Ratan Tata की वसीयत: पूर्व कर्मचारी को मिले 800 करोड़! दोस्त को करोड़ों की सौगात – दिल जीतने वाली कहानी I 2025

कोई सोच भी नहीं सकता था कि भारत के सबसे सम्मानित उद्योगपतियों में से एक, Ratan Tata, अपनी मृत्यु के बाद ऐसी वसीयत छोड़ेंगे, जो पूरे देश को हैरान कर देगी। एक ऐसी वसीयत, जिसमें पैसों से ज्यादा इंसानियत और रिश्तों की अहमियत दिखती है। लेकिन इसमें सबसे चौंकाने वाला हिस्सा वो है, जिसे जानकर आप भी दंग रह जाएंगे – टाटा ग्रुप की एक पूर्व कर्मचारी को Ratan Tata ने अपनी 800 करोड़ की संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा सौंप दिया!

वो भी तब, जब आमतौर पर ऐसे धनकुबेर अपने परिजनों के लिए ही सब कुछ छोड़ते हैं। आखिर ये मोहिनी एम दत्ता कौन हैं? और क्या है रतन टाटा की वसीयत का वो पहलू जो इसे आम वसीयतों से बिलकुल अलग बनाता है? चलिए जानते हैं, रतन टाटा की उस वसीयत की पूरी कहानी, जो सिर्फ पैसे की नहीं, परंपरा, रिश्तों और कर्तव्य की मिसाल बन गई है। 

23 फरवरी 2022 को Ratan Tata ने अपनी अंतिम वसीयत तैयार की थी। यह कोई साधारण दस्तावेज़ नहीं था, बल्कि उनके जीवन के आदर्शों, उनके विश्वास और उनके द्वारा निभाए गए हर रिश्ते की भावनाओं को दर्शाने वाला दस्तावेज़ था। इसमें उन्होंने सिर्फ पैसों और संपत्ति का बंटवारा नहीं किया, बल्कि हर उस व्यक्ति को कुछ न कुछ सौंपा, जिसने उनके जीवन में कोई खास भूमिका निभाई थी – चाहे वो परिवार का सदस्य हो, दोस्त हो, कर्मचारी हो या फिर कोई जानवर ही क्यों न हो।

रिपोर्ट के मुताबिक, Ratan Tata ने अपनी कुल 3800 करोड़ रुपये की संपत्ति में से एक बहुत बड़ा हिस्सा परोपकार के लिए समर्पित कर दिया है। उनका मानना था कि सेवा और दान ही वो मूल्य हैं, जो पीढ़ियों तक जिंदा रहते हैं। इसीलिए उन्होंने टाटा संस के शेयरों का बड़ा हिस्सा ‘रतन टाटा एंडोमेंट फाउंडेशन’ और ‘रतन टाटा एंडोमेंट ट्रस्ट’ को दिया है। ये दोनों ही संगठन आगे भी समाजसेवा में लगे रहेंगे, और रतन टाटा की परोपकारी सोच को आगे बढ़ाएंगे।

लेकिन सबसे बड़ा और दिलचस्प खुलासा ये है कि Ratan Tata ने अपनी वित्तीय संपत्तियों का एक तिहाई हिस्सा – जिसकी कीमत लगभग 800 करोड़ रुपये बताई जा रही है – टाटा ग्रुप के पूर्व सहयोगी मोहिनी एम दत्ता को दे दिया। मोहिनी एम दत्ता अब तक किसी आम व्यक्ति की तरह गुमनाम जीवन जी रहे थे, लेकिन रतन टाटा ने उन्हें अपनी वसीयत में जिस सम्मान और अधिकार के साथ शामिल किया, वह पूरे कॉर्पोरेट जगत को हैरान कर गया। ये निर्णय बताता है कि रतन टाटा रिश्तों को किस कदर मानते थे, और उनके लिए वफादारी और समर्पण कितना मायने रखता था।

Ratan Tata की यह वसीयत सिर्फ मोहिनी एम दत्ता को ही नहीं, बल्कि उनके परिवार और करीबी रिश्तेदारों को भी उनके योगदान के हिसाब से सम्मान देती है। उनकी सौतेली बहनों – शिरीन और डीनना जीजीभॉय को भी संपत्तियों का बराबर हिस्सा दिया गया है। वहीं उनके जुहू स्थित शानदार बंगले को उनके भाई जिमी टाटा, जो अब 82 वर्ष के हैं और परिवार के एकमात्र जीवित वारिस माने जाते हैं, उन्हें सौंपा गया है। लेकिन यह बंगला अकेले जिमी के नाम नहीं किया गया, बल्कि इसे सिमोन टाटा और नोएल टाटा समेत अन्य परिजनों के बीच भी बांटा गया है।

इतना ही नहीं, अलीबाग की उस शानदार संपत्ति को Ratan Tata ने अपने करीबी दोस्त मेहली मिस्त्री को सौंप दिया, जो उनके जीवन में बहुत खास रहे हैं। टाटा ने लिखा है कि इस संपत्ति को हासिल करने में मेहली मिस्त्री की भूमिका बेहद अहम रही थी। यह एक ऐसा उदाहरण है, जहां दोस्ती को किसी खून के रिश्ते से कम नहीं आंका गया।

