दुनिया थमी हुई सी लग रही है… जैसे कोई बड़ी आंधी आने से पहले का सन्नाटा हो। आर्थिक गलियारों में बेचैनी है, शेयर बाजारों में घबराहट है, और हर देश की सरकार किसी अनदेखे तूफान की दस्तक सुन रही है। और इस बार खतरा किसी महामारी या युद्ध से नहीं, बल्कि एक राष्ट्रपति की आर्थिक नीति से आ रहा है। जी हां, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति ने वो चिंगारी जलाई है, जो आने वाले समय में पूरी Global अर्थव्यवस्था को Recession के दलदल में धकेल सकती है।
ट्रंप के जवाबी टैरिफ लगाने के फैसले ने पूरी दुनिया में एक नई बहस छेड़ दी है – क्या हम एक और Global व्यापार युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं? experts की मानें तो इस नीति से केवल व्यापार में रुकावट नहीं आएगी, बल्कि दुनिया भर में महंगाई और बेरोजगारी की लहर भी दौड़ सकती है। अमेरिका की इस आक्रामक नीति के जवाब में अगर अन्य देश भी अपने कदम कड़े करते हैं, तो यह स्थिति और भयावह हो सकती है। परिणाम? एक global recession, जिसकी आहट अब साफ सुनाई दे रही है। आज हम इसी विषय पर गहराई में चर्चा करेंगे।
ब्रोकरेज कंपनी बर्नस्टीन ने अपने एक नोट में चेताया है कि चीन जैसे बड़े देश अमेरिका के खिलाफ जवाबी कदम उठा सकते हैं। और अगर ऐसा हुआ, तो यह केवल दो देशों की लड़ाई नहीं रहेगी – यह बन जाएगी एक Global व्यापार युद्ध। इसका असर केवल व्यापारिक आंकड़ों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि आम लोगों की रसोई, उनकी नौकरी और उनकी जिंदगी तक पहुंचेगा। क्योंकि जब महंगाई बढ़ती है, तो आम आदमी सबसे पहले उसकी चपेट में आता है।
कई देश हालात को बातचीत से संभालने की कोशिश जरूर कर रहे हैं, लेकिन अमेरिका के टैरिफ इतने व्यापक हैं कि अब उन्हें नजरअंदाज करना लगभग असंभव हो गया है। इस बार स्थिति पहले से कहीं ज्यादा गंभीर मानी जा रही है। जेपी मॉर्गन जैसी ब्रोकरेज कंपनी का मानना है कि अगर ये टैरिफ पूरी तरह लागू हुए, तो अमेरिका की प्रभावी टैरिफ दर 25% तक जा सकती है। इससे 3.3 लाख करोड़ डॉलर के अमेरिकी Import पर असर पड़ेगा। यह आंकड़ा अकेले अमेरिका की ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला देने के लिए काफी है।
इसका असर क्या होगा? जेपी मॉर्गन का विश्लेषण साफ कहता है – ये एक बड़ा आर्थिक झटका होगा। और ये झटका सीधे बाजार की धारणा पर असर डालेगा। यानी Investors का भरोसा डगमगाएगा, पूंजी का प्रवाह घटेगा, और नई नौकरियों का सृजन रुक सकता है। ऐसे में अगला सवाल ये है कि क्या अब Recession टालना संभव रह गया है?
HSBC की एक रिपोर्ट ने और भी डरावने आंकड़े पेश किए हैं। रिपोर्ट कहती है कि Global exports वृद्धि दर जो 2024 में 2.9% थी, वह घटकर 2025 में मात्र 1.3% रह जाएगी। सोचिए, पूरी दुनिया का Export ठप्प हो जाएगा। इसकी वजह क्या है? अमेरिका में मांग की कमी, Global investment में अनिश्चितता और ट्रंप की अस्पष्ट व्यापारिक नीतियां। इन तीन वजहों से दुनिया की पूरी व्यापारिक रफ्तार जैसे थम सी जाएगी।
और ये पहली बार नहीं हो रहा। जब ट्रंप पहले बार राष्ट्रपति बने थे, तब भी उनके टैरिफ ने Global जीडीपी को करीब 1% तक नीचे खींच लिया था। अब जबकि टैरिफ पहले से ज्यादा सख्त और व्यापक हैं, गिरावट का आंकड़ा कितना बड़ा होगा, ये सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
महंगाई भी इस युद्ध की एक बड़ी मारक चेहरा बनकर उभर रही है। जेपी मॉर्गन के अनुसार, टैरिफ लागू होने से इस साल पूरी दुनिया में महंगाई दर में करीब 2% की बढ़ोतरी हो सकती है। अब सोचिए, पहले ही महंगाई से जूझती जनता पर जब चीजें और महंगी होंगी, तो खर्च घटेगा। खर्च घटेगा तो मांग कम होगी। मांग कम होगी तो उत्पादन रुकेगा। और उत्पादन रुकेगा तो नौकरी जाएंगी। यानी एक सीधा रास्ता – महंगाई से Recession तक।
