Namita Thapar की सलाह पर छिड़ी बहस – शादी और बच्चे करने से पहले क्यों सोचें दो बार? 2025

नमस्कार दोस्तों, ज़रा सोचिए, आप सुबह से ऑफिस में बैठे हैं। घड़ी में रात के 9 बज रहे हैं, लेकिन आपकी टेबल पर काम का ढेर लगा हुआ है। आपकी आंखों में नींद है, लेकिन बॉस ने मेल किया है – “कल सुबह तक ये रिपोर्ट चाहिए।” आप थके हुए हैं, लेकिन काम खत्म करना जरूरी है। घर से पत्नी का फोन आता है – “तुम कब आओगे? बच्चे सोने जा रहे हैं।” आप जवाब देते हैं – “बस आधे घंटे में आ रहा हूं।” लेकिन आधे घंटे से पहले ही एक और मीटिंग का मेल आ जाता है। आप पत्नी का कॉल काटते हैं और काम में जुट जाते हैं।

अगले दिन बच्चे के स्कूल में पैरेंट्स मीटिंग होती है, लेकिन आप वहां भी नहीं पहुंच पाते। इस बार आपकी पत्नी कहती है – “अगर तुम्हें इस तरह से ही काम करना है तो फिर बच्चे क्यों किए?” आप कुछ नहीं कह पाते। मन में बस यही ख्याल आता है – क्या करियर और परिवार दोनों को एक साथ संभालना मुमकिन है?

या फिर करियर की रेस में दौड़ने वाले लोगों को शादी और बच्चे करने से पहले दो बार सोचना चाहिए? यही सवाल हाल ही में शार्क टैंक इंडिया की जानी-मानी इन्वेस्टर, और एमक्योर फार्मास्युटिकल्स की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर Namita Thapar ने उठाया है, जिससे सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

आपको बता दें कि Namita Thapar का बयान एक साधारण सलाह नहीं है। यह आज की तेज रफ्तार जिंदगी की एक कड़वी सच्चाई है। उन्होंने कहा कि जो लोग हफ्ते में 70 घंटे या उससे ज्यादा काम कर रहे हैं, उन्हें शादी और बच्चों के फैसले पर दोबारा विचार करना चाहिए। उनके अनुसार, जब कोई व्यक्ति माता-पिता बनता है, तो उसका यह फर्ज बनता है कि वह अपने बच्चे की देखभाल में भी उतनी ही जिम्मेदारी निभाए, जितनी अपने करियर में करता है।

अगर आप हर हफ्ते 70 घंटे काम कर रहे हैं, तो बच्चे और परिवार को समय कहां से मिलेगा? उनका मानना है कि सिर्फ पैसा कमाना ही काफी नहीं होता, परिवार को समय देना और उनके साथ मानसिक और भावनात्मक जुड़ाव बनाए रखना भी जरूरी है। उन्होंने सीधे-सीधे कहा कि अगर आप हफ्ते में 70 घंटे काम कर रहे हैं, तो आप अच्छे माता-पिता नहीं बन सकते। उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर भूचाल ला दिया है।

इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रिया मिलीजुली रही। कुछ लोगों ने Namita Thapar सलाह की सराहना की और कहा कि Namita Thapar ने एक कड़वी सच्चाई को सामने रखा है। लेकिन कुछ लोगों ने इसे एकतरफा और अव्यवहारिक करार दिया। एक यूजर ने लिखा – “अगर इसी तर्क को माना जाए तो डॉक्टर, नर्स और अन्य हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को बच्चे ही नहीं करने चाहिए, क्योंकि उनकी जॉब भी काफी डिमांडिंग होती है।

क्या इसका मतलब यह है कि कुछ पेशों के लोग शादी और परिवार से दूर ही रहें?” वहीं, कुछ लोगों ने इसे एक “अमीरों की सोच” बताया। एक यूजर ने लिखा – “हर कोई Namita Thapar नहीं होता। हम मिडिल क्लास लोग अगर 70 घंटे काम नहीं करेंगे तो बच्चों का पेट कैसे भरेंगे?”

