नमस्कार दोस्तों, पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था में “Free ki Revdi ” और “Social safety net” पर चर्चा गहराई है। यह बहस केवल सरकार की नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के Long-term economic future और social development के लिए महत्वपूर्ण है। अजेंडा आजतक के मंच पर, भारत सरकार के Former Chief Economic Adviser, केबी सुब्रमण्यम ने इस विषय पर अपनी राय रखी। उन्होंने कहा कि Free ki Revdi जैसी योजनाएं जनता को instantaneous लाभ तो देती हैं, लेकिन ये असल में उनकी जेब पर बोझ डालती हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी नीतियां लंबे समय में अर्थव्यवस्था को कमजोर करती हैं और संसाधनों का दुरुपयोग करती हैं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
सुब्रमण्यम ने Free ki Revdi के बारे में क्या कहा?
सुब्रमण्यम ने Free ki Revdi के असर को समझाने के लिए एक व्यावहारिक उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि यदि सरकार के पास 100 रुपये हैं और उसमें से 93 रुपये Free ki Revdi बांट दी जाती है, तो केवल 7 रुपये बचते हैं, जो विकास कार्यों और बुनियादी सेवाओं के लिए अपर्याप्त हैं। इसके विपरीत, अगर वही 100 रुपये Health, Education, और Basic Infrastructure में Investment किए जाएं, तो इससे न केवल समाज में Long Term सुधार होगा, बल्कि आर्थिक प्रगति भी सुनिश्चित होगी। यह उदाहरण दिखाता है कि Free ki Revdi बांटना instantaneous राहत तो देता है, लेकिन यह long term stability को कमजोर कर सकता है।
सुब्रमण्यम ने Social safety net की जरूरत के बारे मे क्या बताया?
Free ki Revdi और Social safety net के बीच अंतर को समझना जरूरी है। सुब्रमण्यम ने कहा कि देश की 80 करोड़ जनता को मुफ्त अनाज और health services देना एक Social safety net का हिस्सा है, जो उन्हें गरीबी रेखा से नीचे जाने से बचाता है। इसके विपरीत, मुफ्त बिजली, पानी, और नकद राशि बांटने को Free ki Revdi कहा जा सकता है, जो केवल instantaneous राहत प्रदान करती है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि गरीबों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं की गई, तो वे एक बार फिर गरीबी के चक्र में फंस सकते हैं, जिससे देश की आर्थिक स्थिरता प्रभावित होगी।
सुब्रमण्यम, आयुष्मान भारत और सामाजिक सुधार को कैसे देखते हैं?
सुब्रमण्यम ने आयुष्मान भारत योजना को सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि बताया। उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त इलाज की सुविधा देकर, उनके Medical Expenses में 50% तक की कमी आई है। यह पहली बार हुआ है कि Health Services ने गरीबों के जीवन को इतना सकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। इसी तरह, प्रधानमंत्री आवास योजना ने लाखों लोगों को छत प्रदान की है, जिससे उनकी Quality of life में सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारों को केंद्र से सीखते हुए ऐसी योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो Long Term लाभ प्रदान करें।
सुब्रमण्यम ने राज्य और केंद्र सरकार के बीच तालमेल को लेकर क्या कहा?
राज्य और केंद्र सरकारों के बीच आर्थिक नीतियों के तालमेल की कमी को रेखांकित करते हुए, सुब्रमण्यम ने कहा कि राज्यों को अपनी कर्ज लेने की आदत और Free ki Revdi बांटने की Trend पर लगाम लगानी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि राज्यों का Debt-to-GDP ratio 50% तक पहुंच चुका है, जो एक आर्थिक संकट का संकेत है। इसके विपरीत, केंद्र सरकार ने अपनी नीतियों में संतुलन बनाए रखते हुए ऐसे कदम उठाए हैं, जो Long Term विकास और स्थिरता सुनिश्चित करते हैं। यह समय है कि राज्य और केंद्र मिलकर ऐसी नीतियां बनाएं, जो शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म आर्थिक जरूरतों को संतुलित करें।
कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती: वरदान है या अभिशाप?
