नमस्कार दोस्तों, एक अंधेरी रात, एक होटल के छोटे से कमरे में एक शख्स बैठा था। उसकी आंखों में एक अनकही बेचैनी थी, जैसे वह किसी अंतहीन संघर्ष से जूझ रहा हो। बाहर तेज़ बारिश हो रही थी, और खिड़की से आती ठंडी हवा उसे अतीत की यादों में ले जा रही थी।
उसके सामने एक लैपटॉप खुला था, लेकिन स्क्रीन पर कोई नौकरी से जुड़ा ईमेल या कोडिंग प्रोजेक्ट नहीं था। वह बार-बार अपने सोशल मीडिया अकाउंट को देख रहा था, जहां उसकी पहचान अब ‘IIT बाबा’ के नाम से हो चुकी थी।
कुछ देर बाद, उसने एक वीडियो रिकॉर्ड किया और उसमें कहा – “अब इस जीवन का कोई अर्थ नहीं रहा… मैं सबकुछ छोड़ चुका हूं, लेकिन शांति अब भी दूर है।” यह वीडियो वायरल हुआ, और उसके कुछ ही घंटों बाद पुलिस उसके दरवाजे पर थी। उसे हिरासत में ले लिया गया, लेकिन सवाल यह था कि आखिर एक IIT Baba, जो लाखों की कमाई कर सकता था, वह इस मोड़ पर कैसे आ गया? क्या यह आध्यात्मिक यात्रा थी, या फिर जीवन की असली चुनौतियों से भागने का एक तरीका? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
यह सफर शुरू हुआ था एक प्रतिभाशाली छात्र से, जिसने आईआईटी बॉम्बे में दाखिला लिया, एक सफल करियर बनाया, और फिर अचानक सबकुछ छोड़कर संन्यासी बन गया। यह सफर है अभय सिंह का, जो कभी एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के छात्र थे और बाद में आध्यात्म की राह पकड़कर ‘IIT बाबा’ के नाम से मशहूर हो गए। लेकिन सवाल यह उठता है – आखिर क्या वजह थी कि एक होनहार इंजीनियर, जिसने इतनी मेहनत से सफलता हासिल की, उसने यह रास्ता चुना? और क्या यह सफर उसे सच में शांति की ओर ले गया, या फिर यह एक भटकाव था?
अभय सिंह का जन्म हरियाणा के झज्जर जिले में हुआ। उनका बचपन एक सामान्य मध्यमवर्गीय परिवार में बीता। उनके माता-पिता की ख्वाहिश थी कि बेटा पढ़-लिखकर एक बड़ा आदमी बने, एक अच्छी नौकरी करे, और परिवार का नाम रोशन करे। लेकिन बचपन से ही अभय के भीतर कुछ अलग करने की जिज्ञासा थी। जब उन्होंने पहली बार सुना कि भारत में एक ऐसी परीक्षा होती है, जो देश के सबसे बुद्धिमान छात्रों को चुनती है – आईआईटी जेईई – तो उनके भीतर एक जुनून पैदा हुआ। वे जानते थे कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन उनके अंदर यह ठानने की ताकत थी कि वह इसे कर सकते हैं।
बारहवीं के बाद उन्होंने दिल्ली में कोचिंग जॉइन की। सुबह से लेकर रात तक किताबों में डूबे रहना, एक-एक सवाल को समझना, हर कॉन्सेप्ट को क्लियर करना – यह उनकी दिनचर्या बन गई। उनके दोस्तों के लिए मौज-मस्ती थी, लेकिन अभय के लिए केवल एक ही लक्ष्य था – आईआईटी में दाखिला। कई रातें उन्होंने बिना सोए बिता दीं, कठिन Mathematical equation हल करते हुए और Physics के जटिल सिद्धांतों को समझते हुए।
उनकी मेहनत रंग लाई और 2008 में उन्होंने जेईई परीक्षा में 731वीं ऑल इंडिया रैंक हासिल की। यह उनके परिवार के लिए गर्व का पल था। जब उन्हें आईआईटी बॉम्बे में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में दाखिला मिला, तो मानो उनका सपना सच हो गया। लेकिन क्या सच में यह सपना था, या फिर यह एक ऐसी दौड़ की शुरुआत थी, जिसका अंत उन्हें खुद भी नहीं पता था?
आईआईटी में चार साल बिताना आसान नहीं था। यह वह दौर था जब उनकी जिंदगी पूरी तरह से पढ़ाई और तकनीकी ज्ञान के इर्द-गिर्द घूमती थी। एयरोस्पेस इंजीनियरिंग कोई आसान कोर्स नहीं था, लेकिन अभय को नई-नई चीजें सीखने का जुनून था। उन्होंने अपनी पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी।
लेकिन इसी दौरान उन्होंने यह भी महसूस किया कि जीवन सिर्फ गणितीय समीकरणों और वैज्ञानिक प्रयोगों तक सीमित नहीं है। वे घंटों-घंटों तक सोचते रहते थे कि आखिर इस ज्ञान का अंतिम उद्देश्य क्या है? क्या वे सिर्फ एक सफल इंजीनियर बनने के लिए पैदा हुए थे, या फिर इस जीवन का कोई और अर्थ भी था?
