नमस्कार दोस्तों! आज हम चर्चा करेंगे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास द्वारा लिए गए एक बड़े और साहसिक फैसले की। हाल ही में, Finance Minister निर्मला सीतारमण और Commerce Minister पीयूष गोयल ने, देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए रेपो रेट में कटौती का अनुरोध किया था। हालांकि, Shaktikanta Das ने इस अपील को अस्वीकार कर दिया। यह फैसला तब लिया गया जब अर्थव्यवस्था धीमी पड़ रही है, और व्यापारियों को तत्काल राहत की आवश्यकता थी। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर आरबीआई ने ऐसा क्यों किया? क्या इस फैसले के पीछे कोई बड़ा उद्देश्य था? आइए, इन सभी पहलुओं को विस्तार से समझते हैं। लेकिन उससे पहले, अगर आप हमारे चैनल पर नए हैं, तो कृपया चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें, ताकि हमारी हर नई वीडियो की अपडेट सबसे पहले आपको मिलती रहे। तो चलिए, बिना किसी देरी के आज की चर्चा शुरू करते हैं!
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि रेपो रेट क्या है और यह कैसे काम करता है। रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों को शॉर्ट टर्म के लिए कर्ज देता है। जब आरबीआई इस दर को कम करता है, तो बैंकों के लिए कर्ज लेना सस्ता हो जाता है। इसका सीधा असर आम जनता और व्यापारियों पर पड़ता है, क्योंकि बैंक अपने लोन प्रोडक्ट्स जैसे होम लोन, कार लोन, और बिजनेस लोन पर ब्याज दरें कम कर देते हैं। इससे Consumption और Investment को बढ़ावा मिलता है, जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलती है। लेकिन आरबीआई का काम सिर्फ सस्ती दरें उपलब्ध कराना नहीं है। उसे महंगाई, economic stability, और Long Term विकास को भी प्राथमिकता देनी होती है।
अब बात करते हैं कि मंत्रियों की अपील और आरबीआई के निर्णय के बीच क्या संबंध है, और आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस पर क्या प्रतिक्रिया दी है?
Finance Minister निर्मला सीतारमण और Commerce Minister पीयूष गोयल ने, आरबीआई से अनुरोध किया कि रेपो रेट में कटौती की जाए ताकि व्यापारियों को राहत मिल सके और अर्थव्यवस्था को गति दी जा सके। लेकिन आरबीआई गवर्नर Shaktikanta Das ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया। उन्होंने साफ कहा कि फिलहाल महंगाई को नियंत्रित करना और long term stability बनाए रखना अधिक जरूरी है। यह निर्णय बताता है कि आरबीआई ने तात्कालिक राहत की बजाय, long term economic stability को प्राथमिकता दी। गवर्नर दास का यह कदम भले ही कुछ वर्गों के लिए आश्चर्यजनक था, लेकिन यह भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
अब सवाल है कि आरबीआई ने इस बार रेपो रेट में कटौती क्यों नहीं की?
आरबीआई ने इस बार रेपो रेट को 6.5% पर स्थिर रखा। इसके पीछे मुख्य कारण था अक्टूबर-दिसंबर 2024 Quarterly में food inflation का High Level पर बने रहना। आरबीआई के अनुसार, Food महंगाई में कमी की उम्मीद केवल 2025 की शुरुआत में की जा सकती है। आरबीआई के गवर्नर दास ने बताया कि इस Quarterly में महंगाई दर 5.7% रहने का अनुमान है, और Financial Year 2024-25 के लिए average महंगाई दर 4.8% रहने की उम्मीद है।
महंगाई का असर जनता की Purchasing Power पर सीधा पड़ता है। जब महंगाई बढ़ती है, तो लोगों की खर्च करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे Demand घटती है और अर्थव्यवस्था धीमी पड़ जाती है। आरबीआई का मानना है कि यदि महंगाई को नियंत्रित नहीं किया गया, तो इससे अर्थव्यवस्था को Long Term नुकसान हो सकता है। इसलिए, रेपो रेट में कटौती करने के बजाय महंगाई पर काबू पाने को प्राथमिकता दी गई।
अब बात करते हैं कि आरबीआई द्वारा आर्थिक वृद्धि और इंडस्ट्रियल ग्रोथ को लेकर क्या कहा गया?
