Breakthrough: Corruption के बिना कैसे सुधर सकती है सरकारी प्रक्रियाएं? नई रिपोर्ट से जानें समाधान I  2024

नमस्कार दोस्तों, भारत में Corruption की समस्या लंबे समय से बनी हुई है, और हाल ही में हुए एक सर्वे ने इस पर से एक बार फिर पर्दा उठाया है। सर्वे के मुताबिक, देश की 66 प्रतिशत कंपनियों को पिछले एक साल में सरकारी विभागों में अपना काम निकलवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी। यह आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह दिखाता है कि डिजिटलाइजेशन और सरकारी निगरानी के बावजूद Corruption पर लगाम कसना अब भी एक बड़ी चुनौती है।

Survey के अनुसार, 54 प्रतिशत कंपनियों ने यह स्वीकार किया कि उन्हें जबरन रिश्वत देने के लिए मजबूर किया गया, जबकि 46 प्रतिशत ने प्रक्रिया को तेज करने के लिए स्वेच्छा से Payment किया। यह समस्या केवल एक-दो विभागों तक सीमित नहीं है, बल्कि लगभग हर सरकारी क्षेत्र में फैली हुई है। आइए, इस रिपोर्ट की मुख्य बातों पर गहराई से चर्चा करें।

कंपनियों को रिश्वत देने की मजबूरी क्यों होती है?

Survey में शामिल 66 प्रतिशत व्यवसायों ने स्वीकार किया कि सरकारी विभागों के साथ काम करते समय रिश्वत देना उनकी मजबूरी बन गया है। कंपनियों ने बताया कि परमिट प्राप्त करने, Compliance Process को पूरा करने, फाइलों को आगे बढ़ाने और ऑर्डर प्राप्त करने के लिए रिश्वत देना अब लगभग एक आम प्रक्रिया बन गई है।

यह समस्या केवल छोटे व्यवसायों तक सीमित नहीं है, बल्कि बड़े व्यवसाय भी इसी जाल में फंसे हुए हैं। Survey के अनुसार, रिश्वत देने का एक प्रमुख कारण सरकारी अधिकारियों द्वारा जानबूझकर प्रक्रियाओं को धीमा करना और फाइलें रोकना है। जब कंपनियां इस देरी से परेशान हो जाती हैं, तो वे समय पर काम पूरा करने के लिए रिश्वत देने पर मजबूर हो जाती हैं।

रिश्वतखोरी के लिए 54 प्रतिशत कंपनियां क्यों मजबूर होती हैं?

रिपोर्ट में बताया गया कि 54 प्रतिशत कंपनियां सरकारी विभागों की मांग पर रिश्वत देने के लिए मजबूर हुईं। यह रिश्वतखोरी जबरन वसूली के समान है, जहां बिना रिश्वत दिए कोई काम समय पर पूरा नहीं होता।

जिन कंपनियों ने रिश्वत दी, उन्होंने बताया कि बिना रिश्वत के उनके Payment रोक दिए गए थे, फाइलें आगे नहीं बढ़ाई गईं, और यहां तक कि जरूरी लाइसेंस या Certificate भी जारी नहीं किए गए। यह स्थिति केवल कंपनियों के लिए नहीं, बल्कि पूरे व्यापारिक माहौल के लिए हानिकारक है।

46 प्रतिशत कंपनियां स्वेच्छा से रिश्वत क्यों देती हैं?

रिपोर्ट के मुताबिक, 46 प्रतिशत कंपनियों ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने प्रक्रिया को तेज करने के लिए स्वेच्छा से रिश्वत दी। उनका कहना था कि सरकारी विभागों में काम की धीमी रफ्तार के कारण वे समय पर अपने लक्ष्य पूरे नहीं कर पातीं। इसलिए, उन्होंने स्वेच्छा से रिश्वत देकर काम को तेजी से पूरा करवाना बेहतर समझा।

यह स्थिति दिखाती है कि कैसे व्यापारिक माहौल में Corruption ने अपनी जड़ें जमा ली हैं। जब कंपनियों को समय पर अपने प्रोजेक्ट पूरे करने का दबाव होता है, तो वे रिश्वत को एक “व्यवसायिक खर्च” मानने लगती हैं।

बिना रिश्वत काम कैसे हो सकता है, लेकिन इसमें क्या बाधाएं हैं?

सर्वे में यह भी सामने आया कि 16 प्रतिशत कंपनियां बिना रिश्वत दिए अपना काम करवाने में सफल रहीं। इन कंपनियों ने सरकारी अधिकारियों के साथ Transparency बनाए रखी और प्रक्रियाओं का सही तरीके से पालन किया।

इसके अलावा, 19 प्रतिशत कंपनियों ने बताया कि उन्हें रिश्वत देने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, क्योंकि उनकी प्रक्रियाएं पहले से ही सुचारू रूप से चल रही थीं। हालांकि, यह संख्या कुल व्यवसायों का बहुत छोटा हिस्सा है, जो यह दिखाता है कि ज्यादातर कंपनियों को रिश्वत के दबाव का सामना करना पड़ता है।

रिश्वत का पैसा कहां और कैसे उपयोग होता है?

