Raghav Chadha का अमेरिका पर करारा जवाब: डिप्लोमेसी में दिखा नया आत्मविश्वास! 2025

जब संसद के भीतर किसी नेता के मुंह से ये ग़ज़ल निकलती है, अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का…” तो समझिए बात महज़ इश्क़ की नहीं, बल्कि एक गहरे विश्वासघात की है। लेकिन ये शिकायत महबूब से नहीं, बल्कि एक ऐसे देश से है जिसे भारत ने हमेशा दोस्त माना, साथ दिया, उसकी तरक्की में चुपचाप भागीदार बना, लेकिन अब वही देश भारत की पीठ में छुरा घोंपता नज़र आ रहा है। ये कहानी है अमेरिका की, और संसद में ये आवाज़ उठाई है आम आदमी पार्टी के युवा सांसद Raghav Chadha ने। उन्होंने राज्यसभा में जो मुद्दे उठाए, वो केवल आर्थिक आंकड़े नहीं थे, वो भारत की संप्रभुता, सुरक्षा और स्वाभिमान से जुड़े सवाल थे।

गुरुवार का दिन संसद में हमेशा की तरह शांत नहीं था। इस दिन राज्यसभा के भीतर एक ऐसा भाषण गूंजा जिसने भारत और अमेरिका के संबंधों की परतें खोल कर रख दीं। आम आदमी पार्टी के सांसद Raghav Chadha ने जब अमेरिकी कंपनी स्टारलिंक की भारत में एंट्री पर सवाल उठाया, तब मामला सिर्फ एक निजी कंपनी तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने जो कुछ कहा, उसमें भारत की अर्थव्यवस्था, साइबर सिक्योरिटी, डेटा प्राइवेसी और सबसे बड़ी बात, राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताएं शामिल थीं। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।

Raghav Chadha ने आरोप लगाया कि भारत ने अमेरिका की दोस्ती निभाने में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। फिर चाहे वह अमेरिकी टेक कंपनियों को राहत देना हो, या फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अमेरिका का समर्थन करना। लेकिन बदले में अमेरिका ने क्या किया? भारत के Products पर 26 प्रतिशत का भारी टैरिफ लगा दिया। ये सीधा हमला है भारत की अर्थव्यवस्था पर, उन छोटे और मझौले कारोबारों पर जो अपने Product विदेश भेजते हैं और global बाज़ार में टिकने की कोशिश करते हैं।

चड्ढा का कहना था कि भारत ने अमेरिका को फायदा पहुंचाने के लिए अपने ही खजाने को खाली कर दिया। उन्होंने उदाहरण दिया कि भारत सरकार ने अमेरिकी कंपनियों जैसे मेटा, अमेज़न और गूगल को खुश करने के लिए इक्विलाइजेशन लेवी हटा दी। इस फैसले से भारत को करीब 3,000 करोड़ रुपये का Revenue नुकसान हुआ। यानि कि जो पैसा भारत सरकार को मिलना चाहिए था, वो अब अमेरिकी कंपनियों की जेब में जा रहा है। और इसके बाद, अमेरिका ने भारत के माल पर भारी टैक्स लगाकर और बड़ा नुकसान कर डाला।

यहां चड्ढा का व्यंग्य तीखा था। उन्होंने कहा, “हमने अमेरिका का दिल जीतने के लिए सब कुछ किया, लेकिन बदले में हमें क्या मिला? 26 प्रतिशत टैरिफ का धोखा।” और फिर उन्होंने ग़ज़ल का वो शेर दोहराया जिसने पूरे सदन को चौंका दिया – “अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का, यार ने ही लूट लिया घर यार का।” यह महज़ शेर नहीं था, यह भारत की विदेश नीति पर एक तीखा व्यंग्य था।

लेकिन Raghav Chadha यहीं नहीं रुके। उन्होंने स्टारलिंक को लेकर भी चिंता जताई। एलन मस्क की यह कंपनी भारत में ब्रॉडबैंड सेवाएं शुरू करने की तैयारी में है। लेकिन इसके पीछे छिपे खतरे शायद आम नागरिकों को समझ में न आएं, पर Raghav Chadha ने उन्हें उजागर करने की कोशिश की। उन्होंने संसद में कहा कि भारत सरकार को इस कंपनी को दी जाने वाली मंजूरी पर गंभीरता से पुनर्विचार करना चाहिए। और यही नहीं, उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार इस मंजूरी को अमेरिका के साथ चल रही टैरिफ बातचीत में एक ‘बर्गेनिंग चिप’ यानी सौदेबाज़ी का ज़रिया बना सकती है।

उन्होंने अंडमान में पकड़े गए 6,000 किलो सिंथेटिक ड्रग्स की घटना का उदाहरण दिया। इसमें म्यांमार के ड्रग तस्कर स्टारलिंक के सैटेलाइट इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहे थे। भारत ने जब जांच के दौरान स्टारलिंक से डेटा मांगा, तो कंपनी ने “डेटा प्राइवेसी कानून” का हवाला देते हुए सहयोग करने से इनकार कर दिया। चड्ढा का सवाल था कि जब भारत में अपराधी तकनीक का उपयोग कर रहे हैं, तो कंपनियां सुरक्षा एजेंसियों से सहयोग क्यों नहीं करतीं?