भारत की जीडीपी वृद्धि दर में गिरावट एक बड़ी चिंता का विषय है। Financial Year 2024-25 के लिए आरबीआई ने जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 7.2% से घटाकर 6.6% कर दिया है। यह गिरावट Quarterly आंकड़ों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। पहली Quarterly में इंडस्ट्रियल ग्रोथ 7.4% थी, जो दूसरी Quarterly में गिरकर 2.1% हो गई।
यह मंदी न केवल अर्थव्यवस्था के लिए, बल्कि व्यापारिक गतिविधियों और रोजगार सृजन के लिए भी चिंता का कारण है। हालांकि, गवर्नर शक्तिकांत दास ने स्पष्ट किया कि Price Stability बनाए रखना, long term economic growth के लिए आवश्यक है। उनका मानना है कि economic stability के बिना, high growth rate को बनाए रखना मुश्किल है।
अब सवाल उठता है कि आरबीआई द्वारा न्यूट्रल दृष्टिकोण क्यों अपनाया गया?
आरबीआई ने अपने निर्णय में “न्यूट्रल” दृष्टिकोण अपनाया है। इसका मतलब यह है कि आरबीआई भविष्य में परिस्थितियों के अनुसार अपनी नीतियों में बदलाव कर सकता है। अगर आर्थिक मंदी और गहरी होती है, तो नीतिगत समर्थन दिया जा सकता है। लेकिन फिलहाल, गवर्नर दास ने स्पष्ट कर दिया है कि महंगाई को नियंत्रित करना प्राथमिकता है।
आरबीआई का यह दृष्टिकोण न केवल वर्तमान स्थिति का समाधान प्रदान करता है, बल्कि यह भारतीय अर्थव्यवस्था को भविष्य के झटकों से बचाने की तैयारी भी करता है। यह नीति उन Investors और Industries के लिए भी महत्वपूर्ण है, जो long term stability और विश्वसनीयता की उम्मीद करते हैं।
अब सवाल है कि मंत्रियों की Demand के पीछे क्या औचित्य दिखाई देता है?
Finance Minister निर्मला सीतारमण और Commerce Minister पीयूष गोयल की अपील तर्कसंगत थी। सस्ती ब्याज दरें Consumption और Investment को बढ़ावा देती हैं, जो आर्थिक गतिविधियों में सुधार ला सकती हैं। रेपो रेट में कटौती से आम लोगों और व्यापारियों को सीधे राहत मिलती।
लेकिन आरबीआई का मानना है कि इस समय रेपो रेट में कटौती से महंगाई का दबाव और बढ़ सकता है। गवर्नर दास ने दिखाया कि long term stability के लिए कठिन निर्णय लेना आवश्यक है। यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि आरबीआई तात्कालिक दबाव में आने के बजाय विवेकपूर्ण नीतियों को प्राथमिकता देता है।
अब सवाल है कि आरबीआई का Long-term perspective क्या है?
आरबीआई ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह तात्कालिक दबाव में आने के बजाय Long-term perspective अपनाएगा। गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि Price Stability High growth rate को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
यह दृष्टिकोण भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने में मदद करेगा। यह न केवल महंगाई को नियंत्रित करेगा, बल्कि long term investors और उद्योगों के लिए भी विश्वास का माहौल तैयार करेगा। हालांकि, इसका प्रभाव तत्काल नहीं दिखेगा, लेकिन यह कदम भविष्य के लिए एक मजबूत नींव तैयार करेगा। आरबीआई का यह फैसला दिखाता है कि वह स्वतंत्र और Neutral policies को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है। Finance Minister और Commerce Minister जैसे बड़े नामों के अनुरोध को ठुकराना आसान नहीं था। लेकिन गवर्नर दास ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए यह साहसिक कदम उठाया।
यह निर्णय न केवल आरबीआई की स्वतंत्रता को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि देश की long term economic stability को प्राथमिकता दी जा रही है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है, जो दिखाता है कि हमारी financial system मजबूत और विश्वसनीय है।
Conclusion:-
तो दोस्तों, आरबीआई का यह निर्णय महंगाई, economic stability, और Long Term विकास को ध्यान में रखकर लिया गया है। भले ही यह फैसला तुरंत राहत न दे, लेकिन यह भारतीय अर्थव्यवस्था को long term में स्थिर और मजबूत बनाएगा।
गवर्नर शक्तिकांत दास ने यह दिखा दिया है कि long term stability के लिए कठिन निर्णय लेना कितना आवश्यक है। यह कदम भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मजबूत नींव तैयार करेगा और भविष्य में स्थिरता और विकास को सुनिश्चित करेगा। अगर हमारे आर्टिकल ने आपको कुछ नया सिखाया हो, तो इसे शेयर करना न भूलें, ताकि यह महत्वपूर्ण जानकारी और लोगों तक पहुँच सके। आपके सुझाव और सवाल हमारे लिए बेहद अहम हैं, इसलिए उन्हें कमेंट सेक्शन में जरूर साझा करें। आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बेहतर बनाने में मदद करती हैं।
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