रतन टाटा ने अपनी वसीयत में उन लोगों को भी याद रखा, जिनका नाम अक्सर किसी अरबपति की वसीयत में नहीं आता – उनके स्टाफ और घरेलू सहायक। उनकी सचिव दिलनाज गिल्डर को 10 लाख रुपए की रकम सौंपी गई, वहीं लंबे समय से काम कर रहे ड्राइवर राजन शॉ एंड फैमिली को 50 लाख रुपए और सुब्बैया कोनार को 30 लाख रुपए दिए गए। यह रतन टाटा के विनम्र स्वभाव और हर वर्ग के प्रति सम्मान की भावना को दर्शाता है।

इतना ही नहीं, Ratan Tata ने अपने प्यारे पालतू जानवरों के लिए भी वसीयत में खास प्रावधान किया है। उन्होंने 12 लाख रुपये की रकम अलग रखी है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके पेट्स को हर तिमाही 30,000 रुपए की देखभाल राशि मिलती रहे। ये शायद देश में पहली बार हुआ है, जब किसी उद्योगपति ने अपने जानवरों की देखभाल के लिए इतने व्यवस्थित और संवेदनशील तरीके से प्रावधान किया हो।

उनके युवा सहायक शांतनु नायडू, जो टाटा ट्रस्ट में कार्यरत हैं और रतन टाटा के साथ लंबे समय से जुड़े हैं, उन्हें रतन टाटा ने दिया गया एजुकेशन लोन माफ कर दिया है। यह न सिर्फ एक आर्थिक राहत है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि टाटा जैसे लोग अपने कर्मचारियों की तरक्की को कितनी गंभीरता से लेते हैं, और उन्हें जीवनभर साथ निभाने वालों की तरह सम्मान देते हैं।

Ratan Tata की वसीयत में देश के बाहर की संपत्तियों का भी उल्लेख है। उनकी विदेशी संपत्तियों की कुल कीमत लगभग 40 करोड़ रुपये बताई जा रही है। इसमें सेशेल्स में ज़मीन के टुकड़े, अल्कोआ कॉर्प और हाउमेट एयरोस्पेस जैसी कंपनियों में Investment, और वेल्स फार्गो व मॉर्गन स्टेनली के बैंक खातों की जानकारी शामिल है। ये उनकी कारोबारी दूरदर्शिता और अंतरराष्ट्रीय Investment की रणनीति का उदाहरण है।

इसके अलावा, Ratan Tata ने अपने Collectibles को भी वसीयत में शामिल किया है। इनमें चांदी के खास सामान, कुछ विशिष्ट आभूषण और 65 लक्जरी घड़ियों का बेहतरीन कलेक्शन शामिल है। इन घड़ियों में बुल्गारी, पाटेक फिलिप, टिसोट और ऑडेमर्स पिगुएट जैसे विश्व प्रसिद्ध ब्रांड शामिल हैं। ये न सिर्फ टाटा की पसंद और सौंदर्यबोध को दर्शाते हैं, बल्कि उनकी जीवनशैली की एक झलक भी देते हैं।

हालांकि Ratan Tata की यह वसीयत अभी पूरी तरह लागू नहीं हुई है। इसकी प्रक्रिया अब बॉम्बे हाई कोर्ट में चल रही है, जहां इसे प्रोबेट यानी प्रमाणिकता की प्रक्रिया से गुजरना होगा। यह एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसमें यह तय किया जाता है कि वसीयत असली और कानूनी रूप से वैध है या नहीं। इस प्रक्रिया में लगभग छह महीने का समय लग सकता है। इस दौरान वसीयत के एग्जीक्यूटर्स – वकील डेरियस कंबट्टा, मेहली मिस्त्री, और शिरीन व डीनना जीजीभॉय को अदालत की अनुमति का इंतजार करना होगा, ताकि वे वसीयत में उल्लेखित वितरण को पूरा कर सकें।

Ratan Tata की यह वसीयत केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं है। यह उस सोच का प्रतीक है जो एक इंसान को महान बनाती है – सोच, जिसमें हर रिश्ता, हर सहयोगी, और यहां तक कि जानवर भी महत्वपूर्ण होते हैं। उन्होंने अपनी दौलत को किसी एक वारिस के नाम नहीं किया, बल्कि उसे समाज, परिवार, मित्रता और कर्तव्य के बीच बांट दिया। यह शायद भारत के इतिहास की सबसे मानवीय और संतुलित वसीयत मानी जाएगी।

जब कोई व्यक्ति अपनी अंतिम इच्छाओं को इस तरह सामने रखता है, तो वह केवल अपनी संपत्ति नहीं छोड़ता – वह अपने विचार, अपनी संवेदना और अपने आदर्शों को भी आगे बढ़ाता है। रतन टाटा की वसीयत इसी बात का सबसे बड़ा प्रमाण है। ये न सिर्फ एक प्रेरणा है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सबक भी – कि धन का मूल्य तब तक नहीं है, जब तक उसे सही जगह, सही समय और सही लोगों को न सौंपा जाए।

Ratan Tata ने जो किया, वह एक अरबपति की कहानी नहीं है – यह एक इंसान की महानता की कहानी है। एक ऐसी कहानी, जिसे जानकर हर कोई कहेगा – “यह सिर्फ रतन टाटा ही कर सकते थे।”

Conclusion:-

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