अप्रैल की शुरुआत… दुनिया को लगा था कि Global व्यापार धीरे-धीरे पटरी पर लौट रहा है। लेकिन तभी एक खबर ने पूरी दुनिया के बाज़ारों को हिला दिया। एक ऐसा फैसला जो ना सिर्फ दो महाशक्तियों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है, बल्कि बाकी दुनिया को भी आर्थिक तूफान में झोंक सकता है।
10 अप्रैल से China ने अमेरिका से आने वाले हर सामान पर 34 प्रतिशत शुल्क लगाने का ऐलान कर दिया है। ये एकतरफा फैसला नहीं, बल्कि जवाबी हमला है… अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस ऐलान का, जिसमें उन्होंने चीनी सामान पर 34 प्रतिशत शुल्क ठोक दिया था। अब सवाल उठता है—ये ट्रेड वॉर आखिर कहां जाकर रुकेगा? और सबसे अहम—इसका असर भारत जैसे देशों पर क्या होगा? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के मुताबिक, China ने ये फैसला उस वक्त लिया जब अमेरिका ने अपनी ‘मुक्ति दिवस’ व्यापार नीति के तहत चीन से Imported वस्तुओं पर भारी शुल्क लगाने की घोषणा की। ट्रंप प्रशासन ने इसे एक नई शुरुआत बताया, लेकिन चीन ने इसे सीधा हमला माना।
यही कारण है कि अब बीजिंग ने भी पलटवार करते हुए अमेरिकी वस्तुओं पर उतना ही शुल्क लागू कर दिया है। व्यापार जगत इसे “ट्रेड टाइट फॉर टैट” कह रहा है—यानी जैसे को तैसा। मगर ये लड़ाई सिर्फ दो देशों के बीच नहीं है, बल्कि इसका असर Global supply chains से लेकर Currency exchange rates तक में देखने को मिलेगा।
China ने ना सिर्फ अमेरिका से Import पर शुल्क बढ़ाए हैं, बल्कि 16 अमेरिकी कंपनियों के दोहरे उपयोग वाली वस्तुओं के Export पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। यह एक गंभीर कदम है, क्योंकि दोहरे उपयोग वाली वस्तुएं अक्सर सिविल और मिलिट्री दोनों क्षेत्रों में काम आती हैं। इसका मतलब साफ है कि चीन अब सिर्फ आर्थिक स्तर पर नहीं, बल्कि रणनीतिक स्तर पर भी ट्रंप प्रशासन को घेरने की तैयारी में है। और ये संकेत बहुत कुछ कह रहे हैं।
डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान वादा किया था कि वह China को सबक सिखाएंगे। अब लगता है, उन्होंने उसी दिशा में पहला बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने दावा किया कि चीन अमेरिका पर 67 प्रतिशत तक का शुल्क लगाता है और ट्रेड में लगातार घाटा देता है। ऐसे में उन्होंने 34 प्रतिशत का शुल्क एक “व्यवस्थित संतुलन” की ओर बढ़ने वाला कदम बताया। लेकिन सच्चाई ये है कि ट्रंप के इस फैसले के बाद अमेरिका में चीनी सामानों पर कुल शुल्क अब 54 प्रतिशत तक पहुंच चुका है, जो किसी भी व्यापारिक साझेदारी के लिए खतरे की घंटी है।
इस नए 34 प्रतिशत शुल्क में दो हिस्से हैं—10 प्रतिशत का मूल शुल्क और 24 प्रतिशत का विशेष शुल्क जो सिर्फ अमेरिका पर लागू होता है। यानी ये टारगेटेड टैक्स है, सीधा ट्रंप प्रशासन की नीतियों के खिलाफ। और चीन ने साफ कह दिया है कि ये जवाबी कार्रवाई की शुरुआत है, अगर अमेरिका अपनी नीति से पीछे नहीं हटा तो चीन और भी सख्त कदम उठाएगा।
China का कहना है कि ट्रंप की नीतियां WTO के नियमों का उल्लंघन करती हैं। चीन ने इस मसले पर WTO में औपचारिक शिकायत दर्ज करा दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि अमेरिका के फैसले बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहे हैं, और इससे Global व्यापार का संतुलन बिगड़ सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि चीन अपने वैध अधिकारों की रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठाएगा।
इस पूरे मामले में अब सवाल ये उठता है कि इसका असर तीसरे पक्षों पर—जैसे भारत—पर क्या पड़ेगा? और जवाब है—बहुत गहरा। क्योंकि China और अमेरिका दोनों भारत के बड़े व्यापारिक साझेदार हैं। ऐसे में जब दो हाथी लड़ते हैं, तो घास हमेशा पिसती है, और इस बार वो घास शायद भारत बन सकता है।