बाजार Expert भी मानते हैं कि इस स्थिति से निकट भविष्य में भारी उथल-पुथल आ सकती है। शेयर बाजार अस्थिर रहेंगे, Investors की सोच बदलेगी, और फेडरल रिजर्व की monetary policy तक को झटका लगेगा। एक्सिस सिक्योरिटीज का कहना है कि टैरिफ की सीमा उम्मीद से कहीं ज्यादा हो चुकी है। ऐसे में बाजार में गिरावट का दौर अभी और गहरा हो सकता है।
लेकिन यहां एक दिलचस्प बात यह है कि कुछ Investor इसे अवसर के रूप में भी देख रहे हैं। एक्सिस सिक्योरिटीज ने 10% तक Investment बढ़ाने और गिरते बाजार में उच्च गुणवत्ता वाले शेयरों में पैसा लगाने की सलाह दी है। यानी Recession में भी कुछ लोगों को मुनाफा दिख रहा है। पर क्या यह सामान्य Investor के लिए भी संभव है? शायद नहीं।
अब बात भारत की करें तो यहां की अर्थव्यवस्था भी इस तूफान से अछूती नहीं रहेगी। E Y का मानना है कि 27% टैरिफ लागू होने की स्थिति में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 0.5% तक गिर सकती है। यानी जो विकास दर 6.5% मानी जा रही थी, वह घटकर 6% रह सकती है। इतना ही नहीं, चालू वित्त वर्ष में अमेरिका को भारत का Export भी 2 से 3% तक कम हो सकता है। यानी भारत की अर्थव्यवस्था को दोहरी मार पड़ सकती है – एक तरफ विकास दर में गिरावट और दूसरी तरफ व्यापार में नुकसान।
स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की भारत इकाई की रिसर्च हेड अनुभूति सहाय के अनुसार, इस स्थिति में भारत की वृद्धि दर पर 0.35 से 0.4% तक का असर पड़ सकता है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि इसका अंतिम प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौता किस दिशा में जाता है। यानी अभी भी बातचीत की उम्मीद बाकी है।
बातचीत की इस उम्मीद को मजबूत करता है बर्नस्टीन का यह निष्कर्ष कि भारत के आईटी और फार्मा सेक्टर को टैरिफ से राहत दी गई है। ये दोनों सेक्टर भारत के लिए रीढ़ की हड्डी जैसे हैं। अगर इन्हें नुकसान नहीं पहुंचता, तो भारत कुछ हद तक इस संकट से बच सकता है। और चीन पर टैरिफ का ज्यादा भार होने के कारण कुछ Investment भारत की ओर भी शिफ्ट हो सकता है।
लेकिन सवाल फिर वही उठता है – क्या ये राहत स्थायी होगी? क्या भारत इस व्यापार युद्ध से लंबी दूरी तक खुद को बचा पाएगा? या फिर ये सिर्फ कुछ समय की बात है और असल जंग अभी बाकी है?
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय बातचीत जारी है। लेकिन ट्रंप की अनिश्चित नीतियों के बीच यह बातचीत कब दिशा बदल ले, कुछ कहा नहीं जा सकता। क्योंकि ट्रंप व्यापार को ‘डील’ की तरह देखते हैं, न कि ‘नीति’ की तरह। और जब नीतियां डील्स में बदल जाती हैं, तो स्थिरता की उम्मीद करना जोखिम भरा हो जाता है।
टैरिफ के इस Global जाल में हर देश खुद को बचाने की जद्दोजहद कर रहा है। कोई अमेरिका से रिश्ते संभाल रहा है, तो कोई चीन से मुकाबले की तैयारी में है। लेकिन जो बात सबसे खतरनाक है, वो है – इस टैरिफ युद्ध की अनिश्चितता। क्योंकि जब बाजारों को यह नहीं पता होता कि अगले महीने क्या होने वाला है, तो वो अपनी पूंजी समेटने लगते हैं। और यही पूंजी जब सिस्टम से बाहर जाती है, तो Recession धीरे-धीरे पांव पसारती है।
अब जब हम 2025 की ओर बढ़ रहे हैं, तो यह स्पष्ट हो रहा है कि Global व्यापार का चेहरा बदलने वाला है। Tariffs, embargoes, countervailing duties, और राजनीतिक सौदेबाजियों की यह श्रृंखला एक नई आर्थिक दुनिया की शुरुआत है। और इस दुनिया में न तो स्थायित्व है, न ही भरोसा – सिर्फ एक सवाल है – अगला झटका कब और किसे लगेगा?
Conclusion:-
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