रिपोर्ट के अनुसार, रिश्वत का पैसा अधिकांशतः सरकारी विभागों के अधिकारियों और कर्मचारियों तक पहुंचा। कंपनियों ने बताया कि यह रिश्वत मुख्य रूप से legal, food, drug, metrology, और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों में दी गई। इन विभागों में काम की धीमी गति, कागजी कार्यवाही में देरी, और Acceptance प्रक्रिया को जटिल बनाने जैसी समस्याओं के कारण, कंपनियों को अपना काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ी।

उदाहरण के लिए, legal और compliance से संबंधित मामलों में लाइसेंस प्राप्त करने, Documents की मंजूरी, और आवश्यक Acknowledgements प्राप्त करने के लिए कंपनियों को रिश्वत देने के लिए मजबूर किया गया। वहीं, Food and Drugs Department में Products की क्वालिटी जांच, लाइसेंसिंग, और Acceptance के लिए रिश्वत दी गई। Department of Health and Metrology में भी कंपनियों ने Quality Certificate और अन्य legal दस्तावेजों के लिए रिश्वत देने की बात स्वीकार की।

रिश्वतखोरी का यह जाल केवल छोटे स्तर तक सीमित नहीं है। बड़े व्यवसाय भी समय पर Payment और ऑर्डर प्राप्त करने के लिए रिश्वत देने को मजबूर हुए। इससे यह साफ होता है कि रिश्वत का पैसा उन सरकारी प्रक्रियाओं में जाता है, जो कंपनियों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं लेकिन बिना रिश्वत के सुचारू रूप से पूरी नहीं होतीं।

डिजिटलाइजेशन के बावजूद Corruption क्यों जारी है?

यह रिपोर्ट यह भी दिखाती है कि डिजिटलाइजेशन और ई-गवर्नेंस के बावजूद रिश्वतखोरी पर पूरी तरह से लगाम नहीं लग पाई है। सरकारी विभागों में कई प्रक्रियाएं अब भी कंप्यूटरीकृत हैं और सीसीटीवी निगरानी के अंतर्गत आती हैं, लेकिन इसके बावजूद रिश्वतखोरी के मामले बंद दरवाजों के पीछे जारी हैं।

कंपनियों ने कहा कि कई बार डिजिटल प्रक्रियाएं भी जानबूझकर धीमी कर दी जाती हैं, ताकि अधिकारियों को रिश्वत लेने का मौका मिल सके। इससे यह स्पष्ट होता है कि तकनीकी सुधार अकेले इस समस्या को हल नहीं कर सकते।

Corruption का व्यापारिक माहौल पर क्या असर पड़ता है?

Corruption का सीधा असर व्यापारिक माहौल पर पड़ता है। रिश्वत देने के कारण कंपनियों की Cost बढ़ जाती है, जिससे उनकी Competitiveness कम हो जाती है। छोटे व्यवसाय, जिनके पास सीमित संसाधन होते हैं, इस बोझ को सहन नहीं कर पाते और कई बार बंद होने की कगार पर पहुंच जाते हैं।

इसके अलावा, रिश्वतखोरी के कारण व्यापारिक प्रक्रियाओं में Transparency और ईमानदारी समाप्त हो जाती है। यह स्थिति न केवल Investors के लिए हानिकारक है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाती है।

Corruption रोकने के लिए क्या समाधान हो सकते हैं?

Corruption की समस्या से निपटने के लिए सरकार, व्यवसाय, और आम जनता को मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है। केवल डिजिटलाइजेशन और निगरानी ही इस समस्या का समाधान नहीं कर सकते, बल्कि इसके लिए प्रणालीगत सुधार और सख्त कानूनों की आवश्यकता है।

1. डिजिटलाइजेशन को और प्रभावी बनाना:

सरकारी विभागों में प्रक्रियाओं को पूरी तरह से ऑनलाइन और Transparent बनाया जाना चाहिए। कागजी कार्यवाही को न्यूनतम किया जाए और सभी लेनदेन की डिजिटल ट्रैकिंग सुनिश्चित हो। इससे रिश्वतखोरी के लिए कम जगह बचेगी।

2. सीसीटीवी और निगरानी सिस्टम:

सरकारी कार्यालयों में सीसीटीवी कैमरों और इलेक्ट्रॉनिक निगरानी उपकरणों का व्यापक उपयोग किया जाए। अधिकारियों के कामकाज की रिकॉर्डिंग और निगरानी से रिश्वतखोरी को कम किया जा सकता है।

3. सख्त दंड और कानून:

रिश्वतखोरी में शामिल अधिकारियों और कंपनियों के खिलाफ सख्त legal कार्रवाई होनी चाहिए। anti corruption laws को और कठोर बनाया जाए, ताकि कोई भी व्यक्ति या संस्था रिश्वत लेने या देने से पहले दो बार सोचे।

4. व्यावसायिक जागरूकता:

कंपनियों को रिश्वत देने से होने वाले Long Term नुकसान के बारे में शिक्षित करना जरूरी है। उन्हें यह समझना होगा कि रिश्वत एक Temporary समाधान है, लेकिन यह उनकी विश्वसनीयता और व्यापारिक छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।

5. रिश्वत देने वालों को Protection:

जो कंपनियां रिश्वत देने से इनकार करती हैं, उन्हें सरकार की ओर से Protection और समर्थन मिलना चाहिए। उनके लिए एक सुरक्षित और Transparent प्रक्रिया विकसित की जाए, ताकि वे बिना किसी डर के अपना काम करवा सकें।

6. जनता की भागीदारी:

आम जनता और व्यवसायों को रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि Corruption से जुड़ी शिकायतों को जल्दी और प्रभावी तरीके से सुलझाया जाए।

Conclusion:-

तो दोस्तों, Corruption का यह काला सच न केवल भारत के व्यापारिक माहौल को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था की छवि को भी धूमिल कर रहा है। सरकार को डिजिटलाइजेशन और सख्त निगरानी के माध्यम से, इस पर लगाम लगाने की दिशा में और अधिक कदम उठाने चाहिए। रिश्वतखोरी को समाप्त करने के लिए Transparency, सख्त कानून, और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है, ताकि देश का व्यापारिक माहौल अधिक स्वस्थ और ईमानदार बन सके। अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

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