भारत-अमेरिका व्यापार की बात करें तो, अमेरिका ने भारत पर लगाए गए शुल्क को 27 प्रतिशत से घटाकर 26 प्रतिशत कर दिया है। ये बदलाव ट्रंप द्वारा पेश किए गए उस चार्ट के बाद आया जिसमें भारत, चीन, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ पर लगने वाले नए शुल्कों का उल्लेख था। ट्रंप का कहना है कि भारत “मुद्रा विनिमय दर में हेरफेर” करता है और व्यापार में बाधाएं उत्पन्न करता है। इसलिए अमेरिका अब भारत से 26 प्रतिशत रियायती जवाबी शुल्क वसूल करेगा।
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि भारत पर शुल्क महज एक प्रतिशत घटाया गया है, जो उद्योग experts के अनुसार प्रतीकात्मक है और व्यावहारिक रूप से इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। यह बदलाव केवल कागज़ पर दिखाई देने वाला है। असल में, अमेरिका अब भी भारत से भारी टैक्स वसूल रहा है।
भारत के लिए अमेरिका बहुत महत्वपूर्ण साझेदार है। वित्त वर्ष 2023 24 में भारत का अमेरिका के साथ trade surplus 35 अरब डॉलर रहा, जो 2022 23 में 28 अरब डॉलर था। यह एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति को दर्शाता है। लेकिन अगर अमेरिका व्यापार युद्ध की इस आग में भारत को भी लपेटता है, तो ये Surplus बहुत जल्द घाटे में बदल सकता है।
भारत से अमेरिका को होने वाले प्रमुख Export में औषधियां, दूरसंचार उपकरण, कीमती पत्थर, पेट्रोलियम उत्पाद, और आभूषण शामिल हैं। जबकि Import में अमेरिका से भारत को सबसे अधिक कच्चा तेल, कोयला, इलेक्ट्रिक मशीनरी और विमान उपकरण मिलते हैं। यानी अगर शुल्क की दरें और बढ़ती हैं, तो ये पूरे सप्लाई चेन को बाधित कर सकती हैं।
वहीं अगर अमेरिका China से दूरी बनाता है, तो भारत के लिए ये एक अवसर भी हो सकता है—उसे अमेरिका के सामने एक वैकल्पिक Supplier के रूप में खुद को पेश करने का मौका मिल सकता है। लेकिन इसके लिए भारत को अपनी उत्पादन क्षमता, लॉजिस्टिक्स और नीति पारदर्शिता को मजबूत करना होगा।
अब सवाल ये भी है कि भारत को अमेरिका के इस रुख से कैसे निपटना चाहिए? क्या हमें भी जैसे को तैसा नीति अपनानी चाहिए? या हमें अमेरिका और China के इस युद्ध से खुद को दूर रखकर संतुलन साधने की नीति पर काम करना चाहिए? ये वो रणनीतिक विकल्प हैं जो भारत सरकार के सामने अब खड़े हैं।
भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि वो अपनी राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए दोनों देशों से संबंध बनाए रखे। क्योंकि जहां एक ओर अमेरिका भारत को सुरक्षा और तकनीकी सहयोग में मदद करता है, वहीं दूसरी ओर China क्षेत्रीय और व्यापारिक दृष्टिकोण से अनदेखा नहीं किया जा सकता।
भारत को अपने भीतर भी यह तय करना होगा कि वह घरेलू उत्पादन को कितना प्रोत्साहन दे सकता है। PLI स्कीम, मेक इन इंडिया, और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाएं इस चुनौती से निपटने का एकमात्र उपाय हैं। यदि भारत इस स्थिति में खुद को सक्षम साबित करता है, तो वह Global व्यापार में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
ट्रंप के इस कदम से अमेरिका की छवि भी सवालों में घिरी है। बहुपक्षीय सहयोग की बजाय, वे एकतरफा फैसले ले रहे हैं। इससे न केवल व्यापारिक तनाव बढ़ेगा, बल्कि Global Financial System भी अस्थिर हो सकती है। कई Expert मानते हैं कि अगर ये ट्रेंड चलता रहा, तो एक नई global recession की शुरुआत हो सकती है।
अब दुनिया की निगाहें WTO और G 20 जैसे मंचों पर होंगी, जहां इस तरह के विवादों को सुलझाने की जिम्मेदारी होती है। लेकिन जब महाशक्तियां खुद नियम तोड़ें, तो न्याय की उम्मीद करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। अंत में हम आपसे यही सवाल पूछना चाहते हैं—क्या आपको लगता है कि ट्रंप का ये कदम सही है? क्या चीन का पलटवार जायज है? और सबसे जरूरी, क्या भारत को अब “नॉन-अलाइन्ड ट्रेड नीति” की ओर बढ़ना चाहिए?
Conclusion:-
“अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business YouTube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”