ग्रेजुएशन के बाद, उन्होंने डिजाइन में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। इस दौरान उनकी रुचि फोटोग्राफी में भी बढ़ी। वे अपनी पढ़ाई के साथ-साथ कैमरा लेकर प्रकृति और इंसानों के भावों को कैद करने लगे। यह उनके लिए एक तरह से खुद को समझने का तरीका था। जब उन्हें कनाडा में एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी का प्रस्ताव मिला, तो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया। वहां उनका सालाना पैकेज 36 लाख रुपये था। उनके परिवार और दोस्तों के लिए यह एक बड़ी सफलता थी। लेकिन भीतर से अभय कुछ और ही महसूस कर रहे थे।
एक तरफ दुनिया की नजर में वे सफलता की ऊंचाइयों को छू रहे थे, लेकिन दूसरी तरफ उनका मन बेचैन था। एक आलीशान अपार्टमेंट, हाई-सैलरी, और आरामदायक जीवन – यह सब होने के बावजूद उन्हें भीतर से अधूरा महसूस होता था। ऑफिस की खिड़की से जब वे बाहर देखते, तो उन्हें लगता कि वे एक सोने के पिंजरे में कैद हैं। वे रोज़ सुबह उठते, ऑफिस जाते, कोडिंग करते, मीटिंग्स में शामिल होते और फिर थके-हारे घर लौट आते। यह दिनचर्या एक बंधन बन गई थी, एक ऐसी जंजीर, जिससे वे खुद को मुक्त करना चाहते थे।
तीन साल तक उन्होंने यह जीवन जिया, लेकिन एक दिन उन्होंने फैसला कर लिया – “अब और नहीं।” उन्होंने नौकरी छोड़ दी, अपने दोस्तों और परिवार से दूरी बना ली, और भारत लौट आए। यह वह समय था जब वे आध्यात्म की ओर आकर्षित हुए। वे हिमालय की ओर निकल पड़े, साधुओं और संन्यासियों के बीच रहने लगे, ध्यान और योग की शिक्षा लेने लगे। वे अपने भीतर के सवालों के जवाब तलाश रहे थे – “कौन हूं मैं? क्या चाहता हूं? क्या जीवन का कोई बड़ा उद्देश्य है?”
धीरे-धीरे, उन्होंने अपने पुराने नाम को छोड़ दिया और ‘IIT बाबा’ के नाम से पहचाने जाने लगे। सोशल मीडिया पर वे अपने विचार साझा करने लगे – जीवन, शांति, आध्यात्म, और भौतिकवाद से मुक्ति पर। उनके फॉलोअर्स बढ़ने लगे, लोग उनकी बातें सुनने लगे। कुछ उन्हें एक नई सोच वाला संत मानते, तो कुछ उन्हें एक भटका हुआ युवा समझते। लेकिन वह इस पहचान को स्वीकार कर चुके थे।
लेकिन असली मोड़ तब आया जब उन्होंने सोशल मीडिया पर एक आत्मघाती संदेश डाला। इस पोस्ट ने हलचल मचा दी। जयपुर पुलिस ने तुरंत एक्शन लिया, उनकी लोकेशन ट्रेस की, और उन्हें एक होटल से हिरासत में लिया। जब उनकी तलाशी ली गई, तो उनके पास से गांजा और अन्य नशीले पदार्थ बरामद हुए।
पुलिस ने एनडीपीएस एक्ट के तहत कार्रवाई की संभावना जताई, लेकिन बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया। यह खबर जंगल की आग की तरह फैल गई। लोग पूछने लगे – क्या आध्यात्म का रास्ता उन्हें वास्तव में शांति की ओर ले गया था, या वे अपनी ही बनाई हुई दुनिया में उलझ गए थे?
आईआईटी बाबा की यह कहानी एक ऐसे सवाल को जन्म देती है, जो आज के दौर में कई युवाओं के मन में उठता है – “क्या सफलता का मतलब सिर्फ एक बड़ी नौकरी और मोटी सैलरी है, या फिर जीवन में कुछ और भी मायने रखता है?”
आज जब हम इस कहानी को देखते हैं, तो यह सिर्फ अभय सिंह की कहानी नहीं लगती, बल्कि यह उन हजारों युवाओं की कहानी है, जो करियर की दौड़ में आगे तो निकल जाते हैं, लेकिन कहीं न कहीं खुद को खो देते हैं। कुछ इस खालीपन को स्वीकार कर लेते हैं, तो कुछ इसे भरने के लिए नए रास्ते तलाशते हैं।
अभय सिंह का सफर एक प्रेरणा भी है और एक चेतावनी भी। यह दिखाता है कि सफलता का पैमाना सिर्फ पैसे और पदों से नहीं मापा जा सकता। यह भी बताता है कि अगर हम अपने भीतर के सवालों को अनसुना कर देंगे, तो वे एक दिन हमें घेर ही लेंगे।
आज ‘IIT बाबा’ कहां हैं और उनके भविष्य की दिशा क्या होगी, यह तो समय ही बताएगा। लेकिन उनकी कहानी हमें यह जरूर सिखाती है कि जीवन की सबसे बड़ी खोज बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही होती है।
Conclusion
अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
GRT Business विभिन्न समाचार एजेंसियों, जनमत और सार्वजनिक स्रोतों से जानकारी लेकर आपके लिए सटीक और सत्यापित कंटेंट प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। हालांकि, किसी भी त्रुटि या विवाद के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं। हमारा उद्देश्य आपके ज्ञान को बढ़ाना और आपको सही तथ्यों से अवगत कराना है।
अधिक जानकारी के लिए आप हमारे GRT Business Youtube चैनल पर भी विजिट कर सकते हैं। धन्यवाद!”