मुंबई के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के सेंट्रल ऑफिस में इस वक्त हलचल कुछ ज़्यादा ही है। सुई की तरह सबकी नज़रें एक ही चेयर पर टिकी हैं—डिप्टी गवर्नर की उस कुर्सी पर, जो देश की monetary policies को दिशा देती है, फैसले लेती है और अर्थव्यवस्था की चाल को तय करती है।
महीनों तक खाली रही इस कुर्सी को अब एक ऐसा नाम मिला है, जो भारत की आर्थिक नीतियों में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है—doctor Poonam Gupta। लेकिन सवाल यह है कि कौन हैं Poonam Gupta? वो महिला जो IMF और वर्ल्ड बैंक से लेकर नीति आयोग और FICCI तक हर बड़े मंच पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवा चुकी हैं। क्या वो RBI की नीतियों में कोई बड़ा बदलाव लाने जा रही हैं? क्या उनकी नियुक्ति देश के आर्थिक भविष्य का ट्रैक बदल सकती है? आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
doctor Poonam Gupta का नाम सुनते ही एक गंभीर लेकिन शांत छवि सामने आती है। वो उन लोगों में से हैं, जो लाइमलाइट से दूर रहकर भी सबसे प्रभावशाली फैसले लेती हैं। उन्होंने जनवरी 2025 में माइकल देबव्रत पात्रा के पद छोड़ने के बाद रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की डिप्टी गवर्नर के रूप में कार्यभार संभाला है।
यह नियुक्ति केवल एक पद पर बैठने की बात नहीं है, यह एक ऐसे प्रोफेशनल की वापसी है जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय नीतियों की बात की है, उन्हें आकार दिया है और अब उसी अनुभव को भारत के भीतर लागू करने जा रही हैं। उनका कार्यकाल तीन वर्षों का होगा, लेकिन जानकारों का मानना है कि तीन साल में वो RBI के स्वरूप और काम के तरीके में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।
अगर उनके करियर की बात करें, तो एक सामान्य भारतीय महिला से लेकर IMF, World Bank और अब RBI तक का सफर किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं लगता। वर्तमान में वे नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च यानी NCAER की महानिदेशक थीं। यह संस्था भारत की प्रमुख Economic Research Institutes में से एक है, और Poonam Gupta इसके नेतृत्व में 2021 से ही कार्यरत थीं। यह वही दौर था जब दुनिया कोविड की मार से जूझ रही थी और भारत की अर्थव्यवस्था एक टर्निंग पॉइंट पर थी। ऐसे समय में उनका नेतृत्व, उनके विश्लेषण और उनके शोध ने भारत सरकार और Financial institutions को ज़रूरी दिशा देने का काम किया।
doctor Poonam Gupta की पढ़ाई की बात करें तो उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की है, और उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में मैक्रोइकॉनॉमिक्स, फिस्कल पॉलिसी, और सेंट्रल बैंकिंग जैसे जटिल और तकनीकी विषय शामिल हैं। ये वो क्षेत्र हैं जिन पर किसी भी देश की आर्थिक नींव टिकी होती है। लेकिन उनकी असली ताकत सिर्फ किताबों में नहीं, बल्कि अनुभव में है। उन्होंने वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड यानी IMF जैसे संस्थानों में दो दशकों से अधिक समय तक काम किया है। इन संस्थानों में उन्होंने सिर्फ कागज़ी विश्लेषण नहीं किया, बल्कि विश्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर नीतिगत सलाह देने से लेकर, रिसर्च रिपोर्ट तैयार करने तक—हर भूमिका को निभाया।
यह अनुभव अब सीधे भारत के काम आने वाला है। वैश्विक मंदी, डॉलर की उथल-पुथल, अंतरराष्ट्रीय ब्याज दरों का संकट और रूस-यूक्रेन जैसे युद्धों के दौर में भारत जैसी अर्थव्यवस्था को जिन कंधों की ज़रूरत है, वो Poonam Gupta जैसे कंधे ही हो सकते हैं। उनकी सोच वैश्विक है, लेकिन नज़र स्थानीय—और यही उनका सबसे बड़ा बल है।
