नमस्कार दोस्तों, दक्षिण अमेरिका की पहाड़ियों के बीच बसे एक शांत से इलाके में अचानक हलचल बढ़ने लगी। न तो वहाँ कोई युद्ध हुआ, न ही कोई प्राकृतिक आपदा… लेकिन फिर भी लोग भयभीत थे। स्थानीय नेताओं की आंखों में चिंता साफ झलक रही थी।
और जब मीडिया ने इस हलचल की जड़ तक पहुंचने की कोशिश की, तो जो सामने आया, उसने सबको हैरान कर दिया। यह किसी आतंकी संगठन का हमला नहीं था, न ही किसी ड्रग कार्टेल का घोटाला… ये सब हो रहा था एक ऐसे व्यक्ति के इशारों पर, जो खुद को “भगवान” कहता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं Nityananda की—उस व्यक्ति की जो कभी भारत की आध्यात्मिक गलियों में मशहूर था, और अब अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है।
Nityananda, जिसने पहले ही ‘कैलासा’ नामक फर्जी देश बनाकर दुनिया को चौंका दिया था, अब एक और कारनामा करके फिर से सुर्खियों में आ गया है। इस बार उसका निशाना बना है—दक्षिण अमेरिका का छोटा लेकिन महत्वपूर्ण देश, बोलविया। दावा किया जा रहा है कि Nityananda और उसके अनुयायियों ने मिलकर बोलविया की 4.8 लाख हेक्टेयर, यानी लगभग 11.8 लाख एकड़ जमीन को धोखाधड़ी से अपने कब्जे में ले लिया। और इस कब्जे के पीछे थी एक सुनियोजित रणनीति, जो महीनों से चुपचाप चल रही थी।
बताया जा रहा है कि Nityananda ने अपने तथाकथित ‘कैलासा’ के विस्तार की योजना बनाई थी। वह चाहता था कि कैलासा का भूगोल सिर्फ एक द्वीप या काल्पनिक मानचित्र तक सीमित न रहे, बल्कि उसका वास्तविक अस्तित्व भी हो। इसके लिए उसने दक्षिण अमेरिका के जंगलों में बसे बोलविया को चुना। क्योंकि एक तो वहां की जनजातियों तक खबरें धीरे पहुंचती हैं, और दूसरा, सरकार की नजर इन इलाकों पर अक्सर नहीं पड़ती।
यही मौका था Nityananda के लिए। उसके प्रतिनिधि कई महीनों तक बोलविया में मौजूद रहे। उन्होंने स्थानीय जनजातीय नेताओं को बहलाया, लालच दिया और फिर जमीन खरीदने की प्रक्रिया शुरू की। आरोप है कि इस जमीन की डील पूरी तरह से धोखाधड़ी पर आधारित थी। Nityananda की टीम ने 1,000 साल के पट्टे पर जमीन लेने का प्रस्ताव रखा, जिसमें सालाना 9 लाख रुपये देने की बात कही गई थी। मासिक राशि 74,667 रुपये और दैनिक राशि 2,455 रुपये तय की गई थी। पहली नजर में यह एक वैध सौदा लगता है, लेकिन असल में ये सिर्फ एक आवरण था, पीछे का खेल कहीं गहरा था।
कहा जाता है कि जमीन खरीदने के बाद Nityananda की योजना थी कि वो इस पूरी जमीन को ‘कैलासा के नए भूभाग’ के रूप में घोषित कर दे। इसका मतलब यह होता कि अब कैलासा की भौगोलिक सीमाएं दक्षिण अमेरिका तक फैल चुकी हैं। और अगर यह योजना सफल हो जाती, तो दुनिया को एक नया संकट झेलना पड़ता—एक फर्जी देश, जो किसी नियम-कानून को नहीं मानता, लेकिन धीरे-धीरे वास्तविकता में तब्दील हो रहा है।
लेकिन Nityananda की ये चाल ज्यादा दिन छिप नहीं पाई। स्थानीय मीडिया को इस जमीन सौदे की भनक लग गई। उन्होंने रिपोर्टिंग शुरू की, और जल्द ही यह खबर आग की तरह फैल गई। जब सरकार तक यह जानकारी पहुंची, तो बोलविया के विदेश मंत्रालय को तुरंत बयान जारी करना पड़ा। उन्होंने साफ कहा कि वे “संयुक्त राज्य कैलासा” नामक किसी तथाकथित राष्ट्र को मान्यता नहीं देते और न ही उनके साथ कोई राजनयिक संबंध रखते हैं।
बोलविया की सरकार ने इस डील को अवैध घोषित कर दिया और मामले की जांच शुरू कर दी। लेकिन इससे पहले कि कोई कानूनी कार्रवाई होती, Nityananda और उसके चेले वहां से गायब हो चुके थे। कहा जा रहा है कि उन्होंने मीडिया पर दबाव डालने और स्थानीय पत्रकारों को धमकाने की भी कोशिश की थी, ताकि ये खबरें बाहर न आएं। लेकिन अब यह मामला अंतरराष्ट्रीय पटल पर छा चुका है।
