि उनके उद्योग पहले से ही Global Level पर Competitive होते हैं। ये देश खुले बाजारों से लाभ उठाते हैं, जिससे उनकी कंपनियों को न्यूनतम व्यापार बाधाओं के साथ Global Consumers तक पहुंचने में आसानी होती है।
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, जब 1995 में World Trade Organization (WTO) की स्थापना हुई थी, तब विकसित देशों ने Intellectual Property Rights (IPR), Services Trade Liberalisation और Agricultural trade reform जैसे मुद्दों पर, सहमति के बदले विकासशील देशों को कुछ हद तक High duty बनाए रखने की छूट दी थी। हालांकि, इन नीतियों का लाभ धनी देशों को अधिक हुआ, क्योंकि वे व्यापार नियमों को अपने हित में मोड़ने में सक्षम रहे।
डब्ल्यूटीओ में Special and Differential Treatment क्या है?
World Trade Organization (WTO) के समझौतों में कुछ विशेष प्रावधान शामिल हैं, जो विकासशील और अल्प-विकसित देशों को व्यापारिक नियमों में कुछ छूट प्रदान करते हैं। इन प्रावधानों के तहत, ऐसे देशों को अपनी टैरिफ दरों को समायोजित करने और व्यापारिक नीतियों को लागू करने के लिए अधिक समय दिया जाता है, ताकि वे अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को स्थिर कर सकें। उदाहरण के लिए, भारत जैसे विकासशील देशों को सब्सिडी घटाने और Import duty कम करने के लिए, विकसित देशों की तुलना में अधिक लचीलेपन की अनुमति दी जाती है।
क्या भारत को Steel और एल्युमीनियम पर 25% अमेरिकी शुल्क के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है?
कानूनी Experts के अनुसार, भारत को Steel और एल्युमीनियम पर 25% अमेरिकी शुल्क के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार है। भारत को World Trade Organization के नियमों के तहत जवाबी कदम उठाने का अधिकार है, यदि उसे लगता है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं।
क्या भारत डब्ल्यूटीओ में इस मामले को चुनौती देगा?
Experts का मानना है कि वर्तमान में भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ताएं जारी रहने के कारण, भारत का इस मुद्दे को डब्ल्यूटीओ में विवाद के रूप में उठाना कठिन हो सकता है। हालांकि, रणनीतिक रूप से भारत को सभी विकल्प खुले रखने चाहिए। जवाबी शुल्क लगाना और डब्ल्यूटीओ विवाद समाधान प्रक्रिया में शामिल होना, दोनों ही ऐसे विकल्प हैं जिन पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
इसके अलावा, भारत को अन्य डब्ल्यूटीओ सदस्य देशों के साथ मिलकर संगठन की भूमिका को मजबूत करने के प्रयास करने चाहिए, क्योंकि डब्ल्यूटीओ की विवाद निपटान प्रणाली विभिन्न चुनौतियों का सामना कर रही है। Experts का कहना है कि नियम-आधारित global व्यापार प्रणाली को बनाए रखना आवश्यक है, ताकि विकासशील देशों के सामूहिक हितों की रक्षा की जा सके। द्विपक्षीय व्यापार सौदों से केवल ताकतवर देशों को अधिक लाभ होगा, जबकि एक प्रभावी बहुपक्षीय व्यापार तंत्र ही सभी देशों के लिए न्यायसंगत समाधान प्रदान कर सकता है।
Conclusion
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