EVs: बहुत हुई इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की तारीफ, अब जानिए इनकी हकीकत और भविष्य की दिशा! 2025

कल्पना कीजिए कि आप एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहां सड़कों पर कोई धुआं नहीं, कोई शोर नहीं, और हर गाड़ी बिजली से चल रही है। यह सपना हर दिन हमारे करीब आता जा रहा है क्योंकि इलेक्ट्रिक वाहन (EVs) को दुनिया का भविष्य माना जा रहा है। सरकारें इन्हें बढ़ावा देने के लिए करोड़ों रुपये की सब्सिडी दे रही हैं, वाहन निर्माता कंपनियां इन्हें “पर्यावरण बचाने वाली क्रांति” के रूप में प्रचारित कर रही हैं, और आम लोग भी इन्हें खरीदकर गर्व महसूस कर रहे हैं।

आपको बताया गया है कि EVs से कोई प्रदूषण नहीं होता, ये पूरी तरह से ग्रीन एनर्जी से चलती हैं, और ये धरती को बचाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इनकी बैटरी कैसे बनती हैं? इन्हें चार्ज करने के लिए बिजली कहां से आती है? और जब इनकी बैटरी खराब हो जाती है, तब क्या होता है?

सच्चाई यह है कि इलेक्ट्रिक वाहन जितने पर्यावरण के अनुकूल दिखाए जाते हैं, उतने वास्तव में हैं नहीं। इनके निर्माण में जिस तरह से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जाता है, वह पर्यावरण को उतना ही नुकसान पहुंचाता है जितना पारंपरिक पेट्रोल और डीजल वाहनों से होने वाला प्रदूषण।

इलेक्ट्रिक गाड़ियों के प्रचार के पीछे जो हकीकत छुपी है, वह काफी चौंकाने वाली है। इस वीडियो में हम आपको EVs की पूरी सच्चाई बताएंगे, जिससे आप खुद तय कर सकेंगे कि ये वास्तव में पर्यावरण को बचा रही हैं या फिर यह सिर्फ एक बड़ा बाजार है, जिसमें सरकारों और कंपनियों ने आपको फंसा दिया है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

EVs का ग्रीन होने का दावा कितना सच है?

EVs को “ग्रीन एनर्जी” का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इसका असली चेहरा तब सामने आता है जब हम इनके निर्माण की प्रक्रिया को करीब से देखते हैं। सामान्य तौर पर, जब कोई व्यक्ति EV खरीदता है, तो उसे लगता है कि वह पर्यावरण के लिए कुछ अच्छा कर रहा है।

लेकिन हकीकत यह है कि इन वाहनों के निर्माण से जो प्रदूषण होता है, वह पारंपरिक पेट्रोल और डीजल गाड़ियों से कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है। एक इलेक्ट्रिक वाहन को बनाने में जितनी energy और संसाधनों का इस्तेमाल होता है, वह इसे पूरी तरह से ग्रीन नहीं बनाता।

IMF की रिपोर्ट के अनुसार, एक इलेक्ट्रिक वाहन के निर्माण के दौरान होने वाला Carbon Emissions, सामान्य पेट्रोल और डीजल गाड़ियों की तुलना में दोगुना होता है। यह मुख्य रूप से उनकी बैटरियों के कारण होता है, जिनके निर्माण के लिए लीथियम, कोबाल्ट और निकल जैसे दुर्लभ धातुओं की जरूरत होती है। इन धातुओं को निकालने के लिए खदानों में हजारों टन मिट्टी को खोदना पड़ता है, जिससे बहुत अधिक प्रदूषण फैलता है।

इस प्रक्रिया में ज़मीन को गहराई तक खोदा जाता है, जिससे न सिर्फ मिट्टी की गुणवत्ता खराब होती है, बल्कि पानी के स्रोत भी दूषित हो जाते हैं। इन खदानों के आसपास के इलाकों में रहने वाले लोग लगातार प्रदूषित हवा और जहरीले रसायनों के संपर्क में रहते हैं, जिससे गंभीर बीमारियां फैल रही हैं।

EVs भले ही खुद से कोई धुआं न छोड़ती हों, लेकिन इनके निर्माण की प्रक्रिया पहले से ही पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचा रही है। अब सवाल यह उठता है कि क्या इन वाहनों को बनाने की प्रक्रिया को पूरी तरह से ग्रीन बनाया जा सकता है, या फिर यह समस्या और ज्यादा बढ़ने वाली है?

लीथियम माइनिंग की असली सच्चाई क्या है ?