लेकिन अगर इस मुद्दे को गहराई से समझा जाए तो इसमें एक बड़ी सच्चाई छिपी हुई है। आज के दौर में करियर की रेस इतनी तेज हो गई है कि लोग अपने परिवार को वक्त नहीं दे पा रहे हैं। खासकर शहरी जिंदगी में काम के घंटे लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

एक आम कर्मचारी हर दिन 9 से 12 घंटे तक काम करता है। फिर ट्रैफिक, ऑफिस की पॉलिटिक्स और डेडलाइन का दबाव उसे मानसिक रूप से थका देता है। ऐसे में बच्चे के लिए समय निकालना या पत्नी के साथ क्वालिटी टाइम बिताना आसान नहीं होता।

करियर और परिवार के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती बन चुका है। वर्किंग कपल्स के लिए स्थिति और भी मुश्किल हो जाती है। अगर पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं तो बच्चे की देखभाल किसके जिम्मे होगी? अक्सर महिलाओं पर ही इसका दबाव आ जाता है। एक तरफ करियर और दूसरी तरफ घर की जिम्मेदारियां – दोनों को निभाते-निभाते महिलाएं मानसिक रूप से टूटने लगती हैं। यहीं पर वर्क-लाइफ बैलेंस का सवाल उठता है।

Namita Thapar का बयान सिर्फ माता-पिता की जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं है। उन्होंने कंपनियों को भी इस समस्या का समाधान निकालने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि कंपनियों को अपने कर्मचारियों के वर्किंग ऑवर्स को बैलेंस करना चाहिए। हायर लेवल के मैनेजर्स को भले ही लंबे समय तक काम करना पड़े, लेकिन आम कर्मचारियों के लिए हर हफ्ते 70 घंटे काम करना एक सामान्य स्थिति नहीं होनी चाहिए। उनका कहना था कि कंपनियों को अपने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य, और उनके पारिवारिक जीवन के प्रति भी जिम्मेदार होना चाहिए।

लेकिन सवाल यही है कि क्या कंपनियां इस दिशा में कदम उठाएंगी? हाल के वर्षों में कई कंपनियां वर्क-फ्रॉम-होम, फ्लेक्सिबल वर्किंग ऑवर्स और हाइब्रिड वर्क मॉडल की शुरुआत कर चुकी हैं। लेकिन अभी भी ज्यादातर इंडस्ट्रीज में लंबे वर्किंग ऑवर्स को सफलता की कुंजी माना जाता है। खासकर कॉर्पोरेट और स्टार्टअप कल्चर में 12 से 14 घंटे काम करना सामान्य समझा जाता है। लेकिन इसका असर कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।

वर्क-लाइफ बैलेंस की कमी के कारण मानसिक तनाव, एंग्जायटी, डिप्रेशन और हार्ट डिजीज जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। रिसर्च के अनुसार, लंबे समय तक काम करने वाले कर्मचारियों में मानसिक तनाव और शारीरिक बीमारियों का खतरा दोगुना होता है। W H O (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल लाखों लोग ज्यादा काम करने के कारण हार्ट अटैक और स्ट्रोक के शिकार हो रहे हैं।

यही वजह है कि Namita Thapar का बयान सिर्फ एक व्यक्तिगत राय नहीं है, बल्कि ये एक वैश्विक समस्या की ओर इशारा करता है। अगर कंपनियों ने इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए तो आने वाले समय में इसका असर कंपनियों की प्रोडक्टिविटी पर भी पड़ेगा। लंबे समय तक काम करने वाले कर्मचारी ज्यादा समय तक स्वस्थ नहीं रह सकते। इसका असर कंपनी की परफॉर्मेंस पर भी पड़ेगा।

शादी और बच्चों के फैसले पर दोबारा विचार करने की सलाह देने का मतलब यह नहीं है कि, करियर और परिवार के बीच किसी एक को चुनना जरूरी है। इसका मतलब यह है कि अगर आप माता-पिता बन रहे हैं तो अपने बच्चे को समय देना भी उतना ही जरूरी है जितना करियर को। अगर आप बच्चों को समय नहीं देंगे, तो उनका मानसिक और भावनात्मक विकास प्रभावित होगा।

Namita Thapar के इस बयान ने जो बहस छेड़ी है, वह केवल एक चर्चा नहीं है – यह एक सच्चाई है, जिससे हम सभी को आंखें खोलने की जरूरत है। करियर जरूरी है, लेकिन परिवार की अहमियत को नज़रअंदाज करके आप खुद को कभी खुश नहीं रख पाएंगे। इसलिए अगर आप शादी और बच्चे का फैसला ले रहे हैं तो सोचिए – क्या आप अपने बच्चे को समय दे पाएंगे? क्या आप परिवार के लिए भावनात्मक रूप से मौजूद रह पाएंगे? अगर इसका जवाब हां है, तो ही ये फैसला लीजिए। वरना करियर की रेस में दौड़ते-दौड़ते एक दिन आप पाएंगे कि आपने बहुत कुछ खो दिया है। और वो जो खोया है, उसे दोबारा पाना नामुमकिन होगा।

Conclusion

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