Explosive: CBI के एक्शन से मचा हड़कंप! क्या है 9,000 करोड़ का घोटाला, जानिए पूरी सच्चाई।

नमस्कार दोस्तों, क्या आप सोच सकते हैं कि एक ऐसा घोटाला जिसमें 9,000 crore रुपये का हेरफेर हुआ हो, वो कई सालों तक दबा रह सकता है? क्या आपने कभी सोचा है कि इतने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होते हुए भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई? और अब जब CBI ने इस घोटाले की जांच शुरू की है, तो इससे किसके नाम उजागर हो सकते हैं?

क्या इस खेल में बड़े बिल्डर शामिल थे या फिर सरकारी अधिकारी भी इसमें मिले हुए थे? सवाल यह भी है कि क्या इस मामले में कुछ राजनेताओं की भी भूमिका रही होगी? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि इस बार मामला सिर्फ एक साधारण हेरफेर का नहीं है, बल्कि ये भारत के सबसे बड़े रियल एस्टेट घोटालों में से एक है। करीब 9,000 crore रुपये के इस घोटाले ने नोएडा के विकास मॉडल की सच्चाई को उजागर कर दिया है।

घोटाले के तार सीधे नोएडा अथॉरिटी, बड़े बिल्डरों और उच्च स्तरीय सरकारी अधिकारियों से जुड़ रहे हैं। इस पूरे खेल का खुलासा तब हुआ जब Comptroller and Auditor General (CAG) की रिपोर्ट ने इस मामले की परतें खोल दीं।

हाई कोर्ट ने जब इस मामले में संज्ञान लिया, तब जाकर सीबीआई हरकत में आई। अब इस मामले की जांच के लिए सीबीआई ने दिल्ली और नोएडा के कई ठिकानों पर छापेमारी की है और कई अहम दस्तावेज जब्त किए गए हैं। आखिर इस खेल की शुरुआत कहां से हुई और इसमें किन बड़े नामों का हाथ हो सकता है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

ये मामला तब शुरू हुआ जब उत्तर प्रदेश सरकार ने 2011 से 2014 के बीच नोएडा में एक स्पोर्ट्स सिटी बनाने की योजना बनाई थी। इस स्पोर्ट्स सिटी का उद्देश्य विश्वस्तरीय खेल सुविधाओं के साथ-साथ आवासीय और व्यावसायिक सुविधाएं तैयार करना था। सरकार ने इस योजना के तहत नोएडा के सेक्टर 78, 79 और 150 में बड़े पैमाने पर जमीन का आवंटन किया।

इस योजना के तहत कई बिल्डरों को इस प्रोजेक्ट का जिम्मा सौंपा गया। बिल्डरों को इस शर्त पर जमीन दी गई थी कि वे वहां पर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, स्टेडियम और अन्य खेल सुविधाओं का निर्माण करेंगे। लेकिन खेल यहीं से शुरू हुआ। जिन बिल्डरों को जमीन दी गई थी, उन्होंने शर्तों का पालन नहीं किया। स्पोर्ट्स फैसिलिटीज का निर्माण करने के बजाय, इन बिल्डरों ने वहां पर बड़े-बड़े व्यावसायिक और आवासीय टावर खड़े कर दिए।

शर्तों के उल्लंघन की शुरुआत जमीन के आवंटन से ही हो गई थी। नियमों के मुताबिक, जमीन का उपयोग सिर्फ खेलों से जुड़ी सुविधाएं तैयार करने के लिए किया जाना था। लेकिन बिल्डरों ने इसमें सीधे तौर पर हेरफेर किया। उन्होंने नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों से मिलीभगत करके, इन जमीनों का उपयोग व्यावसायिक और आवासीय टावर बनाने के लिए किया।

नोएडा अथॉरिटी के अधिकारी इस खेल से पूरी तरह वाकिफ थे, लेकिन उन्होंने इसे अनदेखा किया। इतना ही नहीं, कई बिल्डरों को इस मामले में अनुचित लाभ दिया गया। उन्हें बाजार दर से कम कीमत पर जमीन दी गई और परियोजना की स्वीकृति भी तेजी से दी गई। इसका नतीजा यह हुआ कि राज्य सरकार को करीब 9,000 crore रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।

