नमस्कार दोस्तों, ज़रा सोचिए, अगर आपको बिना काम किए हर महीने एक निश्चित राशि मिल जाए, तो क्या आप मेहनत करने के लिए तैयार होंगे? क्या सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने वाले लोग अब काम करने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं?
एलएंडटी (Larsen & Toubro) के चेयरमैन एसएन Subrahmanyan ने एक ऐसा बयान दिया है, जिसने सोशल मीडिया पर नए विवाद को जन्म दे दिया है। कुछ दिन पहले 90 घंटे काम करने की सलाह देकर सुर्खियां बटोरने वाले Subrahmanyan ने इस बार कहा है कि, सरकारी योजनाओं की वजह से workers की संख्या घट रही है। उनका दावा है कि सरकार द्वारा दी जा रही आर्थिक मदद, और वेलफेयर स्कीम्स की वजह से मजदूर अब काम करने में रुचि नहीं दिखा रहे।
इस बयान के बाद सवाल उठने लगे हैं—क्या सच में सरकारी योजनाओं ने लोगों को इतना आराम पसंद बना दिया है कि वे अब काम ही नहीं करना चाहते? या फिर यह workers के अधिकारों और उनकी मेहनत पर सवाल उठाने की एक नई कोशिश है? आइए, इस पूरे मुद्दे को विस्तार से समझते हैं।
Subrahmanyan ने आखिर क्या कहा और क्यों मचा बवाल?
एलएंडटी चेयरमैन एसएन Subrahmanyan ने CII के मिस्टिक साउथ ग्लोबल लिंकाज समिट 2025 में हिस्सा लिया, जहां उन्होंने कंस्ट्रक्शन सेक्टर में workers की भारी कमी पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उनकी कंपनी किसी भी समय लगभग 2.5 लाख कर्मचारियों और 4 लाख मजदूरों को रोजगार देती है, लेकिन इस समय workers की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बन गई है। उन्होंने इस संकट के पीछे सरकारी योजनाओं को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि भारत में अब Worker, सरकारी वेलफेयर स्कीम्स और डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) के कारण काम करने के लिए तैयार नहीं हैं।
उनका मानना है कि सरकार द्वारा दी जा रही गरीब कल्याण योजना, जन धन बैंक खाते और मनरेगा जैसी योजनाओं की वजह से मजदूरों को आर्थिक स्थिरता मिल रही है, जिससे वे काम को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी। कुछ लोगों ने उनके तर्क का समर्थन किया, तो कुछ ने इसे workers के सम्मान और उनके अधिकारों पर हमला बताया
सरकारी योजनाएं मजदूरों को आलसी बना रही हैं?
Subrahmanyan का दावा है कि सरकारी वेलफेयर स्कीम्स की वजह से workers को अब पैसे की जरूरत महसूस नहीं होती, इसलिए वे मेहनत करने से बच रहे हैं। लेकिन क्या यह सच है? अगर हम मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) की बात करें, तो यह योजना ग्रामीण इलाकों के लोगों को कम से कम 100 दिन का रोजगार देने का वादा करती है। लेकिन क्या सिर्फ 100 दिन की मजदूरी लोगों को पूरे साल बिना काम किए गुजारा करने की सहूलियत देती है?
सरकारी योजनाओं का उद्देश्य गरीबों को आर्थिक सुरक्षा देना होता है, न कि उन्हें आलसी बनाना। अगर मजदूर सरकारी योजनाओं का फायदा उठा रहे हैं, तो यह सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है, न कि समस्या। लेकिन क्या वास्तव में लोग सिर्फ सरकारी मदद पर निर्भर होकर काम करने से पीछे हट रहे हैं, या फिर मजदूरी की शर्तें और Salary उन्हें आकर्षित नहीं कर पा रहे?
अगर भारत में workers की कमी हो रही है, तो क्या इसकी असली वजह यह नहीं हो सकती कि मजदूरों को उनकी मेहनत के मुताबिक Salary नहीं मिल रही? भारत में कई मजदूरों को Minimum Wage से भी कम पैसे दिए जाते हैं। कई बार उन्हें काम करने की असुरक्षित परिस्थितियों में रहना पड़ता है, जहां न तो उनके लिए सही सुरक्षा उपकरण होते हैं और न ही किसी प्रकार की गारंटी कि उन्हें हर महीने Wage समय पर मिलेगा।
क्या मजदूरों को मिलने वाली सैलरी और सुविधाएं इस कदर खराब हैं कि वे काम छोड़ना बेहतर समझते हैं? अगर वे विदेशों में काम करने चले जाते हैं, तो इसकी एक बड़ी वजह यह भी हो सकती है कि वहां उन्हें ज्यादा अच्छा Salary और सम्मानजनक कार्यक्षेत्र मिलता है।
इंजीनियरिंग और आईटी सेक्टर में भी यही समस्या है?
