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Shocking: Zerodha के CEO की स्मार्ट चेतावनी! 2008 से भी बड़ी मंदी का अलर्ट, निवेशकों के लिए मौका या डर?

Zerodha

सोचिए अगर कल सुबह आप अपनी मोबाइल स्क्रीन खोलें और देखें कि आपका Investment आधा हो चुका है, स्टॉक्स की कीमतें औंधे मुंह गिरी पड़ी हैं, और हर तरफ सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा है – अब क्या करें? क्या बाहर निकल जाएं? या रुककर और नुकसान का इंतजार करें? ये सिर्फ एक डरावना सपना नहीं, बल्कि एक ऐसा सच बन सकता है, जिसकी आहट भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन ब्रोकरेज प्लेटफॉर्म Zerodha के को-फाउंडर और CEO नितिन कामथ ने दे दी है।

उन्होंने कहा है कि अगर बाजार में भारी गिरावट का सिलसिला चलता रहा, तो 2008 की महामंदी जैसा दौर फिर से लौट सकता है। और अगर Investors ने डरकर बाजार से दूरी बना ली, तो इससे सिर्फ व्यक्तिगत वित्तीय नुकसान नहीं होगा, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है। कामथ की इस चेतावनी को अगर हल्के में लिया गया, तो आने वाले समय में करोड़ों Investor पछता सकते हैं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

नितिन कामथ का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारतीय शेयर बाजार में रोज़ नई गिरावटें दर्ज हो रही हैं। Investor भ्रमित हैं, डर के माहौल में फैसले ले रहे हैं, और बाजार की अस्थिरता हर किसी को डरा रही है।

खासकर वे रिटेल इन्वेस्टर्स जो हाल के सालों में शेयर बाजार के प्रति आकर्षित हुए थे, जिन्होंने SIPs और म्यूचुअल फंड्स के जरिए बाजार में भरोसे के साथ Investment करना शुरू किया था – अब वही लोग सबसे ज़्यादा घबराए हुए हैं। और ये डर यूं ही नहीं है। इतिहास गवाह है कि 2008 की मंदी के समय भी आम Investor सबसे पहले मैदान छोड़ कर भागे थे। कामथ की चेतावनी का उद्देश्य सिर्फ डर फैलाना नहीं, बल्कि हमें उस सच्चाई का सामना करने के लिए तैयार करना है जो एक बार फिर सामने खड़ी हो सकती है।

कामथ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कुछ चौंकाने वाले आंकड़े साझा किए हैं, जिससे यह समझा जा सकता है कि 2008 के बाद बाजार में क्या हुआ था। उनके अनुसार, 2008 से 2014 के बीच इक्विटी ओरिएंटेड म्यूचुअल फंड स्कीम्स में Investment की गति लगभग ठहर सी गई थी।

लोग अपने पैसे निकाल रहे थे, और नए Investor आने से कतरा रहे थे। यह एक ऐसा दौर था जब बाजार में भय सबसे बड़ी ताकत बन गया था। उनका कहना है कि आज जो स्थिति बन रही है, वह काफी हद तक वैसी ही लग रही है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले पांच वर्षों में भारतीय रिटेल इन्वेस्टर्स ने तेजी से Investment किया है और ‘गिरावट में खरीदारी’ को अपनाया है, लेकिन अब अगर लगातार गिरावट होती रही तो वे एक बार फिर बाजार से कट सकते हैं।

2020 से 2024 के बीच भारतीय शेयर बाजार में जो रैली देखी गई, उसमें रिटेल इन्वेस्टर्स की भूमिका अहम रही। ये वो आम Investor हैं जो पहले बैंक FD या सोने में Investment करते थे, लेकिन अब मोबाइल ऐप्स और डिजिटल ज्ञान की मदद से उन्होंने शेयर बाजार को समझा और अपनाया।

यही Investor बाजार की रीढ़ साबित हुए, क्योंकि उन्होंने गिरावट को मौके के तौर पर देखा और नियमित रूप से Investment जारी रखा। लेकिन जब लगातार गिरावट दिखने लगे, Foreign investors पैसा निकालने लगें, और ग्लोबल अनिश्चितताएं बढ़ जाएं – तो यही इन्वेस्टर सबसे पहले घबराने लगता है। यही कारण है कि कामथ की चेतावनी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए, क्योंकि यह वही तबका है जो बाजार को स्थिरता देता है।

2008 की global recession का कारण जानना बेहद जरूरी है, ताकि हम मौजूदा हालात को बेहतर तरीके से समझ सकें। अमेरिका की सबसे बड़ी इन्वेस्टमेंट बैंक Lehman Brothers के धराशायी होने से जो संकट शुरू हुआ, उसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया था।