Poonam Gupta की विशिष्टताओं में केवल प्रशासनिक अनुभव नहीं बल्कि अकादमिक योग्यता भी गजब की है। उन्होंने कई प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफेसर के तौर पर काम किया है। उनके रिसर्च पेपर इंटरनेशनल जर्नल्स में प्रकाशित हुए हैं, जिनमें उन्होंने monetary policy, economic reforms, और Exchange rate जैसे विषयों को बेहद सरल और गहराई से प्रस्तुत किया है। एक अर्थशास्त्री के तौर पर उनका प्रभाव केवल संस्थानों में नहीं, बल्कि विचारों में भी है।
उनके काम करने की शैली की बात करें तो वो बेहद तथ्य-आधारित, रिसर्च-सेंट्रिक और परिणामों पर केंद्रित होती हैं। यही वजह है कि वो IMF और वर्ल्ड बैंक में बार-बार अहम ज़िम्मेदारियों के लिए चुनी जाती रहीं। जब कोई व्यक्ति इन दोनों संस्थानों में दो दशकों तक काम करता है, तो उसके निर्णय केवल उस देश को नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्रीय या global level को प्रभावित करते हैं।
Poonam Gupta ने न केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है, बल्कि भारत के भीतर भी नीति आयोग और FICCI जैसे उच्चस्तरीय सलाहकार समूहों की सदस्य रही हैं। ये वो मंच हैं जहां से नीतियां निकलती हैं और उन्हीं नीतियों पर भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती है। इसलिए जब RBI जैसी संस्था में उनकी नियुक्ति होती है, तो वह केवल एक प्रशासनिक बदलाव नहीं बल्कि नीति निर्माण के एक नए दौर की शुरुआत हो सकती है।
उनके पूर्ववर्ती माइकल देबव्रत पात्रा भी एक बेहद योग्य अधिकारी थे। उन्होंने IIT मुंबई से पीएचडी की थी और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पोस्ट डॉक्टरेट फेलोशिप पूरी की थी। 1985 में RBI से जुड़े पात्रा ने monetary policy से लेकर अंतरराष्ट्रीय वित्त तक के क्षेत्रों में गहरा योगदान दिया। लेकिन अब baton यानी जिम्मेदारी Poonam Gupta के हाथ में है, और उनसे उम्मीदें बहुत हैं। देश को यह भरोसा है कि वो अपनी पूर्ववर्ती की विरासत को आगे बढ़ाएंगी और नए आयाम जोड़ेंगी।
जहां तक उनकी सैलरी और सुविधाओं की बात है, जी न्यूज की एक रिपोर्ट के अनुसार उन्हें हर महीने 2,25,000 रुपये का वेतन मिलेगा। इसके अलावा उन्हें डिप्टी गवर्नर होने के नाते कई तरह के भत्ते और विशेष सुविधाएं मिलेंगी—जैसे महंगाई भत्ता, शिक्षा भत्ता, फर्नीचर भत्ता, टेलीफोन और चिकित्सा सुविधाएं। साथ ही उन्हें एक बड़ा और सुविधाजनक आवास भी आरबीआई द्वारा मुहैया कराया जाएगा, जो एक डिप्टी गवर्नर के गरिमा के अनुरूप होता है। लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि Poonam Gupta के लिए यह कोई लग्ज़री है, तो आप गलत हैं। यह उनके दशकों की मेहनत और ईमानदारी का पुरस्कार है।
आज जब भारत एक Global economic power बनने की ओर अग्रसर है, तो Poonam Gupta जैसी शख्सियत की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। उनके अनुभव का फायदा न केवल नीतिगत फैसलों में मिलेगा, बल्कि उनके विश्लेषण से RBI की रिपोर्ट्स और आउटलुक को भी मजबूती मिलेगी। उनकी मौजूदगी यह भरोसा दिलाती है कि भारत की मौद्रिक नीति अब और अधिक मजबूत, वैज्ञानिक और वैश्विक संदर्भों के अनुरूप होगी।
Financial experts का भी मानना है कि उनकी नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब दुनिया एक नई आर्थिक दिशा की तलाश में है। पश्चिमी देशों की बैंकिंग प्रणाली डगमगाने लगी है, डॉलर के वर्चस्व को चुनौती मिलने लगी है और एशिया की ताकत लगातार बढ़ रही है। ऐसे में Poonam Gupta की सोच, जो पश्चिमी नीतियों को भी जानती है और एशियाई ज़मीनी सच्चाइयों को भी समझती है, वह आरबीआई को एक संतुलन प्रदान कर सकती है।
अब जबकि देश की आर्थिक बागडोर धीरे-धीरे महिलाओं के हाथ में भी आने लगी है, Poonam Gupta एक रोल मॉडल बन चुकी हैं। वो उन लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा हैं, जो सोचती हैं कि बड़े पद केवल पुरुषों के लिए ही बने हैं। उन्होंने साबित किया कि अगर लगन हो, शिक्षा हो और सोच वैश्विक हो, तो कोई भी कुर्सी दूर नहीं।
Conclusion
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