Subrahmanyan का बयान सिर्फ मजदूरों तक सीमित नहीं था। उन्होंने कहा कि यह समस्या केवल कंस्ट्रक्शन मजदूरों तक ही सीमित नहीं, बल्कि इंजीनियरिंग और आईटी सेक्टर में भी कर्मचारी अब पहले की तरह काम करने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने याद किया कि जब 1983 में उन्होंने एलएंडटी जॉइन किया था, तब उन्हें कहा गया था कि अगर आप चेन्नई से हैं, तो दिल्ली जाकर काम करें। लेकिन अब अगर किसी युवा इंजीनियर से कहा जाए कि वह चेन्नई से दिल्ली जाकर काम करे, तो वह सीधे इस्तीफा दे देता है।
आईटी सेक्टर में भी यह समस्या और ज्यादा स्पष्ट हो गई है, जहां वर्क फ्रॉम होम का कल्चर बढ़ गया है और कर्मचारी ऑफिस लौटने को तैयार नहीं हैं।
सवाल यह उठता है कि क्या यह बदलाव सिर्फ काम करने के प्रति मानसिकता की वजह से हो रहा है, या फिर कंपनियों को अपने कर्मचारियों को ज्यादा सुविधाएं और आकर्षक पैकेज देने की जरूरत है?
यह पहली बार नहीं है जब एसएन Subrahmanyan के बयान ने विवाद खड़ा किया है। इससे पहले उन्होंने कर्मचारियों को हफ्ते में 90 घंटे काम करने की सलाह दी थी, जिससे पूरा सोशल मीडिया उनके खिलाफ हो गया था। उन्होंने कहा था कि, “मुझे अफसोस है कि मैं आपसे रविवार को काम नहीं करवा पा रहा। अगर मैं ऐसा करवा पाऊं, तो ज्यादा खुशी होगी, क्योंकि मैं खुद रविवार को भी काम करता हूं।
” उन्होंने यहां तक कह दिया था कि, “घर पर बैठे-बैठे कब तक अपनी पत्नी को निहारोगे? चलो, ऑफिस जाओ और काम शुरू करो।” उनके इस बयान पर इतना बवाल मचा कि, एलएंडटी को स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा और कहना पड़ा कि उनके बयान को गलत तरीके से लिया गया है। अब जब उन्होंने सरकारी योजनाओं को लेकर बयान दिया है, तो एक बार फिर सोशल मीडिया पर उनकी आलोचना शुरू हो गई है।
Conclusion
तो दोस्तों, अगर हम ग्लोबल लेबर ट्रेंड की बात करें, तो दुनिया भर में काम करने की प्रवृत्ति बदल रही है। अब लोग सिर्फ पैसे के लिए नहीं, बल्कि अपने जीवन की गुणवत्ता के लिए भी काम करना चाहते हैं। अगर भारत में मजदूरों की कमी हो रही है, तो इसका कारण सरकारी योजनाओं से ज्यादा कम Salary, खराब कार्य परिस्थितियां और बेहतर अवसरों की तलाश हो सकता है।
एलएंडटी जैसी बड़ी कंपनियों को चाहिए कि वे मजदूरों और कर्मचारियों को बेहतर Salary, सुविधाएं और सुरक्षित कार्यक्षेत्र प्रदान करें, ताकि वे अपने काम से संतुष्ट रहें और बाहर जाने की जरूरत महसूस न करें। अब सवाल यह उठता है कि क्या Subrahmanyan का यह बयान वास्तव में सच है, या फिर यह सिर्फ एक नई बहस का मुद्दा है?
आपको क्या लगता है? क्या सरकारी योजनाओं ने मजदूरों को आलसी बना दिया है, या फिर कंपनियों को उन्हें बेहतर अवसर देने की जरूरत है? हमें कमेंट में अपनी राय बताएं और इस मुद्दे को लेकर अपनी राय शेयर करें!
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