यह संकट सब-प्राइम मॉर्गेज लोन के चलते पैदा हुआ था, जहां बैंकों ने जोखिम भरे कर्ज बांटे थे और जब वे डिफॉल्ट होने लगे तो पूरा फाइनेंशियल सिस्टम हिल गया। भारत में इसका असर इतना भयानक था कि सेंसेक्स जनवरी 2008 में 21,206 से गिरकर अक्टूबर 2008 में मात्र 8,160 रह गया – यानी 60% से भी ज़्यादा की गिरावट। यह गिरावट केवल आंकड़ों की बात नहीं थी, यह लाखों Investors की जिंदगी से जुड़ी त्रासदी थी।

हालांकि, 2009 में सरकार के इंसेंटिव पैकेज, RBI की नीतियों और global level पर लिक्विडिटी के इंजेक्शन से, बाजार को दोबारा खड़ा करने की कोशिशें की गईं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। Investors का विश्वास टूट चुका था, और उन्होंने लंबे समय तक बाजार से दूरी बना ली थी।

यही डर नितिन कामथ दोहराना नहीं चाहते। वे बता रहे हैं कि अगर अभी कदम न उठाए गए, तो फिर एक और पीढ़ी Investment से दूर हो सकती है। और इससे न सिर्फ बाजार को नुकसान होगा, बल्कि भारत की आर्थिक वृद्धि को भी गहरी चोट पहुंचेगी।

आज के हालात कुछ अलग हैं लेकिन खतरनाक जरूर हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐसा फैसला लिया है जिसने दुनिया भर के बाजारों में हड़कंप मचा दिया है। उन्होंने 60 से ज्यादा देशों पर भारी-भरकम रेसिप्रोकल टैरिफ लागू कर दिए हैं। खासतौर पर चीन के साथ अमेरिका की व्यापारिक लड़ाई अब युद्ध के स्तर पर पहुंच गई है। पहले अमेरिका ने चीनी सामान पर टैरिफ को 54% से बढ़ाकर 104% कर दिया, फिर चीन ने पलटवार करते हुए अमेरिकी प्रोडक्ट्स पर 34% टैक्स लगाया। जवाब में ट्रंप ने और 50% टैक्स बढ़ा दिया और चीन ने फिर 84% का टैरिफ ठोक दिया। यह सब व्यापार की आड़ में एक global power प्रदर्शन बन गया है।

इस ट्रेड वॉर का असर सिर्फ दो देशों तक सीमित नहीं रहा। अब पूरी दुनिया इसकी चपेट में आ चुकी है। महंगाई का खतरा बढ़ गया है, सप्लाई चेन बाधित हो रही है, और Investor हर तरफ अनिश्चितता का सामना कर रहे हैं। भारत भी इस लड़ाई से अछूता नहीं है। Foreign investors पैसा निकाल रहे हैं, डॉलर की मांग बढ़ रही है, और रुपये पर दबाव बन रहा है। यह सभी कारक भारतीय शेयर बाजार को अस्थिर बना रहे हैं। और जब बाजार अस्थिर होता है, तो सबसे पहले उसका असर छोटे Investors पर पड़ता है।

हर दिन जब Investor अपने पोर्टफोलियो को गिरते हुए देखते हैं, तो वे मानसिक रूप से कमजोर होते हैं। और अगर ये गिरावट लंबी खिंच जाए, तो वे Investment से ही किनारा कर सकते हैं। यही बात नितिन कामथ हमें समझाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि रिटेल इन्वेस्टर्स डरने के बजाय समझदारी से काम लें, long term नजरिए से Investment करें और हर गिरावट को अवसर की तरह देखें – न कि संकट की तरह। लेकिन ये तभी होगा जब बाजार में Transparency हो, सरकार Investors को सुरक्षा का भरोसा दे और Investors को Financial Literacy के जरिए सशक्त बनाया जाए।

भारत सरकार और रिजर्व बैंक को चाहिए कि वे इन Global conditions को देखकर सतर्क रणनीति बनाएं। सिर्फ ब्याज दरों या नीतिगत घोषणाओं से बात नहीं बनेगी। ज़रूरी है कि देश में Investment के प्रति भरोसा बना रहे। अगर आम आदमी का भरोसा टूटा, तो वह फिर कभी बाजार की ओर देखेगा भी नहीं। Investors के लिए जरूरी है कि वे घबराएं नहीं, बल्कि सीखें, जानकारी हासिल करें और विवेकपूर्ण निर्णय लें।

इतिहास यही बताता है कि हर गिरावट के बाद एक नई तेजी आती है। लेकिन इस तेजी का लाभ उन्हें ही मिलता है जो गिरावट के समय टिके रहते हैं। डरना मानव स्वभाव है, लेकिन उससे लड़ना भी हमारी जिम्मेदारी है। नितिन कामथ की चेतावनी को गंभीरता से लेना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह एक ऐसी सच्चाई है जो अनदेखी नहीं की जा सकती।

आज बाजार में जो अनिश्चितता है, वह कल के अवसरों का रास्ता भी हो सकती है – बशर्ते हम समझदारी से आगे बढ़ें। यह समय घबराने का नहीं, बल्कि सजग रहने और सही निर्णय लेने का है। यही Investment की असली परीक्षा है – और यही वह मोड़ है जहां विजेता और हारने वाले अलग हो जाते हैं।

Conclusion

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