Raghav Chadha ने सरकार से दो सीधे सवाल पूछे: पहला, “सरकार स्टारलिंक जैसी कंपनियों से आने वाले प्रतिरोध से कैसे निपटेगी?” और दूसरा, “सरकार सैटेलाइट स्पेक्ट्रम के संभावित दुरुपयोग से कैसे निपटेगी?” इन दोनों सवालों का जवाब हर उस देशवासी को जानना चाहिए जो साइबर स्पेस की ताकत और खतरे को समझता है।

भारत जैसे देश के लिए जहां डिजिटल युग में डेटा नया धन है, और तकनीक नई ताकत – वहां किसी विदेशी कंपनी को बेतुकी छूट देना आत्मघाती हो सकता है। और जब वही देश भारत के व्यापार को टैरिफ लगाकर चोट पहुंचा रहा हो, तो फिर सवाल उठाना जरूरी हो जाता है।

ये बात किसी एक पार्टी की नहीं है। ये भारत की सुरक्षा, उसकी अर्थव्यवस्था और उसके भविष्य से जुड़ी बात है। Raghav Chadha ने संसद में जो कहा, वह भारत की नीतियों की परीक्षा का समय है। क्या सरकार अमेरिका से सिर्फ संबंधों की गर्माहट के लिए राष्ट्रीय हितों को ताक पर रखेगी? या अब समय आ गया है कि भारत भी अपने हितों को प्राथमिकता देना सीखे?

Raghav Chadha ने इस पूरे मुद्दे को एक परत-दर-परत खोला। उन्होंने कहा कि अमेरिका भारत से फायदा उठाने में कोई कोताही नहीं करता। चाहे तकनीकी निवेश की बात हो या बाज़ार में अपने Products की खपत – अमेरिका ने हर मोर्चे पर भारत से सहयोग लिया है। लेकिन जब बात आती है बराबरी के व्यवहार की, तो अमेरिका अपने फायदे की ही सोचता है।

उन्होंने भारत सरकार से यह भी पूछा कि क्या हमारी विदेश नीति में अब भी अमेरिका के प्रति अंधभक्ति बनी रहेगी, या हम आत्मसम्मान के साथ बातचीत करना सीखेंगे? और ये सवाल सिर्फ सरकार से नहीं है, बल्कि हम सब नागरिकों से भी है – क्या हम अमेरिका से तकनीक खरीदते वक्त, सोशल मीडिया ऐप्स का इस्तेमाल करते वक्त, या foreign investment का स्वागत करते वक्त अपने देश के हितों को प्राथमिकता पर रख पाते हैं?

Raghav Chadha ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि भारत को अब टैलेंट और टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनना होगा। हमें अपनी कंपनियों को global level पर प्रतिस्पर्धी बनाना होगा ताकि हमें अमेरिकी कंपनियों की शरण में न जाना पड़े। और सबसे जरूरी – सरकार को अपने नीति-निर्धारण में राष्ट्रीय सुरक्षा, डेटा संप्रभुता और सामरिक महत्व को सर्वोपरि रखना होगा।

चड्ढा की बातें जितनी सच थीं, उतनी ही कटु भी। लेकिन कभी-कभी कड़वी दवा ही इलाज करती है। उन्होंने जो सवाल उठाए हैं, वो केवल वर्तमान की चिंता नहीं, बल्कि भविष्य की चेतावनी हैं। अगर आज हम नहीं जागे, तो आने वाला कल किसी और के हाथों में हो सकता है।

और यही वजह है कि उनका संसद में दिया गया बयान केवल एक राजनीतिक हमला नहीं था, बल्कि एक राष्ट्रवादी चेतावनी थी। उन्होंने गिनाई, लेकिन साथ ही यह भी दिखाया कि अब भारत को आत्मनिर्भर और सजग बनना होगा।

तो सवाल ये है कि क्या भारत सरकार इन सवालों का जवाब दे पाएगी? क्या अमेरिका की कंपनियों पर आंख मूंदकर भरोसा करना सही है? और क्या अब समय आ गया है कि भारत अपनी नीति में “स्वदेशी प्राथमिकता” को फिर से जीवित करे?

वीडियो के अंत में हम आपसे यही पूछना चाहेंगे – क्या आपको लगता है कि अमेरिका के साथ भारत को अब आंखों में आंखें डालकर बात करनी चाहिए? क्या स्टारलिंक जैसी कंपनियों पर नियंत्रण जरूरी है? और क्या भारत को अपनी टेक्नोलॉजी नीति में बदलाव करना चाहिए? ये सिर्फ राजनीति नहीं, ये भारत की अस्मिता का सवाल है। और जब सवाल वजूद का हो, तो चुप रहना मुनासिब नहीं।

Conclusion

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