Nityananda कोई नया नाम नहीं है। वो साल 2010 में उस समय पहली बार विवादों में आया जब उसकी एक अश्लील सीडी सामने आई, जिसके बाद उसकी गिरफ्तारी हुई। फिर 2012 में उस पर दुष्कर्म के आरोप लगे। इसके बाद 2019 में उस पर दो नाबालिग लड़कियों के अपहरण और बंदी बनाकर रखने का मामला दर्ज हुआ। और तभी से वह भारत से फरार है। पुलिस और एजेंसियां उसकी तलाश में हैं, लेकिन अब तक उसका कोई ठोस सुराग नहीं मिला है।
भारत से भागने के बाद Nityananda ने एक नई चाल चली। उसने एक द्वीप पर कैलासा नामक ‘राष्ट्र’ की घोषणा की। इस फर्जी देश के पास उसका खुद का झंडा है, मुद्रा है, संविधान है, यहां तक कि ‘संयुक्त राष्ट्र’ जैसे संगठनों को प्रभावित करने के लिए उसने अपने खुद के प्रतिनिधि तक भेजे। कुछ अफ्रीकी देशों के छोटे कस्बों और नेताओं से उसने तथाकथित समझौते किए, जिससे यह दिखाया जा सके कि दुनिया कैलासा को एक वैध राष्ट्र मान रही है। लेकिन सच्चाई यह है कि संयुक्त राष्ट्र और कोई भी वैध सरकार कैलासा को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं देती।
और अब जब कैलासा की सीमाएं फैलाने की कोशिश हो रही है, तो सवाल उठता है कि आखिर Nityananda का मकसद क्या है? क्या यह केवल धर्म की आड़ में एक राजनीतिक सत्ता स्थापित करने की साजिश है? या फिर एक भगोड़े अपराधी की सनक, जो खुद को किसी आभासी साम्राज्य का राजा मान बैठा है?
हालांकि, बोलविया की जमीन हड़पना कोई साधारण घोटाला नहीं है। यह एक देश की संप्रभुता पर हमला है। अगर आज दुनिया इस पर चुप रहती है, तो कल कोई और स्वयंभू भगवान इसी तरह किसी और देश में घुसकर अपने राज्य की घोषणा कर देगा। इसीलिए अब जरूरी है कि Nityananda को सिर्फ भारत का अपराधी मानकर न छोड़ दिया जाए, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चुनौती दी जाए।
भारत सरकार के लिए भी अब यह एक परीक्षा की घड़ी है। जिस व्यक्ति पर देश के कानूनों को तोड़ने, लड़कियों का अपहरण करने और बलात्कार के आरोप हैं, वह खुलेआम विदेशी जमीन पर कब्जा कर रहा है। उसके खिलाफ इंटरपोल रेड कॉर्नर नोटिस क्यों नहीं जारी होता? क्या अब भी उसे साधु-संतों की श्रेणी में रखा जाएगा या कानून अपना काम करेगा?
दूसरी ओर, मीडिया और जनता को भी सतर्क रहना होगा। Nityananda जैसे लोग धार्मिक आस्था का लाभ उठाते हैं। वे चमत्कार, प्रवचन और अध्यात्म के नाम पर लोगों को अपने जाल में फंसाते हैं। और जब उनके पास एक समुदाय बन जाता है, तो वो खुद को सत्ता का प्रतीक मानने लगते हैं। यही हुआ कैलासा में और अब वही बोलविया में दोहराया जा रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम से एक और बात सामने आती है—कैसे धोखाधड़ी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अंजाम दिया जा सकता है। Nityananda और उसकी टीम ने बहुत सोच-समझकर जगह चुनी, प्रक्रिया अपनाई और कानूनी दस्तावेज तैयार किए। यह एक सुनियोजित साजिश थी, जिसे अगर समय रहते रोका न जाता, तो आज कैलासा का नक्शा हमारे विश्व मानचित्र में जुड़ चुका होता।
अब समय है कार्रवाई का। और यह कार्रवाई केवल सरकारों की नहीं, जनता की भी होनी चाहिए। नित्यानंद जैसे लोगों को समर्थन देने वाले, उनके प्रवचनों से प्रभावित होकर उन्हें “भगवान” मानने वाले लोगों को समझना होगा कि यह सब केवल एक भ्रम है। अगर आज हम आंखें बंद कर लेंगे, तो कल नित्यानंद के जैसे और भी निकलेंगे—और शायद वो आपकी ज़मीन पर दावा कर देंगे।
आज ये बोलविया की कहानी है। कल यह भारत, नेपाल या श्रीलंका की भी हो सकती है। इसलिए न केवल कानून को सख्ती दिखानी होगी, बल्कि धर्म और कानून के बीच की रेखा को स्पष्ट करना होगा। नित्यानंद जैसे लोग न तो संत हैं और न ही नेता—वे केवल अपराधी हैं, जो अपनी सजा से बचने के लिए धर्म का चोला पहन चुके हैं। इस बार नित्यानंद की साजिश तो फेल हो गई, लेकिन सवाल यही है—अगली बार वो किस देश की ज़मीन पर पैर रखने की कोशिश करेगा?
Conclusion
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