अजेंडा आजतक के मंच पर एक सवाल उठा कि कॉर्पोरेट टैक्स में कटौती के बावजूद, कंपनियों ने अपने कर्मचारियों की सैलरी क्यों नहीं बढ़ाई। इस पर सुब्रमण्यम ने कहा कि यदि टैक्स दरें कम नहीं की गई होतीं, तो कोविड-19 महामारी के बाद भारत में बड़े पैमाने पर छंटनी देखने को मिल सकती थी। उन्होंने यह भी कहा कि टैक्स कटौती ने कंपनियों को अपनी Financial position सुधारने और रोजगार बचाने में मदद की। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि कंपनियों को इस लाभ का एक हिस्सा अपने कर्मचारियों की salary और कल्याण पर खर्च करना चाहिए, जो अभी तक पूरी तरह से नहीं हो पाया है।
महंगाई और आर्थिक स्थिरता पर सुब्रमण्यम ने क्या कहा?
सुब्रमण्यम ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महंगाई दर को नियंत्रित करने की दिशा में उठाए गए कदमों की सराहना की। उन्होंने कहा कि 2016 में महंगाई टारगेटिंग रिजीम लागू होने से पहले, भारत में हर महीने महंगाई दर 10% से अधिक थी। लेकिन अब, Global tensions और Geopolitical crises के बावजूद, भारत ने अपनी महंगाई दर को नियंत्रण में रखा है। यह उपलब्धि सरकार की स्थिर और कुशल आर्थिक नीतियों का परिणाम है। उन्होंने यह भी कहा कि महंगाई पर नियंत्रण ने न केवल Consumers को राहत दी है, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत बनाया है।
Free ki Revdi के, Long Term में क्या नुकसान देखने को मिल सकते हैं?
Free ki Revdi बांटना जनता को instantaneous रूप से आकर्षित कर सकता है, लेकिन इसके Long Term नुकसान गंभीर होते हैं। यह न केवल सरकारी खजाने पर बोझ डालता है, बल्कि समाज में आत्मनिर्भरता और उत्पादकता की भावना को भी कमजोर करता है। सुब्रमण्यम ने कहा कि सरकार को ऐसी नीतियों पर ध्यान देना चाहिए, जो जनता को आत्मनिर्भर बनाएं और देश की आर्थिक स्थिरता को बनाए रखें। उन्होंने यह भी कहा कि मुफ्त योजनाओं की बजाय Education, Health, और Basic Infrastructure में Investment करना ज्यादा लाभदायक है।
सामाजिक और आर्थिक जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाना क्यों जरूरी है?
Free ki Revdi और Social safety net के बीच संतुलन बनाना सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। एक ओर सरकार को गरीब और कमजोर वर्गों की जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए, वहीं दूसरी ओर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी काम करना चाहिए। सुब्रमण्यम ने जोर देकर कहा कि अगर सरकार Education, Health, और Basic Infrastructure पर Investment करती है, तो इससे न केवल समाज की गुणवत्ता में सुधार होगा, बल्कि long term economic growth भी सुनिश्चित होगी।
तो दोस्तों, Free ki Revdi और Social safety net के बीच यह बहस भारतीय अर्थव्यवस्था की दिशा को तय करने वाली है। यह स्पष्ट है कि instantaneous लाभ के लिए दी गई रेवड़ियां अर्थव्यवस्था को लंबे समय में कमजोर कर सकती हैं। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जो long term stability, आत्मनिर्भरता, और समृद्धि सुनिश्चित करें। आयुष्मान भारत और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि, सही दिशा में उठाए गए कदम समाज और अर्थव्यवस्था दोनों को सशक्त बना सकते हैं।
Conclusion:-
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