इस पूरे घोटाले का पर्दाफाश तब हुआ जब Comptroller and Auditor General (CAG) ने इस मामले की रिपोर्ट पेश की। CAG की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया कि नोएडा अथॉरिटी ने स्पोर्ट्स सिटी प्रोजेक्ट के तहत जिन बिल्डरों को जमीन दी थी, उन्होंने शर्तों का पालन नहीं किया। रिपोर्ट के मुताबिक, नोएडा अथॉरिटी ने बाजार दर से काफी कम कीमत पर जमीन का आवंटन किया। कई बिल्डरों ने इन जमीनों पर स्पोर्ट्स फैसिलिटीज बनाने के बजाय वहां पर लग्जरी अपार्टमेंट्स और कमर्शियल कॉम्प्लेक्स खड़े कर दिए। इस रिपोर्ट के आने के बाद हाई कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया और सीबीआई को जांच के आदेश दिए।

सीबीआई ने इस मामले में अब तक तीन बिल्डरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। इनमें से दो कंपनियों के Directors से पूछताछ की जा रही है। सीबीआई ने दिल्ली और नोएडा के कई ठिकानों पर छापेमारी की है। छापेमारी के दौरान कई ऐसे दस्तावेज जब्त किए गए हैं जिनसे पता चलता है कि, बिल्डरों और नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों के बीच किस तरह की सांठगांठ थी। सीबीआई ने कहा है कि जांच अभी शुरुआती चरण में है और अगर जांच के दौरान कोई बड़ा नाम सामने आता है, तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।

इस घोटाले में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों को इस गड़बड़ी की जानकारी पहले से थी। लेकिन उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ किया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बिल्डरों ने नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों को मोटी रिश्वत दी थी ताकि वे इस गड़बड़ी पर पर्दा डाल सकें। इतना ही नहीं, कई अधिकारियों ने इस प्रोजेक्ट को लेकर नियमों में बदलाव भी किए ताकि बिल्डरों को फायदा हो सके।

आपको बता दें कि यह कोई पहला मामला नहीं है जब नोएडा अथॉरिटी भ्रष्टाचार को लेकर सुर्खियों में आई हो। इससे पहले साल 2016 में नोएडा अथॉरिटी के इंजीनियर यादव सिंह के खिलाफ 1,000 करोड़ रुपये के घोटाले का मामला सामने आया था। यादव सिंह पर आरोप था कि उन्होंने ठेकेदारों से रिश्वत लेकर नोएडा के कई प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी थी। इसके अलावा 2019 में प्लॉट आवंटन घोटाला भी सामने आया था, जिसमें फर्जी दस्तावेजों के जरिए सरकारी जमीन पर कब्जा किया गया था।

इस बार का मामला इसलिए भी बड़ा है क्योंकि इसमें सीधे तौर पर नोएडा अथॉरिटी के शीर्ष अधिकारियों की भूमिका सामने आ रही है। जिन बिल्डरों को जमीन दी गई थी, वे बड़े बिजनेसमैन थे और उनकी राजनीतिक पकड़ भी मजबूत थी। यही वजह है कि यह मामला इतने सालों तक दबा रहा। लेकिन जब हाई कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया, तो सीबीआई को मजबूर होकर जांच शुरू करनी पड़ी।

अब सवाल यह है कि क्या इस मामले में दोषियों को सजा मिल पाएगी? क्या सीबीआई इस घोटाले के सभी पहलुओं की जांच कर पाएगी? क्या बिल्डरों और अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी अन्य घोटालों की तरह दब जाएगा? फिलहाल सीबीआई ने कहा है कि जांच जारी है और इस मामले के सभी दोषियों को जल्द ही बेनकाब किया जाएगा।

9,000 crore रुपये का यह घोटाला भारतीय रियल एस्टेट सेक्टर के सबसे बड़े घोटालों में से एक माना जा रहा है। इसमें सरकारी अधिकारियों और बिल्डरों की मिलीभगत ने नोएडा के विकास मॉडल पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब देखना यह है कि क्या इस मामले में सच सामने आएगा या फिर यह भी एक लंबी कानूनी लड़ाई का हिस्सा बनकर रह जाएगा। एक बात तो तय है कि सीबीआई का यह एक्शन अब रियल एस्टेट सेक्टर के बाकी खिलाड़ियों के लिए भी, एक चेतावनी है कि अगर भ्रष्टाचार किया तो नतीजा भुगतना पड़ेगा। नोएडा में हुए इस घोटाले की सच्चाई सामने आना बेहद जरूरी है ताकि इस तरह के खेल को दोबारा रोका जा सके।

Conclusion

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