लीथियम माइनिंग की असली सच्चाई

EVs की बैटरियों में सबसे महत्वपूर्ण तत्व लीथियम होता है। इस धातु के बिना इलेक्ट्रिक वाहन संभव नहीं हैं, लेकिन इसे निकालने की प्रक्रिया अत्यधिक विनाशकारी है। लीथियम निकालने के लिए बड़े पैमाने पर Mining किया जाता है, जिसमें भारी मात्रा में पानी और energy की खपत होती है। एक टन लीथियम निकालने के लिए दो मिलियन टन पानी की जरूरत होती है, जो इसे दुनिया की सबसे अधिक पानी बर्बाद करने वाली Mining Process में से एक बनाता है।

दक्षिण अमेरिका के चिली, अर्जेंटीना और बोलीविया में लिथियम की सबसे ज्यादा खदानें हैं, लेकिन इन खदानों की वजह से वहां के किसानों और स्थानीय निवासियों को गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि अकेले चिली में 65 प्रतिशत पानी केवल लीथियम निकालने के लिए खर्च किया जा रहा है। नतीजतन, वहां की झीलें सूख रही हैं, Groundwater level लगातार गिर रहा है और किसान खेती छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं।

लीथियम माइनिंग से पर्यावरण पर जो दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं, वे सिर्फ पानी की कमी तक सीमित नहीं हैं। इस प्रक्रिया में भारी मात्रा में रेडियोएक्टिव रसायन और एसिड वेस्ट निकलता है, जो मिट्टी और जल स्रोतों को जहरीला बना देता है। कई इलाकों में माइनिंग की वजह से ज़मीन इतनी बंजर हो चुकी है कि वहां दोबारा खेती करना असंभव हो गया है।

चार्जिंग के लिए बिजली कहां से आती है?

EVs को चलाने के लिए बैटरियों को चार्ज करना जरूरी होता है, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह चार्जिंग बिजली कहां से आती है? अगर चार्जिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली बिजली पूरी तरह से ग्रीन एनर्जी से आ रही होती, तो इसे सही मायने में पर्यावरण के अनुकूल कहा जा सकता था।

लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत में 70 प्रतिशत बिजली कोयले से बनाई जाती है, जिसका मतलब यह है कि जब आप अपनी EV को चार्ज कर रहे होते हैं, तब भी Indirect रूप से Carbon Emissions कर रहे होते हैं।

अगर EVs को कोयले से बनी बिजली से चार्ज किया जाए और वह 1.5 लाख किलोमीटर चले, तो वह पेट्रोल कार के मुकाबले सिर्फ 20 प्रतिशत ही कम Carbon Emission करेगी। इसका मतलब यह है कि EVs पूरी तरह से कार्बन-फ्री नहीं हैं।

अगर चार्जिंग की मांग बढ़ती गई, तो बिजली उत्पादन में कोयले का इस्तेमाल और बढ़ेगा। इसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ेगा, जिससे प्रदूषण में कमी के बजाय इजाफा होगा।

EVs की बैटरियों की समस्या क्या है ?

EVs की बैटरियां जब खराब हो जाती हैं, तब इनका निपटारा करना एक और बड़ी समस्या बन जाती है। एक अनुमान के मुताबिक, दुनिया भर में सिर्फ 5 प्रतिशत EV बैटरियां ही रीसाइकिल हो पाती हैं, जबकि बाकी लैंडफिल में डाल दी जाती हैं।

EVs की बैटरियों को डिस्पोज़ करने में सबसे बड़ी समस्या यह है कि ये बैटरियां जहरीले रसायनों से बनी होती हैं, जो ज़मीन में जाकर मिट्टी और पानी को दूषित कर देती हैं। अगर EVs की संख्या तेजी से बढ़ी, तो यह बैटरियों के कचरे का एक नया संकट खड़ा कर सकता है, जिसका समाधान अभी तक नहीं निकाला गया है।

Conclusion

तो दोस्तों, EVs को पूरी तरह से गलत कहना सही नहीं होगा, लेकिन इन्हें वास्तव में पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए कई सुधारों की जरूरत है। हमें ऐसी बैटरियां विकसित करनी होंगी जो 100 प्रतिशत रीसाइकिल की जा सकें। इसके अलावा, EVs को चार्ज करने के लिए सोलर और विंड एनर्जी का इस्तेमाल बढ़ाना होगा, ताकि कोयले से बनने वाली बिजली पर निर्भरता कम हो।

इसके अलावा, अगर EVs को वाकई भविष्य बनाना है, तो हमें इसकी पूरी सप्लाई चेन को ग्रीन बनाना होगा। लेकिन जब तक इसका निर्माण, चार्जिंग और बैटरी डिस्पोजल की समस्या का समाधान नहीं निकाला जाता, तब तक इसे पूरी तरह से “ग्रीन” कहना एक आधा सच ही रहेगा। अब सवाल आप पर है – क्या EVs वाकई हमारे पर्यावरण को बचा सकते हैं, या यह सिर्फ एक भ्रम है?

अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।

GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।

अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”

Spread the love

Leave a Comment